बाढ़ क्षेत्र का दायरा निश्चित किया जाना चाहिए

10 May 2019
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भारत में हर साल लगभग 400 हेक्टेयर मीटर बारिश होती है। जिसकी 75 फीसदी बारिश बरसात के मौसम में होती है। सामान्य बारिश होने पर भी देश में कई जगहों पर बाढ़ आ ही जाती है। बाढ़ अपने साथ तबाही लाती है जिसमें घर, जंगल, जन, धन और फसलों को नुकसान पहुंचता है। बाढ़ के बाद कुछ दिनों तक बाढ़ क्षेत्र का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। भारत की 40 मिलियन हेक्टेयर भूमि बाढ़ की चपेट में आ चुकी है। जिसमें लगभग मिलियन हेक्टेयर भूमि पर तो हर साल बाढ़ आती है। पिछले चार दशक में बाढ़ की वजह से 9,720 मिलियन रुपये का नुकसान हुआ है। 

बाढ़ क्या है?

बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो अत्यधिक वर्षा होने से नदियों की क्षमता में सामान्य से अधिक अपवाह होने के कारण उत्पन्न होती है। इससे नदियां अपने किनारों को छोड़कर बाहर आकर मैदानी भागों में बहने लगती हैं। बाढ़ कुछ घण्टों से लेकर कुछ दिनों तक रह सकती है, लेकिन इससे जन, धन और फसलों को बहुत अधिक हानि हो सकती है।

बाढ़ आना प्राकृतिक आपदा है लेकिन जब मनुष्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते हैं, जीवनदायिनी नदियों को ही अपने स्वार्थ के कारण खत्म करने लगते हैं। तो बाढ़ जैसी आपदा हमारे घरों तक आ जाती है। हम नदियों के क्षेत्र में अवैध करने लग जाते हैं, अपने घर बना लेते हैं और उसी को प्रदूषित करने लगते हैं। ये हमारी बेवकूफी है कि हम अपने स्वार्थ के चक्कर में नदियों को बदस्तूर खराब करते जा रहे हैं। ये तो नदियों के क्षेत्र पर अतिक्रमण की घटना है, जो पूरे देश में बेरोकटोक चल रही है।

अब सवाल ये है कि जिस तरह नदी के क्षेत्र को निश्चित किया गया है, उसी तरह बाढ़ का क्षेत्र निश्चित क्यों नहीं है? क्योंकि अगर ये माना जाए कि जहां तक बाढ़ अब तक आई है वो बाढ़ का क्षेत्र है फिर तो इसमें एक बड़ा विरोधाभास है। देश के कई राज्य हर साल बाढ़ की चपेट में आते हैं। हाल ही का उदाहरण केरल है और बिहार के भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जो कोसी नदी के कारण डूब जाते हैं। ऐसे तो ये बाढ़ वाले राज्य और ये शहर भी बाढ़ क्षेत्र के अंतर्गत आ रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण यहां लागू होता भी नहीं है और होना भी नहीं चाहिए। लेकिन बाढ़ क्षेत्र का कोई पैमाना तो निश्चित होना ही चाहिए।

 बाढ़ क्षेत्र क्या है?

नदी का एक और क्षेत्र है जो बाढ़ के कारण बनता है, उसे बाढ़ क्षेत्र कहते हैं। वैसे तो बाढ़ क्षेत्र की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है लेकिन सामान्य शब्दो में बाढ़ क्षेत्र के बारे में बताया गया है। बाढ़ क्षेत्र या डूब क्षेत्र नदी के किनारे समतल मैदान को कहते हैं जो बारिश के दौरान पानी से भर जाता है। बारिश दिनों में जब नदी का जल स्तर बढ़ता है और उसका पानी जहां-जहां तक जाता है वो क्षेत्र बाढ़ क्षेत्र कहलाने लगता है। 

ये बाढ क्षेत्र बारिश दिनों में आम होता है लेकिन कई बार बाढ़ अपने नियमित स्तर से आगे चली जाती है। बाढ़ छोटी, बड़ी और कई बार बहुत विशाल हो सकती है। बाढ़ क्षेत्र अक्सर खेती के लिए अच्छी भूमि होते हैं क्योंकि उन्हें बाढ़ के पानी से चलने वाली तलछट मिलती है जो मिट्टी को उपजाउ बना देती है। वास्तव में, बाढ़ के मैदान बाढ़ द्वारा छोड़ी गई मिट्टी से निर्मित भूमि होती है।

इस बाढ़ क्षेत्र पर लोग इमारतें बनाते जा रहे हैं जो पर्यावण के लिए खराब भी हैं और लोगों के लिए खतरा भी। इन क्षेत्रों में इमारत बनाने से सबसे पहले खतरा उनको ही होता है क्योंकि जब बाढ़ आयेगी तो वो अपने नियमित क्षेत्र तक जरूर आयेगी। तब वो उन लोगों को ही सबसे पहले नुकसान पहुंचायेगी जो बाढ़ क्षेत्र में अपने घर बनाये हुए हैं। ये तो उन बाढ़ क्षेत्रों की बात है जो नियमित हैं जहां हर साल बारिश के दौरान जल स्तर बढ़ जाता है। लेकिन कुछ क्षेत्रों में कभी-कभी जलस्तर बढ़कर आगे चला जाता है और फिर उसे बाढ़ क्षेत्र कहा जाने लगता है। जिस पर फिर कई सालों तक बाढ़ का पानी नहीं पहुंच जाता है, ऐसे में लोग उन पर निर्माण कार्य शुरू कर देते हैं।

हाल ही में कई मामले ऐसे आये हैं जिसमें डूब क्षेत्र में हो रहे निर्माण पर रोक लगा दी गई है। हाल ही में बिहार के किशनगंज में गंगा की सहायक नदी महानंदा के डूब क्षेत्र में प्रस्तावित अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने रोक लगा दी है। एनजीटी ने कहा है कि पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के तहत ये निर्माण अवैध है। एनजीटी ने ये फैसला 13 जुलाई, 2017 को सुनाते हुए कहा था कि न सिर्फ डूब क्षेत्र का संरक्षण होना चाहिए बल्कि बाढ़ क्षेत्र का सीमांकन भी होना चाहिए।

बाढ़ क्षेत्र का पैमाना

अब सवाल ये है कि जिस तरह नदी के क्षेत्र को निश्चित किया गया है, उसी तरह बाढ़ का क्षेत्र निश्चित क्यों नहीं है? क्योंकि अगर ये माना जाए कि जहां तक बाढ़ अब तक आई है वो बाढ़ का क्षेत्र है फिर तो इसमें एक बड़ा विरोधाभास है। देश के कई राज्य हर साल बाढ़ की चपेट में आते हैं। हाल ही का उदाहरण केरल है और बिहार के भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जो कोसी नदी के कारण डूब जाते हैं। ऐसे तो ये बाढ़ वाले राज्य और ये शहर भी बाढ़ क्षेत्र के अंतर्गत आ रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण यहां लागू होता भी नहीं है और होना भी नहीं चाहिए। लेकिन बाढ़ क्षेत्र का कोई पैमाना तो निश्चित होना ही चाहिए।

2018 में केरल में आई बाढ़ 1924 की बाढ़ के मुकाबले 30 प्रतिशत भी नहीं है, तब केरल में भयंकर तबाही हुई थी। उसके बाद लोगों ने बाढ़ के मैदान पर अनियोजित निर्माण किया और अब जब फिर से खूब बारिश हुई तो नदियों ने अपने किनारे तोड़ दिये और पूरा राज्य पानी में तैरता हुआ दिखाई देने लगा। विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र के जल कार्यक्रम के वरिष्ठ निदेशक सुरेश कुमार रोहिला बताते हैं कि पूरी तरह ये बात सच नहीं है बाढ़ क्षेत्र पर निर्माण नहीं किया जा सकता। कानून की मंजूरी के साथ डूब क्षेत्र पर निर्माण किया जा सकता है। क्योंकि डूब क्षेत्र हमारे देश में निश्चित नहीं है। नीदरलैंड ने अपने देश के बाढ़ क्षेत्र के मैदान को सुनिश्चित करने के लिए पिछले 200 वर्षों की बाढ़ क्षेत्र का अध्ययन करके एक माॅडल बनाया। उस माॅडल के आधार पर नीदरलैंड में निर्माण हुआ लेकिन वो माॅडल 24 साल ही चल पाया। फ्रांस, जर्मनी और यूके जैसे बड़े देशों ने नदियों के बाढ़ क्षेत्र को खाली करवा दिया है और वहां निर्माण करना अवैध है। इसके बाद भी सवाल उठता है कि बाढ़ क्षेत्र का दायरा क्या है?

बारिश के दौरान जब नदी अपने नियमित मैदान में आती है तो क्या वो बाढ़ क्षेत्र है या फिर जब नदी अपने नियमित मैदान से आगे निकल जाये तो वो भी बाढ़ क्षेत्र में आ जाता है। नदी के क्षेत्र में निर्माण करना अतिक्रमण कहलाता है, उसी प्रकार बाढ़ के क्षेत्र में निर्माण करना अवैध है। इसके बावजूद बाढ़ क्षेत्र के दायरे को बना लेना चाहिए अगर उससे आगे बाढ़ आती है तो वो बाढ़ क्षेत्र नहीं, आपदा हो जाती है और ऐसा कई दशकों में होता है। 2018 में केरल में आई बाढ़ ने बहुत तबाही मचाई, इससे पहले केरल में ऐसी ही बाढ़ 1924 में आई थी यानी 94 साल के बाद। संभावना और इतिहास के कुछ आंकड़ों के आधार पर देखें तो बाढ़ क्षेत्र को बचाने के लिए बाढ़ क्षेत्र का निश्चित पैमाना होना ही चाहिए।

बाढ़ क्षेत्र का बचाव

भारत में बाढ़ क्षेत्र के लिए एक स्पष्ट परिभाषा का अभाव है। भारत में बढ़ते शहरीकरण के कारा डूब क्षेत्र पर अतिक्रमण बहुत तेजी से हो रहा है। 1975 में  केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने राज्यों को इस विषय पर एक मॉडल विधेयक प्रसारित किया था। जिसमें तबाढ़ के मैदानों पर हो रहे निर्माणों को रोकने के लिए कानून बनाना था लेकिन राज्य सरकारों ने इसको नजरअंदाज किया। बार-बार बाढ़ आती है और जल निकासी न मिलने पर शहर उजड़ जाते हैं। फिर भी रिवर रेगुलेशन जोन के मसौदे, 2002 को लागू करने में विफल रहा है। यह मसौदा नदी के बाढ़ क्षेत्र को जोन में विभाजित करने पर विचार करता है। जिसके बाढ़ क्षेत्र मैदान को ‘नो-डेवलपमेंट जोन’ कहा जाता।

जिन बाढ़ क्षेत्रों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया है ऐसे क्षेत्र नदियों के लिए लाभकारी माने जाते हैं। रिवर रेगुलेशन जोन कहता है कि सक्रिय बाढ़ मैदानों को अतिक्रमण से बचाना है क्योंकि ऐसे ही क्षेत्रों में बाढ़ अपने उच्च स्तर को पाती है। सक्रिय बाढ़ क्षेत्रों की पहचान पिछले 100 साल के बाढ़ क्षेत्र से की जाएगी। अब इस घोटालेबाजी से बचने के लिए बाढ़ क्षेत्र पर कानून बनना बेहद जरूरी है। जिससे पता चल सके कि कौन-सा मैदान डूब क्षेत्र में आता है और किस मैदान पर निर्माण किया जा सकता है। अतिक्रमण नदी के मैदान पर भी किया जा रहा है और डूब क्षेत्र में होने की संभावना है लेकिन कानून होगा तो उस पर नकेल कसी जा सकेगी।

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