आपदा बड़ी, राहत छोटी

9 Aug 2014
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बाढ़, सुखाड़, भूकंप, शीतलहर, आगलगी और वज्रपात ये ऐसी घटनाएं हैं, जिन पर हमारा सीधा-सीधा नियंत्रण नहीं है। ऐसी घटनाएं आपदा बन जाती हैं। बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है। इस नुकसान की भरपाई आसान नहीं होता। विशेषज्ञ कहते हैं कि विकास की दौड़ में हम ऐसी छोटी-छोटी बातों की अनदेखी करते हैं, जो आगे चल कर बड़ी कीमत वसूलती हैं। हम हर आपदा की पूर्व सूचना प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में बचाव और आपदा की स्थिति में राहत के क्या कुछ उपाय हो सकते हैं, इसकी चिंता सरकार से समाज तक और व्यक्ति से पंचायत की बड़ा फर्ज है। पहले प्राकृतिक आपदाओं को लेकर हमारा लोक ज्ञान विस्तृत था। उसमें अनुभव का सार था। खान-पान, रहन-सहन, मकान की बनावट और गांवों की बसावट में एक जबरदस्त प्रबंधन छिपा था। हम उसे तेजी से भूल रहे हैं। तात्कालिक सुविधा और सुरक्षा हमारा पहला ध्येय बन जाता है। यह आत्मघाती सोच और व्यवहार है। ऐसे में यह जानने-समझने की जरूरत है कि प्राकृतिक आपदाओं को लेकर सरकार, जिला प्रशासन और पंचायतों में व्यवस्था का हाल क्या है? बिहार में प्राकृतिक आपदाओं की आशंकाएं कितनी गंभीर हैं? अब तक इन घटनाओं की त्रासदी का तसवीर क्या थी? इन विषयों पर केंद्रित आरके नीरद की रिपोर्ट।

बिहार का प्राकृतिक आपदा से बड़ा करीब का रिश्ता है। 1934 के भूकंप और 2008 की बाढ़ का जिक्र अक्सर होती है। बिहार में गंगा और उसकी 15 प्रमुख सहायक नदियां बहती हैं। ये हर साल बाढ़ लाती हैं। बाढ़ की विभीषिका ने कई नदियों के नाम को बदल कर अभिशाप के पर्याय से उसे जोड़ दिया। राज्य के 28 जिले बाढ़ प्रवण हैं। इनमें 15 अति बाढ़ प्रवण जिले हैं।

बाढ़ प्रवण जिले

अररिया, बेगूसराय, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर, दरभंगा, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, लखीसराय, मधेपुरा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, नालंदा, पटना, पूर्णिया, सहरसा, समस्तीपुर, सारण, शेखपुरा, शिवहर, सीतामढ़ी, सीवान, सुपौल, वैशाली, पश्चिमी चंपारण।


यह कितनी बड़ी विडंबना है कि जिन जिलों में बाढ़ आती है, उन्हीं जिलों में सुखाड़ पड़ती है। दो दशक में 12 बार बड़े पैमाने में बाढ़ आई। वहीं 12 सालों में पांच बार भीषण सुखाड़ की मार पड़ी। प्राकृतिक आपदा की इस विरोधाभासी परिस्थिति के बीच भूकंप का खतरा भी कम नहीं है। विशेषज्ञ यह चेतावनी दे रहे हैं कि बिहार में कभी भी भुज व लातूर जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।

पूरा राज्य भूकंप जोन

एक जिले को छोड़ कर पूरा राज्य संवेदनशीलता की दृष्टि से भूकंप जोन में आता है। 15 जनवरी 1934 को बिहार में हुए भूकंप की रिएक्टर पैमाने पर तीव्रता 8.3 थी। करीब पांच मिनट तक यह स्थिति रही थी और करीब 10500 लोग मारे गए थे। ऐसी तीव्रता वाला भूकंप केवल असम में 15 अगस्त 1950 को हुआ था, जिसमें 15 हजार लोगों की मौत हुई थी।


भूकंपीय क्षेत्रों के अनुसार राज्य के 37 जिले भूकंप जोन में हैं। आठ जिले साइस्मिक जोन-5 में, 19 जोन-4 में और नौ जिले जोन-3 में आते हैं। जोन-5 सर्वाधिक क्षति जोखिम वाला, जोन-4 अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र और जोन-3 मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र माना जाता है। इसलिए यहां भुज ( गुजरात ) और लातूर (महाराष्ट्र) जैसी बड़ी तबाही की स्थिति कभी भी बन सकती है। यानी बाढ़, सुखाड़ और भूकंप इन तीनों का खतरा बिहार के करीब-करीब सभी इलाकों में है। आग और शीतलहर जैसी घटनाओं का दायरा करीब-करीब पूरे राज्य में पसरा हुआ है।

बिहार के भूकंप जोन वाले जिले

साइस्मिक जोन 5 : सर्वाधिक क्षति जोखिम क्षेत्र- सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, सहरसा, अररिया, मधेपुरा, किशनगंज एवं दरभंगा।

साइस्मिक जोन 4 : अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र- पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सिवान, सारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, पटना, समस्तीपुर, नालंदा, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, मुंगेर, भागलपुर, लखीसराय, जमुई, बांका एवं खगड़िया।

साइस्मिक जोन 3 : मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र- बक्सर, भोजपुर, रोहतास, कैमूर, औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा, अरवल एवं गया।


इन आपदाओं को रोकने, इनसे होने वाली तबाही को कम करने और आपदा की स्थिति में बचाव को लेकर क्या-कुछ व्यवस्था हो सकती है, इस पर सरकार ने योजना बनाई है। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) की तर्ज पर बिहार में भी राज्य आपदा रिस्पांस फोर्स (एसडीआरएफ) है। इसके अलावा बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भी है। आपदा प्रबंधन विभाग के अधीन ये दोनों काम करते हैं। विभाग ने आपदा प्रबंधन को लेकर करीब 11 योजनाएं हैं। इन पर इस साल करीब 50 करोड़ रुपए का बजट है।

जिलों में आपदा प्रबंधन को लेकर कमेटियां हैं। पंचायतों में 3-3 लोगों को आपदा प्रबंध का प्रशिक्षण दिया जाना है। पंचायतों में अन्न कलश योजना के तहत एक-एक क्विंटल अनाज के भंडारण का प्रावधान है, लेकिन अब भी राज्य में प्राकृतिक आपदा को लेकर हम भगवान भरोसे हैं।

2008 की बाढ़ के बाद 2010 में एसडीआरएफ की एक बटालियन की स्थापना की गई। इसमें 1157 पद बनाए गए हैं। इस पर प्राकृतिक आपदा के समय बचाव और राहत तथा आपदा से प्रभावित आवश्यक सेवाओं को बहाल करने की जिम्मेवारी है, लेकिन इसके 50 प्रतिशत पद खाली हैं।

बाढ़ को रोकने की चुनौती


बाढ़ का दर्द यहां के बहुत बड़े इलाके के लोगों ने करीब-करीब हर साल झेला है। 1987 से 2008 तक 12 बार यहां प्रलयंकारी बाढ़ आई और सैंकड़ों गांवों को बार-बार बहा ले गई। हजारों लोगों की जाने गईँ। हर बार इस बात को लेकर खूब बहस हुई कि इस विभीषिका को रोकने के क्या उपाय होने चाहिए और सरकार इसमें कितनी सफल या विफल रही।

18 अगस्त 2008 को नेपाल के कुसहा गांव के पास कोसी नदी का तटबंध टूट गया। इससे बिहार के कोसी क्षेत्र में भयानक बाढ़ आई। नदी ने दिशा बदल ली। नए रास्ते में बहाव की दर कम है। पानी का दबाव बढ़ा, तो दोनों कछारों से जुड़े गांव डूब गए। करीब तीन हजार किलोमीटर क्षेत्र पूरी तरह पानी में डूब गया। न खेत बचे न मकान। नदी-नाले सड़क-पुल सब एक हो गए।

मधेपुरा, सुपौल, अररिया, सहरसा और पूर्णिया जिलों के 35 प्रखंडों की 412 पंचायतों के 993 गांवों को इस बाढ़ ने तबाह कर दिया। 33 लाख लोगों की जिंदगी में उथल-पुथल आया। सरकार ने कबूला कि 434 लोग मारे गए। 845 पशुधन की जाने गईं। यह तसवीर बेहद भयानक थी। देश के 23 राज्य बाढ़ के खतरे और तबाही को झेलते हैं, लेकिन बिहार की कुसहा तबाही का दर्द ज्यादा है। बाढ़ उससे पहले भी आई थी।

1987 में आई बाढ़ में इससे ज्यादा तबाही हुई थी, लेकिन यह दो दशक बाद भी उससे कुछ ज्यादा नहीं सीख पाए। उसके बाद 11 बार बड़ी बाढ़ आई और हर बार तबाही मची। सबसे दुखद यह रहा कि बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा को लेकर पूर्व अनुमान लगाना अब भी संभव नहीं हुआ। कुसहा बाढ़ के एक दिन पहले तक सरकार की ओर से यह कहा जाता रहा कि स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन अगले ही दिन बांध टूट गया।

राज्य में दो दशक में बाढ़ से हुई बड़ी तबाही

वर्ष

प्रभावित जिले

कुल मौत

मरे मवेशी

2008

18

434

845

2007

22

960

1006

2004

20

885

3272

2003

25

251

108

2002

25

489

1450

2001

22

231

565

2000

33

336

2568

1999

24

234

136

1998

28

381

187

1996

29

222

171

1995

26

291

3742

1987

30

1399

5302


सुखाड़ की हुई घोषणा, राहत नहीं


वर्ष 2013 में राज्य को सुखाड़ और तूफान से अतिवृष्टि की दोहरी मार झेलनी पड़ी। इस सदी में राज्य में पांचवीं बार सुखाड़ पड़ा। खरीफ के मौसम में 37 प्रतिशत वर्षा कम हुई। 2004, 2006, 2009, 2010 में भी राज्य में सुखाड़ पड़ा था। 2013 में 38 में से 33 जिलों को सुखाड़ग्रस्त घोषित किया गया। सुखाड़ प्रभावित जिलों के किसानों और लोगों को प्राकृतिक आपदा राहत योजना के तहत तुरंत सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।

इसी बीच ओड़िशा से सटे समुद्री क्षेत्र में फैलिन चक्रवाती तूफान आ गया। इसने बिहार में भी तबाही मचाई। भारी वर्षा हुई। सुखाड़ की मार झेल रहे बिहार के किसानों पर तूफान और मूसलधार वर्षा से दोहरी मार पड़ी। खेतों में खड़ी धान की तैयार फसलें पानी में डूब गयीं। सरकार ने आपदा राहत चलाने का निर्देश दिया, मगर किसानों और प्रभावित लोगों को कोई राहत नहीं मिली। केंद्र सरकार को करीब 12 सौ करोड़ रुपए का सूखा राहत प्रस्ताव भेजा गया। केंद्र की टीम आई, लेकिन राहत नहीं मिली।

पूस की रात : जिलों को आपदा की चिंता नही

राज्य भर में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। आपदा प्रबंधन के तहत प्रशासन को अलाव की व्यवस्था करनी है, लेकिन सरकार की रिपोर्ट कहती है कि राज्य के आधे से अधिक जिला प्रशासन को इसकी कोई चिंता नहीं हैं। 27 दिसंबर तक स्थिति यह थी कि केवल आठ जिलों में 83 स्थानों पर अलाव की व्यवस्था की गई थी। केवल शेखपुरा जिले में आपदा प्रबंधन के तहत 50 क्विंटल लड़की का आवंटन किया गया। 21 जिलों ने तो विभाग को कोई रिपोर्ट ही नहीं भेजी है। जाहिर है आपदा प्रबंधन की स्थिति खराब है, जिलों को यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री सचिवालय व मुख्य सचिव को भी भेजनी होती है।



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