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अंतरिक्ष यात्रा

अंतरिक्ष यात्रा के अभियान में सबसे पहले ४ अक्टूबर, १९५७ को रूस द्वारा प्रथम स्पुतनिक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया। हर १६ मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा लगाने वाले इस स्पुतनिक ने दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया। इसी के एक मास बाद स्पुतनिक-२ छोड़ा गया जिसमें लाइका नामक कुतिया थी। स्पुतनिक-२ से दो मास पूर्व अमरीकी वैनगार्ड की उड़ान का प्रयास असफल रहा। इस प्रकार स्पुतनिक ने संसार के दो बड़े राष्ट्रों-रूस और अमरीका-के बीच अंतरिक्ष विजय की होड़ प्रारंभ कर दी।

स्पुतनिक के अतिरिक्त वैनगार्ड, एक्सप्लोरर, डिस्कवरर, कॉस्मास आदि के नामों से अनेक उपग्रह अंतरिक्ष के रहस्यों का अध्ययन करने के लिए छोड़े गए। चंद्रमा के अध्ययन के लिए छोड़े जाने वाले यानों की श्रृंखला में ल्यूनिक, पायोनियर, रेंजर, ल्यूना तथा सर्वेयर विशेष महत्व रखते हैं। रूस ने सबसे पहले १९५७ में ल्यूनिक नाम का प्रथम चंद्रयान भेजा। पर यह चंद्रमा की कक्षा में न जाकर सूर्य की कक्षा में जा पहुँचा। इसके दो मास बाद अमरीकी कृत्रिम उपग्रह पायोनियर-४ चंद्रकक्षा में भेजा गया पर यह भी सूर्य की कक्षा में चला गया। अंतत १२ सितंबर, १९६६ को रूस का ल्यूना-९ चंद्रमा पर उतरा।

मानवरहित अंतरिक्ष यान भेजने के बाद मानव को प्रथम बार अंतरिक्ष में भेजने का श्रेय रूस को है। यूरी गागारिन प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने १२ अप्रैल, १९६१ को मानव की अंतरिक्ष यात्रा का श्रीगणेश किया। उन्होंने अपने वीस्तोक प्रथम में १०८ मिनट के दौरान पृथ्वी का एक चक्कर लगाया और सकुशल धरती पर वापस आ गए। उसके बाद अमरीका और रूस दोनों ने अनेक अंतरिक्षयान छोड़े। इनका क्रमबद्ध विवरण इस प्रकार है-

१९५७--मानवनिर्मित पहला उपग्रह स्पुतनिक प्रथम (रूस) ५६० मील ऊँचा गया।

--स्पुतनिक द्वितीय, कुतिया लाइका के साथ, छोड़ा गया। १,०५६ मील की ऊँचाई तक गया।

१९५८--प्रथम अमरीकी भू उपग्रह एक्सप्लोरर प्रथम ३ जून को १,५८७ मील ऊपर गया।

--वैनगार्ड प्रथम (अमरीकी) और एक्सप्लोरर तृतीय (अमरीका) छोड़े गए।
--ल्यूनिक-२ (रूस) ने १३ सितंबर को ३५ घंटे बाद चंद्रमा को स्पर्श किया.
--स्पुतनिक तृतीय, एक्सप्लोरर चतुर्थ छोड़े गए।
--पायोनियर प्रथम (अमरीका) ६१,३०० मील तक ऊपर गया।
--पायोनियर द्वितीय छोड़ा गया।
--पायोनियर तृतीय तथा ऐटलस प्रथम (अमरीका) छोड़े गए।
१९५९--रूसी ल्यूनिक प्रथम पहला मानवनिर्मित उपग्रह था, जो सूर्य के चारो ओर ग्रहपथ पर गया।
--ल्यूनिक तृतीय ने चंद्रमा के अदृश्य भाग के रेडियो फोटो पृथ्वी पर भेजे।
--वैनगार्ड द्वितीय (अमरीका) छोड़ा गया।
--डिसकवरर प्रथम (अमरीका) ध्रुवों की परिक्रमा करने के लिए भेजा गया।
--पायोनियर चतुर्थ (अमरीका) छोड़ा गया।
--रूस ने १२ सितंबर को ल्यूनिक द्वितीय भेजा।
१९६०--अमरीका ने एक छोटा ग्रह ११ मार्च को शुक्र के पास भेजा।
--रूस ने १५ मई को पहला अंतरिक्षयान नकली अंतरिक्ष यात्री के साथ छोड़ा।
--अमरीका ने मीदास द्वितीय छोड़ा। अंतरिक्ष से जासूसी का पहला परीक्षण हुआ।
--रूस ने १९ अगस्त के दूसरा अंतरिक्ष यान जानवरों सहित भेजा।
--तीसरा अंतरिक्ष यान (रूस) दो कुत्तों के साथ भेजा।
१९६१--रूस ने स्पुतनिक-७ उपग्रह छोड़ा।
१९६२--मैरीनर द्वितीय राकेट (अमरीका) भेजा गया।
१९६३--ल्यूनिक-४ (रूस ने) भेजा।
१९६५--दो यात्रियों वाला अंतरिक्ष यान वोस्खोद-२ (रूस) छोड़ा गया। अंतरिक्ष में एक यात्री अलेक्सी लिओनोव यान से बाहर निकलकर २० मिनट तक भारहीनता की स्थिति में रहा।

१९६६--ल्यूना-९ (रूस) चंद्रमा पर उतरा (३ फरवरी)।
--ल्यूना १० चंद्रमा पर उतरा (३ अप्रैल)।
१९६७-- अपोलो (अमरीका) छोड़ा गया।
१९६८-- अपोलो-७ (अमरीका) छोड़ा गया।

--सोयूज-२ व ३ (रूस) यात्री अपने यान से निकलकर दूसरे यान में गया।
--अपोलो-८ (अमरीका) दिसंबर में भेजा गया।
१९६९--सोयूज-४ व ५ (रूस) १६ जनवरी को अंतरिक्ष में एक-दूसरे से जुड़ गए।
--सोयूज-५ के दो यात्रियों ने सोयूज-४ में प्रवेश किया।
--अपोलो-९ (अमरीका) ३ मार्च को भेजा गया।
-मेरिनर-७ (अमरीका) २७ मार्च को मंगल ग्रह की परिक्रमा के लिए छोड़ा गया।
--वीनस-५ (रूस) १६ मई को शुक्र ग्रह पर उतरा।
--वीनस-६ (रूस) १७ मई को शुक्र ग्रह पर उतरा।
--अपोलो-१० (अमरीका) १० मई को छोड़ा गया।
--ल्यूना-१५ (रूस) १३ जुलाई को भेजा गया।
--अपोलो-११ (अमेरिका) २१ जुलाई को चंद्रमा पर उतरा।
--जोंद-७ (रूस) ६ अगस्त को छोड़ा गया।
--सोयूज-६ (रूस) ११ अक्तूबर को दो यात्रियों सहित छोड़ा गया।
--सोयूज-७ (रूस) १२ अक्तूबर को तीन यात्रियों सहित छोड़ा गया।
--सोयूज-८ (रूस) १३ अक्तूबर को दो यात्रियों सहित भेजा गया।
--अपोलो-१२ (अमरीका) १९ नवंबर को चंद्रमा पर उतरा।
यह मानव की दूसरी चंद्र यात्रा थी।
--अपोलो-१३ चाँद तक नहीं पहुँच सका।
१९७१--अपोलो-१४ (अमरीका) ५ फरवरी को चंद्रमा पर उतरा, यह मानव की तीसरी चंद्र यात्रा थी।
१९७२--अपोलो १५, १६ और १७ का विवरण इसी लेख में आगे अपोलो योजना के अंतर्गत दिया गया है।
यूरी गागारिन (रूस)-१२ अप्रैल, १९६१, एक चक्कर ग्रहपथ पर, १ घं. ४८ मि., २५,००० मील।
टीटोव (रूस)-६-७ अगस्त, १९६१, ग्रहपथ में १७ चक्कर, २५ घं. १८ मि., ४,३७,००० मील।
जान ग्लेन व कारपेंटर (अमरीका)-२० फरवरी, १९६२, ग्रहपथ के तीन चक्कर, ४ घं. ५६ मि., ८१,००० मील।
नीकोलेयेव (रूस)-११-१५ अगस्त, १९६२, २४ चक्कर, ९४ घं. ३५ मि., १६,२५,००० मील।
पोपोविच (रूस)-१२-१५ अगस्त, १९६२, ४८ चक्कर, ७२ घं. ५७ मि., १२,४२,५०० मील।
वाल्टर शीर्रा (अमरीका)-३ अक्तूबर, १९६२, ६ चक्कर, ९ घं. १३ मि.।
गोर्डनकूपर (अमरीका)-१६ मई, १९६३, २२ चक्कर, ३४ घं. १३ मि.।
वालेरी बाईकोव्स्की (रूस)-१४-१९ जून, १९६३, ८२ चक्कर, ११९ घं., २०,६०,००० मील।
वालेंटीना तेरेस्कोवा (स्त्री, रूस)-१६-१९ जून, १९६३, ४९ चक्कर, ७१ घं., १२,५०,००० मील।
ब्लादीमीर कोमारोव, कांस्टैंटिन फिओक्टिस्टोव और येगोरोव (प्रथम रूसी सामूहिक उड़ान)-१२ अक्तूबर, १९६४, १६ चक्कर।
अलेक्सी लियोनोव, पावेल बेलायेव (रूस)-१८ मार्च, १९६५, पहली बार २० मिनट तक अंतरितक्ष में विचरण किया।
फ्रैंक बोरमैन, जेम्स लोवेल (अमरीका)-८ दिसंबर, १९६५, जेमिनी-७ में हो सप्ताह की अंतरिक्ष यात्रा। वर्जिल, ग्रिसिम, एडवर्ड ह्वाइट व रोजर चेफी २९ जनवरी, १९६७ को अपोलो यान में आग लगने से मरे।

कर्नल ब्लादीमपर कोमारोव (रूस)-२५ अप्रैल, १९६७, सोयूज-१ पृथ्वी की ओर लौटते समय टकरा गया। कोमारोव मारे गए।

वाल्टर इस्किरा, डोन इस्ले और वाल्टर कनिंघम (अमरीका)-अपोलो-७ में ११ अक्टूबर, १९६८ को ११ दिनों तक यात्रा की। पहला अमरीकी अंतरिक्ष अभियान जिसमें ३ यात्रियों ने भाग लिया।

ज्यार्जी बेरेकोवोय (रूस)-क्रमश २५ और २६ अक्टूबर, १९६८ को सोयजू-२ और सोयजू-३ छोड़े गए। दोनों यानों की अंतरिक्ष में भेंट हुई तथा सोयजू-३ से बाहर निकलकर कर्नल बेरेगोवोय देर तक घूमे तथा ३० अक्टूबर को ४ दिनों की यात्रा के बाद धरती पर लौटे।

जेम्स ए. मैक्डीविट, डेविड आर. स्काट और रसल एल. शवीकार्ट (अमरीका)-३ मार्च, १९६९, अपोलो-९।

ब्लादीमीर शतालोव (रूस)-१६ जनवरी, १९६९, सोयूज-४ पहली बार दो समानव यानों का मिलन।

बोरिस बोलयनोव, येवगने खरूनोव और एलेक्सी येलीसेयेव (रूस)-सोयूज-५।

नील आर्मस्ट्रांग, एडविन एलड्रिन और माइकेल कोलिंस (अमरीका)-२० जुलाई, १९६९, को अपोलो-११ चंद्रमा पर प्रशांत सागर में उतरा। आर्मस्ट्रांग और एलड्रिन चंद्र धरातल पर चले। मानव की चंद्रमा पर विजय।

चार्ल्स कोनराड और एलेन एल. बीन-१९ नवंबर, १९६९, चंद्रमा पर उतरे। रिचार्ड एफ. गोर्डन मुख्य यान अपोलो १२ में बैठा रहा।

ऐलेन शेपर्ड और एडगर मिशेल ५ फरवरी, १९७१ को चंद्रमा पर उतरे। स्टुअर्ट रूज़ा मुख्य यान में बैठा रहा। ९ फरवरी को चंद्र यात्रियों ने ह्यूस्टन स्थित अनुसंधान केंद्र के माध्यम से पत्रकार सम्मेलन किया। अंतरिक्ष यात्री चंद्ररिक्शा चंद्रमा पर छोड़ आए।

अपोलो योजना संयुक्त राज्य अमरीका ने मनुष्य को चाँद पर उतारने और चाँद के विभिन्न भागों के सर्वेक्षण करने के लिए बनाई है। इस योजना के पूर्व मरकरी और जेमिनी योजनाएँ कार्यान्वित की जा चुकी थीं। मरकरी योजना ने मनुष्य की अंतरिक्ष यात्रा संबंधी आवश्यक तकनीकी जानकारी में वृद्धि की और उसकी अंतरिक्ष उड़ान संबंधी क्षमता की सूचना भी प्रदान की। जेमिनी योजना ने मरकरी योजना से प्राप्त अनुभव और तकनीकी ज्ञान में वृद्धि की। इन दोनों योजनाओं से प्राप्त जानकारी का उपयोग अपोलो योजना के अंतर्गत किया गया।

अब तक अपोलो योजना के अंतर्गत ११ यान भेजे जा चुके हैं और हर यान में तीन-तीन मनुष्य थे। अपोलो योजना के अंतर्गत मनुष्य छह बार चाँद पर उतरा जिसका विवरण निम्नलिखित है-

अपोलो-११, २१ जुलाई, १९६९ ई. को मनुष्य पहली बार चाँद पर उतरा। इस यान के चंद्र यात्री नील आर्मस्ट्रांग ने चाँद पर अपना पहला कदम ९ बजकर २६ मिनट पर रखा था। चंद्र धरातल पर नील आर्मस्ट्रांग के उतरने के कुछ ही समय बाद एडविन एलड्रिन भी चंद्र धरातल पर उतरे। मूल अंतरिक्ष यान का संचालन माईकेल कौलिंस कर रहे थे।

नील आर्मस्ट्रांग ने चाँद पर एक पट्ट का अनावरण किया जिस पर लिखा था- यहाँ पृथ्वी के मनुष्य ने जुलाई, १९६९ में पहली बार अपने कदम रखे, हम यहाँ समस्त मानवता की शांति के लिए आए। इसके बाद इन लोगों ने राष्ट्र संघ का झंडा फहराया। इसके कुछ समय बाद चंद्र यात्रियों से बेतार के तार से बात करते हुए राष्ट्रपति निक्सन ने कहा- दुनिया के इतिहास में, इस अभूतपूर्व अनमोल घड़ी में सब एक हो गए हैं, सबको आपकी विजय पर गर्व है। इसके बाद चंद्र यात्रियों ने चंद्र शैलखंड इकट्ठे किए।

अपोलो ११ के तीनों यात्री चंद्रशैलखंडों के साथ २४ जुलाई, १९६९ ई. को सकुशल पृथ्वी पर लौट आए।

अपोलो १२ का प्रक्षेपण १४ नवंबर, १९६९ को हुआ जो १९ नवंबर को चाँद पर उतरा। इसके चंद्रयात्री कोनराड तथा बीन चाँद के पश्चिम गोलार्ध में तूफानों के महासागर में वहाँ उतरे जहाँ १९ अप्रैल, १९६७ को सर्वेयर-३ नामक अमानव अमरीकी चंद्र अंतरिक्ष या उतरा था। मूल यान का संचालन गोर्डन ने किया।

२४ नवंबर, १९६९ को अपोलो १२ के चंद्रयात्री ५० कि.ग्रा. से अधिक वजन के पत्थर, रेत और धूल लेकर पृथ्वी पर लौट आए। अपोलो १२ के चंद्रयात्रियों ने चाँद पर एक स्वचालित प्रयोगशाला भी स्थापित की जो आज भी काम कर रही है।

अपोलो १३ का प्रक्षेपण १२ अप्रैल, १९७० को किया गया। लेकिन इसके सेवा कक्ष में भयंकर खराबी आ जाने के कारण यात्रियों को चंद्रमा पर उतरने के प्रयासों को रद्द करना पड़ा और वापस आ जाना पड़ा।

अपोलो १४ का प्रक्षेपण १ फरवरी, १९७१ को किया गया। यह ५ फरवरी को चंद्रमा के फ्रामरो क्षेत्र पर उतरा। एलन शेपर्ड और एडगर मिशेल चंद्र धरातल पर उतरे। लेकिन मूल यान के संचालक रूजा ने ११२ किलोमीटर दूर चंद्रमा की कक्षा में घूमते हुए कुछ प्रयोग किए। भविष्य के चंद्रावतरणों के लिए उपयुक्त स्थलों का चित्र लेने के साथ-साथ उन्होंने चंद्रमा के पर्वतों और खाइयों को मापा।

चंद्रावतरण करने वाले अंतरिक्ष यात्रियों ने चाँद की बाहरी सतह का अध्ययन किया। उन्होंने वहाँ थंपर नामक उपकरण से २१ हलके विस्फोट किए। इन विस्फोटों का उद्देश्य चंद्रमा में जल की उपस्थिति या अनुपस्थिति का पता लगाना था। चंद्रमा के फ्रामारो क्षेत्र की सतह और उसके अन्य भौतिक गुणों की सूचना भेजने के साथ-साथ उन्होंने वहाँ के चंद्रखंड भी इकट्ठे किए।

अपोलो १४ के अंतरिक्ष यात्री अपने साथ एक छोटा उपकरण वाहक रिक्शा भी ले गए थे जिस पर अनेक छोटे औजार, कैमरे और चुंबकत्वमापी जैसे उपकरण थे। अनेक उपकरणों को चंद्र धरातल पर स्थापित कर यह यान चंद्रशैल खंडों के साथ सकुशल पृथ्वी पर वापस आ गया।

अपोलो १५ का प्रक्षेपण २६ जुलाई, १९७१ की शाम को हुआ। इसके यंद्रयात्री थे-अभियान नेता डेविड आर. स्काट, मुख्य यान चालक अल्फ्रडे मेरिल वार्डेन और चंद्रयान चालक जेम्स बेसन ईविन। यह ३१ जुलाई को प्रात ३ बजकर ४५ मिनट पर, एपेनाइन पर्वतमाला और उस १०० किलोमीटर लंबी हेडली घाटी के लगभग मध्य में उतरा, जो एक शुष्क नदी के समान फैली हुई है और ८०० मीटर चौड़ी तथा ३६० मीटर गहरी है। अपोलो १५ के साथ चंद्र भ्रमण वाहन (रोवर प्रथम) भी था। वैज्ञानिक यंत्रों से सुसज्जित यह वाहन अपने दुगुने वजन को अर्थात्‌ दोनों अंतरिक्ष यात्रियों, उनके द्वारा एकत्रित चंद्र चट्टानों के नमूनों और वैज्ञानिक उपकरणों को १६ कि. मी. प्रति घंटे की गति से खींच सकता था। चंद्र यात्रियों ने इसे केवल १२ कि. मी. प्रति घंटे की गति से चलाया। चंद्र यात्रियों ने चंद्र धरातल पर अनेक प्रयोग किए।

अपोलो १५, ८ अगस्त, १९७१ को पृथ्वी पर वापस आ गया। इस चंद्र यात्रा पर लगभग ४५.५ करोड़ डालर खर्च हुए, जबकि अपोलो ११ की यात्रा में लगभग ३५.५ करोड़ डालर का व्यय हुआ था।

अपोलो १६ का प्रक्षेपण १६ अप्रैल, १९७२ को किया गया। २० अप्रैल को यह चाँद की क्रेटर डेस्काटिंग्स नामक खाई में उतरा। यह खाई चाँद के, धरती की ओर वाले अर्ध भाग में, सबसे ऊँचे क्षेत्र में है। अपोलो १६ का उद्देश्य चाँद के ऊँचे भागों के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करना था। चंद्र यात्रियों ने ७३ घंटे की अवधि में चंद्र धरातल पर विभिन्न प्रयोग किए। इसके अतिरिक्त अपोलो १६ के मुख्य यान पर दो तरह के जीव वैज्ञानिक प्रयोग किए गए। पहला प्रयोग सूक्ष्म जीवों और दूसरा प्रकृति में पाए जाने वाले चार तरह के जीवन तंत्रों (जैसे बीज, बीजाणु इत्यादि) से संबंधित था।

अपोलो १७ का प्रक्षेपण ६ दिसंबर, १९७२ को किया गया। इसके चंद्र यात्रियों के नाम हैं- यूजीन ए. सर्नन, हैरिसन एच. शिम्ट और रोनाल्ड ई. इवांस। डॉ. हैरिसन एच. शिम्ट, जो भूवेत्ता हैं चंद्रयान के चालक नियुक्त किए गए थे। यह चंद्र तल पर ११ दिसंबर को उतरा।

अंतरिक्ष किरणों का जीवों पर प्रभाव जानने के लिए अंतरिक्ष यात्रियों के साथ छह चूहे भी गए थे। अपोलो १५ और १६ की तरह १७ के साथ भी एक बैटरी चालित चंद्र रिक्शा गया था। पहले के अपोलो यानों के साथ गए यंत्रों के अतिरिक्त इसके साथ सात नए यंत्र भी रखे गए थे। इन यंत्रों में से लूनर सर्फेस ग्रोनिमीटर से पृथ्वी और दूसरे आकाशीय पिंडों द्वारा चाँद पर पड़ने वाले गुरुत्वाकर्षण के स्वरूप का विश्लेषण किया गया। अन्य यंत्रों के द्वारा चाँद के भौतिक एवं रासायनिक गुणों का विश्लेषण, चाँद की सतह के क्षरण का निश्चय और चंद्र सतह के स्तर से संबंधित कई परीक्षण किए गए। यह अपोलो योजना का अंतिम यान था जो २० दिसंबर को लगभग २०० पौंड चंद्रशैलखंड एवं चंद्रधूलि के साथ लौट आया।

नासा, नेशनल एयरोनाटिक्स ऐंड स्पेस ऐडमिनिस्ट्रेशन का संक्षिप्त नाम है। १९५८ में अमरीकी सरकार ने एक स्वतंत्र विभाग के रूप में इसका गठन किया और जर्मनी (पीनमुंडी) के वैज्ञानिक फान ब्रान को इसका संचालक नियुक्त किया गया। जिस-जिस भूमि पर राकेट आदि के परीक्षण और प्रक्षेपण होते थे तथा जो राकेट आदि इस काम के लिए प्रयुक्त किए जा चुके थे वे सब नासा विभाग को दे दिए गए। लगभग ५००० फर्में तथा संस्थाएँ, तीन लाख वैज्ञानिक, इंजीनियर और तकनीशियन तथा दूसरे कर्मचारी नासा द्वारा अंतरिक्ष अन्वेषण संबंधी कार्य करने के लिए नियुक्त किए गए। पाँच अरब डालर का बजट इस योजना के लिए स्वीकार किया गया।

अपने गठन के छह मास के भीतर ही नासा ने घोषणा कर दी थी कि ११ वर्ष के सुंदर (अर्थात्‌ १९६९ ई. तक) अमरीका चंद्रमा पर मनुष्य को उतार देगा। तत्कालीन प्रेसीडेंट जान एफ. केनेडी ने कहा था कि चंद्रमा पर मनुष्य को उतारना अमरीका का राष्ट्रीय लक्ष्य है। अत इसमें जितना भी धन लगेगा वह सब उपलब्ध किया जाएगा।

नासा ने दिसंबर, १९५८ में चंद्रमा तक पहुँचने की योजना प्रकाशित की, जिसमें तीन चरणों के अंतर्गत मनुष्य को चंद्रमा पर भेजने का लक्ष्य था। पहला चरण मरकरी योजना, दूसरा जेमिनी योजना और तीसरा चरण अपोलो योजना का था।

चंद्रमा संबंधी जानकारी चंद्र यात्रियों द्वारा लाए गए चंद्रशैल खंडों का कई देशों के वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले हैं

१. चंद्रशैलखंडों की रासायनिक संरचना उल्कपिंडों अथवा पृथ्वी के तल से काफी भिन्न है। इनमें टाइटेनियम, जिर्कोनियम, कैलसियम, स्ट्रांशियम आदि अनुमान से अधिक मात्रा में पाए गए हैं। लेकिन उनमें लोहा, कोबाल्ट, निकेल, सीसा, बिसमथ और पानी जैसे पदार्थ नहीं मिले हैं। चंद्रमा पर तीन नए खनिजों पायरोक्मैगाइट, क्रोमियम-टाइटेनियम स्पाइनल तथा फेरोस्यूडोब्रकाइट का पता चला है। पृथ्वी पर अब तक ये खनिज नहीं पाए गए हैं।

२. चंद्रशैलखंड बहुत पुराने हैं। संभवत चंद्रमा की चट्टानें, सौरमंडल की सृष्टि के समय ही अस्तित्व में आई होंगी। इतना पुराना होने के कारण चंद्रमा पर रेडियो सक्रियता रहित प्लूयोनियम प्राप्त होने के भी संकेत मिले हैं। रेडियो सक्रिय क्षय के कारण भी कई पदार्थ मिले हैं।

पृथ्वी से चंद्रमा पर दिखने वाले कलंक रूपी धब्बे अथवा जो कुछ भी पहाड़ या खाइयाँ दिखती हैं, वे इन्हीं आघातों द्वारा बन गई हैं। यह भी मालूम हुआ कि पृथ्वी पर प्राप्त लगभग २००० उल्कापिंडों में से बहुत ही कम चंद्रमा से आए हैं।

३. चंद्रशैलखंडों के अंतरिक्ष में अवस्थित कणिकामय विकिरण के संबंध में यथेष्ट जानकारी प्राप्त हुई है। पिछले एक करोड़ वर्षों के बीच सूर्य से आने वाली अंतरिक्ष किरणों के कण एक ही गति से त्वरित होते रहे हैं अर्थात्‌ सौर सक्रियता में पिछले कई लाख वर्षों से विशेष अंतर नहीं आया है। यह भी पता चला है कि चंद्रतल का द्रव्य उल्कापिंडों के आघातों के कारण ऊपर नीचे होता रहता है।

४. चंद्रशैलखंडों से प्रारंभिक अनुसंधानों से निष्कर्ष निकला कि चंद्रमा पर जीवन नहीं है। लेकिन बाद में किए गए अनुसंधानों में प्राप्त तथ्यों के अनुसार चंद्रमा की मिट्टी के स्पर्श से कुछ विशेष किस्मों के जीवाणुओं की मृत्यु हो गई। इससे चंद्रमा की मिट्टी में किसी प्रकार की सक्रियता का अनुमान नहीं लगाया जा सका। संभवत चंद्रशैलखंडों में ऐसे रसायन हो सकते हैं जिनसे जीवाणुओं की मृत्यु हो जाती हो।

चंद्रशैलखंडों पर अनुसंधान कार्य अभी चल रहा है। उसकी अंतिम रिपोर्ट प्रकाशित होने पर कई नवीन तथ्यों की जानकारी मिलने की संभावना है।

ल्यूना अभियान रूस ने चंद्र-अन्वेषण-कार्यक्रम के अंतर्गत ३१ जनवरी, १९६६ को ल्यूना ९ का प्रक्षेपण किया जो ३ फरवरी, १९६६ को चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरा। ल्यूना ने चंद्र धरातल के अनेक चित्र पृथ्वी पर भेजे। ३१ मार्च, १९६६ को विविध इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों से सुसज्जित ल्यूना १० का प्रक्षेपण किया गया और ३ अप्रैल को यह चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हो गया। ल्यूना १० के अनुसंधान यंत्र मुख्यत चंद्रमा के वास्तविक आकार के बारे में खोज, चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण की नाप जोख, तथा उस प्रदेश में आने वाली अंतरिक्ष किरणों आदि के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्रेषित करने के लिए व्यवस्थित किए गए थे। इसने कुल २१९ प्रसारण पृथ्वी को प्रेषित किए।

२४ दिसंबर, १९६६ को ल्यूना १३ चंद्र धरातल पर उतरा। इसके द्वारा प्रेषित चित्रों से चंद्र धरातल पर धूलि के अभाव का पता चला। अपोलो ११ (अमरीकी) के प्रक्षेपण से कुछ दिन पूर्व रूस ने ल्यूना १५ का प्रक्षेपण किया था। अत अपोलो ११ से तीन दिन पूर्व ही यह चंद्रकक्षा में स्थापित हो गया था। जब अपोलो ११ चंद्रकक्षा से चंद्रमा की ओर बढ़ रहा था तब लूना १५ चंद्र धरातल से १५ किलोमीटर दूर था। अनुमान है कि ल्यूना का प्रक्षेपण अपोलो ११ की गतिविधियों का निरीक्षण करने के लिए ही किया गया था। जब अपोलो ११ का चंद्रयान ईगल अपने मुख्य यान से जुड़ने के लिए चंद्र धरातल से चला तभी ल्यूना १५ वहाँ से ८०० किलोमीटर दूर चंद्रमा से टकराकर नष्ट हो गया।

१२ सितंबर, १९७० को ल्यूना का प्रक्षेपण किया गया जो २० सितंबर, १९७० को चंद्र धरातल पर उतरा। ल्यूना १६ ने बाह्य अंतरिक्ष में जटिल यांत्रिक कार्य प्रणाली की संभावनाओं का प्रदर्शन किया। ल्यूना १६ ने अपने स्वचालित यंत्रों द्वारा चंद्र धरातल का ३५० मिमी. तक भेदन किया और चंद्रशैलखंडों का संचयन कर यान की पेटी में रखा। ताप, विकिरण और ताप की माप, टेलीविजन प्रसारण जैसे अनेक जाँच कार्य भी स्वचालित उपकरणों के द्वारा किए गए। २४ सितंबर, १९७० को चंद्रशैलखंडों को लेकर यह सकुशल पृथ्वी पर वापस आ गया।

११ नवंबर, १९७० को ल्यूना १७ का प्रक्षेपण किया गया। इसके साथ एक चंद्रबग्घी ल्यूनाखोद भी थी जो १७ नवंबर को चंद्र धरातल पर उतरी। सौर ऊर्जा (सोलर एनर्जी) से चलने वाली टंकी के आकार की इस स्वचालित चंद्रबग्घी का संचालन रूस के वैज्ञानिक पृथ्वी पर से ही कर रहे थे। इस चंद्रबग्घी ने चंद्रतल पर घूम-घूमकर अनेक प्रयोग किए और उसकी सूचना पृथ्वी पर प्रेषित की। इसके द्वारा भेजे गए टेलीविजन चित्रों से मालूम हुआ कि इसके पास की २० से ३० सें.मी. बड़ी चंद्रशिलाएँ बड़ी महत्व की हैं। प्राकृतिक एक्स किरणों की उत्पत्ति के संबंध में भी इस बग्घी ने कुछ जानकारी दी। इसके अनुसार एक्स किरणें सुदूर स्थित तारों से निकलकर आती हैं।

२ सितंबर, १९७१ को ल्यूना १८ का प्रक्षेपण किया गया जो ११ सितंबर को चंद्रमा से टकराकर नष्ट हो गया। १४ फरवरी, १९७२ को ल्यूना २० का प्रक्षेपण किया गया। ल्यूना २० के स्वचालित यंत्रों ने सफलतापूर्वक चंद्रशैलखंडों को एकत्रित किया। यह चंद्रशैलखंडों के साथ सकुशल पृथ्वी पर लौट आया।

मंगल अभियान चाँद पर विजय प्राप्त करने के बाद मंगल पर विजय प्राप्त करने के अभियान में काफी तेजी आ गई है। अमरीका और रूस ने मंगल की ओर अनेक यान प्रक्षेपित किए हैं। रूस ने जोंड कार्यक्रम के अंतर्गत कुछ यान मंगल की ओर भेजे थे किंतु संचार व्यवस्था की कठिनाइयों के कारण विशेष सफलता न मिल सकी। १९६९ में नासा ने दो यान मेरिनर ६ और मेरिनर ७ मंगल की ओर भेजे जिनसे मंगल संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी मिली। मेरिनर ६ और ७ का उद्देश्य मंगल की सतह और उसके वायुमंडल का विस्तृत अध्ययन करना था। मेरिनर ६ ने २५ मिनट तक मंगल का निरीक्षण किया जिसमें से ७ मिनट अँधेरे भाग में प्रयोग करने में व्यय हुए। बाद में यह यान सूर्य के गुरुत्वाकर्षण में आ गया और उसकी ओर खिंचकर सूर्य की ज्वाला में भस्म हो गया। मेरिनर ७ से भी पूरे सात घंटे तक संपर्क स्थापित नहीं किया जा सका।

मंगल संबंधी ज्ञान प्राप्त करने के लिए नासा द्वारा अब तक मेरिनर श्रेणी के नौ यान छोड़े जा चुके हैं। मंगल संबंधी अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए ३१ मई, १९७१ को मेरिनर ९ छोड़ा गया और लगभग छह मास पश्चात्‌ नवंबर के मध्य में यह लक्ष्य ग्रह के समीप पहुँचकर एक कक्षा में स्थापित हो गया था। इसने मंगल की सतह संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाएँ पृथ्वी पर भेजीं। इससे पहले रूस ने १९ मई और २८ मई, १९७१ को क्रमश मार्स २ तथा ३ मंगल की ओर भेजे थे। अमरीका ने मेरिनर ९ का पूरा कार्यक्रम घोषित कर दिया है लेकिन रूस ने मार्स २ और ३ के संबंध में विशेष कोई जानकारी नहीं है। अमरीकी सूचना के अनुसार मेरिनर ९ के साथ एक प्रयोगशाला भी है जिसने तीन मास में मंगल के लगभग ५००० चित्र भेजे हैं। सूचना में यह भी बताया गया है कि मेरिनर ९ कम से कम ७५ वर्ष तक मंगल के चक्कर लगाता रहेगा।

अमरीका ने मंगल पर पहुँचने का एक कार्यक्रम बनाया है जिसके अनुसार १९८६-८७ में मनुष्य मंगल पर उतर जाएगा। १९८१ में केवल मंगल की परिक्रमा की जाएगी। मंगल यात्रा के लिए १ मई, १९८६ का दिन चुना गया है। इस कल्पना को साकार करने के लिए बहुत-सी तकनीकी और इंजीनियरिंग संबंधी समस्याओं का हल खोजना पड़ेगा। इस अभियान में लगभग ७५० अरब डालर खर्च होने का अनुमान है। (नि. सिं.)

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