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अल्मोड़ा

अल्मोड़ा अल्मोड़ा भारत के उत्तर प्रदेश के उत्तर में पहाड़ी इलाके में स्थित एक जिला तथा उसका प्रधान नगर है। वर्तमान अल्मोड़ा जिले का क्षेत्रफल ७,०२३ वर्ग कि.मी. है और जनसंख्या ७,४१,८२१ है। अल्मोड़ा नगर हिमालय प्रदेश की एक पर्वतश्रेणी पर, समुद्रतट से ५,४९४ फुट की ऊँचाई पर स्थित है (अ. २९ ३५ १६ उ. तथा दे. ७९ ४१ १६पू.)। पर्वतश्रेणी की ऊँचाई ५,२०० फुट से ५,५०० फुट तक है। अल्मोड़ा के उत्तर से एक अन्य छोटी सी पर्वतश्रेणी निकलकर सीधी पश्चिम की ओर चली गई है। इन पर्वतश्रेणियों के बीच के भाग में पुराने ढंग की बस्तियाँ मिलती हैं। यहाँ कुछ खेती भी होती है। यहाँ अनेक प्राचीन दुर्गों के खंडहर मिलते हैं। अल्मोड़ा चंद्रवंशी राजाओं की राजधानी थी। इसने अनेक राजवंशों का उत्थान और पतन देखा है। किंवदंतियों के अनुसार अल्मोड़ा एक तिवारी ब्राह्मण के परिवार के अधीन था। इस समय इनके वंशजों के हाथ में अल्मोड़ा जेल के पास थोड़ी सी जमीन रह गई है। कहा जाता है, इन लोगों के साथ यह शर्त थी कि ये सूर्यपूजा के लिए आँवला भेजा करेंगे। आँवला को यहाँ लामोरा कहा जाता है। अल्मोड़ा लामोरा शब्द का ही अपभ्रंश रूप माना जाता है।

अल्मोड़ा में सैनिकों का एक बड़ा अड्डा तथा कई विद्यालय हैं। प्रधान कालेज सर हेनरी रामज़े के नाम से है। यहाँ की जलवायु बहुत अच्छी है जो विशेषकर क्षय रोगियों के लिए बहुत लाभप्रद है। इसके निकटवर्ती रानीखेत में सैनिकों के वायुपरिवर्तन का भी एक स्थान है। सन्‌ १७९० में गोरखा सेना ने इस नगर पर अधिकार कर उसके पूर्वी किनारे पर एक किला बनवाया। मोइरा का किला इसके दूसरे भाग में स्थित है। इसे लालमंडी भी कहते हैं। सन्‌ १८१५ में अंग्रजों तथा गोरखों की लड़ाई अल्मोड़ा में ही हुई थी।

अल्मोड़ा जिला सन्‌ १८९१ में नैनीताल, कुमायूं तथा तराई प्रांतों के पुनर्विन्यास द्वारा बना। यह जिला गंगा तथा घाघरा के शिलामय अंचल के बीच में स्थित है। घाघरा का स्थानीय नाम यहाँ पर 'काली' है। यह जिला अ. २८ ५९उ. से ३० ४९उ. तथा दे. ७९ २पू. से ८१ ३१पू. के बीच फैला हुआ है। यह अंचल हिमालय के पर्वतीय प्रदेश के अंतर्गत है तथा एक के बाद एक हिमाच्छादित पर्वतश्रेणियां दक्षिण उत्तर की ओर विस्तृत हैं। इस हिमाच्छादित तथा जंगलों से ढके हुए पार्वत्य प्रदेश के क्षेत्रफल का ठीक पता अभी तक नहीं लगाया जा सका है।

अल्मोड़ा, विशेषकर इसकी सिलेटी पर्वतश्रेणी, चाय के लिए प्रसिद्ध है। चीड़, देवदार, तून आदि के वृक्ष इस पार्वत्य अंचल की शोभा बढ़ाते हैं। (वि.मु.)

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