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अंटार्कटिक महाद्वीप

अंटार्कटिक महाद्वीप दक्षिणी ध्रुव प्रदेश में स्थित विशाल भूभाग को अंटार्कटिक महाद्वीप अथवा अंटार्कटिका कहते हैं। इसे अंध महाद्वीप भी कहते हैं। झंझावातों, हिमशिलाओं तथा ऐल्बैट्रॉस नामक पक्षी वाले भयानक सागरों से घिरा हुआ यह एकांत प्रदेश उत्साही मानव के लिए भी रहस्यमय रहा है। इसी कारण बहुत दिनों तक लोग संयुक्त राज्य अमरीका तथा कनाडा के संमिलित क्षेत्रफल की बराबरी करने वाले इस भूभाग को महाद्वीप मानने से भी इनकार करते रहे।

खोजों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- १७वीं शताब्दी से ही नाविकों ने इसकी खोज के प्रयत्न प्रारंभ किए। १७६९ ई. से १७७३ ई. तक कप्तान कुक ७१ १० दक्षिण अक्षांश, १०६ ५४ प. देशांतर तक जा सके। १८१९ ई. में स्मिथ शेटलैंड तथा १८३३ ई. में केंप ने केंपलैंड का पता लगाया। १८४१-४२ ई. में रॉस ने उच्च सागरतट, उगलते ज्वालामुखी इरेवस तथा शांत माउंट टेरर का पता पाया। तत्पश्चात्‌ गरशेल ने १०० द्वीपों का पदा लगाया। १९१० ई. में पाँच शोधक दल काम में लगे थे जिनमें कप्तान स्काट तथा अमुंडसेन के दल मुख्य थे। १४ दिसंबर को ३ बजे अमुंडसेन दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचा और उस भूभाग का नाम उसने सम्राट हक्कन सप्तम पठार रखा। ३५ दिनों बाद स्काट भी वहाँ पहुँचा और लौटते समय मार्ग में वीरगति पाई। इसके पश्चात्‌ माउसन शैकल्टन और बियर्ड ने शोध यात्राएँ कीं। १९५० ई. में ब्रिटेन, नार्वे और स्वीडन के शोधक दलों ने मिलकर तथा १९५०-५२ में फ्रांसीसी दल ने अकेले शोध कार्य किया। नवंबर, १९५८ ई. में रूसी वैज्ञानिकों ने यहाँ पर लोहे तथा कोयले की खानों का पता लगाया। दक्षिणी ध्रुव १०,००० फुट ऊँचे पठार पर स्थित है जिसका क्षेत्रफल ५०,००,००० वर्ग मील है। इसके अधिकांश भाग पर बर्फ की मोटाई २,००० फुट है और केवल १०० वर्ग मील को छोड़कर शेष भाग वर्ष भर बर्फ से ढका रहता है। समतल शिखर वाली हिमशालाएँ इस प्रदेश की विशेषता हैं।

यह प्रदेश  पर्मोकार्बोनिफेरस समय की प्राचीन चट्टानों से बना है। यहाँ की चट्टानों के समान चट्टानें भारत, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका में मिलती हैं। यहाँ की उठी हुई बीचियाँ क्वाटरनरी समय में धरती का उभाड़ सिद्ध करती हैं। यहाँ हिमयुगों के भी चिह्न मिलते हैं। ऐंडीज़ एवं अंटार्कटिक महाद्वीप में एक सी पाई जाने वाली चट्टानें इनके सुदूर प्राचीन काल के संबंध को सिद्ध करती हैं। यहाँ पर ग्रेनाइट तथा नीस नामक शैलों की एक ११०० मील लंबी पर्वत श्रेणी है जिसका धरातल बलुआ पत्थर तथा चूने के पत्थर से बना है। इसकी ऊँचाई ८,००० से लेकर १५,००० फुट तक है।

जलवायु-ग्रीष्म में ६० दक्षिण अक्षांश से ७८ द. अ. तक ताप २८ फारेनहाइट रहता है। जाड़े ७१ ३० द. अ.में ४५ ताप रहता है और अत्यंत कठोर शीत पड़ती है। ध्रुवीय प्रदेश के ऊपर उच्च वायुभार का क्षेत्र रहता है। यहाँ पर दक्षिण-पूर्व बहने वाली वायु का प्रति चक्रवात उत्पन्न होता है। महाद्वीप के मध्य भाग का ताप १०० फा. से भी नीचे चला जाता है। इस महाद्वीप पर अधिकतर बर्फ की वर्षा होती है।

वनस्पति तथा पशु–दक्षिणी ध्रुव महासागर में पौधों तथा छोटी वनस्पतियों की भरमार है। लगभग १५ प्रकार के पौधे इस महाद्वीप में पाए गए हैं जिनमें से तीन मीठे पानी के पौधे हैं, शेष धरती पर होने वाले पौधे, जैसे काई आदि।

अंध महाद्वीप का सबसे बड़ा दुग्धपायी जीव ह्वेल है। यहाँ तेरह प्रकार के सील नामक जीव भी पाए जाते हैं। उनमें से चार तो उत्तरी प्रशांत महासागर में होने वाले सीलों के ही समान हैं। ये फ़र-सील हैं तथा इन्हें सागरीय सिंह अथवा सागरीय गज भी कहते हैं। बड़े आकार के किंग पेंगुइन नामक पक्षी भी यहाँ मिलते हैं। यहाँ पर विश्व में अन्यत्र अप्राप्य ११ प्रकार की मछलियाँ होती हैं। दक्षिणी ध्रुवीय प्रदेश में धरती पर रहने वाले पशु नहीं पाए जाते।

उत्पादन–धरती पर रहने वाले पशुओं अथवा पुष्पों वाले पौधों के न होने के कारण इस प्रदेश का आय स्रोत एक प्रकार से नगण्य है। परंतु पेंगुइन पक्षियों, सील, ह्वेल तथा हाल में मिली लोहे एवं कोयले की खानों से यह प्रदेश भविष्य में संपत्तिशाली हो जाएगा, इसमें संदेह नहीं। यहाँ की ह्वेल मछलियों के व्यापार से काफी धन अर्जित किया जाता है। वायुयानों के वर्तमान युग में यह महाद्वीप विशेष महत्व का होता जा रहा है। यहाँ पर मनुष्य नहीं रहते। अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष में संयुक्त राष्ट्र (अमरीका), रूस और ब्रिटेन तीनों की इस महाद्वीप के प्रति विशेष रुचि परिलक्षित हुई है और तीनों ने दक्षिणी ध्रुव पर अपने झंडे गाड़ दिए हैं। (शिं. सं. सिं.)

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