महल में नदी
...नदी पर महल, या महल में नदी!! ...इसे क्या कहा जाये - अदम्य इच्छाशक्ति, पानी से इतना प्यार, अद्भुत इंजीनियरिंग या नदी का कुछ काल के लिये कुण्ड बन जाना और ...फिर पुनः वही पुरानी नदी बन जाना! मानो थोड़ी देर के लिये मूड बदला है! ...पानी के इस सफर को देखकर आप अचम्भित रह जाएँगे! मध्य प्रदेश के ख्यात धार्मिक स्थल भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन से 8 किलोमीटर दूर भैरवगढ़ किले के पास बना है - कालियादेह महल! पानी के अद्भुत प्रबंधन की कहानी जानने के पहले यहाँ की मशहूर किंवदंती भी सुन लीजिये…!

...आखिर राज क्या है - इतनी ‘हस्तियों’ के इस पर फिदा होने का…!
...सबसे पहले देखें - इसकी अद्भुत इंजीनियरिंग!
दरअसल, यह नदी का कुछ क्षेत्र के लिये और कुछ वक्त के लिये स्वरूप बदलने वाला अपने तरह का अनूठा जल प्रबंधन है। उज्जैन में बह रही शिप्रा नदी को इस प्रबंधन के पहले दो हिस्सों में बाँटा गया है। इसके एक हिस्से पर यह संरचना तैयार की गई है। कालियादेह महल में 52 पानी के कुण्ड बने हुए हैं। कोई छोटा है तो कोई बड़ा। कोई दो फीट गहरा है तो कोई 10 फीट से भी ज्यादा ये कुण्ड अत्यन्त ही सुन्दर है। इनकी सुन्दरता उस समय और बढ़ जाती है, जब शिप्रा नदी कभी एक कुण्ड में तो कभी दूसरे कुण्ड में इठलाती, मुस्कुराती, खिलखिलाती- अंखियाँ मटकाती- अपना रास्ता तय करती है। बीच में एक सर्पिल आकार की संरचना भी बनी हुई है, जिसमें पानी कभी दाहिनी ओर तो कभी बायीं ओर प्रवाहमान रहता है। ये कुण्ड सुन्दर छोटी-छोटी नालियों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं- यानी, नदी दो पाटों के बीच न बहते हुए कुण्ड की चौकोर रचनाओं में बहती हैं। एक कुण्ड से दूसरे कुण्ड की ओर जाने के लिये बीच-बीच में रास्ते भी बने हुए हैं। इन रास्तों में पहुँचकर जब भी कोई बीच में पहुँचता है तो वह अपने चारों ओर कुण्डों को पाता है। यह एक मनोरम दृश्य होता है। यहाँ मुख्य रूप से तीन कुण्डों का नामकरण भी किया गया है- सूर्य कुण्ड, ब्रह्म कुण्ड और अग्नि कुण्ड। यहाँ कई लोग आकर पूजा-अर्चना भी करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहाँ अमावस्या को कथित तौर पर बाहरी ‘बाधाओं’ से ग्रसित व्यक्ति को स्नान कराने से वह ‘मुक्त’ हो जाता है। अग्नि कुण्ड के भीतर छतरी भी बनी हुई है। पाँच कुण्ड तो किले के भीतर लम्बे हॉल बने हुए हैं।
...आखिर यह पानी इतने व्यवस्थित तरीके से आता कहाँ से है? ...दरअसल, उस काल में भी शिप्रा नदी को पत्थरों का बाँध बनाकर रोका गया है। यह इस बात का प्रतीक है कि बाँध बनाने की प्रक्रिया उस काल में भी अपना अस्तित्व ले चुकी है। यहाँ यह खास उल्लेखनीय है कि 11वीं शताब्दी में भी बाँध बनाकर राजा भोज ने भोजपुर में एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील बना दी थी, इसलिये शिप्रा पर इस तरह का छोटा बाँध तो उसी परम्परा की अगली कड़ी माना जा सकता है। बहरहाल, यह बाँध पूरी तरह पत्थरों का है और इस पर खड़े होकर यदि हम कालियादेह महल के कुण्डों की दिशा में देखें तो ऐसा लगता है कि नदी किसी ‘किले’ में प्रवेश कर रही है और लगभग 17 ‘दरवाजे’ खुले हैं!
दरअसल, शिप्रा के किले में ‘आगमन’ का प्रबंधन भी अनूठा है। बाँध पर ‘गेट’ से निकलने के बाद पानी इन रास्तों से आता है। यहाँ छोटी-छोटी भूमिगत नहरें बनी हुई हैं। ये नहरें नालियों के नेटवर्क से जुड़ी हैं… और ये नालियाँ कुण्डों में पानी ले जाती हैं, जो एक-दूसरे में प्रवेश करते हुए आगे बढ़ते जाता है।
...शिप्रा के आगमन की माफिक ही उसका इन कुण्डों से प्रस्थान भी कम दिलचस्प नहीं है।
...जल प्रबंधन की रमणीयता कायम रखने के लिये कुण्डों से विदाई के दौरान नदी को ‘झरने’ जैसी कृत्रिम आकृति से उतारा गया है। यह संरचना बड़े पत्थर पर बनी है। यह मिट्टी के दीपक जैसी आकृति से खुदी होती है। जब पानी इसमें से उतरता है तो ‘झरने’ जैसा आभास देता है! इस तरह की संरचना मुगलकालीन सभ्यता की प्रतीक है। मांडव के नीलकण्ठेश्वर मन्दिर और भोपाल के इस्लाम नगर में भी इनके ‘दीदार’ होते हैं। महल के बाहर विदाई के बाद शिप्रा पुनः नदी स्वरूप में लौटकर आगे बहने लगती है।
किले के दूसरी ओर शिप्रा के बाहरी हिस्सों में भी रियासतकालीन स्टॉपडैम बने हुए हैं। पुरानी संरचनाओं से जाहिर है कि राजाओं का दिल जब शिप्रा को दूसरे स्वरूप में देखने को लालायित रहता होगा तो वे इस ओर आ जाते होंगे। यहाँ नीचे उतरने के रास्ते भी बने हैं। सत्ता पुरुषों का यह पानी प्रेम- रीवा रियासत के गोविन्दगढ़ में भी देखने को मिलता है। जहाँ महाराजा के आरामगाह ‘खखरी’ से तालाब किनारे जाने की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं।

पानी का अनूठा स्मारक उज्जैन में कावेरी शोध संस्थान के अध्यक्ष डॉ. श्यामसुन्दर निगम कालियादेह महल के जल प्रबंधन के खासे जानकार हैं और इसके रख-रखाव को लेकर चिन्तित भी रहते हैं। उनका कहना है कि मध्य प्रदेश का एकमात्र ऐसा अनूठा जल प्रबंधन है, जिसमें नदी को पहले दो भागों में बाँटकर, फिर उस पर बाँध बनाकर उसे कुण्डों में उतारा गया था। आपके अनुसार- “सरकार और व्यवस्था यदि इस पर ध्यान दें तो यह पानी संचय प्रणाली का अनूठा स्मारक बन सकता है, जो यहाँ आने वाले लोगों को प्रेरणा देता है कि मध्य प्रदेश में भी पानी-संचय की इतनी सुन्दर परम्परा रही है।” किसी जमाने में यह अत्यन्त रमणीक स्थल हुआ करता था- लेकिन अब इसके हालात ठीक नहीं हैं। यह पर्यटन की दृष्टि से भी मध्य प्रदेश के नक्शे में एक बेहतर स्थान हो सकता है। यहाँ परिसर में बना सूर्य मन्दिर और अन्य रियासतकालीन इमारतें भी देखने लायक हैं। |
मध्य प्रदेश में जल संरक्षण की परम्परा (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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