बादल फटने की बढ़ती घटनाएँ खतरनाक संकेत


बादल का फटना भी एक भीषण आपदा है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता। क्योंकि इसके चलते गाँव-के-गाँव, कस्बे जमींदोज हो जाते हैं। सैकड़ों जिन्दगियाँ पल भर में कहाँ लोप हो जाती हैं, इसका पता ही नहीं चलता। कभी-कभी तो उनका कोई नामलेवा तक नहीं बचता जो उनकी मौत पर आँसू तक बहा सके। अंग्रेजी में बादल फटने को क्लाउडब्रस्ट कहते हैं। वातावरण में दबाव जब कम हो जाता है और एक छोटे से दायरे में अचानक भारी मात्रा में बारिश होती है, तब बादल फटने की घटना होती है। बाढ़, तूफान, भूकम्प, भूस्खलन, बिजली गिरने और सूखे की घटनाएँ हमारे देश में ही नहीं, समूची दुनिया में होती है। हाँ इन आपदाओं से प्रभावित लोगों की जिन्दगियों को बचाने और उन्हें हरसम्भव तत्काल सहायता पहुँचाने के लिये आपदा राहत के प्रबन्ध किये जाते हैं।

जाहिर है इन आपदाओं में जन-धन की भीषण हानि होती है जिसकी भरपाई असम्भव है। इनसे प्रभावित लोगों के लिये ये त्रासदियाँ जीवन भर के दुख का कारण बन जाती हैं। लेकिन इन आपदाओं से पीड़ितों को राहत पहुँचाने के लिये जिम्मेदार लोगों के लिये, वह चाहे नेता हो, नौकरशाह हो, ठेकेदार हो या फिर सरकारी कर्मचारी, यह अवसर एक पर्व के समान होते हैं क्योंकि ऐसे ही अवसरों के चलते उनकी तिजोरियाँ भरती चली जाती हैं।

यह सिलसिला तो अब खत्म होने से रहा क्योंकि यह इनके जीवन का हिस्सा बन चुका है। सरकारें कोई भी आएँ, इससे कुछ बदलाव नहीं होने वाला। मौजूदा सरकार भी दावे तो बहुत कुछ करती है लेकिन बीते इन दो सालों में ऐसा कुछ नहीं हुआ जो इनके दावों की पुष्टि करता हो।

बादल का फटना भी एक भीषण आपदा है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता। क्योंकि इसके चलते गाँव-के-गाँव, कस्बे जमींदोज हो जाते हैं। सैकड़ों जिन्दगियाँ पल भर में कहाँ लोप हो जाती हैं, इसका पता ही नहीं चलता। कभी-कभी तो उनका कोई नामलेवा तक नहीं बचता जो उनकी मौत पर आँसू तक बहा सके।

अंग्रेजी में बादल फटने को क्लाउडब्रस्ट कहते हैं। वातावरण में दबाव जब कम हो जाता है और एक छोटे से दायरे में अचानक भारी मात्रा में बारिश होती है, तब बादल फटने की घटना होती है।

आमतौर पर ऐसा तब होता है जब बादल आपस में या किसी पहाड़ी से टकराते हैं। तब अचानक भारी मात्रा में पानी बरसने लगता है। इसमें 100 मिलीमीटर प्रति घंटा या फिर उससे भी अधिक तेजी से बारिश होती है जिससे बाढ़ जैसे हालात हो जाते हैं। भारी नमी से लदी हवा जब-जब अपने रास्ते में पड़ने वाली पहाड़ियों से टकराती है, तब बादल फटने की घटना होती है।

यह प्रक्रिया ज्यादा ऊँचाई पर नहीं होती। 2500 से 4000 मीटर की ऊँचाई पर आमतौर पर बादल फटने की घटना होती है। बादल फटने के दौरान आमतौर पर बिजली चमकने, गरज और तेज आँधी के साथ भारी बारिश होती है। एक साथ भारी मात्रा में पानी गिरने से धरती उसे सोख नहीं पाती और बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है।

बादल फटने पर दो सेंटीमीटर से ज्यादा चन्द मिनटों में ही बारिश हो जाती है जिससे चारों तरफ भारी तबाही मच जाती है। बीच में यदि हवा बन्द हो जाये तो बारिश का समूचा पानी एक छोटे से इलाके में जमा होकर फैलने लगता है। उस स्थिति में वह अपने साथ रास्ते में मलबा आदि जो भी आता है, उसे बहा ले जाता है।

देश में बादल फटने की घटनाएँ अब आम होती जा रही हैं। बीते एक साल में देश में बादल फटने की प्रमुख रूप से चार घटनाएँ घटित हुई हैं। इनमें 8 अगस्त 2015 को हिमाचल प्रदेश के मंडी में, 11 मई 2016 को शिमला के पास सुन्नी में, उत्तराखण्ड में 29 मई 2016 को और बीती 30 जून को चमोली जिले के घाट, नन्दप्रयाग और दशोली ब्लाक में तथा पिथौरागढ़ जिले की डीडीहाट तहसील के दाफिला, कुमालगौनी और बस्तड़ी गाँव मिलाकर छह जगहों पर बादल फटने से तबाही मच गई।

इससे पहले 26 जुलाई 2005 को मुम्बई में बादल फटने की घटना हुई थी। कहते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं का पहाड़ों के साथ चोली-दामन का रिश्ता है। मध्य हिमालय का यह भूभाग दुनिया की नवविकसित पहाड़ी शृंखलाओं में गिना जाता है। ऐसे में भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएँ यहाँ आम हैं।

कोई साल ही ऐसा रहा हो जब इस पर्वतीय क्षेत्र में मानसून के मौसम में इस तरह के हादसे न हुए हों। पिछले दो महीनों में पहाड़ों पर कम-से-कम दर्जन भर बादल फटने की घटनाएँ हुई हैं। इनमें लगातार जन-धन की हानि हुई है। इस तरह की घटनाएँ अक्सर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड और जम्मू-कश्मीर में ही ज्यादा होती हैं।

30 जून की आधी रात उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ और चमोली जिले में बरपे कुदरत के इस कहर में 39 जिन्दगिया दफन हो गईं। गाँव मटियामेट हो गए। 18 से ज्यादा लोग लापता हैं। डेढ़ सौ से ज्यादा मवेशियों की मौत की खबर है। यहाँ गौशालाएँ पूरी तरह ध्वस्त हो गई हैं। 60 से ज्यादा मकान धराशाई हो गए हैं और 100 से 150 मकान खतरे की जद में हैं। वे कब गिर पड़ें, इसका अन्देशा बना हुआ है।

कुमालगौनी गाँव के 60 लोगों ने तो जैसे-तैसे ऊँचाई पर जंगल में जाकर अपनी जान बचाई। इस कहर में सबसे ज्यादा नुकसान पिथौरागढ़ की डीडीहाट तहसील के बस्तड़ी गाँव में हुआ। यहाँ के 26 लोग और चमोली के घाट, नन्दप्रयाग और दशोली ब्लॉक के गाँवों में 9 लोग मलबे में दब गए। फिर वे उठ नहीं सके।

इस घटना पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने दुख जताते हुए कहा कि इससे उत्तराखण्ड को हुए नुकसान से मैं व्यथित हूँ। उम्मीद है आपदा प्रभावित परिवारों को राहत पहुँचाने और घायलों के उपचार के लिये हरसम्भव कदम उठाए जा रहे होंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने इस आपदा में हुई मौतों पर दुख प्रकट किया है और पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा है कि प्रभावित लोगों के साथ हम चट्टान की तरह खड़े हैं।

इस आपदा की कमान राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खुद सम्भाली। देहरादून सचिवालय स्थित राज्य आपदा परिचालन केन्द्र इस बार तीन साल पहले आई आपदा के समय से ज्यादा मुस्तैद दिखा और वह लगातार प्रभावित क्षेत्रों से जानकारी हासिल करता रहा।

जिलाधिकारियों को पीड़ितों को तत्काल राहत पहुँचाने, घायलों को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने, लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने, उनके भोजन-पानी की समुचित व्यवस्था किये जाने और हर गाँव में आपदा सहायक तैनात करने के निर्देश दिये जा रहे थे लेकिन लगातार हुई बारिश और बादल फटने से पानी का उफान इतना तेज था कि वह कच्चे-पक्के रास्तों तक को अपने साथ बहा ले गया।

इससे राहतकर्मी आईटीबीपी, एसएसबी, 8 असम रेजिमेंट के जवान बमुश्किल 7 से 9 किलोमीटर की पहाड़ी दूरी पैदल चलकर एक जुलाई को सुबह साढ़े दस बजे और एसडीआरएफ के जवान देर शाम तक ही पहुँचने में सफल हो पाये। इससे राहत कार्य में कुछ देरी अवश्य हुई। लेकिन पिथौरागढ़ में शुरुआती राहत कार्य भारी बारिश और मलबा गिरने के बावजूद स्थानीय लोगों ने बखूबी अंजाम दिया।

इसकी जितनी प्रशंसा की जाये वह कम है जबकि जिला मुख्यालय से घटनास्थल बस्तड़ी गाँव की 52 किलोमीटर की दूरी तय करने में आपदा प्रबन्धन विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों को नौ घंटे लग गए। चमोली में तो एसडीआरएफ की टीमों को घटनास्थल तक पहुँचने में सड़कें बन्द होने से मंगरोली से आगे बढ़ने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

आज देश की 6.88 फीसदी आबादी पर प्राकृतिक आपदा का खतरा मँडरा रहा है। जलवायु परिवर्तन ने इसमें अहम भूमिका निभाई है। भले भारत का प्राकृतिक आपदा से प्रभावित 171 देशों की सूची में 78वाँ स्थान है। लेकिन हमें उससे सम्भावित खतरों से निपटने हेतु त्वरित प्रयास तो करने ही होंगे। सच है इन आपदाओं को रोका नहीं जा सकता लेकिन रोकथाम के प्रयासों से कम तो जरूर किया जा सकता है।

विडम्बना है अब कहीं जाकर पिछले महीने राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन योजना का श्रीगणेश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया है। इसके तहत आपदाओं से निपटने में वैश्विक मापदण्ड अपनाया जाएगा और राज्यों को इन मानकों के अनुसार सक्षम बनाया जाएगा। इनमें पूर्व चेतावनी, उपग्रह से मिले आँकड़ों का अध्ययन, जानकारी का प्रचार, जोखिम कम करने, आपदा सहने में सक्षम बनाने और तकनीकी स्तर पर क्षमताओं का विस्तार शामिल है। यह तो अभी शुरुआत है।

लगता है 2013 की उत्तराखण्ड त्रासदी से न तो केन्द्र और न ही राज्य सरकार ने कुछ सीखा है। उस समय राज्य के 650 गाँवों को आपदाग्रस्त घोषित किया था लेकिन अब तक सुरक्षा और विस्थापन की पुख्ता योजना न होने से इन गाँवों पर आपदा का लगातार कहर टूट रहा है। 51 गाँव तो मौत के मुहाने पर खड़े हैं।

सरकार उनके लिये कोई योजना धरातल पर उतारने में नाकाम रही है। नीतियों के नाम पर खानापूरी के सिवाय अभी तक नया कुछ नहीं हुआ है। मौसम की सटीक भविष्यवाणी की दरकार अभी भी बनी हुई है। सबसे बड़ी बात तो जागरुकता के प्रसार का अभाव है। ऐसे में आपदा से निपटने का सवाल बेमानी है।

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