20,000 तालाब बनाने वाली संस्था को महात्मा गांधी पुरस्कार

23 Sep 2011
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पानी के लिए मेहनत रंग लाई
पानी के लिए मेहनत रंग लाई
भोपाल। मध्यप्रदेश शासन का सन् 2008-09 का सर्वोच्च ‘महात्मा गांधी पुरस्कार’ इस बार उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल जिले के ग्राम उफरैंखाल में कार्यरत गांधी विचार से ओतप्रोत ‘दूधातोली लोक विकास संस्थान’ को प्रदान किया गया है। इस अभिनव संस्था ने पिछले करीब तीन दशकों से हिमालय क्षेत्र में वनों को सहेजने का बीड़ा उठा रखा है। इस संस्था के प्रमुख कार्यकर्ता सच्चिदानंद भारती एक विद्यालय में शिक्षक हैं और उन्होंने दशौली ग्राम स्वराज्य संघ में प्रसिद्ध पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट के मार्गदर्शन में यह कार्य प्रारंभ किया था। इसके बाद संस्था के कार्य में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई। इस प्रक्रिया में उन्होंने करीब 100 गांवों व समीपवर्ती जंगलों में 20000 (बीस हजार) चाल व थाल (छोटे तालाबों) का निर्माण किया। इसके अलावा इस क्षेत्र में समाप्त हो रहे जंगलों का भी पुनुरुद्धार इस संस्था ने किया है। इनके द्वारा विकसित किए गए जंगल 500 से 700 हेक्टेयर तक के हैं तथा इनमें सभी प्रजातियों के पेड़ पौधे पाए जाते हैं। इनमें से कई वृक्ष 100 फीट से अधिक लंबे हो गए हैं। इतना ही नहीं ये जंगलअब इतने घने हो गए हैं कि इसमें पगडंडी के अलावा आने जाने का अन्य कोई रास्ता ही नहीं है और कई स्थानों पर सूरज की रोशनी भी जमीन तक नहीं पहुंचती है। साथ ही इनमें वन्यजीव भी बहुतायत में पाए जाते हैं। जंगलों के बीच तालाबों के निर्माण के परिणामस्वरूप इन जंगलों में आग की समस्या का भी स्वमेव निदान हो गया है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में रूस से लेकर अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया तक में आग की वजह से लाखों हेक्टेयर वन नष्ट हो गए हैं और इससे जान माल की भी अत्यधिक हानि हुई है। दूधातोली लोक विकास संस्थान की कार्यप्रणाली वैश्विक वन रख रखाव हेतु प्रेरणादायी सिद्ध हो सकती है। वैसे सन् 1998 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 8 देशों के करीब 40 प्रतिनिधियों, जिनमें वहां के वन विभाग के अधिकारी, गैर सरकारी संस्थाओं के पदाधिकारी एवं महिला किसान शामिल थीं, को यहां हो रहे कार्यों के अवलोकन हेतु भेजा था।

संस्था का मूल मंत्र है ‘लकड़ी, चारा, पानी; यूं का बिना योजना कानी’ (लकड़ी, चारा, पानी इनके बिना योजना अधूरी) पिछले तीन दशकों के सफर में संस्था को उत्तराखंड सेवानिधि, अल्मोड़ा, गांधी शांति प्रतिष्ठान, समभाव, गुजरात, मुम्बई स्थित चंदू मेमोरियल ट्रस्ट के बाबू भाई ठक्कर व दशौली ग्राम स्वराज्य संघ के अलावा निजी तौर पर अनेक व्यक्तियों ने भी मदद की है।

उत्तराखंड के सुदूर व दुर्गम इलाके में हो रहे इस अभिनव कार्य में महिलाओं की भागीदारी सराहनीय है। इस कार्य में एक हजार से अधिक महिलाएं वनों की निगरानी का कार्य करती हैं और रखवाली के लिए अपनी पारी भी स्वयं ही तय करती हैं। संस्था के पांच प्रमुख सदस्य हैं सर्वश्री सच्चिदानंद भारती, जिन्होंने अपने युवा काल में चिपको आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी, दीनदयाल, जो कि पेशे से पोस्टमेन हैं, विक्रम सिंह किराने की एक छोटी दुकान चलाते हैं, दिनेश कुमार वैद्य जो कि जड़ी बूटी से इलाज करते है और पांचवे मुख्य सदस्य हैं हरसिंह बढ़तवाल।

पुरस्कार की सूचना मिलने बाद चर्चा में सच्चिदानंद भारती ने कहा कि ‘पुरस्कार का समाचार सुनकर आनंद हो आया। इतने दूर बैठे लोगों ने हमारे घरेलू काम को इतना आदर व सम्मान दिया है इससे हम सभी अभिभूत हैं। जिस गांव में अभी तक फोन तक कठिनाई से लगता हो वहां के गांव के लोगों द्वारा किए गए अच्छे व पवित्र कार्य को मान्यता मिलने से यह सिद्ध हो गया है कि कर्म करते रहने से परमात्मा फल अवश्य देता है।’ उन्होंने पुरस्कार प्रदान करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार और यहां की जनता के प्रति भी आभार व्यक्त किया। ज्ञातव्य है आगामी 2 अक्टूबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में संस्था को यह सम्मान प्रदान किया जाएगा। पुरस्कार में सम्मान पत्र एवं 10 लाख रुपए की श्रद्धानिधि प्रदान की जाएगी।

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