बारिश में भी पानी खरीदना पड़ रहा है दलितों को

water crisis
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जल संकटइन दिनों भले ही बारिश के दिन चल रहे हों लेकिन हैरत की बात है कि देवास की एक दलित बस्ती के लोगों को अपने पीने का पानी भी खरीद कर दूर–दूर से लाना पड़ रहा है। इस बस्ती में नगर निगम ने पानी का कोई इन्तजाम नहीं किया है केवल कभी–कभार एक–दो टैंकर आते हैं। बस्ती के लोग बताते हैं कि ऐसी समस्या उनके यहाँ बीते कई सालों से है। हमने इसे लेकर कई बार नगर निगम को भी बताया पर अब तक कोई निदान नहीं हो सका है। हमें बारिश के दिनों में भी एक निजी बोरिंग से दो रूपये में एक केन पानी खरीद कर करीब दो किलोमीटर दूर साइकिलों पर टाँग कर लाना पड़ता है। इससे कई बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है।

मध्यप्रदेश का देवास जिला मुख्यालय जल संकट के लिए पहले से ही बदनाम रहा है। यहाँ एक दौर में नगर निगम के पास पानी का कोई स्रोत नहीं बचा था लिहाजा लोगों को नल–जल योजना में 8 से 15 दिन में एक बार पानी दिया जाता था। इतना ही नहीं कुछ दिनों तक यहाँ प्रशासन ने रेल से पानी मँगवाया और शहर की प्यास बुझाई लेकिन बीते कुछ सालों से क्षिप्रा आवर्धन योजना पूरी हो जाने से क्षिप्रा नदी के पानी से इस शहर में अब उतना जल संकट नहीं रहा। लोगों को पर्याप्त पानी मिल रहा है पर अब भी कुछ ऐसे मोहल्ले और बस्तियाँ हैं जहाँ करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी अब तक पानी नहीं पहुँच सका है। ऐसी ही एक बस्ती शहर के पूर्वी हिस्से में एबी रोड पर बीएनपी थाने के पीछे संत रविदास नगर है। यहाँ करीब 300-400 परिवारों की बस्ती है और ज्यादातर लोग दलित वर्ग से आते हैं।

संत रविदास नगर निगम में पीने के पानी का कोई इन्तजाम नहीं है। न कोई कुआँ है न ट्यूबवेल, न हैंडपम्प और न ही नल जल।यही वजह है कि ये लोग पानी के लिए यहाँ–वहाँ भटकते रहते हैं। आस-पास के कुछ निजी ट्यूबवेल वालों के यहाँ पर्याप्त पानी है पर वे इसे निःशुल्क नहीं देते। यहाँ के लोगों को इस पानी की कीमत चुकानी पड़ती है। लोगों ने बताया कि बस्ती से करीब दो किलोमीटर दूर आवास नगर में चक्की के पास एक बोरिंग वाले इनसे एक केन पानी भरने की एवज में दो रुपये वसूलते हैं। मरता क्या न करता की तर्ज पर इन्हें यह पानी खरीद कर अपने रोजमर्रा के काम करने पड़ते हैं।

यहाँ भी केन भरने के लिए पहले लाइन में खड़ा होना पड़ता है। कुछ लोगों के इकट्ठा होने पर ही ट्यूबवेल चालू की जाती है। केन भरने के बाद उन्हें साइकिलों पर टाँगकर लाना पड़ता है। यहाँ का कच्चा रास्ता बारिश में कीचड़ से पट गया है। ऐसे में साइकिल घसीटना भी मुश्किल होता है लेकिन पानी की जद्दोजहद में छोटे–छोटे बच्चे और बच्चियाँ भी सुबह से शाम तक ऐसी ही कवायद में जुटे नजर आते हैं।

यहाँ रहने वाले करीब एक हजार लोग काफी परेशान हैं पर कोई सुनने वाला नहीं है। ज्यादातर लोग मेहनत–मजदूरी कर अपना पेट पालते हैं। इनके लिए पानी खरीदना बहुत महँगा साबित होता है। अमूमन पाँच लोगों के एक परिवार को एक दिन के लिए करीब चार से छह केन पानी की जरूरत होती है। यानी हर दिन 10 से 15 रुपये पानी पर ही खर्च हो जाते हैं। बीते सालों में देवास नगर निगम ने लोगों को पानी मुहैया करने के लिए करीब एक अरब रुपये अलग–अलग योजनाओं और टैंकर आदि पर खर्च किये हैं। बावजूद इसके हालात वहीं के वहीं हैं।

कुछ सालों पहले तक आवास नगर की पाइप लाइन से इसे जोड़कर बस्ती की शुरुआत तक पानी दिया जाता था लेकिन आधी बस्ती फिर भी प्यासी ही रह जाती थी। बाद के दिनों में रास्ते के खाली प्लाटों पर भी मकान बनना शुरू हो गए तो लोगों ने इसी लाइन को जगह–जगह से फोड़ कर पानी लेना शुरू कर दिया। जब इन लोगों पर निगम ने कोई कार्रवाई नहीं की तो बाकी लोगों ने भी ऐसा ही करना शुरू कर दिया। धीरे–धीरे पानी का प्रवाह कम हो गया और कुछ दिनों बाद इसे आवास नगर से ही पानी देना बंद कर दिया गया। बस्ती के आखिरी कोने पर एक हैंडपम्प भीलगाया गया था लेकिन बरसों से वह भी बंद पड़ा है। फिलहाल नगर निगम हफ्ते में दो बार यहाँ पानी के टैंकर भेजता है। पानी के टैंकर जब बस्ती में पहुँचते हैं तो भारी अफरा-तफरी मच जाती है। लोग आपस में भीड़ जाते हैं और कुछ ही देर में टैंकर खाली हो जाता है और आधे लोगों को पानी ही नहीं मिल पाता है। आए दिन टैंकर से पानी भरने में विवाद होते रहते हैं। टैंकर से और कीचड़ हो जाता है। इलाके में कीचड़ और गन्दगी फैलती जा रही है इससे मच्छर और अन्य जीवाणु-रोगाणु भी पनप रहे हैं।

महापौर सुभाष शर्मा बताते हैं कि बस्ती की परेशानी से वे वाकिफ हैं पर समस्या यह है कि यह बस्ती मेजर रोड पर बसी है, लिहाजा यहाँ पाइप लाइन नहीं डाली जा सकती है लेकिन नगर निगम बस्ती के लोगों को पानी मुहैया कराने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था कर रहे हैं। फिलहाल नियमित रूप से टैंकर भेजे जा रहे हैं। मैं खुद भी अधिकारियों के साथ वहाँ जाकर स्थिति का अवलोकन करूँगा कि पानी के लिए क्या बेहतर इन्तजाम किए जा सकते हैं।

संत रविदास नगर स्थित आँगनवाड़ी केन्द्र पर देखा कि छोटे–छोटे बच्चों के लिए कार्यकर्ता पानी खुद अपने घर से लाती हैं। आँगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती रंजना राणा ने बताया कि यहाँ पीने के पानी का कोई स्रोत नहीं है। इसलिए बच्चों और महिलाओं के लिए पीने कापानी वे अपने घर आवास नगर से हर दिन अपने साथ लेकर आती हैं। वे बताती हैं कि बच्चों को साफ पानी देना हमारी जिम्मेदारी है इसलिए रोज यह केन भरकर लाती हूँ। उन्होंने बताया कि पानी की कमी होने से स्वच्छता पर भी असर पड़ता है। हम साफ–सफाई पर जोर देते हैं लेकिन बस्ती की औरतें कहती है कि पीने तक का पानी ही नहीं है तो साफ सफाई के लिए कहाँ से लाएँ। श्रीमती राणा बताती हैं कि साफ पानी नहीं मिलने से क्षेत्र में लोगों को कई बार जल जनित बीमारियाँ भी होती रहती है।

रामकन्या मालवीय और संगीता बताती हैं कि पानी नहीं मिलने से बस्ती की औरतें सबसे ज्यादा परेशान होती है। हमारे लिए पानी की कोई व्यवस्था आज तक नगर निगम ने नहीं की है। यह एक हजार लोगों की बस्ती है और हर बार चुनाव के दौरान नेता यहाँ बोट माँगने आते हैं तो सारी बातें मान लेते हैं पर चुने जाने के बाद कभी इधर पलट कर भी नहीं देखते। बीते चुनाव में भी सभी उम्मीदवारों के सामने हमने यही समस्या रखी थी पर कोई निदान नहीं हुआ। न नगर निगम में कोई सुनवाई होती है और न ही पार्षद सुनते हैं।

हमलोग नारकीय जिन्दगी जीने को मजबूर हैं। शहर को पानी पिलाने के लिए दूर-दूर नर्मदा और क्षिप्रा नदी तक से पानी ले आते हैं पर हम दलित और मेहनत–मजदूरी करने वालों के लिए कुछ दूरी से भी पानी नहीं आ पा रहा है। बारिश तक में हम पानी खरीद रहे हैं।

हालात इतने बुरे हैं कि रोज की परेशानियों से लोग तंग आ चुके हैं उन्होंने अपनी शिकायतें कई बार नगर निगम से लेकर कलैक्टर तक को की है पर कहीं से भी फिलहाल कोई राहत की खबर नहीं है। अब यहाँ के लोग उग्र आन्दोलन करने का मन बना रहे हैं।
 

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