अशांत वायुमंडल

24 Jan 2011
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सामान्यतया वायुमंडल गैसों का मिश्रण है जिसके तीन चौथाई से अधिक भाग में नाइट्रोजन व शेष हिस्से में ऑक्सीजन उपस्थित होती है। इन दोनों गैसों के पश्चात शेष बचे एक प्रतिशत भाग में कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प और ओजोन आदि गैसों का मिश्रण वर्षा एवं बादल जैसे मौसमी घटकों को प्रभावित करने के साथ ही पूरी पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करने वाले हरित ग्रह प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक तापन जैसी परिघटनाओं को भी प्रभावित करता है।मौसम पृथ्वी के वायुमंडल की विभिन्न घटनाओं पर निर्भर करता है। सभी मौसमी परिघटनाएं जैसे बादल, हिमपात, बारिश, तूफान और चक्रवात वायुमंडल में ही घटित होती हैं। जब हम जमीन से आसमान की ओर देखते हैं तब हम वास्तव में धरती को कंबल की तरह ढके हुए वायुमंडल की ओर देख रहे होते हैं। सामान्यतया वायुमंडल गैसों का मिश्रण है जिसके तीन चौथाई से अधिक भाग में नाइट्रोजन व शेष हिस्से में ऑक्सीजन उपस्थित होती है। इन दोनों गैसों के पश्चात शेष बचे एक प्रतिशत भाग में कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प और ओजोन आदि गैसों का मिश्रण वर्षा एवं बादल जैसे मौसमी घटकों को प्रभावित करने के साथ ही पूरी पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करने वाले हरित ग्रह प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक तापन जैसी परिघटनाओं को भी प्रभावित करता है। वायुमंडल में किसी एक ही स्थान पर अलग-अलग ऋतुओं में जलवाष्प की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। अधिकतर रेगिस्तानों के ऊपर की हवा शुष्क होती है जो कभी-कभार ही जलवाष्प को समाए होती है, जबकि उष्णकटिबंधीय वनों की हवा सदैव जलवाष्प से संतृप्त होती है।

भूसतह से ऊपर की ओर जाने पर वायुमंडल का घनत्व कम होता जाता है। ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ हवा में ऑक्सीजन की मात्रा भी कम होती जाती है, जो कुछ ही किलोमीटर ऊपर जाने पर भूसतह की एक तिहाई रह जाती है। यही कारण है कि करीब 3,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे या लद्दाख में स्थित लेह जैसे क्षेत्रों में जाने पर हमारी सांसे फूलने लगती है। अक्सर पर्वतारोही 8,000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर सांस लेने के लिए ऑक्सीजन के सिलेंडर ले जाते हैं। हालांकि कुछ साहसी पर्वतारोही ऑक्सीजन के सिलेंडर के बिना ही हिमालय पर्वत के शिखर तक पहुंचे हैं।

वायुमंडल की पर्तें


पृथ्वी के वायुमंडल की पांच पर्तेंपृथ्वी के वायुमंडल की पांच पर्तें

वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के वायुमंडल को पांच पर्तों में बांटा है। पर्तों का वर्गीकरण उनके विशिष्ट गुणों के आधार पर किया गया है। समुद्री स्तर को आधार मानते हुए भूमि की सतह से 16 किलोमीटर ऊपर तक फैली वायुमंडल की पर्त ट्रोपोस्फियर यानी क्षोभमंडल कहलाती है, यह पर्त धरती के सबसे समीप होती है। सौर ऊर्जा की मात्रा के पृथ्वी पर पहुंचने के अनुसार भूमध्य रेखा पर क्षोभमंडल की ऊंचाई सर्वाधिक होती है। दोनों ध्रुवों पर इस पर्त की ऊंचाई न्यूनतम होती है। क्षोभमंडल पर्त में जलवाष्प की सर्वाधिक मात्रा होने के कारण बादल, बारिश, हिमपात, तूफान, विद्युत और झंझावत जैसी सभी मौसमी परिघटनाएं इसी पर्त में घटित होती हैं। वास्तव में मौसम संबंधी अधिकतर परिघटनाएं वायु में जल की मात्रा के परिवर्तन के द्वारा निर्धारित होती हैं। बादल, बारिश, हिमपात और अन्य मौसमी परिघटनाएं बिना जल के संभव नहीं हो सकती हैं। क्षोभमंडल में प्रति 165 मीटर ऊपर की ओर जाने पर तापमान एक डिग्री सेल्सियस कम होता जाता है। इस पर्त में तापमान का कम होना क्षोभसीमा कहलाने वाले वायुमंडलीय स्तर पर रुक जाता है। क्षोभसीमा पर तापमान का मान 00C से लेकर -580C तक हो सकता है।

क्षोभमंडल अस्थायी पर्त है, जहां हवा लगातार घूमती रहती है। यथार्थ में क्षोभमंडल किसी भी समय वायुमंडल की सर्वाधिक अस्तव्यस्त पर्त है। इसके परिणामस्वरूप ही क्षोभमंडल से गुजरने वाले वायुयानों के यात्रियों को बारिश के मौसम के दौरान अक्सर बहुत जोरदार झटके लगते हैं। इस विक्षोभ के कारण ही अधिकतर जेट वायुयान बादलों से ऊपर क्षोभमंडल की स्थिर और स्पष्ट हवा वाली ऊंचाई पर ऊड़ान भरते हैं।

धरती से करीब 50 किलोमीटर ऊंचाई पर स्थित वायुमंडल की दूसरी पर्त स्ट्रेटोस्फियर यानी समतापमंडल कहलाती है। समतापमंडल क्षोभमंडल के ऊपर स्थित होता है। यहां तापमान करीब चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। समतापमंडल में हवा ऊपर-नीचे गति नहीं करती है। यही कारण है कि इस पर्त में 24 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित ओजोन पर्त दूर तक नहीं फैलती है। यहां पर ऑक्सीजन अणु के साथ सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरणों की क्रिया से ओजोन गैस का निर्माण होता है। धरती के सभी जीवित प्राणियों के लिए ओजोन पर्त बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पर्त पेड़-पौधों और सभी जीवों के लिए रक्षात्मक आवरण जैसा व्यवहार दर्शाती हुई सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों को धरती पर आने से रोकती है।

समतापमंडल से ऊपर धरती की सतह से 50 से 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित वायुमंडल की तीसरी पर्त को मीसोस्फियर यानी मध्यमंडल के नाम से जाना जाता है। यहां पर तापमान वापस कम होने लगता है। तापमान का गिरना, मध्यमंडल और समुद्र तल से 80 से 500 किलोमीटर ऊपर स्थित वायुमंडल की थर्मोस्फियर यानी बाह्यमंडल नामक अगली पर्त के मध्य मिसोपॉस यानी मध्यसीमा क्षेत्र में रुक जाता है।

ध्रुवीय ज्योति प्रकाशीय परिघटना है जो सामान्यतः ध्रुवीय क्षेत्रों में प्रकाश की रंगीली पट्टी के रूप में दिखाई देती है।ध्रुवीय ज्योति प्रकाशीय परिघटना है जो सामान्यतः ध्रुवीय क्षेत्रों में प्रकाश की रंगीली पट्टी के रूप में दिखाई देती है।

बाह्यमंडल में ऊंचाई बढ़ने पर सौर विकिरणों के प्रभाव से तापमान में वृद्धि होती है। कुछ परिस्थितियों में इस पर्त का तापमान 1,480 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। अन्तरिक्ष यान इसी क्षेत्र में उड़ान भरते हैं और यहीं ध्रुवीय ज्योति (अरोरास्) दिखाई देती हैं। बाह्यमंडल पर्त में आयन कहलाने वाले विद्युत आवेशित कण मिलते हैं। यह पर्त आयनमंडल भी कहलाती है। इस पर्त का कुछ विशेष तरंगदैर्ध्य वाली रेडियो तरंगों को वापस धरती की ओर परावर्तित करने का गुण, सुदूर रेडियों संचार में अहम भूमिका रखता है।

ध्रुवीय ज्योति को दक्षिणी और उत्तरी ज्योति के रूप में जाना जाता है। सामान्यतः यह प्रकाशमान मौसमी परिघटना, ध्रुवीय क्षेत्रों में प्रकाश के रंगीन चमकीले वर्णक्रम के रूप में दिखाई देती है। ध्रुवीय ज्योति की घटना सौर पवनों के उच्च ऊर्जा युक्त आवेशित कणों को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा जकड़ने के कारण संभव होती है। ध्रुवीय ज्योति से जुड़े चमकीले रंग आवेशित इलेक्ट्रानों के पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित हाइड्रोजन और नाइट्रोजन अणुओं से क्रिया करने के परिणामस्वरूप ही दिखाई देते हैं। इन अणुओं के ऊर्जित होने और वापस अपनी मूल अवस्था में आने के दौरान दृश्यमान प्रकाश उत्सर्जित होता है, जिसे किसी यंत्र को उपयोग में लाए बगैर मानवीय आखों से भी देखा जाता है। ध्रुवीय ज्योति घटना निऑन नली में लाल प्रकाश के इलेक्ट्रानों द्वारा निऑन अणु को ऊर्जित करने के समय उत्सर्जित प्रकाश की भांति होती है।

बाह्यमंडल से ऊपर स्थित वायुमंडल की अगली पर्त को एस्ट्रोस्फियर यानी बहिःमंडल के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर वायुमंडल और अंतरिक्ष का निर्वात क्षेत्र मिलने लगते हैं। पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थापित किए जाने वाले उपग्रह, करीब 500 से 1,000 किलोमीटर ऊंचाई पर स्थित बहिःमंडल पर्त में ही स्थापित किए जाते हैं। इस पर्त में हीलियम, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और ऑर्गन आदि विभिन्न गैसें बहुत ही कम मात्रा में उपस्थित होती हैं। इस पर्त का तापमान 300 डिग्री सेल्सियस से 1,659 डिग्री सेल्सियस तक होता है।

वायु दाब


वायुमंडल समुद्र तल से 1,000 किलोमीटर ऊंचाई तक फैला है। यदि हम वायु मंडल को 1,000 किलोमीटर ऊंचाई वाला स्तंभ माने तो इस स्तंभ में वायु की कुल मात्रा बहुत अधिक होती है, जिससे भूसतह पर यह वायुस्तंभ दाब उत्पन्न करता है। गैसों द्वारा भूसतह पर आरोपित दबाव या बल को हम वायुमंडलीय दाब या वायुदाब कहते हैं। प्रायः हम इस दाब के प्रति अनभिज्ञ ही रहते हैं, जबकि यह वायुस्तंभ नीचे की ओर बहुत दबाव डालता है। समुद्र सतह के प्रतिवर्ग मीटर पर हवा के इस स्तंभ का भार 10 टन से अधिक होता है, जिसको हम मेज़ पर एक हाथी के बैठने के बराबर भी मान सकते हैं।ऊंचाई पर हवा के कम अणुओं का नीचे की ओर भार आरोपित करने के कारण ऊपर की ओर जाने पर वायुदाब कम होता जाता है।ऊंचाई पर हवा के कम अणुओं का नीचे की ओर भार आरोपित करने के कारण ऊपर की ओर जाने पर वायुदाब कम होता जाता है।

अलग-अलग स्थानों और समय में परिवर्तन के अनुसार वायुदाब बदलता रहता है। वायुदाब किसी स्थान की ऊंचाई, तापमान और नमी की मात्रा जैसे अनेक कारकों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए किसी पर्वत पर ऊपर की ओर जाने पर वायुदाब लगातार घटता जाता है। अधिक ऊंचाई पर कम हवा द्वारा दबाव डाले जाने के कारण वायुदाब कम होता है। वायुदाब को हम कंबलों के एक ढेर के द्वारा समझ सकते हैं। यदि 1,000 कंबलों का एक के ऊपर एक ढेर लगाया जाय तब ढेर के तल पर कुल भार बहुत अधिक होगा। समुद्र तल पर अवलोकित वायुदाब को भी बहुत अधिक भार वाले कई कंबलों के भार के बराबर माना जा सकता है। लेकिन यदि हम किसी ऊंचे पर्वत के शिखर के समान केवल एक कंबल की बात करें तो उसका भार बहुत कम होगा। यदि हम क्षोभमंडल में लगातार ऊपर की ओर लगभग पर्वत की ऊंचाई के बराबर तक जाते जाएं तो दाब तब तक घटता रहेगा जब तब वह शून्य न हो जाए, ऐसे स्थान से ऊपर शायद ही हवा उपस्थित हो।

वायुदाब जलवाष्प की उपस्थिति पर भी निर्भर करता है। आर्द्र हवा शुष्क हवा से हल्की होने के कारण कम दाब पैदा करती है। अधिकतर व्यक्ति सहज ही इस बात पर विश्वास नहीं करेंगे कि आर्द्र हवा हल्की या शुष्क हवा से कम घनत्व वाली होती है। हवा में जलवाष्प की मात्रा सम्मिलित होने पर भी हवा हल्की कैसे हो सकती है? इस प्रश्न का उत्तर बड़ा सीधा है, जिसे वैज्ञानिक लंबे अर्से से जानते हैं। सबसे पहले प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने सन् 1717 में अपनी पुस्तक ‘ऑप्टिक्स’ में आर्द्र हवा के शुष्क हवा से कम घनत्व वाली अवधारणा को व्यक्त किया था। लेकिन अन्य वैज्ञानिक इस बात को अगली सदी तक नहीं समझ पाए थे।

यह समझने के लिए कि किस प्रकार आर्द्र हवा शुष्क हवा से कम घनत्व वाली होती है, हमें सन् 1800 में इटली के वैज्ञानिक अमेडो एवोगेड्रो द्वारा खोजे गए एक नियम की आवश्यकता होगी। एवोगेड्रो ने यह पता लगाया कि समान ताप और दाब पर गैसों की निश्चित मात्रा या कहें एक घन मीटर में अणुओं की संख्या, उसमें उपस्थित होने वाले पदार्थों पर निर्भर न होकर सदैव एकसमान होगी। रसायन शास्त्र की अधिकतर पुस्तकों में इसे विस्तार से समझाया गया है।

अब आप एक घन मीटर शुष्क हवा की कल्पना करें, जिसमें 78 प्रतिशत नाइट्रोजन के अणु हों और प्रत्येक अणु का अणुभार 28 (14-14 परमाणु भार के दो परमाणु) हो। अन्य गैस के रूप में 21 प्रतिशत हवा ऑक्सीजन है, जिसके प्रत्येक अणु का अणुभार 32 (16-16 परमाणु भार के दो परमाणु) है। जल का एक अणु दो हाइड्रोजन (अणुभार 1) और एक ऑक्सीजन के अणु (अणुभार 16) से बना होता है। इस प्रकार जल के एक अणु का अणुभार 18 होता है। इस प्रकार जल का एक अणु नाइट्रोजन और हाइड्रोजन को जलवाष्प से बदल दें तो एक घन मीटर में हवा का कुल वजन घट जाएगा, जिससे परिणामी घनत्व और दाब में कमी आएगी। इसलिए जब हवा में अधिक जलवाष्प उपस्थित होगी तब शुष्क हवा की तुलना में धरती पर आरोपित दाब की मात्रा कम होगी। यही कारण है जलवाष्प से समृद्ध वायु कम दाब के क्षेत्र का निर्माण करती है, जिसके फलस्वरूप मौसम में पलटाव होने और बारिस होने की संभावना बढ़ जाती है। दूसरी ओर शुष्क हवा के कारण मौसम शांत बना रहता है।

वायुमंडलीय दाब तापमान पर भी निर्भर करता है। गर्म हवा की तुलना में ठंडी हवा के अधिक घनत्व वाली होने यानी भारी होने के कारण ठंडी हवा अधिक दाब उत्पन्न करती है। ठंडी हवा की तुलना में गर्म हवा के कम घनत्व या हल्केपन के कारण ये हवाएं कम दाब आरोपित करती हैं। ठंडी हवा के सिकुड़ने और भूमि पर दबाव डालने से उच्च दाब के क्षेत्र का निर्माण होता है। इस दौरान मौसम स्वच्छ और शुष्क होता है। इसके विपरीत गर्म हवा के ऊपर उठने पर उस क्षेत्र में निम्न दाब उत्पन्न होता है। अक्सर निम्न दाब के समय मौसम आर्द्र और बादलों भरा होता है। प्रायः मौसम समाचारों में हम ‘निम्न दाब’ और ‘उच्च दाब’ शब्दों को सुनते हैं, जो भारी बारिश और मौसम के बारे में पूर्वानुमान में सहायक होते हैं।

प्रतिलोपन


समान्यतः निचले वायुमंडल या क्षोभमंडल में भूमि सतह के निकट की हवा ऊपर की हवा की तुलना में गर्म होती है। इसका कारण यह है कि सौर विकिरणों से पृथ्वी की सतह के गर्म होने पर वायुमंडल निचले हिस्से से गर्म होता है। निचले हिस्से के गर्म होने के बाद धीरे-धीरे ऊपर की पर्त गर्म होती है। हम पहले यह जान चुके हैं कि क्षोभ सीमा में प्रति 165 मीटर ऊपर की ओर जाने पर तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की कमी आती है, इस प्राकर ऊपर की ओर जाते हुए तापमान कम होता जाता है। यही कारण है कि मैदानी भागों की तुलना में पहाड़ों की चोटियां सदैव ठंडी रहती हैं। लेकिन किसी विशेष समय में जैसे ठंड के मौसम में इसका उलटा प्रभाव दिखाई पड़ता है। उस समय भूमि सतह के ऊपर जाने पर तापमान बढ़ता जाता है। ऐसी स्थिति होने पर गर्म हवा की पर्त ठंडी हवा के ऊपर स्थित होकर एक ढक्कन की भांति व्यवहार करती है। जिसके फलस्वरूप नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड और सामान्य परिस्थितियों में ऊपर उठने वाला धुंआ और अन्य प्रदूषक तत्व भूसतह के समीप स्थित होकर वातावारण के लिए हानिकारक स्मोग यानी धूम-कोहरा जैसी परिघटनाओं का निर्माण करते हैं। धूम-कोहरा आंखों और गले के लिए हानिकारक होता है। ऐसी घटनाएं तापमान के पलटाव के कारण होती हैं। ये घटनाएं स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करती हैं। इस दौरान श्वास संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

प्रायः ऊंचाई के साथ तापमान कम होता जाता है। जो प्रदूषकों और धुएं को ऊपर उठाते हुए उन्हें फैला देता है। (ऊपर) लेकिन प्रतिलोपन में भूमि के समीप की ऊंचाई पर तापमान बढ़ता जाता है। जहां यह घटना घटित होती है वहां भूमि के समीप ठंडी हवा के ऊपर गर्म हवा की पर्त एक ढक्कन की तरह व्यवहार प्रदर्शित करती हुई प्रदूषकों को नीचे ही जकड़े रखती हैं। (नीचे)प्रायः ऊंचाई के साथ तापमान कम होता जाता है। जो प्रदूषकों और धुएं को ऊपर उठाते हुए उन्हें फैला देता है। (ऊपर) लेकिन प्रतिलोपन में भूमि के समीप की ऊंचाई पर तापमान बढ़ता जाता है। जहां यह घटना घटित होती है वहां भूमि के समीप ठंडी हवा के ऊपर गर्म हवा की पर्त एक ढक्कन की तरह व्यवहार प्रदर्शित करती हुई प्रदूषकों को नीचे ही जकड़े रखती हैं। (नीचे)

इस प्रकार मौसम को नियंत्रित करने वाले सभी कारक हमारे वायुमंडल में उपस्थित हैं। लेकिन वायुमंडल में उपस्थित हवा और जलवाष्प ही मौसम को उत्पन्न करने वाले कारक नहीं है। मौसम को उत्पन्न करने, चलाने एवं परिवर्तन करने वाले और भी अनेक कारक हैं। आगे के अध्यायों में हम मौसम रूपी इंजन को चलाने वाले अन्य कारकों की चर्चा करेंगे।

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