निर्णायक दौर में गंगा तपस्या
बंद फाइल में जा चुका गंगाएक्सप्रेस-वे का जिन्न अखिलेश यादव की सरकार की पहल पर एक बार फिर से गंगा के सीने पर मूंग दलने के लिए बाहर आने की तैयारी कर चुका है। उत्तराखंड की सरकार तो और भी खराब भूमिका में उतर आई है। उसने राष्ट्रीय नदी का गला घोंट डालने वालों के पक्ष में ही आंदोलन प्रायोजित कर डाला है। वे धमकी दे रहे हैं कि यदि उत्तराखंड की एक भी जलविद्युत परियोजना रोकी गई, तो वे न मालूम क्या कर देंगे।
संकेत मिलने लगे है कि अब गंगा तपस्या निर्णायक दौर में पहुंच गई है। आगामी गंगा दशहरा की तिथि यानी 31 मई इस तपस्या की गाथा में कोई निर्णायक मोड़ ला सकती है। इसकी संभावना बढ़ गई है। पांच में से तीन गंगा तपस्वियों की हालत नाजुक है। बाबा नागनाथ, ब्रह्मचारी कृष्णप्रियानंद और गंगाप्रेमी भिक्षु जी। बाबा नागनाथ ने ड्रिप लगाने पर आत्मदाह की धमकी दे दी है। लिहाजा प्रशासन उनके पास फटकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। कृष्णप्रियानंद और गंगा प्रेमी को प्रशासन ने अस्पताल में जबरन भर्ती करा दिया है। गंगासेवा अभियानम् के सार्वभौम प्रमुख स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भी 7 मई को अन्न त्याग कर अपनी तपस्या के श्रीगणेश की घोषणा कर दी है। इसके बाद से उक्त तीनों गंगा तपस्वियों ने मुंह से जरिए कुछ भी लेने से इंकार कर दिया है। इसके साथ ही हालात ज्यादा नाजुक हो गये हैं। फिलहाल एक जटिल तपस्वी की भांति स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने साफ कह दिया है कि सरकार कुछ न करे। बस! भगवान के लिए हमारी तपस्या में कोई बाधा न डाले। समाचार है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद 15 मई को दिल्ली में आगे की रणनीति की घोषणा करेंगे।यह सही है कि गंगा सेवा अभियानम् द्वारा मकरसंक्रान्ति - 2012 को आहूत गंगा तपस्या अब तपस्या की असल परिभाषा के अनुरूप परवान चढ़ रही है। तपस्वी बिना किसी की प्रतिक्रिया व समर्थन की प्रतीक्षा अपने मन के संकल्प की दिशा में रत हो जाता है। वह इसकी प्रतीक्षा भी नहीं करता कि उसके संकल्प को पूरा करने वाला देवता कब आयेगा। गंगा तपस्या अब इसी रास्ते पर चल पड़ी है। यह तपस्या कब तक चलेगी, पता नहीं। क्योंकि सरकार द्वारा पहल की जो थोड़ी-बहुत उम्मीद पहले थी, वह 16 अप्रैल की राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण की बैठक के साथ ही खत्म हो गई। गंगा के लिए संघर्ष की बात करने वाले संगठनों द्वारा बनाई दूरी व एकजुटता के अभाव ने यह नाउम्मीदी और बढ़ा दी है।
सत्ता व समाज सवालों के घेरे में
गंगा हत्या को सत्ता पक्ष-विपक्ष सब सहमत
बंद फाइल में जा चुका गंगाएक्सप्रेस-वे का जिन्न अखिलेश यादव की सरकार की पहल पर एक बार फिर से गंगा के सीने पर मूंग दलने के लिए बाहर आने की तैयारी कर चुका है। उत्तराखंड की सरकार तो और भी खराब भूमिका में उतर आई है। उसने राष्ट्रीय नदी का गला घोंट डालने वालों के पक्ष में ही आंदोलन प्रायोजित कर डाला है। वे धमकी दे रहे हैं कि यदि उत्तराखंड की एक भी जलविद्युत परियोजना रोकी गई, तो वे न मालूम क्या कर देंगे। ऐसी ही धमकी उत्तराखंड की पूर्व भाजपा सरकार के सहयोगी दल उत्तराखंड क्रांति दल के अगुवा ने जलविद्युत परियोजनाओं से हो रहे नदियों के बिगाड़ का विरोध कर रहे जलपुरुष राजेन्द्र सिंह के उत्तराखंड प्रवेश पर दी थी। इसे क्या माने? यह गंगा को मारने के नाम पर पक्ष-प्रतिपक्ष, केंद्र और राज्य के बीच गजब की सहमति नहीं तो और क्या है? दुर्योग है तो बस! इतना कि ऐसी गजब की सहमति संतों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच नहीं बन पा रही।
एकजुट नहीं झंडाबरदार
गंगा महासभा ने सरकार से इस पूरे प्रकरण पर कुछ नाराजगी व कुछ सुझाव जाहिर कर ही इतिश्री कर ली है। महासभा ने गंगा रक्षा के लिए जब तक कानून पारित न हो जाये, तब तक अध्यादेश लाने के लिए राजनैतिक पहल के प्रयास व तीन संत सम्मेलन की बात कही जरूर है, लेकिन उनकी प्रतिबद्धता प्राधिकरण के पुनर्गठन हेतु उनके सुझाये सदस्यों वाली कमेटी के निर्माण और कुंभ के प्रबंधन का ठेका पाने में अधिक दिखाई देती है। गंगा महासभा पूर्व भाजपा नेता व चिंतक के एन गोविंदाचार्य के मार्गदर्शन, प्रेमस्वरूप पाठक की कार्यकारी अध्यक्षता और आचार्य जितेन्द्र के महामंत्रित्व में चलने वाला संगठन है।
कब साथ आयेंगे पैरोकार?

चेतावनी पतन की

मैं एक लेखक हूं। लिख रहा हूं और आप?....
यदि ये कंधे अभी एकजुट होने को तैयार नहीं हैं, तो आगे गंगा की अर्थी अपने कंधे पर उठाने को तैयार रहें।

Posted by