7266 करोड़ से भी नहीं बुझी बुंदेलखण्ड की प्यास

21 Jul 2015
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dry bundelkhand
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बुंदेलखण्ड जल-पुरुष ने 2 वर्ष पूर्व लिया था गोद

पानी के संकट से जूझ रहे बुंदेलखण्ड की प्यास बुझाने को पाँच वर्ष पूर्व केन्द्र ने 7266 करोड़ रुपये की राशि एक विशेष पैकेज के तहत म.प्र. तथा उ.प्र. के 13 जिलों को दिए लेकिन हजारों करोड़ रुपये भी बुंदेलखण्ड की प्यास नहीं बुझा सके!

वर्ष 2009 में भू-गर्भ एवं रिमोट सेंसिंग वैज्ञानिकों ने केन्द्र सरकार को एक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत कर बताया था कि बुंदेलखण्ड क्षेत्र में कम वर्षा एवं जल दोहन के चलते भू-गर्भ जल स्तर में बेहद गिरावट आयी है यदि जल्द ही कोई उपाय न किये गए तो आने वाले दस वर्षों में बुंदेलखण्ड के जिलों में पानी की स्थिति भयावह हो जाएगी और लोग पानी के लिए तरसेंगे! रिपोर्ट के बाद केन्द्र सरकार ने भयावह होती स्थिति के मद्देनज़र बुंदेलखण्ड क्षेत्र के म.प्र. के सैट जिलों को 3760 करोड़ रुपये और उ.प्र. के 6 जिलों की प्यास बुझाने को 3506 करोड़ रुपये बुन्देलखंड विशेष पैकेज के तहत देने का फैसला किया जिसकी जिम्मेदारी योजना आयोग ने रेनफिड अथोरटी चीफ डॉ. जे.एस. सांवरा को सौंपी!

जो वर्षा आधारित खेती के रकवे को कम करने का काम देख रहे थे! इस विशेष पैकेज में म.प्र. के दमोह, सागर, दतिया, पन्ना, छतरपुर तथा टीकमगढ़ जिलों तथा उ.प्र. के जालौन, झाँसी, हमीरपुर, महोबा, ललितपुर, चित्रकूट तथा बाँदा की तस्वीर बदली जाने की योजना को मूर्तरूप दिया जाना था! जिस समय बुंदेलखण्ड विशेष पैकेज की घोषणा की गयी उस समय केन्द्र में कोंग्रेस म.प्र. में भाजपा तथा उ.प्र. में बसपा का शासन था! केन्द्र तथा राज्य में चुनाव के बाद केन्द्र में भाजपा तथा म.प्र. राज्य में भाजपा तथा उ.प्र. में सपा शासन सत्ता में आयी! केन्द्र की दोनों सरकारों ने घोषणा के तहत धनराशि दोनों राज्यों को दे दी! लेकिन दोनों ही राज्य बुंदेलखण्ड की प्यास बुझाने में सक्षम साबित नहीं हुए!

इस योजना के तहत उ.प्र. तथा म.प्र. के जिलों में 20 हज़ार कुओं का निर्माण, पुराने कुओं तथा तालाबों का गहरीकरण, 4 लाख हेक्टेयर भूमि को कृषि योग्य सिंचाई का पानी उपलब्ध करवाना, जल संरक्षण नहरों का गहरीकरण बाँध परियोजनाओं, उद्यानीकरण में फलों की खेती का क्षेत्रफल बढ़ने, फूलों की खेती, जैविक खेती को बढ़ावा देना, पशुपालन में वृद्धी, दूध तथा मीट प्रसंस्करण की यूनिट लगाने आदि पर खर्च किया जाना था! दोनों ही प्रदेशों ने इन पाँच वर्षों में क्या काम किया ये धरातल पार काम करने वाले लोगों से छिपा नहीं है! दोनों ही सरकारें दिये गए धन का उपयोग का प्रमाण पत्र न दे सकी!

वर्ष 2009 से 2012 तक केन्द्र सरकार ने 1212.54 करोड़ रुपए उ.प्र. सरकार को दिये लेकिन उ.प्र. सरकार केवल 744.29 करोड़ ही खर्च कर सकी! पीने के पानी तथा सिंचाई के पानी पर 400.25 करोड़ के सापेक्ष 248.31 करोड़ ही सरकार खर्च कर सकी! रूरल क्षेत्रों में पीने के पानी की सप्लाई को 70 के सापेक्ष 20 करोड़, कुओं–तालाबों के रिचार्ज को 85.66 करोड़ के सापेक्ष केवल 15.45 करोड़ ही खर्च किये गए, 103 करोड़ रुपए 140 कम्युनिटी टयूबवेल के लिए दिये गए लेकिन दुःख की बात ये है कि एक भी कम्युनिटी टयूबवेल नहीं लगवाये गए! 30,864 तालाबों को तैयार किया जाना था लेकिन लक्ष के सापेक्ष 5,442 तालाबों को ही तैयार करवाया गया!

उ.प्र सरकार ने इस वर्ष 1018.62 करोड़ रुपए खर्च होने का प्रमाण पत्र दिया है! जिसके फलस्वरूप केन्द्र ने 12 मार्च 2015 को 1557.94 करोड़ रुपए उ.प्र. को दे दिये हैं! इस धन का कैसे उपयोग होगा कितने वर्षों में होगा सभी कुछ अभी गर्त में है लेकिन बुंदेलखण्ड की दशा आज भी जस की तस है!

बानगी के तौर पर उ.प्र. के जालौन जनपद का जब भौतिक सत्यापन किया गया! विभागों तथा सामाजिक संस्थाओं ने पानी के संरक्षण पर जो भी काम किये वो केवल खानापूरी मात्र ही हैं अधिकतर चेकडैम खाली हैं जब कि रिपोर्ट में उन्हें लबालब पानी से भरा हुआ दिखाया गया है! यहाँ तक कि गोपालपुरा कस्बे के आस-पास के गाँवों में पाताल तोड़ कुओं से लगातार बहते पानी का भी संरक्षण नहीं किया गया! मालूम हो कि लगातार बहने वाले पाताल कुएँ लगभग 250 हैं! तालाबों तथा कुओं की स्थिति बेहद दयनीय है तालाबों को भरने के स्रोतों पर अतिक्रमण कर लिया गया है।

19 मई 2013 को जनपद जालौन के मुख्यालय उरई में परमार्थ समाज सेवी संस्था उरई (जालौन) द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने बुंदेलखण्ड को पानी की समस्या से निजात दिलाने को बुंदेलखण्ड को गोद लेने की घोषणा की थी! संगोष्ठी में जिलाधिकारी राम गणेश तथा पूर्व पुलिस अधीक्षक राकेश शंकर मौजूद थे! जलपुरुष की घोषणा के बाद भी बुंदेलखण्ड की समस्या में कोई बदलाव नहीं आया!
 

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