अनाज बैंक की स्थापना

विन्ध्यांचल की तलहटी में बसे आदिवासी बहुल गाँवों की भूमि पथरीली होने के कारण खेती अधिक खर्चीली होती है तिस पर बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं व मंहगाई ने किसानों को बिल्कुल ही निराश किया है।

परिचय


बुंदेलखंड के जनपद ललितपुर के विंध्याचल की तलहटी में बेतवा नदी के किनारे बसे गांव आदिवासी बहुल हैं, जिनकी आजीविका मुख्यतः मजदूरी व वनोपज पर आधारित होती है। पथरीली भूमि वाले इस जनपद में खेती एवं उपज अच्छी नहीं मिलती है। इसके अतिरिक्त अनेक अन्य समस्याएं जैसे- वर्षा आधारित कृषि, सामंतशाही व्यवस्था, रोज़गार के अवसरों की कमी एवं पलायन जैसी समस्याओं के कारण यहां के लोगों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। ये आदिवासी परिवार अत्यंत गरीब एवं शोषित हैं। इनमें से कुछ के पास तो भूमि ही नहीं है और कुछ के पास भूमि होते हुए भी वे भूमिहीन हैं। क्योंकि या तो उनकी ज़मीन पर उनका कब्ज़ा ही नहीं है या फिर कब्ज़ा होते हुए भी ज़मीन ऐसी पथरीली होती है, जहां वे खेती कर ही नहीं सकते। यहां खेती करना बहुत अधिक ख़र्चीला होने के कारण भी लोग इससे दूर भागते हैं और या तो अपने खेत खाली ही छोड़ देते हैं या फिर बड़े लोगों को बटाई पर दे देते हैं। इन परिवारों को दिसम्बर से फरवरी तक खाद्यान्न संकट से जूझना पड़ता है। मजबूरी में इन्हें अपने परिवार का पेट पालने के लिए साहूकार से पैसा या अनाज कर्ज पर लेना पड़ता है, जिसके लिए इन्हें मोटा ब्याज भी देना पड़ता है और उनके घर बेगार भी करनी पड़ती है। इसके अतिरिक्त यदि ये तय समय पर कर्ज की रकम वापस नहीं करते तो इन्हें शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना सहनी पड़ती है, अपना घर, ज़मीन आदि गिरवी रखनी पड़ती है।

इन समस्याओं से निपटने के लिए, समुदाय को कठिन माहों में खाद्यान्न उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक ऐसे तंत्र की स्थापना करने की आवश्यकता समुदाय स्तर पर महसूस की गई, जिससे समुदाय का जुड़ाव हो, समुदाय की भागीदारी हो और नियंत्रण भी समुदाय का ही हो। साथ ही इन आदिवासी सहरिया परिवारों को सामंतशाही व्यवस्था व साहूकारों के सामने संकट के दिनों में हाथ न फैलाना पड़े। इस परिकल्पना को साकार करने के लिए अनाज बैंक की स्थापना समुदाय स्तर पर की गई, जिसमें साईं ज्योति संस्थान, ललितपुर की भी बराबर की भागीदारी रही।

ऐसा नही है कि अनाज बैंक कोई नया प्रचलन है, वरन् यह हमारी परंपरा से जुड़ा हुआ है। हम पहले भी अपने घरों में प्रतिदिन के खाने से थोड़ा-थोड़ा अनाज निकाल कर रखते थे। एक तो यह हमारी धार्मिक प्रवृत्ति को मज़बूती प्रदान करता था, जब हम इस निकाले हुए अनाज को दान करते थे। दूसरे कभी यदि परिवार में आपदा की कोई स्थिति आती थी, तो उस दौरान इससे सहायता मिलती थी। पर तब यह प्रयास व्यक्तिगत तौर पर था। इसी को थोड़ा और विस्तारित करते हुए समुदाय स्तर पर अनाज एकत्र करने की प्रक्रिया को ही अनाज बैंक की संज्ञा दी गई।

ग्राम कालापहाड़ में समुदाय की एक समिति बनाकर उपरोक्त विचार को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए समुदाय के 35 परिवारों द्वारा 105 किग्रा. गेहूं अनाज बैंक में एकत्र किया गया। कुल 100 किग्रा. गेहूं संस्था ने भी अनाज क में मिला दिया।

अनाज बैंक बनने की प्रक्रिया


आकार
अनाज एकत्र करने के लिए आमतौर पर मिट्टी की डेहरी का प्रयोग करते हैं, जो बेलनाकार होती है। इसके तहत् पके बांस को पतला-पतला चीर कर फट्टी बना लेते हैं और 6-7 फुट का एक बेलनाकार ढाँचा तैयार कर लेते हैं। इस तैयार ढाँचे को गोबर व मिट्टी के मिश्रण से मोटी सतह के साथ लिपाई कर देते हैं। पुनः इस बेलनाकार ढांचा के ऊपर घास-फूस का गुम्बदनुमा छज्जा तैयार किया जाता है। इस विधि में लागत बहुत कम आती है। यह गांव में उपलब्ध संसाधनों से तैयार हो जाता है। इसके अतिरिक्त टीन के मोटे चादरों की बनी-बनाई डेहरी भी आती है। अधिकांशतः लोग इसी को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि एक तो इसमें मेहनत कम लगती है, दूसरे इसमें रखा अनाज भी सुरक्षित होता है।

भंडारण की प्रक्रिया


इस अनाज बैंक में मुख्य अनाजों-धान, गेहूं, मक्का आदि को एकत्र करने को प्राथमिकता दी जाती है। इसके अतिरिक्त सामूहिक स्तर पर जो खेती की जाती है, उसका भंडारण भी किया जाता है।

समुदाय में फसल कटने के बाद समिति में आर्थिक रूप से सबसे कमजोर सदस्य को आधार मानकर बचत राशि का निर्धारण किया जाता है। न्यूनतम 10-12 किग्रा. अनाज एक व्यक्ति रखता है। वही आधार बनाकर सभी सदस्य एक ही दिन में उक्त मात्रा में अनाज लाकर डेहरी में रखते हैं। इसी दिन संस्था भी अपने हिस्से की अनाज राशि लाकर भंडारित कर देती है।

नियम व शर्तें


आवश्यकतानुसार अति निर्धन, गरीब, भूमिहीन, महिलाओं एवं विकलांगजनों का चयन समिति की बैठक में उनकी आवश्यकता के अनुरूप प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। उसे अनाज बैंक से अनाज उपलब्ध करा दिया जाता है। इससे उस परिवार की कुछ दिनों तक खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित हो जाती है। अगली फसल आने पर यह परिवार लिए गए खाद्यान्न का सवाया अपने अनाज बैंक को वापस करता है। इस प्रकार उनके अनाज बैंकों में अनाज भी बढ़ता जाता है, जिससे अगली बार अधिक संख्या में ज़रूरतमंदों को आवश्यकता एवं संकट के समय अनाज उपलब्ध कराया जाता है।

ग्राम कालापहाड़ की 20 महिलाओं की समिति बनाकर अनाज बैंक बनाने का निर्णय किया गया, जिसमें सांई ज्योति संस्थान ने भी सहयोग किया। इस समिति ने प्रथम सीजन में 105 किग्रा. गेहूं एकत्र किया। इस अनाज बैंक के संचालन के लिए 07 महिलाओं की एक संचालन कमेटी का निर्माण किया गया है। उन्हीं का निर्णय सर्वमान्य होता है। उन्होंने आपस में चर्चा कर कुछ नियम बनाए, जिसे सब पर समान रूप से लागू करने का निर्णय लिया। कुछ नियम इस प्रकार हैं –

अनाज का भंडारण सभी सदस्यों द्वारा एक निश्चित समय में ही करना अनिवार्य होता है।
समुदाय द्वारा जमा किए गए अनाज का दुगुना अनाज संस्था द्वारा जमा किया जायेगा।
यदि किसी सदस्य को आवश्यकता पड़ती है, तो उसे अनाज दिया जाता है। अनाज उत्पादन होने पर वह सवाया अनाज बैंक को वापस करता है।
इस लेन-देन के लिए अलग से रजिस्टर बनाया गया है।
अगर किसी सदस्य के पास नहीं है, तो वह उतने का नगद मूल्य जमा कर देता है।
समूह की खाद्यान्न आवश्यकता पूरी करने के बाद बचे अनाज को बेच दिया जाता है और अगले सीजन में उसी का अनाज खरीद कर पुनः रख दिया जाता है या फिर बेच दिया जाता है। प्राप्त लाभ में पूरे समूह की हिस्सेदारी होती है।
इस तरह के अनाज बैंक ललितपुर के विकास खंड विरधा के कुल 25 गाँवों में प्रतिस्थापित हैं, जिनमें कुल 107 कुंतल अनाज एकत्र हैं। इसमें समुदाय के सहयोग के तौर पर 36 कुंतल व संस्था का सहयोग 71 कुंतल अनाज का है।
इस पूरी प्रक्रिया के संचालित होने से समुदाय को अकाल एवं सूखे की स्थिति में भी जहां खाद्यान्न संकट से नहीं जूझना पड़ा, वहीं उसे मानसिक रूप से निश्चितंता भी हुई।

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