बेकाबू इंसान और टेक्नालॉजी

25 Jul 2011
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भारत में अगर गली-गली में इस तरह रेडियोएक्टिव पदार्थ मिल रहे हैं और भारत सरकार के सबसे सुरक्षित संस्थान के भीतर कोई वाटरकूलर में उसे ले जाकर मिला रहा है तो बनने वाले किसी बिजलीघर की सुरक्षा की क्या गारंटी हो सकती है?

दिल्ली में एक कबाड़ में मिले रेडियोधर्मी पदार्थ के असर से उसके आसपास काम करने वाले कबाड़ी और कुछ दूसरे लोग जिस तरह से जली हुई चमड़ी और झड़े हुए बाल की नौबत तक पहुँचे और अस्पताल ले जाए गए, उसे लापरवाही से नहीं लेना चाहिए। इसके बाद में हफ़्ते भर के भीतर ही कल फिर दिल्ली औद्योगिक क्षेत्र में ऐसे ही एक और रेडियोधर्मी पदार्थ से एक और व्यक्ति बीमार पड़ा। यह रेडियोएक्टिव पदार्थ कोबाल्ट 60 के रूप में पहचाना गया है जो शायद कैंसर सिकाई जैसी मशीनों में भी काम आता है। देश में दुनिया भर से रोज़ जहाजों में भर-भरकर कबाड़ पहुँचता है जिनमें तरह-तरह के रासायनिक पदार्थ होते हैं और हो सकता है कि ऐसे ही किसी रास्ते से यह सामान यहाँ पहुँचा हो। क़रीब दो-ढाई दशक पहले की एक घटना हमें याद है जब रायपुर के कैंसर अस्पताल में कोबाल्ट मशीन से पुराना हो चुका कोबाल्ट सोर्स निकाला जा रहा था और नया सोर्स लगाया जा रहा था तब इस भारी जटिल और तकनीकी काम के लिए बहुत ख़ास मशीनों से इस काम को करते हुए यह कोबाल्ट सोर्स बाहर गिर जाने की चर्चा थी। और उस समय यह बात सामने आई थी कि किसी रोज़ी वाले मज़दूर को लाकर उसे भीतर भेजकर उस सोर्स को जगह पर लगवाया गया था और इससे उस मज़दूर की ज़िंदगी बहुत सीमित हो जाना तय था। इस मामले के सबूत बाहर नहीं आ सके इसलिए वह बात स्थापित नहीं हो सकी। लेकिन अभी दिल्ली के इस मामले को लेकर जो ख़बरें सामने आईं उन्हें लेकर यहाँ के इस पुरानी चर्चा की याद ताज़ा हो गई। लेकिन पाठकों को अभी कुछ महीने के भीतर ही भारत के अंतरिक्ष केंद्र इसरो के एक वाटरकूलर में किसी ने शरारत करते हुए कोई रेडियोएक्टिव पदार्थ डाल दिया था। एक तरफ़ तो ऐसे तमाम संवेदनशील और महत्वपूर्ण केंद्र पूरी तरह चौकसी में रहते हैं और सुरक्षा कैमरों के रहते हुए भीतर का कोई कर्मचारी कैसे यह काम कर पाया यह हैरानी की बात है। फिर यह भी है कि कल को किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को मारने के लिए उसके घर या दफ़्तर में सोने या बैठने की जगह पर अगर कोई ऐसा कोई पदार्थ ले जाकर छुपा दे तो क्या होगा?

आज जब भारत में परमाणु बिजलीघर बनाने के लिए सरकार प्रक्रिया शुरू कर रही है तो दुनिया के सामने रूस के चेर्नोविल का परमाणु हादसा सामने है जब वहाँ एक औद्योगिक दुर्घटना के बाद परमाणु प्रदूषण बाहर निकला और रूस के बाहर तक जा पहुँचा। उस हादसे के ज़ख्म इतिहास में दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु दुर्घटना के रूप में दर्ज है। भारत में अगर गली-गली में इस तरह रेडियोएक्टिव पदार्थ मिल रहे हैं और भारत सरकार के सबसे सुरक्षित संस्थान के भीतर कोई वाटरकूलर में उसे ले जाकर मिला रहा है तो बनने वाले किसी बिजलीघर की सुरक्षा की क्या गारंटी हो सकती है? आज एक तरफ़ तो अमरीका में दुनिया के परमाणु खतरों को लेकर अलग-अलग देशों के मुखिया सलाह-मशविरा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ़ पाकिस्तान में आतंकियों के हाथ परमाणु हथियार लग जाने का एक ख़तरा दुनिया में मंडरा ही रहा है। ऐसे में भारत जैसे स्थिर लोकतंत्र में परमाणु हादसे होते हैं या रेडियोधर्मिता के मामले इस तरह से होते हैं तो इससे भारत की दुनिया में विश्वसनीयता तो ख़त्म होगी ही, देश के भीतर भी किसी इलाके में वहाँ की जनता परमाणु बिजलीघर बनाने नहीं देगी। जिस टेक्नालॉजी के बुरे असर पर इस धरती के लोगों का पूरी तरह काबू नहीं हो सकता और वह बुरा असर इतना घातक है कि उससे आने वाली दस-बीस पीढियाँ तक प्रभावित हो सकती हैं तो उसके बारे में धीरे-धीरे आगे बढऩा ही ठीक है या फिर उसके विकल्प ढूँढ लेने चाहिए। कहने को तो भोपाल के यूनियन कार्बाईड कारखाने में भी सुरक्षा के इंतज़ाम रहे होंगे लेकिन जब वहाँ से ज़हरीली मिक गैस रिसी तो उसने हज़ारों जानें ले लीं और लाखों लोगों को तबाह कर दिया। हम रासायनिक यूनियन कार्बाईड तो झेल चुके हैं, रेडियोधर्मी परमाणु यूनियन कार्बाईड को कैसे झेलेंगे?

परमाणु उर्जा और परमाणु हथियार इनके ख़तरों में फ़र्क़ तो है लेकिन दुनिया का इतिहास गवाह है कि भारत सहित एक-एक देश अपना शोध कार्य शुरू तो उर्जा के नाम पर ही करते हैं और उसके बाद परमाणु बम बनाने के लिए कच्चा माल जुट जाने पर टेक्नालॉजी विकसित करके या ख़रीदकर बम बना लिया जाता है। आज दुनिया में बहुत से देश अस्थिर शासन व्यवस्था का शिकार हैं। इसके अलावा धर्मांधता या किसी दूसरे तरह का पागलपन किसी भी समय किसी भी देश के हथियारों का एक बेज़ा इस्तेमाल कर सकते हैं। अभी पोलैंड का एक विमान रूस जाते हुए हादसे का शिकार हो गया, अब यह कल्पना करें कि ऐसा कोई लड़ाकू विमान परमाणु हथियार लेकर बिना हमले की नीयत के भी एक जगह से दूसरी जगह जाता हुआ और उसके साथ ऐसी दुर्घटना होती तो क्या होता?

दिल्ली के कबाड़ से लेकर दुनिया के परमाणु हथियारों तक यह चर्चा कुछ लोगों को कुछ अधिक बिखरी हुई लग सकती है लेकिन हमारे हिसाब से यह एक टेक्नालॉजी से जुड़े हुए ख़तरों की बात है और इसके हर पहलू पर दुनिया के हर देश-प्रदेश को सावधानी से सोचना चाहिए। इलाज के लिए रेडियोधर्मिता का उपयोग अब खासा प्रचलित है। लेकिन जब दुनिया में ऐसे लोग समय-समय पर सामने आते हैं जो कि आपा खोकर अपने ही दर्जनों साथियों को गोलियों से भून देते हैं, तो यह कल्पना भी करना चाहिए कि अगर ऐसे लोग किसी कैंसर-मशीन के कोबाल्ड सोर्स को ही किसी साज़िश के तहत कहीं इस्तेमाल करें तो क्या होगा?

संपादक, दैनिक छत्तीसगढ़ रायपुर, छत्तीसगढ़, मो. 9893625000, ई-मेल- editor.chhattisgarh@gmail.com
 

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