अधिकार कागजों तकः अनुपम मिश्र

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अधिकार तो लोगों को मिले हैं लेकिन सिर्फ कागजों पर। जल, जंगल और जमीन की लड़ाई जारी है और अधिकारों की भी। लेकिन इससे भी जरूरी, बात यह है कि आप अपना कर्त्तव्य करते रहें, अधिकार पीछे-पीछे चल कर आएगा। मशहूर पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र का ऐसा मानना है। अमेरिका सहित कई देशों के विरोध के बावजूद हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने फैसला सुनाया है कि सफाई और साफ पानी लोगों का बुनियादी अधिकार है। अनुपम मिश्र इस मामले में बहुत ही साफगोई से कहते हैं कि अधिकार तो लोगों को मिले ही हुए हैं, उस पर अमल कितना होता है, ज्यादा जरूरी सवाल यह है। ‘तालाब आज भी खरे हैं’ और ‘राजस्थान की रजत बूंदें’ के लेखक अनुपम मिश्र का मानना है कि जल, जंगल और जमीन को बचाने की जद्दोजहद जारी है। देश में जंगल उजाड़े जा रहे हैं, जमीनें छीनी जा रही हैं और लोगों को पीने का पानी तक मुहैया नहीं है। जबकि उन्हें इसका अधिकार हासिल है।

संयुक्त राष्ट्र के फैसले पर टिप्पणी करते हुए वे कहते हैं कि उनका फैसला उन्हें मुबारक हो। यह दौर अधिकारों कि चिंता का दौर है। पानी, जमीन और जंगल छीनने में बड़ी ताकतें और कंपनियां लगी हुई हैं कागजों पर जो अधिकार हमें मिला हुआ है उसे ही छीन कर कंपनियों को दिया जा रहा है। लोगों की जमीन छीनी जा रही है, कर्नाटक, उड़ीसा, गोवा और देश के दूसरे हिस्सों में। हमसे हमारा पानी छीना जा रहा है। नदियों और तालाबों का ही नहीं जो पानी जमीन के नीचे है उसका भी दोहन हो रहा है। गहरे नीचे जल के स्रोतों को बड़ी-बड़ी मशीनों के जरिए सुखाया जा रहा है। मजदूरों का पानी छीना जा रहा है, किसानों का पानी हड़पा जा रहा है। ऐसे में सारे अधिकार तो कागजों पर ही बच जाते हैं। ऐसे में जब अधिकार नहीं मिलता है तो अधिकारों को हासिल करने के लिए संघर्ष का रास्ता बचता है, जो हम कर भी रहे हैं। लेकिन संघर्ष से अगर कुछ भी हासिल नहीं होता है तो एक रास्ता और भी है। खामोशी के साथ कर्त्तव्य करें। हम अगर चुपचाप ईमानदारी से कर्त्तव्य पूरा करते हैं तो अधिकार आपके पीछे-पीछे चल कर आते हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र के फैसले कागजों में ही धरे रह जाते हैं।

वे इसकी मिसाल भी देते हैं। वे कहते हैं कि कर्त्तव्य का बेहतर उदाहरण जैसलमेर का रामगढ़ इलाका है। वहां हर साल सोलह सेंटीमीटर से भी कम बारिश होती है। वहां पानी के लिए करोड़ों अरबों रुपए कई तरह की योजनाओं पर पानी की तरह खर्च किए गये लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ पर अब लोगों को वहां साल भर का पानी आसानी से उपलब्ध है। लोगों ने वहां कर्त्तव्य किया। पुराने कुएं तालाबों की तरफ फिर से रुख किया। सौ साल पहले की अपनी परंपरा जिसे भूल गए थे, कुंई को ठीक किया तो पानी आसानी से मिलने लगा। इलाके में बरसात में पानी नाम का होता है। और जमीन के नीचे का पानी भी खारा है लेकिन इलाके के कई गांव में पानी उपलब्ध है। पानी की कोई कमी नहीं है। यह बात भले हैरत में डालने वाली है लेकिन उन्होंने कर्त्तव्य किया तो अधिकार भी मिल गया। ऐसे में हमारे लिए संयुक्त राष्ट्र के फैसले का बहुत मतलब नहीं रह जाता है।

प्रस्तुतिः फ़जल इमाम मल्लिक

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