आदर्श उतर रहे हैं जमीं पर

सामाजिक संररचनाओं की अपनी विशेषताएँ होती हैं महिलाओं के आरक्षण के पश्चात जो सन्देश व्यक्त किए जा रहे थे, उन्हें महिलाएँ खत्म करती जा रही हैं। एक अनोखा उदारहण इस बात की गवाही देता है कि महिलाओं में जागरुकता किस सीमा तक पहुँच गई है। आज मध्य प्रदेश में तीन पंचायतें ऐसी हैं जिनमें पंच और सरपंच सभी महिलाएँ हैं। आँकड़ों की जुबानी कहने को यह आँकड़ा छोटा हो सकता है, लेकिन व्यवस्था में बदलाव की यह आहट भर है। वैसे भी हमारे देश के वैविध्यपूर्ण सामाजिक ताने-बाने ने आँकड़ों को सैकड़ों बार झूठा साबित किया है।

छतरपुर जिले के सिंगरावनखुर्द एक समय पेयजल की समस्या से लड़ रहा था और कई बार पानी के लिए युद्ध जैसी स्थितियाँ निर्मित हो जाती थीं। लेकिन, यहाँ की महिलाओं ने नल-जल योजना के जरिये सभी मोहल्लों में शुद्ध पानी की कमी को पूरा किया है।जबलपुर जिले के मझौली विकासखण्ड की उमरिया ग्राम पंचायत ऐसी ही महिला प्रधान पंचायत है और सबसे बड़ी बात कि वे निर्विरोध सत्ता में आई हैं। सरकार ने भी पंचायत को दो लाख रुपए के पुरस्कार से नवाज़ने का निर्णय लिया है। चौके-चूल्हे के साथ-साथ पंचायतों का कुशल प्रबन्धन प्रभावित करने वाला है। यह न केवल पुरुषों के लिए चुनौती है वरन शहरी कामकाजी महिलाओं के लिए भी प्रेरणादायी है।

पंचायत की सरपंच इन्द्रमणि बताती हैं कि चूँकि हम निर्विरोध चुने गए हैं इसलिए विकास कार्यों में आम राय तत्काल कायम हो जाती है। दस लाख रुपए के विभिन्न कार्यों को अंजाम दे चुकी इन्द्रमणि 82 लोगों को सुरक्षा पेंशन योजना का लाभ भी दिलवा चुकी हैं। जलाभिषेक योजना के तहत तीन तालाबों का जीर्णोद्धार, खण्दिया टोला से उमरिया तक सड़क, गोबरहाई व रखैला पहाड़ियों पर पौधों की रक्षा का संकल्प लेते हुए कटाई पर पूर्ण प्रतिबन्ध, पाँच स्वसहायता समूहों का गठन कर स्वरोजगार को प्रोत्साहन, 147 गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के घरों में शौचालयों को अंजाम देने वाली महिला पंचायत महिला सशक्तीकरण की अद्भुत मिसाल पेश कर रही है।

भूदान आन्दोलन के प्रेरणा आचार्य विनोबा भावे ने लिखा है कि पंचायत वास्तव में पाँच सदस्यों की एक समिति है। ये सदस्य हैं : प्रेम, निडरता, ज्ञान, उद्योग और स्वच्छता। विनोबा जी की इन बातों को एक हद तक इन ग्रामीण महिलाओं ने अपनाकर साबित भी कर दिखाया है। आत्मनिर्भर पंचायतों से जितना कार्य हो सकता है वह और कोई कितना भी प्रयास कर ले, हो नहीं सकता।

पंचायती राज के चलते ही छतरपुर जिले के भरतपुरा गाँव की मीना बंसल, बेरखेड़ी गाँव की जनकनन्दिनी, मीरा दुबे, मंजु, सिंगरावनखुर्द की सियारानी, अहिल्याबाई, सागर जिले के खेरुआ की कमलारानी, सीधी जिले के बड़ोखर की उर्मिला बाई ने गरीबी उन्मूलन परियोजनाओं के चलते विभिन्न विकास कार्यों को अंजाम दिया है और समाज की मुख्यधारा में स्वयं को स्थापित करने का कार्य किया है। अब उनकी पूछ-परख भी समाज में बढ़ गई है।

जमुनिया गोण्ड में एक बल्क मिल्क कूलर लगाए जाने की योजना है ताकि दूध का अधिक से अधिक देर तक व मात्रा में संग्रहण हो सके।छतरपुर जिले के सिंगरावनखुर्द एक समय पेयजल की समस्या से लड़ रहा था और कई बार पानी के लिए युद्ध जैसी स्थितियाँ निर्मित हो जाती थीं। लेकिन, यहाँ की महिलाओं ने नल-जल योजना के जरिये सभी मोहल्लों में शुद्ध पानी की कमी को पूरा किया है। उन्होंने जागृति पेयजल स्वच्छता समूह गठित कर प्रत्येक परिवार से 2 रुपए लेकर 16,192 रुपए इकट्ठा किए और डीपीआईपी के तकनीकी सहयोग से 3 लाख 23 हजार 828 रुपए की योजना बनाई जिसमें एक कुआँ और 5-5 हजार लीटर क्षमता वाले जल संग्रहण टैंकों की स्थापना की गई। कुएँ की खुदाई भी श्रमदान के जरिये हुई। समूह की अध्यक्ष आशाबाई बताती हैं कि निर्माण कार्य में गुणवत्ता पर विशेष जोर दिया गया है और पेयजल शुद्धता के लिए क्लोरीनेटर पम्प के साथ लगाया गया है जिसमें 15-15 दिनों के अन्दर से ब्लीचिंग पाउडर डाला जाता है।

इसी तरह जमुनिया गोण्ड की शारदा यादव भी गाँव के महिला समूह का नेतृत्व करती हैं। इन समूहों ने भैंसे खरीदी हैं और डेयरी का कार्य किया जा रहा है। सबसे बड़ा बदलाव इनमें यह है कि यहाँ की अधिकांश महिलाएँ बीड़ी बनाने का कार्य करती थीं और उनके पास यह जहर बनाना छोड़ने का कोई विकल्प नहीं था, लेकिन जैसे ही विकल्प मिला उन्होंने उसे तुरन्त त्याग दिया। आगे जमुनिया गोण्ड में एक बल्क मिल्क कूलर लगाए जाने की योजना है ताकि दूध का अधिक से अधिक देर तक व मात्रा में संग्रहण हो सके। यहाँ पर अलग-अलग समूह कार्य कर रहे हैं जिनमें प्रमुख हैं- सरस्वती समूह, महारानी समूह, आरती समूह, जयलक्ष्मी समूह आदि।

इन उपलब्धियों से सामाजिक परिवर्तन की झलक साफ दिखाई देने लगी है। अधिकांश महिलाएँ अपने परिवेश तथा समाज में सुधार और आसपास की समस्याओं को हल करने में उतनी ही दिलचस्पी ले रही हैं, जितनी वे अपने परिवार में लेती हैं। कुल मिलाकर आज उन लोगों को भी अपनी राय बदलना पड़ रहा है जिनमें उन्हें महिलाओं की पंचायतों में भागीदारी पर गहरा सन्देह था। अब तो यहाँ तक कहा जाने लगा है कि पंचायत जैसी संस्थाओं में महिलाएँ पुरुष की तुलना में अधिक प्रभावी भूमिका निभा सकती हैं। अभी तो इसे शुरुआत ही कहेंगे और शुरुआत में ही महिलाओं द्वारा किए गए ये प्रयास देश के ग्रामीण राजनैतिक भविष्य की इबारत बदलने के लिए पर्याप्त हैं।

(लेखक भोपाल स्थित स्वतन्त्र पत्रकार हैं)

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