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आर्गन

आर्गन एक रंगहीन, गंधहीन गैसीय तत्व है, जो वायु में तथा ज्वालामुखी पर्वतों से निकली गैसों में मिलता है। सन्‌ 1785 ई. में हेनरी कैवेंडिश ने वायु में विद्युत्स्फुलिंग द्वारा निर्मित नाइट्रोजन आक्साइडों को कास्टिक सोडा विलयन में अवशोषित कराया। इसके पश्चात्‌ और ऑक्सिजन प्रविष्ट करके उक्त क्रिया कई बार दुहराई गई। सभी गैसों के अवशोषण के पश्चात्‌ एक बुलबुला शेष रह गया जो अनवशोषित रह गया। इन प्रयोगों से कैवेंडिश ने यह निष्कर्ष निकला कि यदि वायुमंडल के नाइट्रोजन का कोई भी अंश उसके शेषांश से भिन्न हे और नाइट्रस अम्ल में परिवर्तित नहीं होता, तो वह पूरी वायु के 1/120 वें अंश से अधिक नहीं है।

सन्‌ 1892 ई. में लार्ड रैले ने प्राउट के सिद्धांत की परीक्षा करने के लिए हाइड्रोजन जैसी प्रमुख गैसों के घनत्व ज्ञात किए। वायुमंडल के नाइट्रोजन का घनत्व 1.25718 निकला और अमोनिया या नाइट्रिक आक्साइड से प्राप्त रासायनिक नाइट्रोजन का घनत्व 1.25107 देखा गया। इस प्रकार वायुमंडल के नाइट्रोजन का घनत्व 0.47 प्रतिशत अधिक पाया गया। इस नाइट्रोजन में ने किसी प्रकार की अशुद्धियां पाई गई और न आठ मास तक रखे रहने पर उसके घनत्व में किसी प्रकार का परिवर्तन ही देखा गया।

दो विभिन्न स्रोतों से प्राप्त नाइट्रोजन के घनत्वों के बीच इस प्रकार के अंतर को समझाने के लिए केवल प्रायोगिक त्रुटियां ही पर्याप्त नहीं थीं, अत: वायुमंडल के नाइट्रोजन में नाइट्रोजन में थोड़ी मात्रा में हाइड्रोजन की उपस्थिति की संभावना बताई गई। किंतु रैमज़े (सन्‌ 1894 ई.) ने इस प्रकार के अनुमानों को निराधार सिद्ध करते हुए उसमें एक अज्ञात, भारी गैस की उपस्थिति बताई। उन्होंने वायु में से कार्बन डाईआक्साइड, आर्द्रता, ऑक्सिजन तथा नाइट्रोजन को हटाने के पश्चात्‌ इस गैस को पृथक्‌ करके इसका नाम आर्गन रखा। आर्गन ग्रीक शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है निष्क्रिय या सुस्त। हाइड्रोजन के सापेक्ष इसका घनत्व 20 के निकट था और रासायानिक रूप में बिलकुल निष्क्रिय होने के कारण किसी प्रकार के यौगिक बनाने का सामर्थ्य इसमें नहीं पाया गया। इसके पश्चात्‌ रैले, रैमज़े तथा अन्य लोगों की खोजों के फलसवरूप निष्क्रिय गैसों की पूरी श्रृंखला निकल आई, जिसमें हीलियम, नियन, आर्गन, क्रिप्टन, ज़ेनन तथा रैडन मिलकर आवर्तसारणी के शून्यसमूह में आते हैं।

उपस्थिति- वायुमंडल की वायु में आयतन के अनुसार 100 भागों में आर्गन का 0.932 भाग तथा भार के अनुसार 1.285 भाग वर्तमान है। खनिजीय झरनों में भी आर्गन उपस्थित रहता हैं।

निर्माण- आर्गन गैस के निर्माण में तीन प्रमुख विधियां प्रयोग में लाई जाती हैं: (1) वायु में से रासायनिक विधियों द्वारा अन्य सभी गैसों का बहिष्करण, (2) तरल वायु का प्रभाजन तथा (3) डेवार की विधि, अर्थात्‌ लकड़ी के कोयले द्वारा अवशोषण।

(1) कैवेंडिश द्वारा प्रयुक्त रासायनिक विधि का परिष्कार रैले और रैमज़े ने किया। उन्होंने वायु में से कार्बन डाईआक्साइड को सोड़ा, लाइम तथा पोटाश के विलयन द्वारा हटाकर, ऑक्सिजन को लाल गर्म तांबे में अवशेषित कराकर तथा नाइट्रोजन को लाल गर्म मैगनीशियम की प्रतिक्रिया से मैगनीशियम नाइट्राइट बनाकर पूथक्‌ किया। शुद्धता के लिए इस विधि को कई बार दुहराया गया। बाद में निष्क्रिय गैसों की पृथक्करण द्रवण तथा प्रभाजन द्वारा किया गया।

फिशर, रिंज और क्रोमेलिन ने अपने अपने प्रयोगों में 90 प्रतिशत कैलसियम कार्बाइड तथा 10 प्रतिशत कैलसियम क्लोराइड के मिश्रण को लोहे के मुंहबंद बर्तन में वायु के साथ गरम वायु में से ऑक्सिजन तथा नाइट्रोजन को दूर किया।

(2) औद्योगिक स्तर पर निष्क्रिय गैसों का उत्पादन तरल वायु के प्रभाजन द्वारा किया जाता है। लिंडे, क्लाडे, तथा दूसरों ने इस प्रकार की सफल विधियों को विकसित किया है। निष्क्रिय गैसों के क्वथनांकों के एक दूसरे से अत्यंत निकट होने के कारण विशेष प्रकार के स्तंभों का प्रयोग किया गया है। वायु की तरलीभवन प्रक्रिया में अधिकांश आर्गन तरल ऑक्सिजन के साथ रहता है और इन स्तंभों में नीचे गिरती धारा में से आर्गन एक विशेष विधि से अलग किया जाता है। ऑक्सिजन और नाइट्रोजन के अंतिम अंशों को रासायनिक विधि से पृथक्‌ किया जाता है।

(3) डेवार विधि में वायु से प्राप्त मिश्रित निष्क्रिय गैसों को एक बल्ब में, जिसमें नारियल का कोयला भरा रहता है, प्रविष्ट किया जाता है और उसे एक शीत अवगाह में रख दिया जाता है। आधे घंटे के पश्चात्‌ अवशेषित गैसों को अलग किया जाता है। जब 1000 सें. पर आर्गन, क्रिप्टन तथा ज़ेनन गैसें, अवशेषित दशा में, रखी जाती हैं तो आर्गन इस कोयले में विसरित होकर चली जाती है। कोयले को गर्म करके आर्गन को मुक्त कर लिया जाता है।

आर्गन रंगविहीन, स्वादरहित तथा गंधरहित गैस है, जिसका घनत्व 19.97 (हाइड्रोजन 1), परमाणुभार 39.944, परमाणुसंख्या 18, क्वथनांक-195.81रू सें. गलनांक189.60सें. कांतिक ताप 122.40तथा कांतिक दाब 47.99 वायुमंडल हे। इनका रासायनिक संकेत आग () है। यह जल में 12रू सें. ताप पर 4 प्रतिशत अथवा नाइट्रोजन से 2।। गुना अधिक विलेय है। वर्षा के जल में विलयित गैसों में आर्गन का अनुपात अधिक रहता है। आर्गन का वर्तनां वायु से 0.961 गुना है ओर श्यानता 1.21 (वायु की तुलना में) हे। इसके समस्थानिक आरगन 40 (आग 40) तथा आरगन 36 (आग 36) एक प्रतिशत मात्रा में पाए जाते हैं। रासायनिक निष्क्रियता के कारण इसका परमाणुभार नहीं निकाला जा सका है, किंतु कुंट तथा वारबुर्न ने विशिष्ट उष्माओं में अपुपात से ( स्थिर दाब पर विशिष्ट उष्मा/स्थिर आयतन पर विश्ष्टि उष्माउ1.35) इसकी परमाणुकता निश्चित की है।

आर्गन के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में अनेक रेखाएं रहती हैं, किंतु उनमें से एक भी अद्वितीय नहीं है। अब नील वर्णक्रम का कारण आयनीकृत अणु बताया जाता है। अन्य निष्क्रिय गैसों की भांति आर्गन भी नारियल के कोयले द्वारा शोषित होता है।

यौगिक- बर्थेलो ने (सन्‌ 1895 ई. में) सूचित किया कि जब बेंज़ीन और आर्गन के मिश्रण में विद्युत्स्फुलिंग का विसर्जन किया जाता है तो उनका संकुचन होता है, किंतु इस परिणाम का पुष्टीकरण नहीं किया जा सका। आर्गन के वातावरण में जलवाष्प प्रविष्ट करने से न्यून ताप पर एक निश्चित हाइड्रेट ग 6 हा2 औ बनता है, किंतु यह अतयंत अस्थायी होता है और24.8सें. पर विघटित हो जाता है। बूथ और विल्सन (सन्‌ 1935 ई.) ने आर्गन और बोरन फ्लोराइड के मिश्रण के हिमांक वक्रों के अध्ययन के फलस्वरूप निम्न तापों पर (आग)न बोफ्ला3, न उ1, 2, 3, 6, 8 तथा 16, जैसे यौगिकों की उत्पत्ति सिद्ध की, किंतु वे अत्यंत अस्थायी होने के कारण अपने गलनांको के पूर्व ही विघटित हो जाते हैं।

(यहाँ आगआर्गन, हाहाइड्रोजन, औऑक्सिजन, बोबोरन फ्लोफ्लोरीन)।

प्रयोग- आर्गन गैस का प्रयोग विद्युद्विसर्जन नलिकाओं, दीपकों, रेडियो वाल्वों तथा रेक्टिफायरों में प्रदीप्त करने के लिए होता है।

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