केंद्रीय भूमि जल प्राधिकरण : कुछ तथ्य, कुछ जानकारियां

मध्य प्रदेश में शुरू हुए जल आन्दोलन ने बुनियादी मोर्चे पर एक बुनियादी रास्ता पकड़ा है। यह रास्ता है -सामुदायिक संपदाओं के रख-रखाव में लोक सहभागिता का। पहले जल, जमीन के रखरखाव व संवर्द्धन में किसी परियोजना के गुंबद से लगाकर नींव तक ब्यूरोक्रेसी लगी रहती थी। लोक सहभागिता को नगण्य महत्व दिया जाता था। मध्य प्रदेश में नए पानी आन्दोलन ने इस प्रवृत्ति को बदला है। पानी समिति के पदाधिकारी और गांव स्तर पर जुटा समाज अब नायक के रूप में है। योजना के क्रियान्वयन में इन की भूमिका अहम होती है। जबकि सरकारी अमला मददगार के रूप में खड़ा है।
उज्जैन जिला लगातार तीन वर्षों से सूखे की मार झेल रहा है। पीने के पानी के लिए हाहाकार की स्थिति निर्मित हो जाती है। बेचारे किसानों के सामने तो रबी फसलों के लिए पानी का इतंजाम कैसे करें? यह समस्या आन पड़ती है। जिले में 150 फिट की गहराई का पानी समाप्त हो चुका है। कहीं-कहीं तो 500-600 फिट पर भी पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है। अनेक किसान नलकूप से पानी प्राप्त करने की चाहत में कर्ज से लद गए। लेकिन उन्हें पानी नसीब नहीं हुआ। ऐसे अनेक किसान जमीन और नलकूप के मालिक होने के बाद भी मजदूरी कर इस कर्ज को पटा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में शुरू हुए जल आन्दोलन ने बुनियादी मोर्चे पर एक बुनियादी रास्ता पकड़ा है। यह रास्ता है -सामुदायिक संपदाओं के रख-रखाव में लोक सहभागिता का। पहले जल, जमीन के रखरखाव व संवर्द्धन में किसी परियोजना के गुंबद से लगाकर नींव तक ब्यूरोक्रेसी लगी रहती थी। लोक सहभागिता को नगण्य महत्व दिया जाता था। मध्य प्रदेश में नए पानी आन्दोलन ने इस प्रवृत्ति को बदला है। पानी समिति के पदाधिकारी और गांव स्तर पर जुटा समाज अब नायक के रूप में है। योजना के क्रियान्वयन में इन की भूमिका अहम होती है। जबकि सरकारी अमला मददगार के रूप में खड़ा है।
उज्जैन जिला लगातार तीन वर्षों से सूखे की मार झेल रहा है। पीने के पानी के लिए हाहाकार की स्थिति निर्मित हो जाती है। बेचारे किसानों के सामने तो रबी फसलों के लिए पानी का इतंजाम कैसे करें? यह समस्या आन पड़ती है। जिले में 150 फिट की गहराई का पानी समाप्त हो चुका है। कहीं-कहीं तो 500-600 फिट पर भी पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है। अनेक किसान नलकूप से पानी प्राप्त करने की चाहत में कर्ज से लद गए। लेकिन उन्हें पानी नसीब नहीं हुआ। ऐसे अनेक किसान जमीन और नलकूप के मालिक होने के बाद भी मजदूरी कर इस कर्ज को पटा रहे हैं।
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