आतिशबाजी के खेल से पर्यावरण में प्रदूषण (Pollution in the environment by fireworks)


हमारे देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनको दो वक्त का खाना नहीं मिलता और भूख से मर जाते हैं। आतिशबाजी से दूर रहकर आप एक तो प्रदूषण से अपने-आपको बचाएँगे, साथ-ही-साथ दूसरे लोगों या दूसरे जीवधारियों, पेड़-पौधों को भी बचाएँगे। आपके पैसे बचेंगे। उन पैसों से एक कोष बनाएं। उस कोष को अच्छे कामों में लगायें और देश की सेवा करें और आगे बढ़ें।जैसा हम सब जानते हैं कि सारे विश्व में जब लोग प्रसन्नता का अनुभव करते हैं तो वो उसका प्रदर्शन नाचकर-गाकर और हुड़दंग के साथ आतिशबाजी का भी उपयोग करते हैं। हम ऐसा मानते हैं कि यह अनुचित नहीं है। लेकिन आजकल इसका चलन इस तरह से बढ़ गया है कि इस खुशी का प्रदर्शन आतिशबाजी चलाकर घंटों इसका आनन्द लेते रहते हैं और ऐसा देखा गया है कि ज्यादातर लोग शादी-ब्याह, रीति-रिवाज के अवसर पर घंटों आतिशबाजी चलाते हैं जिसके कारण पर्यावरण में धुएँ की गहरी चादर फैल जाती है और लोगों को हवा में घुटन, आँखों में जलन और खुश्की के साथ ठीक से साँस लेने में और एक-दूसरे की बात सुनने में परेशानी महसूस होती है। आमतौर पर इसका प्रभाव औरतों और छोटे बच्चों पर बहुत जल्दी होता है। आतिशबाजी का प्रभाव हमारी जिन्दगी पर पड़ने लगता है।

आतिशबाजी क्या है?


जैसाकि हम जानते और मानते भी हैं कि इसका चलन पहले भारतवर्ष में नहीं था। तीज-त्यौहार या शादी-ब्याह के अवसर पर कभी भी इसका उपयोग नहीं किया जाता था। हाँ! इतना जरूर था कि ढोल, नगाड़ा, गाना-बजाना, नाचना ये सारे हमारे भारतीय संस्कृति में शामिल थे, लेकिन आतिशबाजी का कल्चर हमारे भारत वर्ष में बाहर के देशों से आया है।

जैसा कि हम सब जानते हैं कि जब आतिशबाजी चलाई जाती है तो इससे मन को प्रसन्न करने वाले रंगों की रोशनी के दर्शन होते हैं। अब यह सवाल पैदा होता है कि आतिशबाजी से ये रंग किस तरह पैदा होते हैं।

आतिशबाजी से रंगों का पैदा होना


स्ट्रॉन्टियम (Strontium) और लिथियम (Lithium) से लाल रंग पैदा होता है। जब ताँबा जलता है तो इससे नीला रंग निकलता है। यह नीला रंग क्या है? इस नीले रंग से डायोक्सिन (Dioxins) निकलते हैं जिसकी वजह से कैन्सर जैसी बीमारी होती है।

मैग्नीशियम, टिटेनियम और एल्युमिनियम से सफेद रंग की चमक पैदा होती है। इसमें सोडियम क्लोराइड भी उपयोग में लाया जाता है। जिसके कारण नारंगी रंग पैदा होता है। आतिशबाजी में बोरिक एसिड भी उपयोग में लाया जाता है। जिसके कारण हरा रंग भी दिखाई देता है।

रूबिडियम (Rubidium) और पोटैशियम के कारण बैंगनी रंग दिखाई देता है और रेडियोएक्टिव बेरियम चमकदार हरा रंग पैदा करता है। आतिशबाजी में अक्सर कार्सिनोजेनिक या हारमोन को बर्बाद करने वाला पदार्थ पाया जाता है जो कि मिट्टी और पानी में भी आसानी से मिल जाता है। आतिशबाजी से ध्वनि, वायु और पानी में प्रदूषण फैलता है जिसके कारण इन्सान का रक्त का दबाव घट-बढ़ सकता है और इसी कारण इन्सान हृदय रोग से पीड़ित हो सकता है।

पार्टिकुलेट मैटर


आतिशबाजी चलाने से जो धुआँ निकलता है उसमें चारकोल, सल्फर फ्यूल होता है जिसके कारण पार्टिकुलेट मैटर में बढ़ोत्तरी होती है और यही पार्टिकुलेट मैटर लोगों के फेफड़ों में जमा हो जाता है और यह उन लोगों को बहुत नुकसान पहुँचाता है जो लोग अस्थमा जैसी बीमारी से प्रभावित होते हैं। लम्बे समय तक इससे प्रभावित होने की वजह से कैन्सर की बीमारी के शिकार हो सकते हैं। आतिशबाजी का प्रभाव तीन से चार घण्टे तक पर्यावरण में बना रहता है।

धातु के यौगिक (Metallic Compounds)


यह गन पाउडर होता है जोकि आतिशबाजी की पैकिंग के उपयोग में लाया जाता है और यह भारी धातु का बना होता है। और उसमें टॉक्सिन (Toxins) भी सम्मिलित होते हैं। जिसके कारण चमकदार रंग दिखाई पड़ते हैं और भारी धातुएँ गिरने लगती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये भारी धातुएँ इन्सान के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं और नुकसान पहुँचाती है।

स्ट्रॉन्टियम (Strontium)


यह एक मुलायम चाँदी जैसे पीले रंग की धातु है। यह जब जलती है तो इसका रंग लाल हो जाता है जो हवा और पानी के साथ बहुत तेजी से अभिक्रिया (React) करता है। स्ट्रॉन्टियम के कुछ यौगिक पानी में आसानी से घुल जाते हैं और कुछ यौगिक जमीन में काफी गहराई तक पहुँचकर जमीन के नीचे मौजूद पानी में घुल जाते हैं। हालांकि स्ट्रॉन्टियम की कम तादाद मानव स्वास्थ्य को ज्यादा हानि नहीं पहुँचाती। जब स्ट्रॉन्टियम धातु की मात्रा ज्यादा हो जाती है तो बहुत ही खतरनाक हो जाती है। खासतौर से ये छोटे बच्चों की वृद्धि पर अधिक प्रभाव डालता है (जिस समय बच्चों) की हड्डियों में विकास हो रहा हो)।

सफेद एल्युमिनियम (White Aluminium)


जैसाकि हम जानते हैं कि एल्युमिनियम जमीन की पर्तों में अधिक मात्रा में पाया जाता है और मानव इसको अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में अधिक उपयोग करता है। हम इससे छुटकारा भी नहीं पा सकते। एल्युमिनियम की मात्रा खाना, वायु, मिट्टी और पानी इन सब चीजों में पाई जाती है। एक वयस्क इन्सान एक दिन में 7-9 mg चाँदी जैसी सफेद धातु एल्युमिनियम का उपयोग कर लेता है (इसको सुरक्षित माना जाता है)। यदि इससे अधिक मात्रा इन्सान के शरीर में चली जाये तो ये इन्सान के दिमाग और फेफड़ों को हानि पहुँचाती है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि एल्युमिनियम से अलजाइमर की बीमारी भी हो सकती है।

नीला ताँबा (Blue Copper)


आतिशबाजी से जो नीले रंग की लौ निकलती है, वह ताँबा की वजह से निकलती है। यह अधिक जहरीली नहीं होती लेकिन यह डायोक्सिन (Dioxins) बनाती है। Dioxins वो रासायनिक पदार्थ हैं जो अपने-आप पैदा नहीं होता बल्कि दूसरे रासायनिक पदार्थों के मिलने के कारण पैदा होता है। इन्सान के स्वास्थ्य को अधिक हानि तब होती है जब क्लोरीन्स (Chlorine) में Dioxins उपस्थित होता है। इसी कारण से त्वचा के रोग होते हैं। जैसे मुँहासे हमारे चेहरे पर निकलते हैं।

WHO की रिपोर्ट से पता चला है कि यह एक मानवीय कार्सिनोजीन (Carcinogen) है जो मानव के हार्मोन को बनने से रोकता है और ग्लूकोज मेटाबोलिज्म को भी बर्बाद कर देता है।

बेरियम ग्रीन (Barium Green)


मछली और दूसरे पानी के जीव जो बेरियम को अपने अन्दर समाहित कर लेते हैं और फिर ये हमारे खाने पीने के जरिये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। ये चाँदी जैसा सफेद धातु प्राकृतिक तौर पर दूसरे चीजों से मिलकर भिन्न-भिन्न प्रकार के यौगिक बनाती है और इसको हम Carcingenic भी कहते हैं। इसी के कारण आँतों की बीमारियाँ हो जाती हैं। जिससे उल्टी, दस्त, साँस लेने में परेशानी और रक्त चाप में भी बदलाव आता है। चेहरे पर सूजन आ जाती है और साथ ही हृदय रोग, लकवा और मौत भी हो जाती है।

रुबीडियम (Rubidium)


यह धातु अपने-आप में दिखने वाली चाँदी की तरह का एक तत्व है जोकि जमीन पर पाया जाता है। जब यह जलता है तो बैंगनी रंग जैसा दिखाई देता है और 104 डिग्री फारेनहाइट पर पिघल जाता है। जब यह पानी के साथ मिलता है तो इसका प्रभाव बहुत बुरा होता है, चाहे तापमान शून्य ही क्यों न हो तो भी आग को पकड़ लेता है। हालांकि इसका पर्यावरण पर प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन त्वचा की बीमारियाँ पैदा करता है। नमी में काफी असरदार होता है जिसके कारण ये जहरीला भी हो जाता है और हड्डियों के कैल्शियम को समाप्त कर देता है।

कैडमियम (Cadmium)


यह एक खनिज है। इसको ह्यूमन कार्सिनोजीन भी कह सकते हैं। इसको आतिशबाजी के रंगों को पैदा करने के उपयोग में भी लाया जाता है जोकि उत्प्रेरक (Catalytic Agent) का काम करता है। जब हम साँस लेते हैं तो इसके कण अधिक मात्रा में हमारे फेफड़ों में पहुँचकर हमारे फेफड़ों को बर्बाद कर देते हैं। इससे पेट भी खराब हो जाता है। जैसे- उल्टी या दस्त हो जाना। और यदि यह लम्बे समय तक चलता रहा तो यह गुर्दे को भी खराब कर देता है। कैडमियम का प्रभाव मछली और दूसरे जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों पर भी पड़ता है। कैडमियम पहले पानी में फिर इसके बाद हमारे खाने के जरिये शरीर में पहुँच जाता है।

आतिशबाजी के प्रदूषण से बचने की जरूरत


दिल्ली का प्रदूषण कन्ट्रोल बोर्ड आतिशबाजी से होने वाले ध्वनि प्रदूषण पर निगरानी रखे हुए है फिर भी आतिशबाजी से होने वाला प्रदूषण पर काबू नहीं पाया जा सका है। दीपावली पर पटाखों से होने वाले प्रदूषण में हर वर्ष बढ़ोत्तरी जारी है। हमारी सरकार को इसके ऊपर और ध्यान देने की जरूरत है जिससे कि लोगों को प्रदूषण की मार से बचाया जा सके। यहाँ पर सरकार ही नहीं बल्कि जनता को भी अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। आप कम-से-कम आतिशबाजी का उपयोग करें। हो सके तो न ही करें। हमारे देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनको दो वक्त का खाना नहीं मिलता और भूख से मर जाते हैं। आतिशबाजी से दूर रहकर आप एक तो प्रदूषण से अपने-आपको बचाएँगे, साथ-ही-साथ दूसरे लोगों या दूसरे जीवधारियों, पेड़-पौधों को भी बचाएँगे। आपके पैसे बचेंगे। उन पैसों से एक कोष बनाएं। उस कोष को अच्छे कामों में लगायें और देश की सेवा करें और आगे बढ़ें।

 

 

पर्यावरण प्रदूषण

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

पर्यावरण प्रदूषण : आपबीती

2

प्रदूषण के भिन्न पहलू (Different aspects of pollution)

3

जल प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य (Water pollution and human health)

4

वायु प्रदूषण और मानव जीवन (Air pollution and human life)

5

ध्वनि प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य (Sound pollution and human health)

6

आर्सेनिक से पर्यावरण में प्रदूषण (Pollution in the environment from Arsenic)

7

प्रकाश से प्रदूषण (Pollution from light)

8

वातावरण में नमक की वजह से प्रदूषण (Road Salt Contamination)

9

सीसा जनित प्रदूषण (lead pollution in the environment)

10

रेडियोएक्टिव पदार्थों के कारण प्रदूषण (Radioactive Pollution)

11

आतिशबाजी के खेल से पर्यावरण में प्रदूषण (Pollution in the environment by fireworks)

12

लेखक परिचय - डॉ. रवीन्द्र कुमार

 

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