आपदा नियन्त्रण में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका

वर्तमान समय में गैर-सरकारी संगठन सहभागिता आपदा प्रबन्धन कार्यनीति को बाढ़ न्यूनीकरण हेतु प्रभावी ढंग से संचालित कर रहे हैं। इसके माध्यम से समुदाय में अनुकूलन क्षमता का विकास एवं विषम परिस्थितियों के प्रभाव से निपटने हेतु क्षमता विकसित हो रही है। गैर-सरकारी संगठन विज्ञान व पारम्परिक ज्ञान का सामंजस्य कर प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने में प्रभावी ढंग से कार्य रूप में परिणत कर रहे हैं। प्राकृतिक आपदाएँ एक कटु यथार्थ हैं। भारत सदा से ही प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होता रहा है। भारत की अधिकांश जनसंख्या नदी-घाटियों एवं मैदानी भागों में निवास करती हैं जो मानसून के समय बाढ़ जैसी भीषण आपदा से प्रभावित होती हैं। भौगोलिक स्वरूप एवं जलवायुगत विशेषताओं के कारण देश का कोई न कोई भाग प्रति वर्ष बाढ़ से प्रभावित रहता है। इससे व्यापक पैमाने पर धन-जन की हानि होती है। 1953 से 2007 तक बाढ़ से औसतन 330.39 लाख जनसंख्या प्रभावित हुई। भारत में आपदा प्रबन्धन की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 40 लाख हेक्टेयर जमीन बाढ़ से प्रभावित है।

आपदा नियन्त्रण में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिकासर्वाधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के दृष्टिकोण से भारत को 5 प्रमुख खण्डों- पूर्वी खण्ड, पश्चिमी खण्ड, उत्तरी खण्ड, दक्षिणी खण्ड एवं मध्यवर्ती खण्ड में बाँटा जा सकता है। तीव्रता एवं भयावहता की दृष्टि से पूर्वी खण्ड जो पश्चिम में घाघरा नदी से लेकर ब्रह्मपुत्र तक फैला है, बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित है। इसी क्षेत्र में जनसंख्या का सर्वाधिक संकेन्द्रण भी पाया जाता है। परिणामतः यहाँ क्षति भी सर्वाधिक होती है।

बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है, परन्तु इतिहास इस बात का गवाह है कि पिछले 60 वर्षों में जब से बाढ़ को आपदा मानकर उसे नियन्त्रित करने की कोशिशें की जा रही हैं, बाढ़ की आवृत्ति एवं उससे होने वाला नुकसान बढ़ता ही जा रहा है। बाढ़ के कारण लोगों के मूल संसाधन नष्ट हो जाते हैं जिससे उनके समक्ष आजीविका का संकट उत्पन्न हो जाता है। बाढ़ रूपी आपदा से समाज का हर तबका प्रभावित होता है किन्तु लघु एवं सीमान्त कृषक, भूमिहीन मजदूर, स्त्रियाँ एवं वृद्धजन सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।

बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा को रोका तो नहीं जा सकता किन्तु समुचित प्रबन्धन द्वारा इससे होने वाली क्षति को कम किया जा सकता है। 1954 में उत्तर भारत में भीषण बाढ़ के बाद बाढ़ नियन्त्रण के सुनियोजित कार्यक्रम प्रारम्भ हुए, फलतः 1954 में राष्ट्रीय बाढ़ नियन्त्रण कार्यक्रम आरम्भ किया गया। इस नीति में मुख्य उद्देश्य नदियों के किनारे तटबन्ध बनाकर बाढ़ बचाव की योजना थी। इस नीति के तहत भारत में विभिन्न नदियों पर 1954 से 1987 तक लगभग 14,511 किमी लम्बे तटबन्धों का निर्माण हुआ जो आज भी जारी है। बाढ़ नियन्त्रण के प्रारम्भिक चरण में संरचनात्मक उपायों के माध्यम से नियन्त्रण के प्रयास किए गए। इसके अन्तर्गत बाँध एवं जलाशय निर्माण, तटबन्ध निर्माण, ड्रेनेज सुधार जैसे उपाय किए गए।

संरचनात्मक उपाय


1. बाँध एवं जलाशय निर्माण
2. तटबन्धों का निर्माण
3. ड्रेनेज सुधार
4. चैनल सुधार
5. डिटेंसन बेसिन
6. बाढ़ जल का विपथन

विगत वर्षों के अनुभव बताते हैं कि संरचनात्मक उपाय बाढ़ आपदा न्यूनीकरण में नाकाफी साबित हुए हैं। लोगों की सुरक्षा हेतु नदियों के किनारे बने तटबन्धों के टूटने से बाढ़ की विभिषिका एवं तीव्रता और बढ़ गई है। 1998 में पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं 2008 में कोसी की बाढ़ इसके प्रमाण हैं। अतः नवीन नीति में संरचनात्मक उपायों के साथ-साथ बाढ़ न्यूनीकरण हेतु असंरचनात्मक उपायों पर अधिक जोर दिया जा रहा है। असंरचनात्मक उपाय, ‘लिविंग विद फ्लड’ की संकल्पना पर आधारित है। इसके अन्तर्गत सामुदायिक जागरुकता एवं बाढ़ क्षेत्र में मानवीय गतिविधियों का प्रबन्धन कर क्षति के न्यूनीकरण के साथ उनके मूल आजीविका संवर्धन का प्रयास किया जाता है। इसके मुख्य बिन्दु निम्न हैं :

1. फ्लड जोनिंग
2. फ्लड प्रूफिंग
3. आपदा अनुक्रिया
4. पूर्वानुमान एवं चेतावनी
5. आपदा तैयारी
6. बचाव व राहत
7. ग्राम आपदा समितियों का गठन
8. आजीविका संरक्षण एवं प्रोत्साहन

सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों के साथ ही सरकार द्वारा गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि प्रभावित जनसमुदाय तक राहत एवं बचाव कार्य सुगमता से पहुँच सकें।

1998 में पूर्वी उत्तर प्रदेश में जब बाढ़ आई तब 63 गैर-सरकारी संगठनों ने आपस में मिलकर ‘सहयोग’ नामक संगठन बनाकर कार्य किया जो आज तक जारी है। गैर-सरकारी संगठन आपदा प्रभावित क्षेत्र में निरन्तर बने रहकर बाढ़ पूर्व, बाढ़ के समय एवं बाढ़ के बाद अपनी गतिविधियाँ संचालित करते रहते हैं, जिससे समुदाय के मध्य इनकी गहरी पैठ हो जाती है और इनके द्वारा किए जा रहे प्रयास को सफलता मिलती है।गैर-सरकारी संगठन वर्तमान समय में बाढ़ आपदा न्यूनीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। गैर-सरकारी संगठन सरकार और प्रभावित समुदाय के बीच संचार के प्रभावी साधन बन कर उभरे हैं, जो बुनियादी स्तर पर प्रभावित समुदाय के बीच कार्य कर रहे हैं। ये पहले भी आपदा के समय परम्परागत राहत व बचाव कार्य ही कर रहे थे, किन्तु पिछले कुछ समय में इनकी भूमिका का विस्तार हुआ है। बाढ़ आपदाग्रस्त क्षेत्र में सरकार गैर-सरकारी संगठन के सहयोग से परम्परागत कार्य के साथ ही एकीकृत बाढ़ प्रबन्धन हेतु शोध आधारित दीर्घकालीन कार्यक्रमों का संचालन कर रहे है। प्रशासन स्थानीय निकायों के साथ मिलकर योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ स्वतन्त्र रूप से प्रभावित क्षेत्र में समुदाय की अनुकूलन क्षमता बढ़ाने व आजीविका संवर्धन हेतु निरन्तर प्रयत्नशील है। 1998 में पूर्वी उत्तर प्रदेश में जब बाढ़ आई तब 63 गैर-सरकारी संगठनों ने आपस में मिलकर ‘सहयोग’ नामक संगठन बनाकर कार्य किया जो आज तक जारी है। गैर-सरकारी संगठन आपदा प्रभावित क्षेत्र में निरन्तर बने रहकर बाढ़ पूर्व, बाढ़ के समय एवं बाढ़ के बाद अपनी गतिविधियाँ संचालित करते रहते हैं, जिससे समुदाय के मध्य इनकी गहरी पैठ हो जाती है और इनके द्वारा किए जा रहे प्रयास को सफलता मिलती है।

आपदा प्रभावी क्षेत्र में आपदा के समय आजीविका के मूल संसाधन नष्ट हो जाने से प्रभावित परिवारों के समक्ष आजीविका का संकट उत्पन्न हो जाता है। फसल नष्ट हो जाने से आजीविका चलाने हेतु प्रभावित क्षेत्र से महानगरों की तरफ जनसंख्या का तेजी से पलायन होता है। गैर-सरकारी संगठनों ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में आजीविका समुत्थान एवं जन क्षमता विकास कर बाढ़ आपदा न्यूनीकरण में महत्वपूर्ण योगदान किया है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत गैर-सरकारी संगठनों ने बाढ़ आपदा प्रभावित क्षेत्र के विभिन्न विकास खण्डों का चयन कर ग्राम-पंचायत स्तर पर, विशेष कर लघु एवं सीमान्त कृषक, दलित एवं अल्पसंख्यक तथा कम आय वर्ग के लोगों का चयन कर उनके आजीविका संवर्धन का प्रयास कर रही है ताकि उनमें आपदा को सहने की क्षमता विकसित हो सके।

गैर-सरकारी संगठन बाढ़ आपदा प्रभावित क्षेत्र में बाढ़ न्यूनीकरण हेतु निम्न कार्यों का संचालन कर रहे हैं :
1. आजीविका संवर्धन एवं सशक्तीकरण।
2. कृषि में नवाचारों का प्रसार।
3. धान की उन्नत बाढ़रोधी प्रजातियों का प्रसार।
4. दलित एवं अल्पसंख्यक वर्गों के लोगों को बागवानी हेतु प्रोत्साहन।
5. किसान विद्यालय का संचालन।
6. जनस्वास्थ्य जागरुकता (एनएचआरएम के साथ मिलकर)।
7. शुद्ध पेयजल आपूर्ति हेतु हैण्ड पम्प उच्चीकरण।
8. जनक्षमता का विकास।
9. स्वयं सहायता समूह के माध्यम से स्वरोजगार को प्रोत्साहन।
10. बाढ़ से निपटने हेतु ग्राम आपदा समितियों का गठन।
11. आपदा क्षेत्र में बाढ़ के पूर्व, बाढ़ के समय एवं बाढ़ के पश्चात निरन्तर जागरुकता।
12. सरकार द्वारा चलाए जा रहे सामाजिक सहायता कार्यक्रमों से लोगों को जोड़ना।
13. श्रमदान के लिए प्रभावित क्षेत्र में लोगों को जागरूक करना।

उपर्युक्त कार्यक्रमों के माध्यम से गैर-सरकारी संगठन न केवल प्रत्यक्ष रूप से वरन परोक्ष रूप से भी आपदा न्यूनीकरण में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं, जिससे चयनित लक्षित समूह को सीधा लाभ मिल रहा है। इसके अलावा इन परिवारों को बैंकों के माध्यम से लघु ऋण की भी व्यवस्था कराई जाती है ताकि वे स्थानीय संसाधन का समुचित उपयोग कर स्वरोजगार हेतु प्रेरित हो सकें।

गैर-सरकारी संगठन द्वारा प्रभावित क्षेत्र में किए जाने वाले प्रमुख कार्य


वर्तमान समय में गैर-सरकारी संगठन सहभागिता आपदा प्रबन्धन कार्यनीति को बाढ़ न्यूनीकरण हेतु प्रभावी ढंग से संचालित कर रहे हैं। इसके माध्यम से समुदाय में अनुकूलन क्षमता का विकास एवं विषम परिस्थितियों के प्रभाव से निपटने हेतु क्षमता विकसित हो रही है। गैर-सरकारी संगठन विज्ञान व पारम्परिक ज्ञान का सामंजस्य कर प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने में प्रभावी ढंग से कार्य रूप में परिणत कर रहे हैं। ये सरकार के साथ मिलकर आपदा न्यूनीकरण में महत्वपूर्व योगदान कर रहे हैं। जहाँ जनसमुदाय द्वारा इनकी स्वीकार्यता बढ़ी है वहीं सरकार द्वारा इन्हें अधिक से अधिक भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। गुजरात, ओडिशा, असम, उत्तराखण्ड एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में गैर-सरकारी संगठन द्वारा किए गए कार्य उदाहरणीय हैं। गैर-सरकारी संगठन की भूमिका का यह विस्तार निश्चय ही भारत में बाढ़ आपदा न्यूनीकरण में अपनी भूमिका को और सार्थक बनाएगा।

(लेखकद्वय में से क्रमशः प्रथम दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के भूगोल विभाग में सहायक प्रोफेसर एवं द्वितीय वहीं शोध छात्र हैं)

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