आज का भयावह रोग कैंसर

18 Oct 2016
0 mins read

कैंसर बहुत पुराना रोग है। कैंसर (Cancer) शब्द का अर्थ है केकड़ा क्योंकि कैंसर केकड़ा सदृश्य शरीर में रेंग-रेंग कर बढ़ता है। कैंसर रोग शरीर के किसी भी अंग को चपेट में ले सकता है। कैंसर रोग में कोशिकाओं के स्वरूप में बदलाव आ जाता है और ये कोशिकाएँ तेजी से अनियंत्रित ढंग से विभाजित होने लगती हैं। ये संख्या में बढ़ी कोशिकाएँ ट्यूमर का रूप ले लेती हैं।कैंसर हृदय रोग के पश्चात विश्व में मौत का दूसरा प्रमुख कारण है। मानव की औसत आयु बढ़ने, बढ़ते प्रदूषण, सिगरेट, तम्बाकू, मदिरा के बढ़ते शौक इत्यादि कारणों से कैंसर का प्रकोप बढ़ रहा है।

कैंसर एक रोग नहीं बल्कि अनेकानेक रोगों का समूह है। कैंसर में वास्तव में एक नए ऊतक का निर्माण हो जाता है।

सामान्यतः शरीर की अधिकांश कोशिकाएँ विभाजित होती रहती हैं परन्तु यह विभाजन नियंत्रित रूप से शरीर की आवश्यकता के अनुसार होता रहता है। जबकि कैंसर कोशिकाएँ, गुणसूत्रों में बदलाव आने के कारण तेजी से अनियंत्रित रूप में विभाजित होने लगती है, अतः जब इसकी संख्या बढ़ जाती है तो यह रसौली (ट्यूमर) का रूप ले लेती है। दूसरे शब्दों में कैंसर कोशिकाएँ अमरत्व प्राप्त कर लेती हैं परन्तु इन कोशिकाओं का शरीर के लिये कोई उपयोग नहीं होता है। कैंसर कोशिकाओं को पोषक तत्वों की जरूरत अन्य कोशिकाओं से ज्यादा होती है और यह शरीर के लिये निर्मित पोषक तत्व को नष्ट करने लगती हैं। यहाँ तक कि कैंसर कोशिकाओं में नई रक्त वाहिनियाँ बन जाती हैं, जिनके माध्यम से इन्हें पोषक तत्वों की आपूर्ति होती रहती है। तेजी से बढ़ती कैंसर कोशिकाएँ सामान्य कोशिकाओं को नष्ट करने लगती हैं साथ ही बढ़ते ट्यूमर के कारण दबाव पड़ने से ऊतक भी नष्ट हो सकते हैं जिससे विभिन्न समस्याएँ हो सकती हैं।

साथ ही कैंसर कोशिकाएँ मूल स्थान से टूटकर लसिका वाहिनियों के माध्यम से आस-पास की लिम्फ ग्रन्थियों में पहुँच कर बढ़ती हैं, जिससे कैंसर ग्रसित अंगों का आकार बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त लसिका ग्रन्थि से लसिका द्रव के साथ या प्राथमिक कैंसर से लिम्फ या रक्त वाहिनियों में कैंसर कोशिकाएँ पहुँचकर बीज सदृश्य व्यवहार करती हैं और यहाँ पर भी अनियंत्रित रूप से तेजी से विभाजित होकर कैंसर कर सकती हैं। अतः रोग बढ़ने पर मूल स्थान के अतिरिक्त कैंसर, जिगर, फेफड़ों, हड्डियों, मस्तिष्क इत्यादि अंगों में भी हो सकता है। यह कैंसर ‘द्वितीय’ या मेटास्टेसिस कहलाता है। द्वितीय कैंसर हो जाने पर उपचार कठिन हो जाता है। मरीजों की स्थिति दयनीय हो जाती है।

कैंसर रोग होने की प्रक्रिया


कैंसर रोग का उद्भव और विकास अत्यधिक जटिल प्रक्रिया है। कैंसर का चिकित्सीय भाषा में दूसरा नाम नियोप्लाज्म (Neoplasm) भी है, इसका अर्थ है नया ऊतक। शरीर की सामान्य कोशिकाओं में कई चरणों में परिवर्तन हो जाते हैं जिसके कारण इन कोशिकाओं का व्यवहार बदल जाता है।

पहले चरण में कुछ ऊतक की कोशिकाओं के केन्द्र में स्थित गुणसूत्रों में बदलाव होता है। यह बदलाव जीवाणु, भौतिक कारणों, विकिरण किरणों, वंशानुगत इत्यादि तत्वों के प्रभाव से हो सकता है। इस बदलाव के कारण सामान्य गुणसूत्र बदलकर कैंसर कारक गुणसूत्रों/जीन, जिनको ऑन्कोजीन (Oncogenes) कहते हैं, बन जाते हैं। सामान्यतः कोशिकाओं के गुणसूत्रों में ऐसे ‘जीन’ भी होते हैं जो कि ट्यूमर उत्पन्न करने वाली ‘जीन’ को दबाए या निष्क्रिय रखते हैं, जिससे ‘ऑन्कोजीन’ सक्रिय नहीं हो पाते। कैंसर कारक तत्वों के प्रभाव में ये गुणसूत्र निष्क्रिय हो सकते हैं। कुछ अन्य ‘जीन’ कैंसर कोशिकाओं के फैलाव को रोकने में भूमिका निभाते हैं। यदि ये गुणसूत्र भी निष्क्रिय हो जाते हैं, तो भी कैंसर कोशिकाएँ तेजी से बढ़कर कैंसर रोग पैदा कर सकती हैं। पहले चरण में गुणसूत्र परिवर्तित कैंसर कारक जीन सुषुप्तावस्था में या निष्क्रिय वर्षों दशकों या ताजिन्दगी रह सकते हैं। ये ‘ऑन्कोजीन’ तब तक कैंसर नहीं करते जब तक दूसरे चरण में यह सक्रिय होकर अपने को प्रकट नहीं करते। ऑन्कोजीन कुछ जीवाणु, हार्मोन, भोज्य तत्वों, वातावरण प्रदूषण इत्यादि तत्वों के प्रभाव में सक्रिय हो जाते हैं और इनके प्रभाव प्रकट होने लगते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कोशिकाओं के व्यवहार में परिवर्तन आ जाते हैं और ये कोशिकाएँ अनियंत्रित रूप से विभाजित होने लगती हैं। यह चरण प्रमोशन कहलाता है।

कैंसर मूलतः गुणसूत्रों की असामान्यताओं के कारण होने वाला रोग है। कुछ कैंसर वंशानुगत हो सकते हैं। यदि माता या पिता में गुणसूत्र असामान्य हैं तो ये इनसे सन्तानों में फैल सकते हैं जैसे कि आँखों का बचपन में होने वाला रेटिनोब्लास्टोमा कैंसर वंशानुगत कैंसर का एक उदाहरण है परन्तु अधिकांश कैंसर कुछ विशिष्ट गुणसूत्रों में आन्तरिक बदलाव के कारण ‘ऑन्कोजीन’ बने इन गुणसूत्रों को निष्क्रिय रखने वाले (Supressor gene) जीन के निष्क्रिय हो जाने के कारण होते हैं।

कैंसर का प्रकोप


भारत सहित विश्व के सभी देशों में भी कैंसर ग्रसित मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है। प्रत्येक देश तथा क्षेत्रों में विभिन्न अंगों के कैंसर का प्रकोप भिन्न होता है और इसके स्वरूप में भी बदलाव आ रहा है जैसे कि भारत में मुँह के कैंसर, महिलाओं में स्तन कैंसर के मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है जबकि महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की संख्या में कमी आ रही है।

विकसित देशों में हृदय धमनी रोगों (एन्जाइना, हार्ट अटैक) के बाद कैंसर मौत का दूसरा बड़ा कारण है। कुल होने वाली मौतों में करीब 21 प्रतिशत व्यक्तियों की मृत्यु कैंसर के कारण होती है। भारत एवं अन्य विकासशील देशों में संक्रमण हृदय धमनी रोगों के पश्चात कैंसर मौत का तीसरा प्रमुख कारण है।

अनुमान है कि लगभग 80 लाख मरीजों की मौत प्रतिवर्ष कैंसर के कारण हो जाती है जबकि लगभग दो करोड़ से ज्यादा विभिन्न कैंसर ग्रसित मरीज विश्व भर में मौजूद हैं। कैंसर किसी भी अंग में हो सकता है। यदि विश्व में कुल कैंसर के मरीजों का आकलन किया जाये तो पुरुषों में सबसे ज्यादा फेफड़ों के कैंसर की संख्या होती है, फिर बड़ी आँत/मलाशय, आमाशय, प्रोस्ट्रेट, यकृत, मुँह, ग्रासनली, मूत्राशय, लिम्फोमा, रक्त कैंसर का नम्बर आता है जबकि देश में पुरुषों में सर्वाधिक संख्या मुँह के कैंसर के मरीजों की होती है फिर फेफड़ों, गले, ग्रास नली, बड़ी आंत/मलाशय, प्रोस्ट्रेट, रक्त कैंसर और लिम्फोमा के मरीजों का नम्बर आता है।

विश्व में महिलाओं में सबसे ज्यादा संख्या स्तन कैंसर के मरीजों की होती है जबकि भारत में सर्वाधिक महिलाएँ गर्भाशय ग्रीवा कैंसर ग्रसित होती हैं फिर स्तन, मुँह, अण्डाशय, ग्रास नली, बड़ी आँत/मलाशय, रक्त कैंसर, फेफड़ों, गर्भाशय के कैंसर होने की सम्भावना होती है।

कुल मिलाकर देश में मुँह के कैंसर के मरीजों की संख्या, कुल कैंसर मरीजों की संख्या की आधी होती है। जबकि मुँह के कैंसर का विश्व भर के कैंसर में छठवाँ स्थान है। मुँह के कैंसर का सम्बन्ध करीब 90 प्रतिशत मरीजों में तम्बाकू सेवन से होता है जिसका देश में व्यापक रूप से उपयोग होता है।

कैंसर होने के अनुमान


वैसे कैंसर के मरीजों में विविधता पूर्ण समस्याएँ या लक्षण हो सकते हैं। परन्तु निम्न लक्षण होने पर लापरवाही उचित नहीं, कैंसर की सम्भावना हो सकती है। अतः योग्य चिकित्सक से परामर्श लेकर परीक्षण और आवश्यक जाँचें करवाएँ जिससे कैंसर ग्रस्त होने-न-होने की पुष्टि हो सके।

1. स्तन में रसौली।
2. मस्से या तिल जिसके स्वरूप में बदलाव होकर तेजी से बढ़ना।
3. दीर्घकालीन पाचन सम्बन्धित समस्याएँ और/या शौच त्याग की आदत में बदलाव।
4. दीर्घकालीन खाँसी या/आवाज में बदलाव।
5. शरीर में नाक, मुँह, मल, मूत्र से रक्त स्राव
6. शरीर के किसी भी स्थान घाव जो कि समुचित उपचार के बावजूद भी भर नहीं रहे हो।
7. बिना स्पष्ट कारण से वजन में कमी, लम्बे समय तक ज्वर जिसके कारण का पता सामान्य जाँचों के बावजूद ही लग पाता है।
8. मुँह में सफेद या लाल चकत्ते, छाले, घाव जोकि उपचार के बावजूद भी ठीक नहीं होते। तम्बाकू, गुटखा सेवन करने वालों का मुँह पूरा न खुल पाना।
9. महिलाओं में मासिक के दौरान ज्यादा रक्त स्राव या मासिक चक्र के मध्य रक्त अथवा सामान्य यौन सम्बन्धों के दौरान रक्त बहना, रजोनिवृत्ति के पश्चात रक्त स्राव।

कैंसर की पूर्व दशा या शुरुआती अवस्था में निदान (स्क्रीनिंग)


वैज्ञानिक गुणसूत्रों की जाँच द्वारा कैंसर रोग की शुरुआत में ही निदान के लिये विधियों की तलाश में जुटे हुए हैं। ज्यादा कैंसर के मरीजों में कैंसर की पूर्वदशा या इनकी शुरुआती अवस्था में विशेष लक्षण प्रकट नहीं होते। इस अवस्था में यदि कैंसर का निदान हो जाता है तो अक्सर सफल उपचार सम्भव होता है और मरीज उपचार तथा बचाव से स्वस्थ हो सकते हैं।

कुछ मान्य कैंसर स्क्रीनिंग विधियाँ


1. स्तन कैंसर से बचाव के लिये महिलाओं को प्रतिमाह स्वतः स्तनों की जाँच करनी चाहिए। 40-49 वर्ष की आयु में तीन वर्ष के अन्तराल और 50 वर्ष आयु के बाद हर वर्ष मैमोग्राफी करवाने का अनुमोदन भी किया गया है।

2. बड़ी आँतों के कैंसर की जाँच के लिये मल में रक्त मौजूद होने की जाँच (Occult blood Test) करवाई जा सकती है और रक्त मौजूद होने पर आँतों की दूरबीन से जाँच करवाई जा सकती है जिससे रोग की पुष्टि हो सके।

3. गर्भाशय ग्रीवा कैंसर, देश में महिलाओं में सबसे सामान्य कैंसर है। यह कैंसर भी कई चरणों में होता है। शुरुआत में यहाँ की झिल्ली में बदलाव आ जाता है। गर्भाशय ग्रीवा का इन चरणों में निदान ग्रीवा के स्राव की सूक्ष्मदर्शी जाँच से सम्भव है यह ‘पैप स्मेयर’ विधि कहलाती है।

कैंसर किन को ज्यादा होने की सम्भावना


1. कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है परन्तु अधिकांशतः कैंसर प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था में होते हैं क्योंकि कैंसर विकसित होने में अनेक वर्ष प्रायः 20 से 30 वर्ष या इससे ज्यादा का समय लग सकता है।

2. तम्बाकू, सिगरेट, पान मसाला, गुटखा या तम्बाकू का किसी भी अन्य रूप में सेवन से मुँह, ग्रास नली, स्वर यंत्र, फेफड़ों, अग्नाशय, मूत्राशय, महिलाओं में स्तन, गर्भाशय ग्रीवा इत्यादि में कैंसर की सम्भावना बढ़ जाती है। यदि दूसरे व्यक्ति धूम्रपान करते हैं तो आस-पास मौजूद व्यक्तियों के शरीर में यह धुआँ पहुँच कर कैंसर की सम्भावना बढ़ा सकता है।

3. ज्यादा मात्रा में लम्बे समय तक शराब सेवन से ग्रास नली, यकृत, अग्नाशय तथा महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है जबकि बीयर के कारण बड़ी आँतों के कैंसर का खतरा रहता है।

4. हार्मोन स्राव में असन्तुलन के कारण स्तन गर्भाशय ग्रीवा, अण्डाशय, पुरुषों में प्रोस्ट्रेट, अण्डकोश कैंसर का डर रहता है। इन कैंसर के उपचार में भी कुछ हद तक हार्मोन प्रभावी होते हैं।

5. वातावरण में प्रदूषण कैंसर कारक हो सकते हैं। अपरोक्ष धूम्रपान, वातावरण में मौजूद एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन इत्यादि कैंसर कारक हो सकते हैं।

6. भोजन में मौजूद कुछ तत्व भी कैंसर की सम्भावना बढ़ा देते हैं। बाजरा, मक्का, मूँगफली, इत्यादि में लगने वाला फफूँद एफ्लोटॉक्सिन स्रावित करता है। इस फफूँद संक्रमित भोजन के सेवन से यकृत कैंसर का खतरा रहता है।

7. अनेक भोज्य पदार्थों की अधिकता या कमी से भी कैंसर हो सकता है। भोजन में वसा की अधिकता से आँतों, अग्नाशय, महिलाओं में स्तन, गर्भाशय, अण्डाशय तथा पुरुषों में प्रोस्ट्रेट ग्रन्थि कैंसर का खतरा रहता है।

8. भोजन में बीटा कैरोटीन (विटामिन ‘ए के पूर्वरूप’) विटामिन ‘सी’ की कमी से फेफड़ों, मुँह, आमाशय कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

9. भोजन पकाने व सुरक्षित रखने की कुछ प्रथाओं के कारण भी कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। भोजन को यदि अत्यधिक तेज आग में पकाया जाता है या ग्रिल तथा स्मोक्ड किया जाता है या फिर इसे लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जाता है।

10. यदि एक ही तेल, घी को बार-बार गर्म कर उपयोग में लाया जाता है तो इनमें कुछ हानिकारक तत्व बन जाते हैं।

11. इसी प्रकार भोजन के सुरक्षित रखने के लिये प्रयुक्त रक्षक रसायन (प्रिजर्वेटिव) रंग वैज्ञानिकों के शक के दायरे में है।

12. कीटनाशक तथा खरपतवारनाशक रसायनों का अन्धाधुन्ध उपयोग हो रहा है। इनकी मात्रा भोज्य पदार्थों में बढ़ रही है। ये भी जानवरों में कैंसर कारक पाये गए हैं।

13. अनेक मिलों कारखानों में उत्पन्न होने वाला रासायनिक धुआँ, दूषित रसायन, कार्बोनिक रसायन भी कैंसर कारक हो सकते हैं।

अभी तक उम्मीद नहीं है कि निकट भविष्य में भी कैंसर का कोई चमत्कारी प्रभावी उपचार उपलब्ध हो जाएगा। कैंसर के सफल उपचार के चाहे कितने ही दावे किये जाएँ इसका पूर्ण सफल उपचार स्वप्न ही है क्योंकि अभी तक कैंसर के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। कैंसर बहुत कुछ अनजान दुश्मन सदृश्य है जो कि कभी भी आक्रमण कर सकता है। शरीर इसके लिये पूरी तरह तैयार नहीं होता। अतः सफलतापूर्वक मुकाबला नहीं कर पाता है।

आशा है कि निकट भविष्य में गुणसूत्रों के आधार पर नई प्रभावी विधियाँ विकसित हो जाएँगी। इन विधियों द्वारा हर व्यक्ति में विशिष्ट कैंसर का पता लगाना सम्भव हो सकेगा। कैंसर की सम्भावना का पता लगाने के लिये नई विधियाँ विकसित होंगी, कैंसर के टीके, दवाइयाँ विकसित हो जाएँगी जिनका उपयोग सरल तथा दुष्प्रभाव रहित होगा।

 

मैक्सलरी साइनस कैंसर : एक अवलोकन


मैक्सलरी साइनस कैंसर की बीमारी मुख्यतया एशिया और अफ्रीका में पाई जाती है। इस बीमारी का जितना जल्द पता लग जाये उतना ही जल्द इसका इलाज सम्भव है। शुरुआत में इसके लक्षण न के बराबर होते हैं इसलिये इस बीमारी का जल्द पता चलना बहुत मुश्किल होता है। बीमारी का पता तभी चलता है जब बीमारी अपने आखिरी दौर में पहुँच चुकी होती है और फिर इस बीमारी का इलाज करना असम्भव हो जाता है और मरीज मृत्यु के जाल में फँस जाता है। इसके कुछ लक्षण निम्नवत हैं :<br><br>


1. साइनस का पूरी तरह बन्द हो जाना<br>


2. सिर में दर्द रहना<br>


3. साइनस में दर्द रहना<br>


4. नाक बहना<br>


5. नाक से खून आना<br>


6. नाक के अन्दर जख्म होना या नासूर बनना और उसका ठीक न होना। <br>


7. शुगर के मरीज के जख्म का सूखना या न सूखना


8. मुँह पर सूजन आना


9. ऊपरी जबड़े में दर्द रहना<br>


10. दाँतों में ढीलापन महसूस होना<br>


9. बनावटी दाँतों का मुँह में ज्यादातर फिट न बैठना<br>


10. आँखों में सूजन आना।<br><br>


रोग की समीक्षा


मैं इस लेख में अपनी माँ (उपासना) के रोग के बारे में बता रही हूँ जिनकी उम्र लगभग 55 साल थी और वे कैंसर रोग से पीड़ित थीं। उनको फरवरी 2014 में इस रोग की जानकारी हुई। रोग के ज्ञात होने से ठीक एक सप्ताह पहले उनके सिर में बहुत तेज दर्द हुआ। इसके बाद उनके ऊपरी बाएँ जबड़े से खून का रिसाव होने लगा। लेकिन उन्हें दर्द बिल्कुल नहीं हुआ था और उनके बाएँ गाल पर थोड़ी सूजन भी आ गई और मुँह से बहुत दुर्गन्ध भी आ रही थी लेकिन इन सभी लक्षणों से उनको कोई दर्द या तकलीफ नहीं हो रही थी। इन लक्षणों से यह पता नहीं चल पा रहा था कि उनको मैक्सलरी साइनस कैंसर है। कुछ दिनों बाद बायोप्सी रिपोर्ट से पता चला कि उन्हें मैक्सलरी साइनस कैंसर है। उनका ट्यूमर ज्यादा फैलने के कारण डॉक्टरों को ऑपरेशन करना उचित नहीं लगा। डॉक्टरों की सलाह पर कीमोथिरेपी कराई गई लेकिन इसका कोई खास लाभ नहीं मिला। हालांकि इसके बाद भी लगातार 20 रेडिएशन और दिये गए। कीमोथिरेपी और रेडिएशन के साइड इफेक्ट से उन्हें बहुत दर्द होता था। प्रतिदिन उनका वजन घटता जा रहा था और वे कमजोर होती जा रही थीं क्योंकि वे कुछ खा नहीं सकती थीं। 6 हफ्ते के रेडिएशन के बाद उन्हें ऑपरेशन के लिये कहा गया। अन्ततः 20 सितम्बर 2014 को उनका ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के बाद भी उन्हें 18 रेडिएशन और दिये गए। एमआरआई करने पर पता चला कि उन्हें लिम्फनोड रीअकरेन्स है जो कि इस बार उनके गले में था। इसके लिये उनकी 10 पोस्ट ऑपरेटिव रेडियोथिरेपी की गई। गाल की जगह जहाँ पर सर्जरी की गई थी, वहाँ उन्हें स्थायी दर्द रहने लगा जो कि बहुत कष्टकारी थी। इस दर्द को खत्म करने के लिये उन्हें मार्फीन सल्फेट की दवा दी गई। इस दवा की खुराक 4 घंटे के अन्तराल से दी जाती थी। डॉक्टरों की सलाह पर उनका PET/MRI टेस्ट भी कराया गया। इसकी रिपोर्ट से पता चला कि जहाँ सर्जरी की गई थी वहाँ भी दोबारा कैंसर हो गया है और यह उनकी आँख की ओर जा रहा है। डॉक्टरों ने अमेरिका के एक बहुत ही अनुभवी डॉक्टर से सलाह करके एक नवीनतम दवा दी जिसका नाम CETUXIMAB था। इसकी उन्हें पाँच खुराक दी गई। इस दवा के साइड इफेक्ट के कारण उन्हें नींद बहुत आती थी और खाना-पीना बहुत कम हो गया था और वे काफी कमजोर हो गई थीं। इसी दौरान उनको डेलीरियम का दौरा पड़ गया और वे अजीबो-गरीब हरकत करने लगी थीं। हालांकि उसका असर एक-दो दिन में खत्म हो गया था और वे पहले की तरह सामान्य हो गई थीं। एक दिन उनका बॉडी ऑक्सीजन स्तर बहुत कम हो गया। हम लोग फौरन उनको अस्पताल लेकर गए जहाँ पहुँचकर डॉक्टरों ने चेक करके हमें बताया कि उनकी यह हालत शरीर में ऑक्सीजन की कमी की वजह से हुई है। उनके हाथ-पाँव पीले पड़ गए थे और वे लगभग बेहोश हो चुकी थीं। इसके दूसरे दिन वे एक बार फिर बेहोशी की हालत में पहुँच गईं। इस अवस्था में वे केवल आँख खोलती और बन्द करती रहती थीं और कुछ नहीं। धीरे-धीरे वे अपना नियंत्रण खो चुकी थीं। इस तरह वे अपनी जिन्दगी कैंसर जैसी बीमारी से लड़ते-लड़ते हार गईं और 29 अप्रैल 2015 को वे मौत के मुँह में समा गईं। इस बीमारी का यदि आरम्भिक अवस्था में पता लग जाये तो बचने के आसार 80 प्रतिशत होते हैं।<br><br>


<h3>सम्पर्क सूत्रः</h3><br>


सुश्री महिमा वर्मा, 69-बी, पॉकेट-बी, मयूर विहार, फेस-2, दिल्ली 110091<br>

मो. : 9582821597<br><br>

 

सम्पर्क सूत्रः


डॉ. जे. एल. अग्रवाल, 3, ज्ञान लोक, मयूर विहार ई-शास्त्री नगर, मेरठ 250 004 (उ. प्र.)

मो. : 09760777197

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading