अब मानसरोवर का पानी बोतलबन्द करेंगे

19 Jun 2015
0 mins read
mansarovar
mansarovar

अब मानसरोवर का पानी बोतलबन्द करके बेचा जाएगा। तिब्बत में मानसोवर झील के एकदम निकट बॉटलिंग प्लांट लगाने की घोषणा हुई है। मानसरोवर का बोतलबन्द पानी भारत और दूसरे देशों के शिवभक्तों में बेचा जाएगा।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा के दौरान हुई घोषणाओं में यह खबर दब सी गई। प्रोजेक्ट कम्प्यूटर निर्माता डेल के एशिया प्रशान्त क्षेत्र के प्रमुख अमित मिधा की पत्नी वैशाली मिधा लगा रही हैं। इसकी घोषणा 16 मई को हुई। मानसरोवर का पानी अक्टूबर तक भारत में बिकने लगेगा। बोतलों के ढक्कन रूद्राक्ष के बने होंगे। बोतलों पर शिव स्त्रोत लिखें होंगे। अर्थात शिवभक्तों को आकर्षित करने के उपायों के साथ यह कम्पनी पानी के बाजार में उतर रही है। बंगलुरु से संचालित न्यूज पोर्टल ‘स्वराज्य’ ने 11 जून को इस बारे में पत्रकार सहाना सिंह की रपट प्रकाशित की है।

हिमालय के मस्तक तिब्बत में स्थित मानसरोवर दुनिया में मीठे पानी का सबसे बड़ी झीलों में है। तिब्बत दुनिया का सबसे ऊँचा और बड़ा पठार है। इसे दुनिया की छत, एशिया का जल मीनार, थर्डपोल, एशिया का बैरोमीटर इत्यादि कहा गया है। अनेक विशाल नदियाँ - ब्रह्मपुत्र, सतलज, सिन्धु और गंगा की अनेक सहायक नदियाँ तिब्बत में मानसरोवर के पास से निकलती हैं। उन नदियों ने दक्षिण एशिया की समूची सभ्यता को आकार दिया है और जीवन का स्पन्दन हैं।

मानसून इसी पठार में उत्पन्न होता है और यहीं से नियन्त्रित होता है। मानसून पर इलाके की पूरी अर्थ-व्यवस्था निर्भर करती है। हिमालय क्षेत्र को पर्यावरण-विनाश ने बेहद जोखिमपूर्ण बना दिया है। ग्लेशियरों का पिघलना, degradation of permafrost layers, झीलों का सिकुड़ना और जलाभूमियों का सूखना और अब नेपाल में विनाशकारी भूकम्प के बाद लगातार आ रहे झटके। ऐसे में मानसरोवर के पास औद्योगिक गतिविधि शुरू होने का असर क्या होगा?

मानसरोवर के पानी को व्यावसायिक स्तर पर निकालने का असर क्या होगा? तिब्बत पठार में पहले से क्वीन्गी-तिब्बत रेलमार्ग के निर्माण के लिये चट्टान काटे जा रहे हैं। चीन के दूसरे इलाकों में निर्माण के लिये पत्थरों का खनन होता है। इससे स्थानीय लोगों में गहरी नाराजगी है। बोतलबन्द पानी का प्रकल्प कहीं अधिक नुकसानदेह होगा।

प्लास्टिक के कुप्रभाव से पूरी दुनिया परेशान है। यह अत्यधिक कूड़ा पैदा करता है, ऐसा कूड़ा पैदा करता है, जिसे निपटाने का तरीका खोजा नहीं जा सका है। यह प्लास्टिक मछली की पेट में जाता है, गाय की पेट में जाता है और पशुओं के स्वास्थ्य पर भयानक प्रभाव डालता है। पानी की बोतलों के साथ दूसरी समस्या भी है।

पानी की गुणवत्ता में कोई खास फर्क नहीं होता, पर नल के पानी की तुलना में कीमत काफी बढ़ जाती है। बाजार में इनकी कीमत 20 रुपए प्रति हैं। कुछ अधिक कीमत की भी हैं जो हिमालय के झरनों का पानी होने या अतिरिक्त खनिजों से परिपूर्ण होने का दावा करती हैं। पर मानसरोवर का पानी 80 रुपया प्रति बोतल होगा।

बोतलें पॉलिथिलीन टेरेफथलीन (पीईटी) से बनती है जो कभी नष्ट नहीं होता। उनका पुर्नचक्रण नहीं होता। यह प्लास्टिक जलधाराओं को प्रदूषित करता है, मिट्टी की सतह को खराब करता है और अन्ततः समुद्र में जाकर उसे भी गन्दा करता है।

प्लास्टिक के कुप्रभाव से पूरी दुनिया परेशान है। यह अत्यधिक कूड़ा पैदा करता है, ऐसा कूड़ा पैदा करता है, जिसे निपटाने का तरीका खोजा नहीं जा सका है। यह प्लास्टिक मछली की पेट में जाता है, गाय की पेट में जाता है और पशुओं के स्वास्थ्य पर भयानक प्रभाव डालता है। पानी की बोतलों के साथ दूसरी समस्या भी है। पानी की गुणवत्ता में कोई खास फर्क नहीं होता, पर नल के पानी की तुलना में कीमत काफी बढ़ जाती है। बाजार में इनकी कीमत 20 रुपए प्रति हैं। कुछ अधिक कीमत की भी हैं जो हिमालय के झरनों का पानी होने या अतिरिक्त खनिजों से परिपूर्ण होने का दावा करती हैं। पर मानसरोवर का पानी 80 रुपया प्रति बोतल होगा।यूएनईपी-आईयूसीएन की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र में प्रति वर्गमीटर 46 हजार की संख्या में एकत्र हो गई हैं। भारत में बोतलबन्द पानी की गुणवत्ता की निगरानी नहीं होती। उस मानक को बनाए रखने के लिये नलों के पानी जैसा भी कोई इन्तजाम नहीं है। कई कारोबारी नगरपालिका का पानी बोतलों में बन्द कर बेचते हैं। ऐसी स्थिति में भारत और चीन के बीच बोतलबन्द पानी के कारोबार पर रोक लगाने का समझौता करना था।

यह पूरे क्षेत्र और पूरी दुनिया के पर्यावरण के लिहाज से सराहनीय कदम होता और ग्लोबल वार्मिंग पर प्रहार करता। दुनिया को बोतलबन्द पानी की जरूरत नहीं है, बल्कि नगरपालिकाओं के पेयजल आपूर्ति और मलजल निपटारा को उन्नत बनाने की जरूरत है। दुनिया के 75 करोड़ लोगों को साफ पानी उपलब्ध नहीं होता। दुनिया भर में पाइप लाइनों से जलापूर्ति के दौरान करोड़ों लीटर पानी लीकेज या चोरी में नष्ट होता है।

उस लीकेज और चोरी को उन्नत तकनीकों और बेहतर प्रबन्धन से नियन्त्रित करके जलापूर्ति व्यवस्था को सुधारा जा सकता है। सेवा प्रदाता एजेंसियाँ नलों से गुणवत्तापूर्ण पानी चौबीस घंटा देने, खर्च घटाने के साथ मलजल का पुर्नशोधन करने और कचरे से बिजली बनाने जैसे कामों पर ध्यान दें तो पर्यावरण क्षति के वर्तमान रफ्तार को घटाया और रोका जा सकता है।

कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील- हिन्दू और बौद्धों की आस्था के केन्द्र रहे हैं। प्राचीन काल से उनकी कल्पना-लोक में बसे हैं। कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास माना जाता है। झील और पर्वत शिखरों से वहाँ का पर्यावरण किसी दैवी उपस्थिति का आभास देता है। बीहड़ यात्रा कर तीर्थयात्री वहाँ पहुँचते हैं और मानसरोवर में डुबकी लगाने की आशा रखते हैं। यह यात्रा कमजोर और हृदय रोग से ग्रस्त लोगों के लिये नहीं है। आम लोगों को साँस लेने में दिक्कत होती है।

मानसरोवर के शीतल जल में डुबकी लगाने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाने की मान्यता है। आज दुनिया भर में विभिन्न धार्मिक नेता पर्यावरण संरक्षण को पवित्र कर्तव्य बता रहे हैं। हिन्दू और बौद्ध धर्मों में प्रकृति के अन्तर-सम्बन्धों की स्पष्ट समझ है। प्राचीनकाल से संस्कृत में एक प्रातःकालीन प्रार्थना है जो पैरों से स्पर्श करने के लिये माँ पृथ्वी से क्षमा याचना करती है। निस्सन्देह, मानसरोवर के पवित्र जल को बोतलबन्द करके बेचना उस धार्मिक आस्था के साथ उपहास है जिसके आधार पर यह बेचा जाएगा।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading