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इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)

अपने सम्बोधन में डॉ. राजीव कुमार ने वेटलैंड्स इंटरनेशनल साउथ एशिया द्वारा आर्द्रभूमियों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये किये जा रहे प्रयासों की प्रशंसा के साथ मानव और आर्द्रभूमियों के बीच अनादिकाल से चले आ रहे सम्बन्धों की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि आर्द्रभूमियाँ भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा रही हैं जिसका आधार स्तम्भ प्रकृति और मानव के परस्पर सम्बन्धों पर आधारित है न कि मानव और प्रकृति के बीच के विरोध पर। उन्होंने विकास से सम्बन्धित योजनाओं में आर्द्रभूमियों वाले हिस्सों को भी शामिल किये जाने पर दुःख व्यक्त किया और कहा कि यही उचित समय है इस पर अंकुश लगाने का।
आर्द्रभूमियों को संरक्षित किये जाने में अब तक किये गए प्रयासों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को विनियमन की भूमिका से परे जाकर ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे लोगों में भी इनके संरक्षण के प्रति जागरुकता पैदा की जा सके। भारत में तेजी से आर्द्रभूमियों का ह्रास हो रहा है। इस बात की तस्दीक से चर्चा करते हुए उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर इनके संरक्षण के लिये समावेशी विकास के सिद्धान्त पर आधारित एक रूपरेखा तैयार करने पर भी बल दिया। इसके अलावा उन्होंने राज्यों और विभिन्न हितधारकों को वर्कशॉप, सेमिनार आदि के माध्यम से लोगों को जागरूक बनाने की भी सलाह दी।

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