ऐतिहासिक तालाब के लिए ऐतिहासिक फैसला

ऐतिहासिक तालाब के लिए ऐतिहासिक फैसलाऐतिहासिक तालाब के लिए ऐतिहासिक फैसलामहोबा नगर के दक्षिण में १०६३/१०९७.के मध्य चन्देल नरेश कीर्ति देव बर्मन द्वारा निर्मित कीरत सागर तालाब को हजार वर्ष उम्र के उपरान्त अपने खुद के अस्तित्व को संरक्षित बनाये रखने के हित में ऐतिहासिक फैसला हुआ है। वैसे तो बुन्देलखण्ड में तालाबों,सरोवरों की एक लम्बी फेहरिस्त है, जिनमें कई तालाबों को सागर की उपमा दी गयी है। पर कीरत सागर का अपना अनूठा इतिहास है जिस पर बुन्देलखण्ड के वाशिन्दों को गर्व है।

कीरत सागर तट पर सन् ११८२ ई. में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान और चंदेलवंश के राजा परमर्दि देव परमाल के मध्य हुये यु़द्ध मे परास्त दिल्ली नरेश पृथ्वी राज चौहान को जान बचाकर वापस दिल्ली भागना पड़ा था। इस विजय युद्ध के गवाह बने कीरत सागर के इतिहास में आल्हा-ऊदल की वीर गाथाओं की स्मृतियां भी समाहित है। जिनका बखान सम्पूर्ण उत्तर भारत में बडे़ ही गौरव के साथ वीर रस भरे गायन आल्हा के रूप में किया जाता है।

उपरोक्त यु़द्ध में विजय की खुशी का प्रतीक बना कजली मेला आज भी हर साल श्रावण मास में कीरत सागर तट पर एक सप्ताह तक चलता है। इसे कजली महोत्सव का भी नाम दिया गया है।

ऐतिहासिक तालाब की निर्मलता,सदा रही-यक्ष प्रश्न

ऐसे इतिहास सम्पन्न 2 कि0मी0 क्षेत्र की परिधि में निर्मित कीरत सागर को जलकुम्भी और जलीय वनस्पतियों ने घेर रखा था । अथाह जल होने पर भी क्या मजाल जो सूरज की रोशनी उसे पार कर पानी तक पहुंच सके। यहां मछलियां भी पानी के अन्दर स्वतंत्र क्रीड़ा के लिए घबराती थीं। एक बार जो अन्दर की खज्जी में फंसी तो फिर निकलना मुश्किल होता। इस ऐतिहासिक तालाब की स्वच्छता निर्मलता-नगरवासियों और शासन-प्रशासन के लिए सदा यक्ष प्रश्न बनी हुई था।

कीरत सागर निर्मल अभियान की साझी पहल

29 सितम्बर 2013 को कीरत सागर की पूर्वी पाल पर वट-वृक्ष की छांव के नीचे आयोजित बैठक में इसी यक्ष प्रश्न का समाधान पाने की पहल प्रारम्भ हुई। बैठक में नगरवासियों सहित सभी तपकों,प्रमुख विभागों के अधिकारियों,सामाजिक संगठनों ने कीरत सागर की निर्मलता भरी चाहत के सुझाव प्रस्तुत कर कीरत सागर निर्मल अभियान का रूप दिया। अभियान की शुरूवात का दिन 05 अक्टूबर २०१३नवमी प्रथमा को सबेरे 7 बजे तय हुआ । इसमें महोबा के जिलाधिकारी श्री अनुज कुमार झा के साथ समाज के अमुक और प्रमुख नागरिकों ने प्रतिभाग किया। यह सिलसिला चला तो चलता ही गया। देखते ही देखते सैकड़ों ट्रक जलकुम्भी और जल वनस्पति तालाब से बाहर होती गयी । जिलाधिकारी के नेतृत्व में रेाज देा तीन सैकड़ा श्रमदानी कीरत सागर की पाल पर एकत्र होते। और 3-4 घंटे तक श्रमदान कर बडे़ भू-भाग में जकड़ी जल शोषक वनस्पति को बाहर निकाल फेंकते। पानी को निर्मल होते देख इस मार्मिक परिदृश्य को देखने के लिए बडी़ तादाद में जन सैलाब उमड़ता रहा। ०५ अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक प्रायोजित अभियान अपनी तिथि पर रूकने की वजाय बिना ब्रेक आगे ही बढ़ता गया। जो 05अक्टूबर २०१३ से 14 नवम्बर २०१३ तक चलते हुये विनम्रता के साथ रोंका गया। फिर भी कई दर्जन श्रमदानी 25 दिसम्बर तक श्रमदान करते रहे। इस अभियान में उमड़े जन सैलाब की प्रबल इच्छा को देख जनपद के जिलाधिकारी ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया।३० दिसम्बर २०१३ को कलेक्ट्रेट सभागार में बैठक बुलाकार कीरत सागर की स्वच्छता के परिप्रेक्ष्य में महत्व पूर्ण फैसले लिए । जो कीरत सागर के लिए ही नहीं देश के तमाम सार्वजनिक ऐतिहासिक तालाबों, सरोवरों के लिए मागदर्शी साबित होगा।

कीरत सागर के नाम अपना बैंक खाता

३० दिसम्बर २०१३ को कीरत सागर के नाम बैंक में खाता खोले जाने का निर्णय लेते हुए जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने आदेश जारी किया है। जिसमें तालाब को अतिक्रमण मुक्त करने,ढीमर समुदाय की आजीविका बर्करार रखने एवं सतत स्वच्छता बनाए रखने के उपायों पर जोर दिया गया है। इस फैसलें में कीरत सागर पर जनमानस के लिए उपयोगी विकास कार्य प्रस्तावित किये गये हैं। इसके लिए अलग-अलग विभागों को जिम्मेदारी भी दी गयी है। राज-समाज की साझी पहल से हुए इस महत्वपूर्ण फैसले से अपने तालाबों की हिफाजत का रास्ता बनते देख रहे हैं महोबा के वाशिन्दें।

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