बाढ़ रोकने के लिए सप्तकोसी पर ऊंचा बांध बांधना जरूरी : विशेषज्ञों की राय

4 Sep 2008
0 mins read
कोसी बैराज
कोसी बैराज

नई दिल्ली / बिहार के कोसी क्षेत्र में आई भयानक बाढ़ से उपजी जल प्रलय की स्थिति के बीच बाढ़ विषेशज्ञों ने सप्तकोसी बहुउद्देशीय परियोजना को अमली जामा पहनाए जाने और कोसी नदी पर बने बांध के रखरखाव के लिए अमेरिकी प्रौद्योगिकी के उपयोग से साल दर साल आने वाली बाढ़ पर नियंत्रण किए जाने की बात की है। बाढ़ विशेषज्ञ नीलेंदू सान्याल और दिनेश चंद्र मिश्र ने कहा कि भारत और नेपाल के बीच सप्तकोसी बहुउद्देशीय परियोजना के तहत अभी तक अधिक ऊंचाई का बांध नहीं बनने व अमेरिकी बांध प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं किए जाने के कारण आज हमें महाजल प्रलय की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।

बाढ़ विशेषज्ञ दिनेश चंद्र मिश्र ने बताया कि भारत और नेपाल के बीच 2004 में सप्तकोसी बहुउद्देशीय परियोजना के तहत चार सदस्यीय भारतीय दल का गठन कर इस परियोजना की व्यवहार्यता रपट तैयार की गई। इसमें सप्तकोसी पर ऊंचे बांध के निर्माण की बात कही गई थी जिसकी ऊंचाई तजाकिस्तान में बख्श नदी पर विश्व के सबसे ऊंचे रोंगन बांध के बराबर 335 मीटर निर्धारित की गई थी।

उन्होंने बताया कि इसके अलावा कोसी की सात सहायक नदियों में शामिल सुनकोसी नदी पर बांध बनाया जाना था और नेपाल के ओखलाधुंगा क्षेत्र में सुनकोसी से नहर निकाल कर उसे मध्य नेपाल से कमला नदी से जोड़ा जाना था। यह कवायद अभी तक पूरी नहीं की जा सकी है।मिश्र ने बताया कि बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ से निजात पाने का रास्ता कोसी नदी पर ऊंचा बांध बनाना है। सप्तकोसी नेपाल की सबसे बड़ी नदी है जिससे सूखे मौसम मे औसतन एक लाख पचास हजार क्यूसेक जल प्रवाह होता है। मानसून के दौरान यह बढ़कर चार लाख क्यूसेक हो जाता है।

उन्होंने कहा कि सप्तकोसी बहुउद्देशीय परियोजना के पूरा होने से भारत और नेपाल दोनों को फायदा है। इसके कारण न केवल 5500 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकेगी बल्कि भारत और नेपाल में तीन लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में सिंचाई कार्य भी हो सकेगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ पर नियंत्रण किया जा सकेगा।बाढ़ विशेषज्ञ नीलेंदू सान्याल ने कहा कि कोसी बराज या भीमसागर बराज का निर्माण 1959 और 1963 में हुआ था जिसके रखरखाव की स्थिति काफी खराब है। मरम्मत के लिए अभी भी वर्षों पुराने तरीके का उपयोग किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि पूरे बांध का वीडियो फुटेज तैयार कर इसके रखरखाव के लिए अमेरिकी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए। इसके तहत धातु ट्राई पैड पालीमर से बने ब्लाडर और बालू के उपयोग से बांध के मरम्मत का कार्य किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि अमेरिका में इस प्रौद्योगिकी का विकास सेना के लिए किया गया था। बांधों के रखरखाव में यह काफी कारगर साबित हुई थी।

इस बीच बांध मरम्मत से जुड़े इंजीनियरों के अनुसार बांध को मजबूती प्रदान करने के लिए पत्थरों और बोरियों में भरे मिट्टी और बालू को लोहे के तार की जाली लगाई जाती है। नेपाल में कोसी नदी पर बांध पर ऐसे लोहे की तार की जालियों को स्थानीय लोगों को काट कर कबाड़ के रूप में बेच दिया गया है। बांध पर लगाई गई जालियों को काटे जाने से बांध कमजोर हो गया और जल प्रवाह के दवाब में टूट गया।

कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि कोसी पर बांध बनाने से बांग्लादेश को भी आपत्ति हो सकती है क्योंकि 1996 में बांग्लादेश और भारत के बीच हुए फरक्का समझौते में ऐसी किसी भी स्थिति से बचने की बात कही गई है जिससे गंगा का जल प्रवाह प्रभावित होता हो। कोसी बाद में गंगा से जाकर मिलती है। इस पर बांध बनने से गंगा का जल प्रवाह प्रभावित होगा।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading