अनोखे पारिस्थितिकी तंत्र महासागर

हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि विश्व की लगभग 21 प्रतिशत आबादी महासागरों से लगे 30 किलोमीटर तटीय क्षेत्र में निवास करती है इसलिए अन्य जीवों के साथ-साथ मानव समाज के लिए भी प्रदूषण मुक्त महासागर कल्याणकारी साबित होंगे। इसके अलावा पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले पारितंत्रों में समुद्र की उपयोगिता को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम समुद्री पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखें।

महासागर पृथ्वी पर जीवन का प्रतीक है। पृथ्वी पर जीवन का आरंभ महासागरों से माना जाता है। महासागरीय जल में ही पहली बार जीवन का अंकुर फूटा था। आज महासागर असीम जैवविविधता का भंडार है। हमारी पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत भाग महासागरों से घिरा है। महासागरों में पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग 97 प्रतिशत जल समाया है। महासागरों की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि पृथ्वी के सभी महासागरों को एक विशाल महासागर मान लिया जाए तो उसकी तुलना में पृथ्वी के सभी महाद्वीप एक छोटे द्वीप से प्रतीत होंगे। मुख्यतया पृथ्वी पर पाँच महासागर हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- प्रशांत महासागर, हिन्द महासागर, अटलांटिक महासागर, उत्तरी ध्रुव महासागर और दक्षिणी ध्रुव महासागर। महासागरों का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्व मानव के लिए इन्हें अतिमहत्वपूर्ण बनाता है। इसलिए महासागरों के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रतिवर्ष 08 जून को विश्व महासागर दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम युवा बदलाव की अगली लहर।

महासागरों के नीचे भी धरती है, अतः जिस प्रकार धरती पर पर्वत एवं खाईयाँ हैं, वैसी ही महासागरों में विभिन्न स्थलाकृतियाँ हैं। समुद्र का तल अनेक प्रकार का होता है। उसमें पहाड़ियाँ, द्वीप, समतल मैदान, सागर की उठान, निमग्न द्वीप या गयोट शामिल होते हैं। महासागरों के तल को मुख्य रूप से तीन भागों महाद्वीपीय शेल्फ, महाद्वीपीय ढाल और वितल मंन बाँटा जाता है। महाद्वीपीय शेल्फ तट से लगा क्षेत्र होता है जिस पर भूमि का प्रभाव पड़ता है। नदियों के जल के साथ आने वाले तत्वों से यह क्षेत्र पौष्टिक तत्वों से समृद्ध रहता है। सूर्य के प्रकाश और पौष्टिक तत्वों की पर्याप्ता के कारण इस क्षेत्र में जीवों और वनस्पतियों की प्रचुरता होती है। परंतु मनुष्य के क्रियाकलापों का सबसे अधिक प्रभाव भी इसी क्षेत्र पर पड़ता है। आज महासागरों के तटीय क्षेत्र समुद्र के सबसे प्रदूषित क्षेत्र हैं।

अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ महासागर अपने अंदर व आस-पास अनेक छोटे-छोटे नाजुक पारितंत्रो को पनाह देते हैं जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव व वनस्पतियाँ पनपती हैं। समुद्र में प्रवाल भित्ति क्षेत्र ऐसे ही एक पारितंत्र का उदाहरण है जो असीम जैवविविधता का प्रतीक है। इसी प्रकार तटीय क्षेत्रों में स्थित मैंग्रोव जैसी वनस्पतियों से संपन्न वन समुद्र के अनेक जीवों के लिए नर्सरी का काम करते हुए विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं। अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। महासागरों में पृथ्वी का सबसे विशालकाय जीव व्हेल से लेकर सूक्ष्म जीव भी मिलते हैं। एक अनुमान के अनुसार समुद्रों में करीब जीवों की दस लाख प्रजातियां उपस्थित हो सकती हैं।

जैवविविधता से संपन्न होने के साथ ही महासागर धरती के मौसम को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। समुद्री जल की लवणता और विशिष्ट ऊष्माधारिता का गुण पृथ्वी के मौसम को प्रभावित करता है। यह तो हम जानते ही हैं कि पृथ्वी की समस्त ऊष्मा में जल की ऊष्मा का विशेष महत्व है। जितनी ऊष्मा एक ग्राम जल के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करेगी, उससे एक ग्राम लोहे का तापमान दस डिग्री बढ़ाया जा सकता है। अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण समुद्री जल दिन में सूर्य की ऊर्जा का बहुत बड़ा भाग अपने में समा लेता है। इस प्रकार अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण समुद्र ऊष्मा का भण्डारक बन जाता है जिसके कारण विश्व भर में मौसम संतुलित बना रहता है या यूं कहें कि जीवन के लिए औसत तापमान बना रहता है। मौसम के संतुलन में समुद्री जल की लवणता जीवन के लिए एक वरदान है। पृथ्वी पर जलवायु के बदलने की घटना और समुद्री जल का खारापन आपस में अन्तःसंबंधित हैं। यह तो हम जानते ही हैं कि ठंडा जल, गर्म जल की तुलना में अधिक घनत्व वाला होता है। समुद्र में किसी स्थान पर सूर्य के ताप के कारण जल के वाष्पित होने से उस क्षेत्र के जल के तापमान में परिवर्तन होने के साथ वहां के समुद्री जल की लवणता और आस-पास के क्षेत्र की लवणता में अंतर उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण गर्म जल की धाराएं ठंडे क्षेत्रों की ओर चल देती हैं और ठंडा जल उष्ण और कम उष्ण प्रदेशों में आता है। समुद्र में ये धाराएं केवल इस कारण उत्पन्न होती हैं कि समुद्र का जल खारा है। क्योंकि यदि सारे समुद्रों का जल मीठा होता तो लवणता का क्रम कभी न बनता और जल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने वाली धाराएं सक्रिय न होती। परिणामस्वरूप ठंडे प्रदेश बहुत ठंडे रहते और गर्म प्रदेश बहुत गर्म। तब पृथ्वी पर जीवन के इतने रंग न बिखरे होते क्योंकि पृथ्वी की असीम जैवविविधता का एक प्रमुख कारण यह है कि यहां अनेक प्रकार की जलवायु मौजूद है और जलवायु के निर्धारण में महासागरों का महत्वपूर्ण योगदान नकारा नहीं जा सकता है।

संसार के महासागरों में लगभग 33 करोड़ घन मील पानी समाहित है। हम जानते ही हैं कि पानी की बूंद-बूंद से जीवन पोषित होता है। महासागरों का नाम आते ही हमारे दिमाग में पानी की बड़ी-बड़ी लहरों का दृश्य आता है। समुद्र की ऊपरी पर्त सूर्य की गर्मी से गर्म होती रहती है और हवाओं द्वारा उसका मंथन होता रहता है। जिसके परिणामस्वरूप किनारों पर लहरों का जन्म होता है। वास्तव में पानी की लहरें महासागरों की गतिशीलता को अभिव्यक्त करती हैं। महासागरों में लहरें उनकी सतह पर चलने वाली हवाओं के कारण बनती हैं। लेकिन लहरो के माध्यम से जल एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जाता जैसा कि धाराओं के माध्यम से होता है। लहर तो जल की ऊपर-नीचे होने वाली गति मात्र है। हवा की गति सामान्य होने पर लहरों की ऊंचाई 2 से 5 मीटर तक होती है लेकिन वायु का वेग अधिक होने पर 10 से 12 मीटर तक ऊंची लहरें उठती हैं। लहरें वायुमंडल और महासागर के आपसी समन्वय का परिणाम होती हैं। महासागरों में जीवन की विविधता में महासागरीय धाराओं का योगदान अहम् है। जल के ऊपर या नीचे उठने के कारण विभिन्न पोषक तत्व एक स्थान से दूसरे स्थान तक वितरित होते रहते हैं जिसके परिणामस्वरूप समुद्र में जीवन चलता रहता है।

समुद्र की ऊपरी परत जीवन के लिए सबसे उत्पादक क्षेत्र है। इसी क्षेत्र में सूर्य की रोशनी के सहयोग से पानी के खनिजों से पादप प्लवकों द्वारा कार्बनिक पदार्थों का निर्माण होता है जो खाद्य श्रृंखला की पहली कड़ी होते हैं। मौटे तौर पर महासागरों का जल दो पर्तों में बाँटा जा सकता है। महासागर की ऊपरी पर्त का आयतन समस्त महासागरीय जल का लगभग दो प्रतिशत होता है। सूर्य के ताप और हवाओं के प्रभाव वाली यह पर्त विभिन्न महासागरीय गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका रखती है। ऊपरी पर्त से पानी भाप बनकर पूरी पृथ्वी पर मीठे पानी के रूप में बरसता है। ये पानी थल पर जीवन का पोषण करते हुए नदियों-नालों के रूप में पुनः महासागरों में आ मिलता है और अपने साथ लाता है कई प्रकार के खनिज व लवण। महासागरों की लवणता लाखों वर्षों की इसी प्रक्रिया का ही परिणाम है। वैसे समुद्री ज्वालामुखी जैसी गतिविधियां भी समुद्री लवणता में अपना योगदान देती हैं। अतः समुद्र में आपस में अन्तः सबंधित कई प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप नमक व अन्य खनिजों का संतुलन बना रहता है और जिससे समुद्र में जीवन निरंतर चलता रहता है। इस पर्त की तुलना में निचली पर्त जो अधिकतर महासागरीय जल को रखती है, उसमें प्रायः तापमान नियत बना रहता है। निचली पर्त का तापमान - 1 (शून्य से एक डिग्री नीचे) से लेकर 5 डिग्री सेल्सियस के आस-पास होता है। एक अनुमान के अनुसार निचली पर्त के पानी के एक परमाणु को ऊपरी पर्त तक पहुँचने के लिए लगभग 1000 साल का इंतजार करना पड़ता है। इस पानी का उद्गम ध्रुवीय प्रदेशों में उपस्थित ऊपरी पर्त का पानी है जो कम तापमान के कारण अधिक घनत्व का होता है। इस पानी की लवणता भी स्थिर होती है। समुद्र के ऊपरी व निचली पर्त के बीचों-बीच एक और क्षेत्र होता है जो ऊपरी और निचले क्षेत्र के पानी के लिए एक अवरोधक का कार्य कर उन्हें आपस में मिलने से रोकता है। इस मध्य क्षेत्र में तापमान गहराई की ओर बहुत तेजी से कम होता जाता है और हम जानते हैं कि ठंडे पानी का घनत्व गर्म पानी की अपेक्षा अधिक होता है। परिणामस्वरूप बीच का यह क्षेत्र ऊपरी पर्त के गर्म पानी व निचली पर्त के ठंडे पानी को आपस में मिलने से रोकता है।

वर्तमान में मानवीय गतिविधियों का प्रभाव समुद्रों पर भी दिखाई देने लगा है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में दिनोंदिन प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। जहां तटीय क्षेत्र विशेष कर नदियों के मुहानों पर सूर्य के प्रकाश की पर्याप्ता के कारण अधिक जैवविविधता वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाने जाते थे, वहीं अब इन क्षेत्रों के समुद्री जल में भारी मात्रा में प्रदूषणकारी तत्वों के मिलने से वहाँ जीवन संकट में हैं। तेलवाहक जहाजों से तेल के रिसाव के कारण एवं समुद्री जल के मटमैला होने पर उसमें सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुँच पाता, जिससे वहाँ जीवन को पनपने में परेशानी होती है और उन स्थानों पर जैवविविधता भी प्रभावित होती है। यदि किसी कारणवश पृथ्वी का तापमान बढ़ता है तो महासागरों की कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता में कमी आएगी जिससे वायुमण्डल में गैसों की आनुपातिक मात्रा में परिवर्तन होगा और तब जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों में असंतुलन होने से पृथ्वी पर जीवन संकट में पड़ सकता है। समुद्रों से तेल व खनिज के अनियंत्रित व अव्यवस्थित खनन एवं अन्य औद्योगिक कार्यों से समुद्री पारितंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पर्यावरण सरंक्षण के लिए प्रतिबद्ध संस्था अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट के अनुसार मानवीय गतिविधियों से ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री जल स्तर में वृद्धि हो रही है और जिसके परिणामस्वरूप विश्व भर के मौसम में बदलाव हो सकते हैं।

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति महासागरों में ही हुई और आज भी महासागर जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों को बनाए रखने में सहायक हैं। महासागर पृथ्वी के तिहाई से अधिक क्षेत्र में फैले हैं इसलिए महासागरीय पारितंत्र में थोड़ा सा परिवर्तन पृथ्वी के समूचे तंत्र को अव्यवस्थित करने की सामर्थ्य रखता है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि विश्व की लगभग 21 प्रतिशत आबादी महासागरों से लगे 30 किलोमीटर तटीय क्षेत्र में निवास करती है इसलिए अन्य जीवों के साथ-साथ मानव समाज के लिए भी प्रदूषण मुक्त महासागर कल्याणकारी साबित होंगे। इसके अलावा पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले पारितंत्रों में समुद्र की उपयोगिता को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम समुद्री पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखें।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading