बावले : जिब जमीन की कीमत मां-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएं

इलाके के सबसे बड़े और पूरे गांव के प्यास बुझाने वाले दो दर्जन कुओं में से अब एक भी नहीं है। गांव में नगर निगम पीने की पानी की आपूर्ति करता है। कुछ पानी बादली नहर से आता है और शेष गांव के लिए तकरीबन डेढ़ दर्जन सबमर्सिबल भी निगम ने लगाए हैं। वैसे शायद ही गांव का कोई घर ऐसा हो जिसमें लोगों ने अपना निजी सबमर्सिबल न लगाया हो। भूजल स्तर 180 फुट नीचे चला गया है। पहले शेरा नंबरदार, पंडितों वाला बाग, लायका सेठ का बाग भूजल स्तर को बचाए रखते थे।

दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर राजीव चौक से तकरीबन आधा किलोमीटर पर बसा है ऐतिहासिक गांव झाड़सा। इसकी कहानी जितनी पुरानी है, उतनी ही पुरानी और समृद्ध रही है यहां के तालाबों और कुओं की परंपरा।

यह तालाब और कुओं की ही ताकत थी कि गांवों के चारों ओर हरे-भरे फलवाले वृक्षों के बागों की भरमार थी। लंबे समय तक गांव में रहे महेंद्र शास्त्री के मुताबिक, अस्सी के दशक के पूर्वार्द्ध तक में इस गांव में लड़कों के रिश्ते का सबसे बड़ा आधार पानी की सहज उपलब्धता थी।

यहां ब्याहकर आईं महिलाओं को पानी के लिए दूर तक नहीं भटकना पड़ता था। दर्जनों पनघट इस गांव की महिलाओं की सेहत, और सादगीपूर्ण सौंदर्य का राज थे। यहां महिलाएं सास और ननद की चुगली करती थी।

अनियोजित भौतिक विकास ने जब यहां अपनी धमक दी तो इसके सबसे पहले और आसान शिकार बने, यहां के कुएं। गांव के तीन बड़े ऐतिहासिक तालाब जिन्होंने पूरी बस्ती को एक तरह से घेर रखा था, अब पूरी तरह जमींदोज हो चुके हैं।

दो दर्जन से अधिक कुओं में से एक-दो कुएं ही ऐसे हैं जिनके ध्वंसावशेष बचे हैं। झाड़सा के मधु शर्मा बताते हैं, गांव के दक्षिण में तकरीबन 6 एकड़ में राम तालाब था। यह तालाब भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह गंभीर तथा गहरा था। और इसी के चलते गांव वालों के लिए यही सबसे बड़ा तीर्थ था, यहीं थी गंगा और जमुना।

अब इस तालाब पर चौधरी बख्तावर सिंह सामुदायिक केंद्र बन गया है। बकौल मधु शर्मा, इस तालाब की गहराई इतनी थी कि दो ऊंट एक-दूसरे पर खड़े हो जाएं तो भी डूब जाएं।

गांव की पूर्व दिशा में स्थित काला आम जोहड़ झाड़सा की समृद्धि का प्रतीक था। 30 फुट गहरा यह तालाब हालांकि 3 एकड़ में फैला था। इस तालाब के साथ आम का घना गहरा और विशाल जंगल था।

इस बाग में घनघोर अंधेरा रहता था और दिन में भी लालटेन लेकर जाना पड़ता था। यह पंचायती तालाब था। गांव को इससे खासी आय होती थी। कारण कि इसमें अचार तथा खाने के दोनों तरह के उच्च गुणवत्ता वाले आम होते थे।

92 साल के बुजुर्ग झंडूराम के मुताबिक, और इसका कारण था इस तालाब के किनारे बना मीठे और अमृत जैसे पानी वाला तालाब। जिसके चलते न कभी भूजल स्तर गिरा और न ही कम हुई पानी की गुणवत्ता। अब यह तालाब हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के सेक्टर 40 के बने मकानों या भूखंडों में खो चुका है।

सोली नाम का तकरीबन 3 एकड़ में फैला और 30 फुट गहरा तालाब गांव की पश्चिम दिशा में स्थित था। ग्रामीणों के मुताबिक यहां कृष्ण मंदिर था। इस मंदिर में आने वाले भक्तों और यहां के पुजारी या महात्मा को इस तालाब से इतना गहरा लगाव था कि कोई भी इसे गंदा करने की कोशिश करता था तो उस पर जबरदस्त फटकार पड़ती थी।

75 के ग्रामीण हिम्मत सिंह बताते हैं, वे गरमी के मौसम में वे बारी-बारी अलग तालाब में नहाते थे। कौन जोहड़ को पहले पार करेगा, इसके लिए बाकायदा प्रतियोगिता करते थे। नहाकर बाहर निकलते, और आम खाते, फिर जोहड़ में कूद जाते। अब इस जोहड़ पर छोटूराम धर्मशाला और स्कूल चलता है।

सब तालाबों और जोहड़ों पर सार्वजनिक निर्माण हुए या फिर सरकार ने उन्हें अधिग्रहित कर लिया। तालाबों और जोहड़ों की गहरी समझ रखने वाले समाज ने इस अधिग्रहण का विरोध क्यों नहीं किया पर झाड़सा के ही सूरजभान कहते हैं, बावले: जिब जमीन की कीमत मां-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएं। म्हारे गाम के समाज और तालाब अर कुआं का रिश्ता बोहत गहरा था। अब किसी को कुओं, जोहड़ों से कोई मतलब नहीं। म्हारी नई पीढ़ी तो अपणे गाम के तालाब अर कुआं के बारे में चर्चा करना तक भी पसंद नहीं करते। जमीन की कीमतों ने गाम-राम की बात तो दूर, अब मां-बाप और पुत्रों में दूरियां पैदा कर दी हैं। भाई-बहन के रिश्ते को खत्म कर दिया है।

इलाके के सबसे बड़े और पूरे गांव के प्यास बुझाने वाले दो दर्जन कुओं में से अब एक भी नहीं है। गांव में नगर निगम पीने की पानी की आपूर्ति करता है।

कुछ पानी बादली नहर से आता है और शेष गांव के लिए तकरीबन डेढ़ दर्जन सबमर्सिबल भी निगम ने लगाए हैं। वैसे शायद ही गांव का कोई घर ऐसा हो जिसमें लोगों ने अपना निजी सबमर्सिबल न लगाया हो। भूजल स्तर 180 फुट नीचे चला गया है। पहले शेरा नंबरदार, पंडितों वाला बाग, लायका सेठ का बाग भूजल स्तर को बचाए रखते थे।

गांव के बाहर स्थित मोहन कुंड तालाब बस अब कहने भर को है। अढ़ाई एकड़ के इस जोहड़ में मंदिर के नाम पर अब बड़ा भवन बना दिया गया है। यह तालाब गांव की कई सौ एकड़ भूमि में होने वाली खेती के लिए वरदान था। अब इसमें सबमर्सिबल से जरूरत के मुताबिक पानी भरा जाता है।

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