बाढ़ और सूखे का इलाज

22 Jul 2019
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बाढ़ और सूखे का इलाज।
बाढ़ और सूखे का इलाज।

जिस तरह से हमारे पूरे शरीर के सभी अंगों तक रक्त की आपूर्ति करने के लिए धमनियाँ उत्तरदाई हैं, उसी तरह किसी देश के सभी हिस्सों तक पानी की सन्तुलित पहुँच के लिए नदियाँ जिम्मेदार होती हैं। अगर धमनियों में खून जम जाए या फिर रक्त प्रवाह की दर असामान्य हो जाए तो शरीर का व्यवहार बिगड़ जाता है। यही हाल देश की नदियों का है। इसमें पानी की निरन्तरता देश की पारिस्थितिकी और आर्थिक सन्तुलन बनाकर रखती है। नदियों की स्थिरता दोनों का ही नुकसान करती है। हमेशा पानी से भरी रहने वाली नदियों को देखकर अल्लामा इकबाल ने कभी लिखा था, गोदी में खेलती हैं जिसकी हजारों नदियाँ। लेकिन वर्तमान में इसे गोदी में खेलती थीं जिसकी हजारों नदियाँ ही कहा जा सकता है।

जलागमों को वनाच्छादित करने से पहले इनमें जल की व्यवस्था करनी होगी और इन्हें जलाच्छादित करने के लिए जल छिद्रों से बांटना होगा। जिससे बारिश के पानी को पहले चारण मे इसके माध्यम से संग्रहित किया जा सके। इस तरीके से कालांतर में स्वतः ही जलागम वनाच्छादित हो जाएगा।

आज देश की नदियाँ बीमार पड़ चुकी हैं। गर्मियों मे सूख जा रही हैं और बरसात में बाड़ की वाहक बन रही हैं। इसका बड़ा कारण नदियों के जलागम के बिगड़े हालात हैं। ये नदियों के जलग्रहण क्षेत्र हैं। इनकी पारिस्थितिकीय हालात बंजर हो चुकी है। जलागमों में वनों का कम होता रकबा नदियों के बिगड़ते हालात व व्यवहार का कारण है। वनाच्छादित जलागम प्राकृतिक बाँध की तरह होते हैं जो वर्षा के पानी को बाँधने का काम करते हैं। इनके अभाव में जलागम बारिश के पानी का संग्रह करने में असमर्थ हो जाते हैं। जो भी बारिश का पानी जलागम में पड़ता है वो तत्काल नदियों में चला जाता है और बाढ़ का रूप ले लेता है। साथ ही गर्मियों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। क्योंकि जलागम वनों के अभाव की स्थिति में पानी सोखने की स्थिति में नहीं रहते हैं। अमूमन यही स्थिति सभी बरसाती नदियों की है। वैसे भी दुनिया भर में हम तमाम बड़े जलागमों की 50 फीसद क्षमता खो चुके हैं। अगर हालात ऐसे ही रहे तो फिर सब कुछ खो देंगे। यह सब इसलिए भी होता है कि हमने अपने विकास के पैमानों में नदियों के प्रति समझ तैयार नहीं की। इसके विज्ञान को समझते तो सूखे और बाढ़ दोनों से एक साथ निपट सकते थे। जलागमों के हालात सिर्फ इसी बात से समझे जा सकते हैं कि वर्तमान में देश में मात्र 21 फीसद ही प्राकृतिक वन हैं जो कम-से-कम 40 से 50 फीसद होने चाहिए।

हमारे शास्त्रों में नदियों को माँ का दर्जा दिया गया है। यह सिर्फ बोलने के लिए नहीं था। हम इनका सम्मान मां की तरह करते रहे हैं, लेकिन अब हम माँ का सम्मान नहीं कर रहे हैं, तभी तो उनके प्रकोप को झेलने को अभिशप्त हैं। नए सिरे से नदियों के प्रति अपनी सोच को बढ़ाना होगा। नई सोच के साथ अपने आचार-विचार और व्यवहार में बदलाव लाना होगा। जलागमों को वनाच्छादित करने से पहले इनमें जल की व्यवस्था करनी होगी और इन्हें जलाच्छादित करने के लिए जल छिद्रों से बांटना होगा। जिससे बारिश के पानी को पहले चारण मे इसके माध्यम से संग्रहित किया जा सके। इस तरीके से कालांतर में स्वतः ही जलागम वनाच्छादित हो जाएगा।

गंगा में गाद

गंगा देश की सबसे बड़ी नदी है। इसके फैलाव के हिसाब से इसका बेसिन भी देश में सबसे बड़ा है। यह देश के कुल भूभाग का 26 फीसद हिस्सा घेरता है और देश की 43 फीसद आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस पर निर्भर है। लेकिन गाद की समस्या से गंगा भी त्रस्त है। भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत गठित एक कमेटी ने रिपोर्ट पेश की। इसमें उत्तराखण्ड के भीमगौड़ा से लेकर पश्चिम बंगाल के फरक्का बाँध तक गंगा को गाद मुक्त करने के दिशा-निर्देश दिए गए। इसके लिए उत्तराखण्ड से पश्चिम बंगाल तक गंगा नदी में अतिक्रमण और गाद जमा होने का अध्ययन किया गया। इस रिपोर्ट के मुताबिक गंगा में सलाना 41.3 करोड़ टन गाद जमा होती है। हिमालय से गंगा में मिलने वाली छोटी नदियाँ अपने साथ 90 फीसद गाद लेकर आती हैं। पश्चिम बंगाल में फरक्का बाँध के निर्माण के बाद से गंगा में गाद जमा होने की समस्या बढ़ गई। इससे बिहार में बाढ़ का स्तर बढ़ गया। फरक्का बाँध ने कोलकाता बन्दरगाह में गाद कम करने में कोई भूमिका नहीं निभाई बल्कि हिल्सा और चिगड़ी जैसी मछलियों की प्रजातियाँ यहाँ कम हो गई। इससे क्षेत्र का पर्यावरणीय सन्तुलन भी बिगड़ रहा है।

 

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