बदस्तूर जारी बाढ़ से बर्बादी

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कोसी त्रासदी में 2,36,632 घर ध्वस्त हुए लेकिन सरकार पुनर्वास की उचित व्यवस्था नहीं कर पाई है। लाखों लोग आजीविका से हाथ धो बैठे हैं। सरकार द्वारा गठित ‘कोसी बांध कटान न्यायिक जांच आयोग’ पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद अब तक सुनवाई पूरी नहीं हो सकी है। बाढ़ पीड़ितों का मानना है कि पुनर्वास की लचर नीति के कारण लोग किसी भी प्रकार की क्षतिपूर्ति और पुनर्वास कार्यक्रम से वंचित रहते हैं।

बिहार के 28 जिलों के बाशिंदों के लिए बाढ़ तबाही के रूप में तो घोटालेबाजों के लिए नई फसल के तौर पर आती है। हर साल करोड़ों रुपए बाढ़ नियंत्रण पर खर्च होते हैं लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात। राजनेताओं, अफसरों और ठेकेदारों की एक जमात हर साल बर्बादी के बाद नई तैयारियों में जुट जाती है जबकि आम लोग पूरे साल बाढ़ की मार झेलने को विवश होते हैं। इस बार बाढ़ ने अब तक बीस लोगों की जान ली है। माली नुकसान का अभी आकलन ही किया रहा है। बाढ़ प्रबंधन और नियंत्रण की योजनाओं में केंद्रीय सहायता नहीं मिलने के कारण समस्या गहराती जा रही है। बिहार सरकार ने विश्व बैंक की मदद से कोसी क्षेत्र में बाढ़ प्रबंधन का काम शुरू किया है लेकिन पूरे सूबे के बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए किसी समेकित योजना को मंजूरी नहीं मिली है। हर साल करोड़ों रुपए तात्कालिक जरुरत के नाम पर पानी की तरह बहाए जाते हैं लेकिन बाढ़ की समस्या का समाधान नहीं निकल पाता।

इस समय बाढ़ नियंत्रण की पांच योजनाएं केंद्र सरकार के पास लंबित है। बकसौती बैराज, नाटा-सकरी लिंक, अरेराज में बैराज, बागमती में बैराज समेत बाढ़ व सिंचाई से जुड़ी अन्य परियोजनाएं भी केंद्र के पास वर्षों से लंबित हैं। बिहार सरकार ने 2007 में केंद्र से बाढ़ राहत के लिए 2,156 करोड़ रुपए मांगे थे लेकिन मदद नहीं मिली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2008 की कोसी त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा कहा जरूर मगर आर्थिक मदद नहीं दी। 2008 के राष्ट्रीय आपदा के वक्त बिहार की 14,808 करोड़ रुपए की मांग के बदले सिर्फ एक हजार करोड़ मिले। इस साल भी पूर्वी कोसी तटबंध पर खतरा बना हुआ है। नेपाल से बार-बार अनुरोध के बावजूद तटबंध को बचाने के लिए पायलट चैनल की खुदाई का काम आगे नहीं बढ़ पया है। तटबंधों में दरारें दिखने लगी हैं।

उत्तर बिहार में बाढ़ प्रभावित एक गांवउत्तर बिहार में बाढ़ प्रभावित एक गांवदरअसल, बाढ़ से बचाव के लिए पायलट चैनल के निर्माण को कोसी हाई लेवल कमेटी ने पहेल स्वीकृति दी थी लेकिन कमेटी मे शामिल नेपाल इससे मुकर गया। वह पायलट चैनल के लिए खुदाई के काम में अड़ंगा डालता रहा है। नेपाल के कई संगठनों का मानना है कि इस चैनल से वहां बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा। नतीजा यह निकलता है कि नेपाली नागरिक इस पायलट चैनल का विरोध कर रहे हैं। वैसे, काठमांडू में हुई कोसी हाई लेवल कमेटी की बैठक मे नेपाल ने सिर्फ एक किलोमीटर तक खुदाई की इजाजत दी है जबकि कम से कम ग्यारह किलोमटीर तक खुदाई हुए बगैर कोसी के पूर्वी तटबंध पर दबाव कम नहीं हो सकता है। यह दबाव सिर्फ पायलट चैनल के जरिए ही कम हो सकता है लेकिन नेपाली मीडिया के दुष्प्रचार ने वहां के नागरिकों के मन में बाढ़ का भय बिठा दिया है। इस तरह नेपाल की जिद के कारण बिहार के पांच जिलों पर बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नेपाल के वीरपुर तटबंध के दौरे के बाद वहां के नागरिकों और सरकार को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि पायलट चैनल से नेपाल को कोई नुकसान नहीं होगा। नेपाल के वीरपुर-कोसी बैराज के पास नदी के पूर्वी तटबंध के काफी करीब से पानी की धारा बह रही है। दरअसल, कोसी गंडक बूढ़ी, गंडक, बागमती, कमला-बलान, महानंदा सहित अधवारा समूह की अधिकांश नदियां नेपाल से निकलती हैं। इन नदियों का 65 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र नेपाल और तिब्बत में है। नतीजतन, नेपाल से अधिक पानी छोड़े जाने पर बिहार के गांवों में तबाही मच जाती है। इतनी ही नहीं, नेपाल से निकलने वाली नदियों के पानी से राज्य के लोगों को बचाने के लिए हर साल 3629 किलोमीटर लंबे तटबंध की मरम्मत भी करनी पड़ती है।

बिहार मे बाढ़ की प्रलंयकारी लीला में हर साल एक लाख लोगों के घर बह जाते हैं। बाढ़ से घर इतना जर्जन हो जाता है कि वह यदि बचा रह भी गया तो किसी भी वक्त गिरने की स्थिति में पहुंच जाता है। इसके बावजूद इन घरों में रहना लोगों की नियति है। एक अनुमान के अनुसार 32 सालों में बाढ़ ने बिहार में 69 लाख घरों को क्षति पहुंचाई है। इनमें 35 लाख मकान पानी में बह गए। वहीं, 34 लाख घरों को पानी की तेज धारा ने क्षतिग्रस्त कर दिया। यह विडंबना ही है कि सूबे का 76 प्रतिशत भू-भाग बाढ़ के दृष्टिकोण से संवेदनशील माना गया है। कुल 94,160 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 68,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र संवेदनशील हैं।

नदी द्वारा गांव के कटाव से चिंतित ग्रामीणनदी द्वारा गांव के कटाव से चिंतित ग्रामीणबिहार में 2007 की बाढ़ ने 22 जिलों को प्रभावित किया था। 2008 में कोसी नदी पर कुसहा बांध टूटा तो जलप्रलय की स्थिति पैदा हुई। राज्य में बाढ़ से हर साल 28 जिले में तबाही मचती है पर केंद्र सिर्फ 15 जिलों को ही बाढ़ग्रस्त मान कर सहायता देता है। बिहार सरकार ने वैसे तो बाढ़ से बचाव के लिए ‘नदी जोड़ परियोजना’ बनाई है लेकिन काम आगे नहीं बढ़ पाया है। बाढ़ प्रबंधन परियोजना की 90 फीसदी राशि एकमुश्त नहीं मिल रही। बाढ़ राहत की घोषणाएं तो होती हैं लेकिन हकीकत में कोसी के बाढ़ पीड़ित आज भी उपेक्षा के शिकार हैं। इस क्षेत्र की हजारों एकड़ उपजाऊ कृषि भूमि बालू से पट गई है। आपदा में क्षतिग्रस्त हुए लाखों घर पुनर्निर्माण की राह देख रहे हैं। वहीं सरकार कोई सुध नहीं ले रही है।

सुपौल जिले के वसंतपुर के अंचलाधिकारी ने सूचना के अधिकार के तहत एक सवाल के जवाब में बताया कि उस अंचल के 14,129,70 एकड़ खेतों में बालू भरा है। इस एक अंचल में बालू भराव से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि सुपौल, मधेपुरा और सहरसा की लाखों एकड़ भूमि में बालू भरा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कोसी त्रासदी में 2,36,632 घर ध्वस्त हुए लेकिन सरकार पुनर्वास की उचित व्यवस्था नहीं कर पाई है। लाखों लोग आजीविका से हाथ धो बैठे हैं। सरकार द्वारा गठित ‘कोसी बांध कटान न्यायिक जांच आयोग’ पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद अब तक सुनवाई पूरी नहीं हो सकी है। बाढ़ पीड़ितों का मानना है कि पुनर्वास की लचर नीति के कारण लोग किसी भी प्रकार की क्षतिपूर्ति और पुनर्वास कार्यक्रम से वंचित रहते हैं।

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