आज भी खरे हैं तालाब- पाल के किनारे लिखा इतिहास का संगीतमय वाचन

Anupam_Mishra
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अनुपम मिश्र पानी और पर्यावरण पर काम करने के लिए जाने जाते हैं लेकिन उनकी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक आज भी खरे हैं तालाब के साथ उन्होंने एक ऐसा प्रयोग किया जिसकी दूरगामी दृष्टि दिखती है।

अपनी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।

भारत की यह पारम्परिक जल संरचनाएं, आज भी हजारों गाँवों और कस्बों के लिये जीवनरेखा के समान हैं। इसी पुस्तक को कागजों से निकालकर संगीतमय ध्वनि में पिरोने का एक प्रयास कर रहे हैं डॉ. रमाकांत राय।

गाजीपुर निवासी रमाकांत राय पेशे से प्रोफेसर हैं जिंहोंने राही मासूम रज़ा पर डी.फिल. किया है। इनके विभिन्न पुस्तकों और पत्र पत्रिकाओं में शोध पत्र और आलेख प्रकाशित हुए हैं। इनकी एक पुस्तक लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज से प्रकाशित है।

दूरदर्शन पर दो बार साक्षात्कार और आकाशवाणी प्रयागराज, आकाशवाणी देहरादून से दर्जन भर से अधिक साहित्यिक वार्ता प्रसारित हुई हैं। संप्रति- राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटावा, उत्तर प्रदेश में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।

आईये सुनते हैं उनकी मधुर आवाज में आज भी खरे हैं तालाब पुस्तक के प्रथम अध्याय का वाचनः

हम यहां पुस्तक के सभी अध्याय इसी तरह प्रस्तुत करेंगे, देखने के लिये पोर्टल देखते रहिये -

संपर्क- मोबाइल- 9838952426 E-mail- royramakantrk@gmail.com

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