
पश्चिमी हिमालय में जल संचय की व्यापक प्रणाली रही है, किसानों में भूतल के हिसाब से नहरें बनाने और पहाड़ी धाराओं और सोतों से पानी निकालने की परम्परा रही है। इन नहरों को कुहल कहा जाता है। कुहल की लम्बाई एक से 15 किमी तक होती है। इनका समलम्बी बहाव क्षेत्रफल 0.1-0.2 वर्गमीटर होता है और सामान्यतः इनसे प्रति सेकेंड 15 से 100 लीटर तक पानी बहता है। कुछ कुहलों में बरसाती और ऊपर से बर्फ पिघलने से बना पानी, दोनों इकट्ठे होते हैं। इसके चलते कभी-कभी ऐसे कुहल भी पाये जाते हैं जिनका पानी आगे बढ़ते जाने के साथ बढ़ता जाता है। यह जल बहाव मौसम के साथ बदलता भी है। एक अकेला कुहल नालियों के जरिए या जलोत्प्लावन से 80 से 400 हेक्टेयर क्षेत्रफल की सिंचाई करता है। सिंचित भूमि पहाड़ी ढलान पर होती है और यह सीढ़ीनुमा होती है। बाह्य और मध्य हिमालय में 350 से 3,000 मीटर की ऊँचाई पर यह प्रणाली आमतौर पर प्रचलित है। कुहल के रास्ते में जहाँ भी तेज ढलान आती है, वहाँ जल गिराव का इस्तेमाल आटा चक्की जैसी सामान्य मशीनों को चलाने में भी किया जाता है। एक कुहल की निर्माण लागत 3,000 से 5,000 रुपए प्रति किमी आती है।1 जम्मू क्षेत्र में तालाब बनाने की भी व्यापक परम्परा है।
सारणी 2.2.1 : हिमाचल क्षेत्र के राज्यों में कुल सिंचित क्षेत्र (1988-89) (अनुमानित) | |||||||
राज्य | नहरें | तालाब (हजार हेक्टेयर) | कुएँ (नलकूप सहित) (हजार हेक्टेयर) | अन्य स्रोत (हजार हेक्टेयर) | कुल (हजार हेक्टेयर) | ||
सरकारी (हजार हेक्टेयर) | निजी (हजार हेक्टेयर) | कुल (हजार हेक्टेयर) | |||||
अरुणाचल प्रदेश | - | - | - | - | - | 32 | 32 |
असम | 71 | 291 | 362 | - | - | 210 | 572 |
हिमाचल प्रदेश | - | - | - | - | 11 | 88 | 99 |
जम्मू एवं कश्मीर | 130 | 159 | 289 | 3 | 3 | 15 | 310 |
मणिपुर | - | - | - | - | - | 65 | 65 |
मेघालय | - | - | - | - | - | 50 | 50 |
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