बाँध बन्दूकों के साये में

7 Jun 2015
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dam under security
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क्या आपने कभी सुना है कि पानी के बाँध पर किसी राजकीय खजाने की तरह से, चौकसी करनी पड़ी हो लेकिन पानी का संकट जो न कराए वो थोड़ा है। हाँ, यह सही है। उज्जैन जिले के चम्बल बाँध को हथियारबंद सिपाहियों के हवाले करना पड़ा है। सिपाही दिन–रात गश्त करते हुए इस बात की निगरानी करते हैं कि कोई टैंकर यहाँ से पानी न भर सके। स्थिति इतनी बुरी है कि इस बाँध में बहुत थोड़ा पानी ही बचा है और उस पर भी टैंकर माफियाओं की नजर है। सरकार को आखिरकार यह कदम उठाना पड़ा है। जल संकट की वजह से ही यहाँ स्थित एशिया के सबसे बड़े फायबर प्लांट ग्रेसिम इंडस्ट्रीज़ के चक्के भी थम गए हैं।

मध्यप्रदेश के मालवा इलाके में कभी इतनी हरियाली-खुशहाली थी कि लोग गर्मियों में रोजी–रोटी के लिए बुन्देलखण्ड, निमाड़ और राजस्थान के कुछ इलाकों से पलायन कर यहाँ आया करते थे लेकिन अब यह महज किस्सा ही रह गया है। अब तो खुद यहाँ के लोग ही बाल्टी–बाल्टी पानी के लिए मोहताज हैं। कथित विकास के नाम पर यहाँ इतना कबाड़ा किया गया कि न अब वैसा पर्यावरण बचा और न ही साफ़ पानी और रोटी। डग–डग रोटी, पग–पग नीर अब बीते दिनों की कहावत बन गई है।

उज्जैन जिले में नागदा के पास चम्बल नदी पर एक बड़ा बाँध बनाया गया है। यह बाँध बीते कई सालों से मागदा शहर के लोगों की प्यास तो बुझाता ही था, करीब 6 हजार कर्मियों वाले फायबर प्लांट और यहाँ के रेलवे जंक्शन के लिए भी पर्याप्त पानी उपलब्ध कराता रहा था। यह बाँध यहाँ का सबसे बड़ा और प्रमुख जल-स्रोत है लेकिन इन कुछ सालों में बाँध का पानी तेजी से घटने लगा है। कभी बेकवाटर के रूप में बाँध का नीला पानी 15 से 20 किमी तक 2 से 3 फीट गहराई तक ठाठे मारता रहता था। पूरी गर्मियों में इसमें इतना पानी भरा रहता था कि कभी जल संकट जैसी कोई स्थिति ही सामने नहीं आई। इस बार अंचल में बारिश सामान्य से बहुत कम हुई। इस बार यहाँ केवल 19 इंच बारिश ही हुई थी। इससे बाँध का केचमेंट एरिया पूरी तरह भर नहीं सका और गर्मियों की दस्तक के साथ मार्च–अप्रैल में ही पानी की मात्रा कम होने लगी।

मानसून आने तक 6 हजार कर्मियों वाले ग्रेसिम प्लांट को बंद कर देना पड़ा। इससे ग्रेसिम से जुड़े छोटे और मझौले औद्योगिक उपक्रम भी बंद हो गए। जल संकट से फैक्टरियाँ बंद हो जाने से कई घरों में दो जून की रोटी का संकट खड़ा हो गया। अप्रैल बीतते–बीतते तो हालत यह हो गई कि इसमें शहर की प्यास बुझाने लायक पानी ही बचा रह गया, वह भी 30 जून तक ही। तब तक यदि बारिश नहीं हुई तो हालात बिगड़ जायेंगे। उस पर तुर्रा यह कि निजी टैंकर वाले हर दिन बड़ी तादाद में यहाँ से हर दिन पानी उलीच रहे थे। इन्हें यदि सख्ती से नहीं रोका जाता तो पानी 30 जून से पहले ही खत्म हो जाता और शहर में हाहाकार मच जाता।

.पानी के आसन्न संकट के मद्देनजर प्रशासन को आखिरकार कुछ कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। जल संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए उज्जैन कलेक्टर ने बाँध सहित उससे लगे कुओं और ट्यूबवेल से पीने के पानी के अतिरिक्त किसी भी अन्य उपयोग के लिए कड़ी पाबंदी लगा दी है। इतना ही नहीं, जिला कलेक्टर ने स्थानीय प्रशासन और पुलिस अफसरों को भी ताकीद की है कि वे बाँध स्थल पर सतत निगरानी करें और सिपाहियों से गश्त करवाई जाये ताकि कोई पानी की चोरी नहीं कर सके। टैंकर माफियाओं से यहाँ निजात मिली है।

इन्होंने बताया कि
यदि ऐसे कदम नहीं उठाते तो शहर को पानी दे पाना कठिन हो जाता। कुछ लोग अपनी कमाई के लिए जनता की अमानत में खयानत कर रहे हैं। इसे सख्ती से रोकने के लिए ही ऐसी कवायद की गई है। मैंने भी अधिकारियों की बैठक में कहा है कि ऐसे लोगों पर कड़ी कार्यवाही करें। मानसून तक यह पानी बचाना हमारा दायित्व है। - दिलीप शेखावत, विधायक, नागदा

पुलिस के साथ प्रशासनिक अधिकारियों का भी एक दल बनाया गया है, जो वहाँ जाकर व्यवस्थाओं का जायजा लेता रहता है। जिला कलेक्टर की मंशा के अनुरूप हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी तरह शहर को पीने का पानी उपलब्ध होता रहे। - राजीव मीणा, परिवीक्षाधीन आइएएस, एसडीएम, नागदा

जिला प्रशासन ने हमें ऐसे आदेश दिए हैं कि बाँध के पानी का पीने के अलावा कोई अन्य तरह से उपयोग नहीं कर सके। पुलिस की चौकसी के बाद यहाँ कोई टैंकर नहीं पहुँच सका है। हम पूरी तरह मुस्तैद हैं और हमारे जवान वहाँ बराबर निगरानी कर रहे हैं। - अजय सिंह, परिवीक्षाधीन आईपीएस, थाना प्रभारी, बिरलाग्राम नागदा

लेखक से सम्पर्क : 11 – ए, मुखर्जी नगर, पायोनियर स्कूल चौराहा, देवास म.प्र - 455001, मो.नं. 9826013806
 

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