बाढ़ की राजनीति की शुरुआत

कैप्टन हॉल जितना तटबंधों की भूमिका के प्रति स्पष्ट थे उतनी ही स्पष्टता उन्हें नेपाल से मिलने वाले सहयोग के प्रति भी थी जिसका खुलासा उन्होंने पटना सम्मेलन में किया था। तब हालत यह थी कि बाढ़ नियंत्रण के लिए नदी के किनारे तटबंध कैप्टन हॉल नहीं बनने देंगे और नदी पर हाई डैम बनाने के लिए नेपाल कोई ‘तकलीफ नहीं उठायेगा।’ फिर भी यह बात अपने आप में कम महत्वपूर्ण नहीं है कि एक ओर कैप्टन हॉल, ब्रैडशॉ स्मिथ और पीटर सालबर्ग जैसे घोर तटबंध विरोधी इंजीनियर हों।

सबसे मजे की बात यह है कि जहां कैप्टन हॉल इतनी शिद्दत के साथ तटबंधों की मदद से नदियों को नियंत्रित करने के खि़लाफ लगे हुये थे, उसी समय 1937-38 में, उन्हीं के चीफ इंजीनियर बने रहते हुये तिरहुत वाटरवेज डिवीजन ने कोसी की उन सभी नई-पुरानी धारों का सर्वेक्षण किया जो कि नेपाल सीमा से भारत में प्रवेश करती थीं। उस समय श्रीकृष्ण सिंह बिहार के प्रधानमंत्री थे जिनकी लोक-हितकारी सरकार के कार्यकाल में यह सर्वेक्षण यह तय करने के लिए किया गया था कि कोसी पर समुचित तरीके से तटबंध बनाये जा सकते हैं या नहीं? इसी अध्ययन में संभवतः यह बात आई कि दस करोड़ रुपयों की लागत से कोसी पर तटबंध बना कर उसे नियंत्रित किया जाये जिसकी व्यर्थता की ओर कैप्टन हॉल ने पटना सम्मेलन में इशारा किया था।

कैप्टन हॉल के रहते शायद यह मुमकिन नहीं था कि श्रीकृष्ण सिंह की सरकार तटबंधों के प्रस्ताव को आगे बढ़ा पाती। इस अध्ययन के बाद कुछ विशेषज्ञों की एक टीम ने कोसी-क्षेत्र के भ्रमण किया था जिसमें जीमूत बहान सेन भी शामिल थे। इसी भ्रमण के बाद नेपाल में बराहक्षेत्र में कोसी पर एक बांध का प्रस्ताव किया था जिसकी थोड़ी सी आहट पटना बाढ़ सम्मेलन में सुनने को मिली थी। मगर क्योंकि यह स्थान नेपाल में पड़ता था इसलिए ब्रिटिश हुकूमत के हाथ बंधे हुये थे और उस समय नेपाल में बांध की बात आई गई हो गई। वैसे भी कैप्टन हॉल जितना तटबंधों की भूमिका के प्रति स्पष्ट थे उतनी ही स्पष्टता उन्हें नेपाल से मिलने वाले सहयोग के प्रति भी थी जिसका खुलासा उन्होंने पटना सम्मेलन में किया था। तब हालत यह थी कि बाढ़ नियंत्रण के लिए नदी के किनारे तटबंध कैप्टन हॉल नहीं बनने देंगे और नदी पर हाई डैम बनाने के लिए नेपाल कोई ‘तकलीफ नहीं उठायेगा।’

फिर भी यह बात अपने आप में कम महत्वपूर्ण नहीं है कि एक ओर कैप्टन हॉल, ब्रैडशॉ स्मिथ और पीटर सालबर्ग जैसे घोर तटबंध विरोधी इंजीनियर हों, जिनको अधिकांश राजनीतिज्ञों और समाजकर्मियों का समर्थन प्राप्त था, तो दूसरी ओर सरकार ऐसा अध्ययन करवा लेने में कामयाब हो जाये जिसमें कोसी के किनारे तटबंधों का प्रस्ताव किया जाये। बाढ़ नियंत्रण को लेकर सरकार की करनी और कथनी में यहीं से फर्क आना शुरू हुआ और बाढ़ को लेकर राजनीति की बुनियाद भी शायद यहीं पड़ी।

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