गीत

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अस्ताचल रवि, छलछल-छवि,
स्तब्ध विश्व कवि, जीवन-उन्मन,
मंद पवन बहती सुधि रह-रह
परमिल की कह कथा पुरातन।

दूर नदी पर नौका सुंदर,
दीखी मृदुतर बहती ज्यों स्वर,
वहाँ स्नेह की प्रतनु देह की
बिना गेह की बैठी नूतन।

ऊपर शोभित मेघ छत्र सित,
नीचे अमिट नील जल दोलित;
ध्यान-नयन-मन, चिन्त्य प्राण-धन
,किया शेष रवि ने कर अर्पण।

1932 : ‘अपरा’ में संकलित

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