बागमती की बदलती धाराएं

जेम्स रेनेल के सर्वे (1779) के समय की बागमती


1969 के पहले तक बागमती नदी लहसुनियाँ, बेलवा, कनुआनी, मकसूदपुर, बेरुआ और सुरमार हाट होकर बहा करती थी। लेकिन 1969 की बाढ़ में लहसुनियाँ के पास नदी का मुँह बन्द होने लगा और अब नदी दोस्तिया, पकड़ी, धनकौल, कन्सार, कटरा, हसनपुर और सुरमार हाट होकर पूरी तरह बहने लगी। 1974 में इस नदी घाटी में भीषण बाढ़ आई थी और इसका पूरा इलाका प्रायः तीन सप्ताह तक पानी में डूबा रहा। बाढ़ के पानी के उतरने के बाद पता लगा कि लहसुनियाँ गाँव के पास से बागमती की एक धारा फूट पड़ी है जो कि थोड़ा नीचे जाकर बागमती से कनुआनी में मिल जाती थी।

भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना के बाद कम्पनी ने यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर नज़र रखते हुए उनका सर्वेक्षण करवाया। नदी, पहाड़ और जंगलों पर उनकी आँख खासतौर पर गड़ी थी। उत्तर भारत की इस प्राकृतिक संपदा के निर्धारण के लिए ब्रिटिश सेना के एक मेजर, जेम्स रेनेल की नियुक्ति हुई। रेनेल ने बागमती का जो नक्शा तैयार किया (चित्र-1.4) उसके अनुसार छोटी और बड़ी बागमती नाम की दो धाराएं नेपाल से भारत में प्रवेश करती थीं। बड़ी बागमती मुजफ्फरपुर जिले (वर्तमान सीतामढ़ी) के डुमरी गाँव में प्रवेश करती थी और मनियारी और अखता गाँवों से होती हुई खोरीपाकर गाँव तक आती थी जहाँ इसके दाहिने किनारे पर लालबकेया नदी मिलती थी। यहाँ से आगे चल कर यह नदी पूर्वी चम्पारण के मेहसी से 16 किलोमीटर उत्तर-पूर्व पिपराखास में बूढ़ी गंडक से मिल जाया करती थी। यहाँ से यह नदी वर्तमान बकुआ नाले के मार्ग से दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्की होते हुए आगे बढ़ती थी। इसी प्रवाह में बंघरस नाम के गाँव के पास इसके बायें किनारे पर छोटी बागमती मिलती थी। अब यह संयुक्त धारा मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी मार्ग को नरमा के पास 19 किलोमीटर की दूरी पर और जारंग के पास 34 किलोमीटर पर मुजफ्फरपुर-दरभंगा मार्ग को पार करते हुए रोसड़ा आ जाती थी। रोसड़ा में बूढ़ी गंडक एक बार फिर आ कर इसमें मिल जाती थी और यह संयुक्त धारा गोगरी के पास गंगा में मिल जाती थी। रोसड़ा के नीचे तब बागमती की धारा वही थी जो आजकल बूढ़ी गंडक का मार्ग है। यह दिलचस्प बात है कि आज जो बूढ़ी गंडक नदी है वह सन् 1770 के दशक में बागमती की एक मामूली सी धारा मात्र थी जो कि इस नदी से नरहर पकड़ी गाँव के पास अलग होती थी और फिर रोसड़ा के पास उससे पुनः जुड़ जाती थी। उन दिनों सिकरहना (ऊपरी क्षेत्रों में बूढ़ी गंडक को इसी नाम से जाना जाता है) के पानी का कुछ भाग निश्चित रूप से बागमती की इस धारा से होकर बहता रहा होगा। ऐसा विश्वास किया जाता है कि 1770 से पहले रोसड़ा के नीचे जो बागमती की धारा थी वह हसनपुर-बागमती के नाम से जानी जाती थी और बदलाघाट से होकर गुजरती थी।

उधर रेनेल द्वारा चिह्नित छोटी बागमती नेपाल से सीधे दक्षिण दिशा में बहते हुए परसौनी, बेलसंड और ओलीपुर गाँवों से होते हुए तुर्की से लगभग 8 किलोमीटर पूरब टेंगराहा गाँव के पास बड़ी बागमती से मिल जाती थी। बागमती की इस धारा को नदी की पुरानी धार कहते हैं जिसमें अब केवल बरसात में ही पानी आता है। यह धार अब लखनदेई नदी से मिलती है। कालान्तर में यह बड़ी बागमती नदी पूरब की ओर मुड़ गई और यह धारा सुगिया, हिरमा और चैथनी गाँवों से होकर बहने लगी। नदी की धारा के इस परिवर्तन का समय ज्ञात नहीं है।

सन् 1810 में तुर्की के इर्द-गिर्द बागमती नदी के दाहिने किनारे पर कांटी के नील कारखाने के मैनेजर ने 26 मील (42 किलोमीटर) लम्बा एक तटबन्ध बनवाया था ताकि बागमती और छोटी गंडक 9 (बूढ़ी गंडक) के बीच के दोआब की 90.25 वर्ग मील (231 वर्ग किलोमीटर) जमीन पर लगी नील की खेती और फैक्टरी की बागमती की बाढ़ से रक्षा हो सके। यह तटबन्ध उत्तर में चम्पारण जिले के मधुबन से लेकर दक्षिण में भुतही गाँव तक फैला हुआ था। स्थानीय लोग इसे तुर्की बांध या राजाबांध कहते थे। 1875 में बंगाल एम्बैन्कमेन्ट ऐक्ट के तहत सरकार ने इस तटबन्ध के रख-रखाव का अधिग्रहण कर लिया और उसे गंडक डिवीजन के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर के अधीन कर दिया। नील कम्पनी इस तटबन्ध का रख-रखाव ठीक-ठाक ढंग से ही कर रही थी क्योंकि 1810 से 1870 के बीच यह तटबन्ध मात्र दो बार ही टूटा था।

विलियम हन्टर के समय की बागमती (1877)


हन्टर के अनुसार यह नदी नेपाल से भारतीय सीमा में सीतामढ़ी सब-डिवीजन के मनियारी घाट गाँव के पास प्रवेश करती थी। अपने दाहिने किनारे पर अदौरी के पास लालबकेया के साथ संगम करने के बाद यह नदी तिरहुत और चम्पारण की सीमा बनाते हुए नरमा तक जाती थी (चित्र-1.5)। उसके बाद वह दक्षिण-पूर्व दिशा में बूढ़ी गंडक के समानान्तर बहते हुए रोसड़ा में ही बूढ़ी गंडक से संगम कर लेती थी। हन्टर के अनुसार ऊपरी क्षेत्र में इस नदी का प्रवाह बहुत तेज था और वह 7 मील प्रति घंटा (लगभग 11 किलोमीटर प्रति घंटा) तक हो जाया करता था। नदी में भयानक मोड़ थे जिनकी वजह से नदी में नाव चलाना बहुत मुश्किल होता था। हन्टर द्वारा दिये गए नक्शे में बागमती की पुरानी धार को दिखाया नहीं गया है मगर वह बागमती की पुरानी धार के अस्तित्व की तरफ इशारा जरूर करते हैं जो कि भारतीय भाग में मलै से शुरू होकर कालिया घाट के 3.5 मील (5.6 किलोमीटर) उत्तर-पश्चिम में बिलन्दपुर घाट के पास बागमती नदी की वर्तमान धारा में मिल जाती थी। ऐसा लगता है कि हन्टर ने मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी मार्ग पर स्थित कोड़लहिया घाट को कालिया घाट का नाम दिया जो कि अंग्रेजी के उच्चारण दोष के कारण हुआ होगा। दाईं छपरा, बेलसण्ड और भगवानपुर की नील की फैक्टरियाँ इसी पुरानी धार के पूर्वी तट पर अवस्थित थीं और नदी के पानी का नील के उत्पादन में इस्तेमाल करती थीं। तुर्की के इर्द-गिर्द कांटी नील फैक्टरी के मैनेजर द्वारा बनाये गए तटबन्ध के बारे में भले ही यह कहा गया था कि यह बागमती और बूढ़ी गंडक के दोआब की 256 वर्ग किलोमीटर भूमि की बाढ़ से रक्षा करता था और वह 60 साल के अपने वजूद में सिर्फ दो बार टूटा था मगर हन्टर के अनुसार उसके ऊपर से अक्सर नदी का पानी छलक कर बागमती-बूढ़ी गंडक दोआब वाले हिस्से को तबाह किया करता था। सरकार द्वारा तुर्की तटबन्धों के अधिग्रहण की यही वजह रही होगी।

हन्टर के समय लखनदेई भारतीय सीमा में तिरहुत के इटहरा गाँव में प्रवेश करती थी। नीचे चल कर उसमें कई स्थानीय नाले मिल कर उसे नदी की मान्यता दिलवाते थे। अब इस नदी की चैड़ाई सतह पर लगभग 40 गज (लगभग 13 मीटर) और पेंदी में 20 गज (6.5 मीटर) थी और उसकी गहराई 15 फीट (5 मीटर) के आस-पास थी। दक्षिण की ओर पटनियाँ और सीतामढ़ी से हो कर बहने वाली यह नदी दरभंगा-मुजफ्फरपुर मार्ग से कोई 7 या 8 मील (लगभग 11 या 13 किलोमीटर) दक्षिण में बागमती से बेलौर गाँव के पास जाकर मिलती थी। इस नदी का पानी बरसात में जिस तेजी के साथ चढ़ता था, उतनी ही चुस्ती से उतर भी जाता था और इसलिए नौ-परिवहन के लिए इसे उपयुक्त नहीं माना जाता था यद्यपि इससे मौसम और स्थान के मुताबिक 100 से 500 मन के बोझ वाली नावें चलाई जा सकती थीं। राजा पट्टी, डुमरा, बेलाही, शेरपुर और राजखंड की नील की फैक्टरियाँ लखनदेई के किनारे स्थित थीं। लखनदेई से संगम के बाद नदी अपने पुराने मार्ग से रोसड़ा तक जाती थी जहाँ उसका संगम बूढ़ी गंडक से होता था और यह गोगरी के पास गंगा नदी में समाहित हो जाती थी।

चित्र-1.4: जेम्स रेनेल के समय की बागमती की धारा (1780)चित्र-1.4: जेम्स रेनेल के समय की बागमती की धारा (1780)बागमती नदी के साथ समस्या यह है कि बरसात के समय उसके पानी में बड़ी मात्रा में गाद आती है जो नदी की धारा के इर्द-गिर्द जमा होने लगती है। मिट्टी का यह जमाव पानी के बहाव के रास्ते को घटाता है और नदी वह मार्ग खोजना शुरू करती है जिसमें उसे रुकावट का कम से कम सामना करना पड़े। इस रुकावट के कुछ कारण तो प्राकृतिक होते हैं मगर सड़कों, तटबन्धों और नहरों आदि के बेतरतीब निर्माण से भी नदी का स्वाभाविक प्रवाह बाधित होता है। परिस्थितियाँ अनुकूल होते ही नदी अपनी धारा बदल लेती है। कभी-कभी यह बदलाव संपूर्ण होता है यानी नदी पुरानी धारा को पूरी तरह छोड़ कर नई धारा में बहने लगती है या फिर नई धारा बन तो जाती है मगर पानी की मात्रा नई और पुरानी धारा में बंट जाती है। नदियाँ इसी तरह अपना स्वरूप और प्रवाह मार्ग बदलती रहती हैं। मधुबनी-दरभंगा जिलों में दरभंगा-बागमती, अधवारा समूह, धौंस और लखनदेई जैसी नदियाँ कभी न कभी बागमती की ही धाराएँ रही होंगी यद्यपि इस परिवर्तन का काल निर्धारण अभी तक संभव नहीं हो सका है।

बागमती का 1905.15 के बीच का धारा-मार्ग


बागमती पर कांटी नील फैक्टरी के निलहे गोरों द्वारा तुर्की तटबन्ध के निर्माण से बागमती के पानी के साथ आने वाली गाद का दक्षिण की ओर जाना रुक गया। यही वजह थी कि मिट्टी के जमाव की वजह से बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में बागमती ने लालगढ़ के उत्तर में एक नई धारा फोड़ ली थी। यह धारा ताजपुर के उत्तर से हो कर बहती थी (चित्र-1.6)। इस धारा के उत्तर की ओर खिसकने के कारण कोला नदी से बागमती का संगम भी उत्तर की ओर खिसक गया। कुछ ऐसा ही इस नई बागमती और लखनदेई के साथ भी गायघाट के दक्षिण-पूर्व में हुआ और वहाँ भी यह संगम स्थल उत्तर की ओर खिसक गया। अब तुर्की, मीनापुर, नरमा होकर आने वाली बागमती की छाड़न धारा, नई बागमती और लखनदेई एकाकार होकर दरभंगा जिले में प्रवेश करने लगीं। बागमती की इस धारा का मानचित्र मुजफ्फरपुर के 1907 वाले गजैटियर में उपलब्ध है।

बागमती का 1915-1929 के बीच का धारा-मार्ग


चित्र-1.5: विलियम हण्टर द्वारा बतायी गयी बागमती की धारा (1877)चित्र-1.5: विलियम हण्टर द्वारा बतायी गयी बागमती की धारा (1877)1905 से 1915 के दस वर्षों के बीच बागमती की धारा कभी स्थिर नहीं रह पायी और वह वर्तमान मुजफ्फरपुर- सीतामढ़ी मार्ग में 9 से 16 किलोमीटर के बीच घूमती रही मगर इस रास्ते से उसका प्रवाह क्रमशः घटता गया। इसके साथ उत्तर में यह नदी हिरम्मा घाट के उत्तर-पश्चिम में नई-नई धाराएं फोड़ने लगी थी। धीरे-धीरे यह प्रवाह खनुआं घाट की ओर मुड़ने लगा और 1915 आते-आते बागमती खनुआं धार (इसे पहले सिपरी धार या सियारी धार भी कहा जाता था) से होकर बहने लगी। देखते-देखते इस धार की चैड़ाई 270 फुट से बढ़ कर 690 फुट तक बढ़ गयी। यह धार आजकल प्रायः सूखी हुई है और कोड़लहिया गाँव में मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी मार्ग को 19 किलोमीटर पर पार करती है (चित्र-1.7)

1956-57 के बीच बिहार में अच्छा खासा सूखा पड़ा था जिसमें राज्य सरकार की तरफ से इस धार की उड़ाही (खोद कर उसकी क्षमता बढ़ाना) करने की कोशिश की गयी थी। सरकार को उम्मीद थी कि ऐसा करने से सिंचाई की अतिरिक्त व्यवस्था की जा सकेगी। इस खुदाई के क्रम में ही इस धार का नाम खनुआं धार हो गया।

बागमती का प्रवाह (1929 से 1938)


चित्र-1.6: ओ’ मैली द्वारा तैयार किया गया बागमती का प्रवाह पथ (1907)चित्र-1.6: ओ’ मैली द्वारा तैयार किया गया बागमती का प्रवाह पथ (1907)1929 से 1938 के बीच बागमती की धारा में बहुत से परिवर्तन हुए। इनमें से कुछ कारण तो प्राकृतिक थे और कुछ मानव निर्मित जिनकी ओर हम पहले इशारा कर आये हैं। तुर्की तटबन्ध के निर्माण के बाद परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि बागमती की पुरानी धार का जो पानी टेंगराहा के पास बड़ी आसानी से नदी में चला जाता था वह बहुत कम हो गया क्योंकि गिद्धा घाट के पास बागमती उत्तर की ओर खिसकने लगी थी। हालत यहाँ तक बिगड़ी कि पुरानी धार का पानी बागमती में जाने के बजाय बागमती का पानी उलटे पुरानी धार में घुसने की कोशिश करने लगा जिससे पुरानी धार में पानी का लेवल बढ़ने लगा। अब यह पानी उलटे ढलान के कारण पीछे की ओर बहुत दूर तक पुरानी धार में जा नहीं सकता था इसलिए नदी किनारे तोड़ कर नई धारा बनाने पर मजबूर हो गई।

कहते हैं कि 1929 में बिलन्दपुर के पास के गाँव नन्दना के जमींदार बच्चू बाबू ने बागमती की मिन्नत अरदास करके उसे अपने यहाँ आने का निमंत्रण दिया और 8 फुट चौड़ा एक नाला खोद कर नदी को अपने खेतों से जोड़ दिया। वहाँ की भौगोलिक परिस्थिति कुछ अनुकूल थी और बागमती की धार सचमुच इस नाले की ओर मुड़ गयी। 1934 के भूकम्प ने नदी के लिए यह काम और आसान कर दिया था। यही नाला बाद में नन्दना बाहा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बागमती की धारा में इस बदलाव के कारण मुजफ्फरपुर सीतामढ़ी मार्ग के 10 से 18 किलोमीटर के बीच सड़क के दोनों तरफ बाढ़ का पानी भरने लगा जिसकी निकासी का एक ही संकरा सा रास्ता बरहोर बाहा का था जो मुजफ्फरपुर-दरभंगा मार्ग को 25 से 27 किलोमीटर के बीच पार करता था। 1937 में खनुआं धार प्रायः पूरी तरह सूख गई और अब सारा का सारा पानी इसी नन्दना बाहा और बरहोर बाहा के माध्यम से कनौजर घाट तक चला जाता था।

उधर मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी के बीच 10.5 वर्ग मील (26 वर्ग किलोमीटर) क्षेत्र में फैला हुआ भरथुआ नाम का एक चैर हुआ करता था। यह ठहरे पानी की एक झील थी और इसमें पानी भरने वाले जितने नाले थे वे सब लम्बे समय से पानी के साथ गाद आने के कारण पटने लगे थे। 1936 में प्रख्यात साहित्यकार रामबृक्ष बेनीपुरी के आग्रह पर महात्मा गांधी सीतामढ़ी आये थे और उन्होंने नाव से इस चैर में भ्रमण भी किया था। बेनीपुर भरथुआ के बगल का गाँव था। गाँधी जी के भरथुआ आने के फलस्वरूप चैर के पानी की निकासी की माँग उठने लगी और गाँधी जी तथा बेनीपुरी जी के पुण्य-प्रताप से इस चैर से जल निकासी का काम दिसम्बर 1936 में शुरू हुआ और 1937 जुलाई में पूरा कर लिया गया। योजना यह थी कि जदुआ बाहा को खोद कर उसे लखनदेई में मिला दिया जाए जिससे चौर का पानी निकल जायेगा। यहाँ तक तो सब ठीक चला मगर चौर में पानी का लेवल कम होने पर जो नाले उसमें आकर मिलते थे उनकी सफाई अपने आप होने लगी। नतीजा यह हुआ कि बलुआ बाहा और मरने धार जैसे नाले पहले से कहीं ज्यादा सक्रिय हो गए। कुंडल गाँव के पास से एक नया नाला भी चालू हो गया जो भरथुआ में पानी लाता था।

बागमती का प्रवाह 1938 से 1954


1938 से 1954 के बीच बागमती कोड़लहिया घाट और रामपुरहरि गाँव के बीच मुजफ्फरपुर-सीतामढी़ मार्ग को पार करती रही। 1954 में मुजफ्फरपुर-दरभगां मार्ग के उत्तर-पश्चिम में, जहाँ पहले कभी सियारी धार का उद्गम हुआ करता था, बागमती ने अपने बायें किनारे पर एक नई धारा फोड़ दी जो सियारी धार के दाहिनी तरफ पड़ती थी। सियारी धार का मुंह स्थानीय गाँव वालों ने बन्द कर दिया था। इस नई धारा ने मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी मार्ग को मकसूदपुर गाँव के पास पार किया और मुजफ्फरपुर-दरभंगा मार्ग को 36 किलोमीटर पर पार किया। कनौजर घाट के पास नदी फिर अपनी पुरानी धारा में आ गयी।

बागमती का प्रवाह (1969)


नदी का वर्तमान स्वरूप 1969 में उभरा जब यह अदौरी गाँव से एक किलोमीटर नीचे अपने बाँये किनारे को तोड़कर रतनपुर पकड़ी गाँव के पास कोला नदी में जा मिली थी। कोला नदी कभी बागमती की धारा रही होगी जो अब बागमती की गाद से काफी हद तक पट चुकी है। दरभंगा-नरकटियागंज रेल लाइन और ढेंग-मेजरगंज रोड तथा सिसउला से होते हुए यह नदी गिद्धा घाट से कोई 6 किलोमीटर उत्तर में दरियापुर गाँव के पास बागमती की पुरानी धार में मिल जाती है। कोला धार बहुत ही पतली आरै छिछली नदी है और आगे चल कर डुमरा से थोड़ा ऊपर मनुस्मारा (पुरानी धार) का साथ पकड़ लेती है। डुमरा से ठीक नीचे नदी के दाहिने किनारे पर बागमती की एक पुरानी धारा उससे आ मिलती है। इसके बाद का नदी का मार्ग वही है जो मनुस्मारा का प्रवाह मार्ग था। बागमती की यही धारा मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी मार्ग को कटौंझा के पास भनसपट्टी से लगभग 2 किलोमीटर पहले पार करती है। कटौंझा से 23 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व दिशा में आगे चल कर बागमती के बायें किनारे पर लखनदेई नदी मिलती है और उससे 10 किलोमीटर और नीचे चलकर बागमती की एक पुरानी धारा जिससे होकर बागमती 1915 से 1935 के बीच बहा करती थी, आकर दाहिने किनारे पर मिल जाती है। जब नदी कनौजर घाट पहुँचने को होती है, उससे थोड़ा पहले उसके दाहिने किनारे पर एक और मृत प्रायः धार बागमती से मिलती है।

बागमती का प्रवाह (1974)


चित्र-1.7: बागमती की विभिन्न धाराएँचित्र-1.7: बागमती की विभिन्न धाराएँ1969 के पहले तक बागमती नदी लहसुनियाँ, बेलवा, कनुआनी, मकसूदपुर, बेरुआ और सुरमार हाट होकर बहा करती थी। लेकिन 1969 की बाढ़ में लहसुनियाँ के पास नदी का मुँह बन्द होने लगा और अब नदी दोस्तिया, पकड़ी, धनकौल, कन्सार, कटरा, हसनपुर और सुरमार हाट होकर पूरी तरह बहने लगी। 1974 में इस नदी घाटी में भीषण बाढ़ आई थी और इसका पूरा इलाका प्रायः तीन सप्ताह तक पानी में डूबा रहा। बाढ़ के पानी के उतरने के बाद पता लगा कि लहसुनियाँ गाँव के पास से बागमती की एक धारा फूट पड़ी है जो कि थोड़ा नीचे जाकर बागमती से कनुआनी में मिल जाती थी। यह धारा 1970 तक सक्रिय रहने के बाद सूख चुकी थी। बेलवा से फूट कर निकलने वाली इस धारा ने पर्राहा, सरदारपुर और मीनापुर होते हुए बूढ़ी गंडक की ओर का रुख किया यद्यपि 1969 से पहले वाली धारा मकसूदपुर के पास 1974 में प्रायः सूख चुकी थी और उसकी सूखी हुई तलहटी में खर-पतवार ही उगता था।

बागमती का 1983 वाला प्रवाह


1983 में बेलवा गाँव के पास नदी ने फिर अपनी धारा मोड़ने की कोशिश की और अब पानी बेलवा धार की एक ताजा निर्मित चैनेल से बहने लगा। अक्टूबर माह में नदी का अधिकांश पानी इसी चैनेल से बह रहा था। इसका परिणाम यह हुआ कि नदी की जो धारा दोस्तिया, पकड़ी, धनकौल, कन्सार आदि गाँवों से होकर 1969 में बहने लगी थी उसमें पानी कम हो गया। 1985 में खोरीपाकर गाँव के नीचे वर्तमान बागमती ने एक बार फिर बेलवा के पास दक्षिण-पश्चिम दिशा में अपनी पुरानी धारा में जाने की कोशिश की जो कई वर्षों तक जारी रही। यहाँ से बरसात के मौसम में नदी का लगभग 40 प्रतिशत प्रवाह इस बेलवा धार से निकल जाता है और मुजफ्फरपुर जिले में मीनापुर के पास बूढ़ी गंडक में मिल जाता है। 1974 तथा 1983 की नदी की धारा में परिवर्तन की घटनाएं बागमती नदी पर तटबन्ध के निर्माण के बाद की है। ढेंग से लेकर रुन्नीसैदपुर तक नदी के दोनों तरफ तटबन्धों के निर्माण का काम 1971 में शुरू हुआ था और 1978 तक पूरा कर लिया गया था। यह तटबन्ध नदी की उसी धारा पर है जो उसने 1969 में अख्तियार किया था।

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