मैला प्रथा से मुक्ति कब
इस साल मैगसेसे पुरस्कार दो ऐसे व्यक्तियों को मिला है जो जाति प्रथा के ढाँचे, पेशेगत गुलामी को चुनौती दे रहे हैं। इनमें बेजवाड़ा विल्सन मैला प्रथा से मुक्ति के संघर्ष के अग्रणी और अनथक कार्यकर्ता हैं। उनसे एक बातचीत।

एशिया का नोबेल कहे जाने वाले रमन मैगसेसे पुरस्कार पाने वाले आप पहले भारतीय दलित हैं, इससे आपकी लड़ाई को कितना बल मिलेगा।
फ्लोराइड पीड़ित गाँवों में पहुँची सरकार

छिंदवाड़ा में काम करते हुए उन्होंने कई ऐसे गाँवों के बारे में पता लगाया जो फ्लोराइड से प्रभावित हैं। इन गाँवों में वे स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर कई तरह के काम कर रही हैं।
जल समाधि का मन बनाकर गया था : किशोर कोडवानी

यह दावा प्रकृति के जानकार विशेषज्ञ कर रहे हैं। हम किस तरह के विकास की बातें कर रहे हैं, यह कौन सा विकास है। हम किस दिशा में जा रहे हैं। क्या हम सामूहिक आत्महत्याओं की दिशा में बढ़ रहे हैं।
बुन्देलखण्ड को नष्ट करने की साजिश हो रही हैः परिहार
प्राकृतिक आपदा और सरकारी तंत्र से बेहाल बुन्देलखण्ड सालों से सूखे की मार झेल रहा है। सूखे के चलते खेत-खलिहान चौपट हो गए हैं। लोगों को दो जून की रोटी तक नसीब नहीं हो पा रही है। इस स्थिति में किसान शहर की तरफ पलायन कर रहे हैं। पलायन और बुन्देलखण्ड के किसानों से जुड़े सवालों पर भारतीय किसान यूनियन (भानु) के बुन्देलखण्ड अध्यक्ष शिव नारायण सिंह परिहार से सोपानSTEP के लिये रमेश ठाकुर ने बातचीत की। प्रस्तुत है, बातचीत के प्रमुख अंश:
पिछले दो दशकों से बुन्देलखण्ड बूरे दौर से गुजर रहा है। मौजूदा समय में क्या हालात हैं?

खबर है कि भुखमरी के कारण लोग यहाँ से दूसरे जगहों के लिये पलायन कर रहे हैं?
सामाजिक सरोकार को समर्पित विद्या

केंद्र सरकार की कई परियोजनाओं से जुड़कर वे अब सामाजिक क्षेत्र में भी एक नया मुकाम हासिल करने की ओर अग्रसर हैं। असल में बालन ने मुंबई विश्वविद्यालय से सामाजशास्त्र में एमए किया है और आज वे सामाजिक कामों में बढ़चढ़कर हिस्सा ले रही हैं इसका थोड़ा श्रेय उनकी शिक्षा-दीक्षा को भी जाता है।
सामाजिक मुहिम में उनकी उपलब्धि की बात करें तो वर्ष 2011 में वे वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर-इंडियाज अर्थ आवर अभियान से जुड़ीं और फिर बच्चों की शिक्षा से जुड़े अभियान छोटे कदम प्रगति की ओर की ब्रांड अम्बेसडर बनीं। संप्रति वे निर्मल भारत अभियान से भी जुड़ी हैं जिसका लक्ष्य वर्ष 2017 तक सभी ग्रामीण घरों में शौचलय की सुविधा मुहैया करवाना है। विद्या बालन के करियर, सामाजिक मुद्दों पर उनके रुझान और उनकी निजी जिंदगी को लेकर हरबीन अरोड़ा ने लम्बी बात बातचीत की। यहाँ पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश-
जरूरतमंदों की मदद से खुशी मिलती है-नाना पाटेकर

हाँ, इस दौर में भी कुछ गिने चुने अभिनेता हैं जो चुपचाप अपने सामाजिक दायित्वों का बड़ी ही शिद्दत से निर्वाह कर रहे हैं। इनमें एक अहम नाम है नाना पाटेकर का। लीक से हटकर और मसाला दोनों तरह की फिल्मों में सफलता का परचम लहराने वाले नाना पाटेकर कई दशकों से सामाजिक कामों में तल्लीनता से लगे हुए हैं। उनके सामाजिक दायित्वबोध का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे अपनी हर फिल्म से मिलने वाली राशि का एक हिस्सा जरूरतमंदों के लिए अलग रख देते हैं।
सामाजिक कामों के चलते वे अक्सर ही चर्चा में रहते हैं लेकिन इस बार महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जाकर उन्होंने उन परिवारों की मदद की जिनके घर के लोगों ने कृषि संकट से हारकर आत्महत्या कर ली थी। उनके इस कदम ने मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा और वे सुर्खियों में आ गये। पाटेकर के इस निःस्वार्थ कदम का फायदा यह हुआ कि उनके अभियान से जन आंदोलन का एक माहौल बनने लगा। इस बीच नाना पाटेकर ने नाम फाउंडेशन की स्थापना कर डाली ताकि सूखाग्रस्त लोगों को मदद दी जा सके।
नाना पाटेकर की पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखें तो यह समझना आसान होगा कि क्यों सामाजिक मुद्दे उन्हें अपनी ओर खींचते हैं। वे जिस परिवार से आते हैं उस परिवार की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी लिहाजा उन्हें छोटी उम्र में ही पैसे कमाने के लिए कई तरह के काम करने पड़े।
देश में पहली बार पानी राजनीति के केन्द्र में है - संजय सिंह

जल जन जोड़ो अभियान एक राष्ट्रव्यापी अभियान है जो पूरे देश में पानी यानी तालाब, नदियों तथा अन्य जल स्रोतों के संरक्षण का काम करने वाले संगठनों और व्यक्तियों का साझा मंच है। यह कोई पंजीकृत संस्था नहीं है न ही यह कोई स्वयंसेवी संगठन है। बल्कि यह सिविल सोसाइटी की तरह काम करता है। इसकी शुरुआत अप्रैल 2013 में हुई थी।
यह देश के किन हिस्सों में काम कर रहा है?
फिलहाल देश के 20 राज्यों में यह अभियान सक्रिय रूप से काम कर रहा है। अलग-अलग राज्यों में इसकी सक्रियता के कारण अलग-अलग परिवेश और बोली बानी वाले लोग इसमें सक्रिय हैं। यह बात भी इसे एक किस्म की पूर्णता प्रदान करती है।
अब तक अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में किस हद तक सफल रहा है?
हम गाँव-गरीब-किसान के प्रति संवेदनशील और प्रतिबद्ध हैंः मोहनभाई
देशभर में सूखे की मार पड़ी है। दस राज्यों के 300 जिले बुरी तरह चपेट में हैं। सरकार हर सम्भव कार्य कर रही है। बाकायदा निगरानी के लिये केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में मंत्रियों की एक टीम बना दी गई है। दुष्प्रभावित राज्यों को फौरी मदद के लिये आवश्यक धनराशि भेज दी गई है। मराठवाड़ा क्षेत्र में जलदूत नाम से पानी की स्पेशल ट्रेन चलाई गई है। केन्द्र सरकार सूखे से निपटने के लिये क्या कुछ ठोस प्रयास कर रही है, इन तमाम बिन्दुओं पर केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री मोहनभाई कुंदरिया से ‘कृषि चौपाल’ के सम्पादक महेन्द्र बोरा और ललित पांडे ने विस्तार से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंशः

देशभर में सूखा पड़ा है लेकिन केन्द्र सरकार हालात से निपट नहीं पा रही है?
ऐसा बिल्कुल नहीं है। हमारी सरकार सूखे पर बेहद चिंतित और गम्भीर है। हम हर सम्भव कोशिश कर रहे हैं। दस राज्यों के 300 जिलों में सूखा पड़ा है। हमारे अधिकारियों की कमेटी ने इन जिलों में जाकर स्थिति का आकलन किया है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी के अध्यक्षता में मंत्रियों की एक कमेटी भी बनाई गई है। सुविधाएं और पैसा सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भेजा गया है। हमारे कृषि वैज्ञानिक भी स्थिति का आकलन कर रहे हैं, साथ ही यह अध्ययन भी कर रहे हैं कि कम पानी में कौन सी फसल उगाई जा सकती है और पशुपालन के लिये कम संसाधनों में कौन सी घास उगाई जा सकती है। सूखे से निपटने के लिये हम क्या-क्या कर रहे हैं और क्या-क्या करने वाले हैं इसकी रिपोर्ट संसद में भी रखी गई है।
लेकिन केन्द्र सरकार तब जागी जब सुप्रीम कोर्ट ने सूखे पर सख्ती दिखाई?
बुरहानपुर में पानी बचाने, पानी कमाने का जतन कर रहे लोग
महाराष्ट्र में पानी के लिये हाहाकार मचा हुआ है। लातूर और जलगाँव में पानी के लिये लोग कानून-व्यवस्था अपने हाथ में ले रहे हैं। हालात काबू में रखने के लिये प्रशासन को धारा 144 लगानी पड़ रही है। लेकिन बुरहानपुर के लोगों ने पानी की समस्या को सावधानी और सतर्कता के साथ सुलझाने की कोशिश की है। सोच और संकल्प यह है कि न तो पानी की रेलगाड़ी बुलाने की नौबत आये और न ही पानी की छीना-झपटी रोकने के लिये पुलिस को धारा 144 लगानी पड़े। गाँव के लोग पानी के लिये लड़ नहीं रहे, पानी बचाने का प्रयास कर रहे हैं। किसान को याद हो चला है कि वे पानी बना तो नहीं सकते, हाँ! पानी को बचा जरूर सकते हैं।

जसौंदी की सरपंच शोभाबाई रमेश प्रचंड गर्मी और पानी की किल्लत से दो-दो हांथ करने के लिये तैयार हैं। शोभाबाई कहती हैं- हमारी क्षेत्र की जनप्रतिनिधि अर्चना दीदी हमारे साथ हैं, हम पानी की किल्लत और सूखे से पार पा लेंगे।