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ग्लोबल-वार्मिंग(विश्विक-भूताप) की गंभीर चुऩौती का सामऩा करऩे के लिय़े भारत- ऊर्ज़ा के वैकल्पिक स्त्रोतों की दिशा में अग्रसर हैं। पर उसे य़ह भी समझऩा होगा कि विकल्पों की भी अपऩी सीमाएँ हैं तथा उऩको बहुत वॄहद पैमाऩे पर अंधाधुंध अपऩाऩे से कई समस्य़ाएँ भी उत्पऩ्ऩ हो सकती हैं।
जिस पेट्रोलियम को आधुनिक सभ्यता का अग्रदूत कहा जाता हैं, वह वरदान है अथवा अभिशाप है, क्योंकि इसके उपयोग से भारी प्रदूषण हो रहा है जिससे इस धरती पर जीवन चुनौतीपूर्ण हो गया। आज पेट्रोलियम तथा औद्योगिक कचरा समुद्रों का प्रदूषण बढ़ा रहा है, तेल के रिसाव-फैलाव नई मुसीबतें हैं।
हाल की एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की ओर से हो रही ग्लोबल वॉर्मिंग या वैश्विक-तापन में 19-प्रतिशत वृहद बाँधों के कारण है। विश्वभर के वृहद बाँधों से हर साल उत्सर्जित होने वाली मिथेन का लगभग 27.86-प्रतिशत अकेले भारत के वृहद बाँधों से होता है, जो अन्य सभी देशों के मुकाबले सर
हम ‘पर्यावरण’ शब्द से परिचित हैं। इस शब्द का प्रयोग टेलीविजन पर, समाचार पत्रों में तथा हमारे आस-पास लोगों द्वारा प्राय: किया जाता है। हमारे बुजुर्ग हमसे कहते हैं कि अब वह पर्यावरण/वातावरण नहीं रहा जैसा कि पहले था, दूसरे कहते हैं हमें स्वस्थ पर्यावरण में काम करना चाहिए। ‘पर्यावरणीय’ समस्याओं पर चर्चा के लिए विकसित एवं विकासशील देशों के वैश्विक सम्मेलन भी नियमित रूप से होते रहते हैं। इस आलेख में हम चर्चा करेंगे कि विभिन्न कारक पर्यावरण में किस प्रकार अन्योन्यक्रिया करते हैं तथा पर्यावरण पर क्या प्रभाव डालते हैं। हम जानते है कि विभिन्न पदार्थों का चक्रण पर्यावरण में अलग-अलग जैव-भौगोलिक रासा
संपादक- मिथिलेश वामनकर/ विजय मित्रा