अवैध पर संगठित उद्योग

26 Aug 2013
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दिल्ली और उससे लगे इलाकों में जहां एक तरफ रियल एस्टेट कारोबार का रकबा बढ़ता जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों और नदियों के तट पर अवैध खनन। राष्ट्रीय हरित पंचाट (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने भी इस पर चिंता जताई है। गौतमबुद्ध नगर सदर की एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल की इस बाबत सख्ती सपा के कुछ स्थानीय छुटभैयों को अखर गई और उसे निलंबित कर दिया गया। इस घटनाक्रम से अवैध खनन को लेकर चिंता सतह पर आ गई है। इसी मुद्दे पर फोकस।

अवैध खनन की वजह से यमुना की गहराई कृत्रिम तरीके से बदल जाती है जिसका असर उसके प्रवाह पर पड़ता है। जिस इलाके में अधिक खुदाई हो जाए वहां यमुना की धारा तेज हो जाता है, करंट उस तरफ भागता है और उस तरफ की जमीन का कटाव होना शुरू हो जाता है।एनसीआर में यमुना की तबाही के पीछ सबसे बड़ा कारण अवैध खनन है। इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के मौके, लगातार उग रही अवैध कॉलोनियां और भ्रष्ट प्रशासन ने मिलकर इस गोरखधंधे को व्यापक कारोबारी शक्ल दे दी है। अवैध खनन के इस काले कारोबार में स्थानीय दबंगों से लेकर सियासी आका तक सबका हिस्सा बंधा हुआ है। दिल्ली में रात के साढ़े आठ बजे नो एंट्री खत्म होते ही सभी संपर्क मार्गों पर रेत भरे डंपर्स की आवाजाही शुरू हो जाती है। दिल्ली में यमुना से रेत के अवैध खनन का मामला सिर्फ बुग्गियों और ट्रैक्टर तक सीमित है, जबकि सीमा पार करते ही बुग्गियों की जगह डंपर ले लेते हैं।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सोनिया विहार के बाद गाजियाबाद की सीमा शुरू हो जाती है। उत्तर-पूर्वी जिले के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘अवैध रेत खनन दरअसल अब एक संगठित उद्योग का रूप ले चुका है और सिर्फ गाजियाबाद-नोएडा ही नहीं, फरीदाबाद और हरियाणा के कई इलाकों में रोज कम से कम 10,000 डंपर रेत अवैध तरीके से निकाले जा रहे हैं।’

यमुना पुश्ते के करीब 10 किलोमीटर के इस इलाके से हर महीने 800 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार हो रहा है। ट्रॉनिका सिटी के एक बिल्डर ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘प्रदेश में जब बसपा की सरकार थी तो उससे जुड़े लोग अवैध खनन में लिप्त थे, पिछले साल जैसे ही सपा सरकार आई, मोहरे बदल गए। काम अपनी जगह कायम है। मजदूर और डंपर से लेकर जेसीबी तक वहीं चल रही हैं। सिर्फ रकम का बंटवारा करने वाले चेहरे बदल गए हैं। हर पुश्ते से रोज 20-25 लाख रुपए का रेत अवैध तरीके से निकाला जा रहा है।’

इलाके के पुलिसवालों के मुताबिक, हर डंपर को दिल्ली की सीमा में प्रवेश करने के नाम पर 500 रुपए का शुल्क चुकाना पड़ता है। रात में नौ बजे से लेकर सुबह के 5 बजे तक यमुना पुश्ते पर इन डंपरों का राज चलता है। इस अवधि में इन रास्तों पर गुजरने वाली दूसरी गाड़ियां डंपर के ड्राइवरों के रहमोकरम पर चलती हैं। सोनिया विहार के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘पूरा खेल भ्रष्ट सिस्टम और रातोंरात अमीर बनने की चाहत रखने वाले स्थानीय लोगों की मिलीभगत से चल रहा है। रेत के एक डंपर में सारा खर्च काटकर 2,000 रुपए की बचत हो रही है जो राजनेताओं, पुलिस और स्थानीय आपराधिक तत्वों में बांटा जा रहा है।’

यमुना पर करीब 30 सालों से नजर रखने वाले समाजसेवी अशोक गौतम का कहना है, ‘अवैध खनन की वजह से यमुना की गहराई कृत्रिम तरीके से बदल जाती है जिसका असर उसके प्रवाह पर पड़ता है। जिस इलाके में अधिक खुदाई हो जाए वहां यमुना की धारा तेज हो जाता है, करंट उस तरफ भागता है और उस तरफ की जमीन का कटाव होना शुरू हो जाता है।’

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