अभिशाप या वरदान : केन- बेतवा गठजोड़

8 Feb 2010
0 mins read

सेवा में,
माननीय प्रधानमंत्री महोदय, (प्रशासनिक कार्यालय)
भारत सरकार , नई दिल्ली

विषय: केन बेतवा गठजोड़ समझौता 25 अगस्त 2005 के बुंदेलखंड उप्र - मप्र विन्ध्य क्षेत्र के संदर्भ में -


महोदय,
केन बेतवा नदी को जोड़ने के लिये 25 अगस्त 2005 को एक समझौता ज्ञापन पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय मुलायम सिंह यादव, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री प्रिय रंजनदास मुंशी द्वारा आपकी उपस्थिति में हस्ताक्षर किये गये हैं। उक्त समझौता ज्ञापन के मुताबिक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) पूरी करने और परियोजना पर अमल के लिये आवश्यक संघटनात्मक रूपरेखा का फैसला केन्द्र सरकार करेगी ऐसा समझौते के दरम्यान लिखित रूप से स्पष्ट है। प्रस्तावित लिंक से श्री यादव ने उत्तर प्रदेश के डर को व्यक्त किया था कि परीचा बीयर (छोटा बांध) पर पानी की उपलब्धता कम हो जाएगी, जिससे झांसी, जालौन व हमीरपुर में सिंचाई प्रभावित होगी। राजघाट व मटियाला बांध पर पानी की कम उपलब्धता से ऊर्जा में होने वाली किसी छति के लिये उन्होने मध्य प्रदेश से भरपाई की मांग भी तत्काल समय में की थी। केन बेतवा लिंक में 1020 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी का हस्तान्तरण किया जायेगा। अतिरिक्त पानी के मिथक के विपरीत केन नदी में वर्तमान सिंचाई व पेयजल सम्बन्धी जरूरतों के बाद सिर्फ 342 एमसीएम पानी शेष बचता है। इस प्रकार, यह परियोजना उपलब्ध पानी से तीन गुना अधिक पानी हस्तान्तरित करेगी, जिससे उत्तर प्रदेश में केन बेसिन के निचले हिस्सों में पानी की कमी हो जायेगी। नदी- जोड़ परियोजना बांध व नहर बनाने वाली बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों व ठेकेदारों के लिये निर्माण कार्यों में भारी-भरकम कमाई का सुनहरा अवसर है।

जबकि बुन्देलंण्ड के तमाम स्वयंसेवी संगठनों के साथ आम जनता इस परियोजना से रास्ते में पड़ने वाले गांवों व सड़क डूब जाने और नदियों के दोनों किनारे पर मौजूद वनस्पति, जैव विविधता, वन सम्पदा नष्ट हो जाने से चिन्तित है। परियोजना में केन नदी पर बांध बनाना और बेतवा को जोड़ने वाली 231 किमी नहर का निर्माण शामिल है। एक कच्ची संभावना रिपोर्ट के आधार पर समझौते पर हस्ताक्षर किये गये हैं। व्यवहार्यता रिपोर्ट में बताया गया है कि पन्ना, छतरपुर व दमोह जिले में लगभग 100 वर्गकिमी क्षेत्र इस समझौते से डूब जायेगा। इसमें 10 गांव के 8550 निवासी, लगभग 37.5 वर्गकिमी वन क्षेत्र और मध्यप्रदेश में गंगा-शाहपुरा में 30 किमी सड़क भी शामिल है। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के पूर्व क्षेत्रीय निदेषक वीके जोशी जैसे भूगर्भवेत्ता ने भी इसकी आलोचना की है कि यह परियोजना दोनों नदियों की परिस्थितकी प्रणाली को बरबाद कर देगी। केन और बेतवा के जोड़ने से मध्य प्रदेश पर स्थित पन्ना बाघ राष्ट्रीय पार्क भी प्रभावित होगा। वह भी ऐसे माहौल में जबकि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री श्री जयराम रमेश के अनुसार भारत में मात्र 1411 बाघ शेष बचे हैं। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अन्तर्ग विलुप्त होती प्रजातियों की शरणस्थली का लगभग 50 वर्ग किमी का क्षेत्र विस्थापन और प्रवासी जीव जन्तुओं के डूबने का खतरा झेल रहा है।

पर्यावरणयविद् डॉ वंदना शिवा ने इसे ’पारिस्थितिकीय आपदा’ की संज्ञा दी है। उन्होने बार-बार इस बात को कहा है कि यह परियोजना गलत अवधारणा पर आधारित है। नदियां दो ही तरह की होती हैं- जीवित या मृत। जहां पर नदी बेसिन का प्रबन्धन पारिस्थितिकीय रूप में किया जाता है, नदियां वही जीवित रहती हैं। जबकि इस लिंक से अतिरिक्त पानी सूखी नदी में हस्तान्तरित किया जायेगा। वरिष्ठ समाज शास्त्री डॉ जेपी नाग स्वीकार करते हैं कि इस तरह की परियोजना का मूल्यांकन करने के लिये वैज्ञानिक आंकड़ों का आभाव है। उन्होंने उन देशों को भी चेतावनी दी, जिन्होंने नदियों को जोड़ने का प्रयोग किया है। और जो उसके परिणाम से सन्तुष्ट नहीं है। इनके अलावा एक अन्य महत्वपूर्ण मानवीय पहलू यह है कि परियोजना से विशाल क्षेत्र डूबने के कारण जहां हजारों लोगों के पुनर्वास की समस्या पैदा होगी। वहीं विलुप्त हो रहे जीव जन्तु (बाघ, काले हिरन, जैव सम्पदा) आदि पर खतरा और ज्यादा बढ़ जाएगा।

आज इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत 7615 करोड़ रूपये जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार है, जबकि 25 अगस्त 2005 को इस लिंक की अनुमानित लागत 4263 करोड़ रूपये मात्र थी, तत्कालीन 3 वर्ष पहले इस योजना की लागत का अनुमान सिर्फ 1900 करोड़ रूपये था। परियोजना के 8 साल में पूर्ण होने का दावा करने वाले राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण को क्या यह अनुमान है कि सन् 2018 तक बढ़ती हुयी मंहगाई से केन-बेतवा समझौता कितने करोड़ रूपये की लागत का होगा ?

महोदय, मैं दिनांक 04.02.2010 के समाचार पत्र अमर उजाला बुन्देलंण्ड पृष्ठ संख्या-5 की खबर केन बेतवा लिंक परियोजना 8 साल में पूरी हो जायेगी। इस समझौते से होने वाले प्रभावी दुष्परिणामों पर ध्यान केन्द्रित करें। 25 अगस्त 2005 को उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बीज मेमोरैण्डम ऑफ अण्डरस्टैडिंग के अन्तर्गत बेतवा व केन नदी को जोड़ा जाएगा। भारत सरकार की परियोजना ’नदियों के गठजोड’ के अन्तर्गत प्रथम चरण में केन नदी को बेतवा से जोड़ने का प्रस्ताव है। नदियों के गठजोड़ में 5,60,000 करोड़ रुपये खर्च होने हैं जबकि 1,56,500 करोड़ रुपये न होने के कारण 400 बड़ी व मध्यम योजनाऐं भारत सरकार के पास पहले से ही ठंडे बस्ते में पड़ी हैं। इस परियोजना के अन्तर्गत बुन्देलंण्ड में केन नदी पर छतरपुर और पन्ना जिलों की सीमा पर 73 मीटर ऊंचा बांध बनाकर 231 किमी लम्बी नहर निकाली जाएगी जो केन व बेतवा को जोड़ेगी। इस परियोजना पर खर्च होने वाली कुल अनुमानित राशि रु0 1988.74 करोड़ है जिसका 75 प्रतिशत किसानों से विभिन्न करों द्वारा पच्चीसों साल तक वसूला जाएगा। यही वजह है कि सरकार ऐसी फसलों को प्रस्तावित कर रही है जिनका जल-कर ज्यादा है।

केन नदीः- केन नदी बेतवा नदी की तरह उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश दोनों राज्यों की नदी है। इसका उद्गम स्थान मध्यप्रदेश के जबलपुर जिला में है। केन नदी की कुल लम्बाई यमुना के मिलने के स्थान तक 427 किमी है जिसमें 292 किमी मध्यप्रदेश में तथा 84 किमी उत्तर प्रदेश में आते हैं, जबकि 51 किमी दोनों राज्यों की सीमा के अन्तर्गत आता है। केन नदी यमुना नदी से चिल्ला गांव के पास उत्तर प्रदेश के निकट संगम बनाती है। यह मध्यप्रदेश के जबलपुर, सागर, दमोहा पन्ना, सतना, छतरपुर और रायसेन जिले के और उत्तर प्रदेश हमीरपुर बांदा जिलों में बहती है। केन नदी की सहायक नदियां निम्नलिखित हैं: अलोना, वीरना, सोनार, मीरहसन, श्यामरी, बन्ने, कुटरी, उर्मिल, कैल, चन्द्रावल।


बेतवा नदीः- बेतवा नदी का उद्गम मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में है। इसकी कुल लम्बाई 590 किमी है। यह 232 किमी की दूरी मध्यप्रदेश में और 358 किमी उत्तरप्रदेश में तय करती है। यह मध्यप्रदेश के टीकमगढ़, सागर, दमोह, रायसेन, भोपाल, गुना, शिवपुरी, छतरपुर एवं हमीरपुर, जालौन उत्तर प्रदेश के जिलों में बहती है। इसकी सहायक नदियों में बीना, जामनी, घसान, बिरमा, कलियासोट, हलाली, बाह, नारायन आदि प्रमुख हैं।

 

जंगल व जैव विविधता पर दुष्प्रभाव


केन व बेतवा गठजोड़ के लिए जिस स्थान पर बांध प्रस्तावित है वह पन्ना टाइगर नेशनल पार्क के अन्तर्गत आता है, जिसके कारण 50 वर्ग किमी भूमि डूब क्षेत्र में आएगी। यह नेशनल पार्क, जिसमें होकर केन नदी बहती है घड़ियाल, मगर व अन्य जलीय जीव-जन्तुओं का घर है। 10 इस तरह के जीव जन्तु हैं जो ’’वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्षन एक्ट 1972 की अनुसूची - एक’’ में नष्ट होने वाली प्रजातियों के अन्तर्गत आते हैं। इस गठजोड़ व जलान्तरण से न सिर्फ जीव - जन्तुओं पर प्रभाव पड़ेगा बल्कि लाखों वृक्षों का कटान भी होगा। ये सब नष्ट करने के पश्चात् भारत सरकार का मानना है कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, और भारत सरकार व राज्य सरकार दोनों की आमदनी बढ़ेगी। यह सब सरासर झूठ है। नेशनल पार्क को साबित रखने के लिए पार्क के अन्दर किसी भी तरह का शोर व डीजल वाहनों पर रोक है। वही दूसरी तरफ बांध निर्माण के दौरान 10 वर्षों तक 300 वाहन एवं बड़ी मशीनें चलेंगी एवं हजारों मजदूरों का रहना, खाना-पीना होगा।

 

विस्थापन


इस गठजोड़ के अन्तर्गत कुल पांच बांध, एक केन नदी पर और चार बेतवा नदी पर प्रस्तावित हैं, जिनसे लगभग 18 गांवों को विस्थापित करना पड़ेगा। ये पांचों बांध संरक्षित एवं आरक्षित वन क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं। बेतवा नदी पर बनने वाले चार बांधों से 800 हेक्टेयर वन-क्षेत्र डूब में आएगा। भारत सरकार का यह कहना गलत है कि बेतवा में पानी कम होने के कारण इन चार बांधों का निर्माण न हो सका। जबकि राज्यों के पारस्परिक समझौते के अनुसार बेतवा में 50 टीएमसी पानी शेष बचता है। इन चार बांधों का निर्माण हो जाने के बावजूद 26 टीएमसी जल बेतवा में उपलब्ध रहेगा।

 

अन्तरराज्यीय विवाद


एक तरफ भारत सरकार केन से 1020 मिलियन क्यूबिक मीटर जल बेतवा में स्थानान्तरित करना चाहती है जबकि उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश सिंचाई विभाग के अनुसार उतना जल केन में उपलब्ध ही नहीं है। क्योंकि मुख्य अभियन्ता बेतवा उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश के अनुसार केन में 342 मिलियन क्यूबिक मीटर जल उपलब्ध है वहीं दूसरी तरफ बेतवा में 373.13 मिलियन क्यूबिक मीटर जल उपलब्ध है। अतः इस लिंक के माध्यम से भारत सरकार का यह उद्देश्य पूरा नहीं होता कि ज्यादा पानी वाली नदी से कम पानी वाली नदी में पानी स्थानान्तरित किया जाए। इसके अलावा केन में अतिरिक्त जल न होने से व बेतवा में अधिक जल होने से केव व बेतवा के अनुप्रवाह क्षेत्रों में क्रमश: सूखा व बाढ़ को बढ़ावा मिलेगा।

इस समय पानी को लेकर लगभग एक दर्जन विवाद मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच चल रहा है। इन विवादों में एक ऐसा विवाद होगा जो राज्यों के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले किसानों के बीच मतभेद पैदा कर देगा।

केन-बेतवा लिंक नहर ऐसे स्थानों से होकर गुजरेगी जहां पर 500 वर्ष पूर्व से ही पारम्परिक सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। टीकमगढ़ जिला एक ऐसा जिला है जहां इस नहर से सिंचाई की व्यवस्था की जानी है, जबकि पूरे बुन्देलंण्ड में टीकमगढ़ ही एक ऐसा जिला है जहां चन्देल और बुन्देल राजाओं के द्वारा बनवाए गए तालाबों के माध्यम से सबसे ज्यादा सिंचित कृषि क्षेत्र है।

 

संस्कृति पर कुठाराघात


प्रत्येक नदी का अर्थ है ’संस्कृति’ का प्रवाह, प्रत्येक की अपनी-अपनी अलग विषेषता है। भारतीय संस्कृति विविधता में एकता को उत्पन्न करती है इसलिए समुद्र को सरित्पति के नाम से भी जाना जाता है। नदियों का स्मरण हमें अपनी धार्मिक, सामाजिक व संस्कृति में होता है इसलिए सुप्रसिद्व मनीषी पूज्य काका कालेलकर ने कहा था कि यदि हम नदियों के प्रति सच्चे रहकर चलेंगे तो अन्ततः समुद्र में पहुंच जाएगें। वहां कोई भेदभाव नहीं रह सकता, सब कुछ एकाकार- सर्वाकार- निराकार हो जाता है। ’सा काण्ठा सा परागति’।

 

पारंपरिक कृषि पर प्रभाव

इस गठजोड़ का अध्ययन करने पर किसी प्रकार का कोई अर्थ निकलता प्रतीत नहीं होता। एक तरफ जब समूचा विश्व जल संरक्षण को बढ़ावा दे रहा है वहीं भारत सरकार ऐसी फसलों को बढ़ावा दे रही है जो न सिर्फ ज्यादा पानी से होती हैं, बल्कि जल संरक्षण के उपयोग में लाई जा रही पुराने साधनों को भी नष्ट कर रही हैं। इसका ज्वलन्त उदाहरण है ललितपुर और टीकमगढ़ जिले जहां सरकार ने सोयाबीन को बढ़ावा दिया था, मगर किसानों ने दो चार साल सोयाबीन की खेती की, और नुकसान उठाकर उसी पारंपरिक खेती पर आ गए। इससे न सिर्फ किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा बल्कि जल संरक्षण के पुराने साधनों को नष्ट कर देने के उपरान्त सूखे का भी सामना करना पड़ा।

 

बाढ़ एवं सूखे को बढ़ावा


बांदा को सूखा (बांदा के 40 गांव व 75000 हेक्टेयर भूमि) व हमीरपुर में बाढ़ (200 गांव व 4 लाख हेक्टेयर भूमि) को बढ़ावा देने के पश्चात भी गठजोड़ वाली नहर में गर्मियों के चार महीनों में पानी नहीं होगा। इस गठजोड़ नहर के क्षेत्र में कई तालाबों की प्रसिद्ध व स्वादिष्ट मछली, जो पूरे भारतवर्ष में अपने-अपने तालाबों के नाम से जानी जाती है, नष्ट हो जाएंगी। वे मछुवारे जिनकी जीविका इसी मछली-पालन पर आधारित है, भुखमरी के कगार पर होंगे। इस भुखमरी के शिकार छतरपुर के 5,000 एवं टीकमगढ़ के 15,000 मछुवारे होंगे। निकट भविष्य में बुन्देलंण्ड राज्य बनाने की साजिश में शामिल इस समझौते से होने वाले जन आन्दोलन और अकाल यात्रा के जिम्मेवार भी वे सभी लोग होंगे, जो सिर्फ अपने स्वार्थ के लिये इस अनिष्ठकारी पानी को बन्धक बनाने की योजना में सम्मिलित हैं।

सेवा मे सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित।

प्रतिलिपिः


1. 1. माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष कांग्रेस कमेटी, श्रीमती सोनिया गांधी
2. 2. सांइस एण्ड इनवॉयरमेंट टेक्नॉलाजी इनइस्टीट्यूट, 41, तुगलकाबाद इंडस्ट्रीयल एरिया नई दिल्ली
3. 3. पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार
4. 4. विभिन्न प्रमुख पत्र पत्रिकायें एवं वाटर पोर्टल आदि

भवदीय
आशीष सागर
प्रवास सोसायटी, 1136/8,
वन विभाग कार्यालय के पास,
सिविल लाइन्स, बांदा (बुंदेलखंड) उप्र

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading