बिहार में बागमती नदी

बिहार में इस नदी की कुल लम्बाई 394 किलोमीटर तथा जल ग्रहण क्षेत्र लगभग 6,500 वर्ग किलोमीटर होता है। इस तरह नदी उद्गम से गंगा तक कुल लम्बाई लगभग 589 किलोमीटर और कुल जल ग्रहण क्षेत्र 14,384 वर्ग किलोमीटर बैठता है। बिहार के द्वितीय सिंचाई आयोग की रिपोर्ट (1994) के अनुसार बागमती के ऊपरी क्षेत्र काठमाण्डू के आस-पास सालाना औसत बारिश लगभग 1460 मिलीमीटर होती है जबकि चम्पारण में 1392 मि.मी., सीतामढ़ी में 1184 मि.मी., मुजफ्फरपुर में 1184 मि.मी., दरभंगा में 1250 मि.मी. और समस्तीपुर में 1169 मि.मी. होती है।

बिहार में बागमती से संबंधित पौराणिक या लोक-कथाएं प्रचलन में नहीं हैं मगर यहाँ इसके पानी की अद्भुत उर्वरक क्षमता का लोहा सभी लोग मानते हैं। यहाँ इस नदी को तीन अलग-अलग खण्डों में देखा जा सकता है- उत्तर बागमती, मध्य बागमती और दक्षिण-पूर्व बागमती।

उत्तर बागमती


नेपाल में लगभग 195 किलोमीटर की यात्रा तय कर के यह नदी बिहार के सीतामढ़ी जिले में समस्तीपुर-नरकटियागंज रेल लाइन पर स्थित ढेंग रेलवे स्टेशन के 2.5 किलोमीटर उत्तर में भारत में प्रवेश करती है (चित्रा-1.3)। नेपाल में इस नदी का कुल जल ग्रहण क्षेत्र 7884 वर्ग किलोमीटर है। ढेंग और बैरगनियाँ स्टेशन को जोड़ने वाली रेल लाइन पर बने पुल संख्या 89, 90, 91, 91A और 91B से होकर यह नदी दक्षिण दिशा में चलती हैजहाँ लगभग 2.5 किलोमीटर नीचे भारत का जोरियाही नाम का पहला गाँव पड़ता है। यहाँ से 5 किलोमीटर दक्षिण चल कर बागमती खोरीपाकर गाँव में आती है।ढेंग से खोरीपाकर की दूरी साढे़ बारह कि.मी. है और यहीं से थोड़ा और नीचे चल कर देवापुर गाँव के पास उसके दाहिने किनारे पर लालबकेया नदी मिलती है। इस लम्बाई में नदी की प्रवृत्ति पश्चिम से होकर बहने की है मगर लालबकेया से उसका संगम स्थल प्रायः स्थिर रहता है। नदी की इस लम्बाई में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं हुए हैं यद्यपि उसकी एक पुरानी धारा का जिक्र और रेखांकन जरूर मिलता है।

मध्य बागमती


सीतामढ़ी जिले में खोरीपाकर से लेकर दरभंगा जिले के कनौजर घाट (कलंजर घाट) के लगभग 106 किलोमीटर की दूरी में नदी की धारा हमेशा अस्थिर रही है और जबसे इन धाराओं का रिकार्ड रखा गया और उसके नक्शे बनाये जाने लगे तब से इन बदलती धाराओं की अस्थिरता का अन्दाजा लगता है। कनौजर घाट से पूरब दिशा में बढ़ती हुई यह नदी हायाघाट में दरभंगा-समस्तीपुर रेल लाइन के पुल नं. 17 के नीचे से बहती है। इस पुल से थोड़ा पहले इसमें अधवारा समूह की नदियों का सम्मिलित प्रवाह लेकर नदी के बाँये किनारे पर दरभंगा-बागमती आकर मिल जाती है और इसके बाद इस नदी का नाम करेह हो जाता है। मध्य बागमती की विभिन्न धाराओं के बारे में हम खण्ड 1.4 में चर्चा करेंगे।

दक्षिण-पूर्व बागमती


हायाघाट से लेकर खोरमार घाट तक, जहाँ यह नदी अंततः कोसी में मिल जाती थी, नदी की धारा एक बार फिर लगभग स्थिर है। इस दूरी में नदी के कगार व्यवस्थित तथा सुदृढ़ दिखाई पड़ते हैं। 1991 में खगड़िया जिले में महेशखुंट और बेलदौर को जोड़ने वाली सड़क में डुमरी के पास एक पुल बनाया गया। जहाँ यह पुल बनाया गया वहाँ कोसी और बागमती नदियाँ प्रायः एक किलोमीटर के अन्तर पर बहा करती थीं। पुल निर्माण के पहले बागमती नदी पर इसी जगह सोनबरसा घाट नाम का एक बहुत महत्वपूर्ण घाट हुआ करता था। जिस पुल का निर्माण हुआ उसमें शायद खर्च की कटौती को ध्यान में रख कर कोसी और बागमती को एक साथ समेट लिया गया जिसमें पुल तो कोसी के हिस्से में आया मगर पुल के पहुँच मार्ग ने बागमती का मुहाना बन्द कर दिया और इस तरह बागमती सोनबरसा घाट पर ही कोसी से मिलने को बाध्य हो गयी। पुल के निर्माण की वजह से सोनबरसा घाट की उपयोगिता स्वयं ही समाप्त हो गयी। हायाघाट से डुमरी पुल तक बागमती का यह निचला क्षेत्र 137 किलोमीटर लम्बा है।

बिहार में इस नदी की कुल लम्बाई 394 किलोमीटर तथा जल ग्रहण क्षेत्र लगभग 6,500 वर्ग किलोमीटर होता है। इस तरह नदी उद्गम से गंगा तक कुल लम्बाई लगभग 589 किलोमीटर और कुल जल ग्रहण क्षेत्र 14,384 वर्ग किलोमीटर बैठता है। बिहार के द्वितीय सिंचाई आयोग की रिपोर्ट (1994) के अनुसार बागमती के ऊपरी क्षेत्र काठमाण्डू के आस-पास सालाना औसत बारिश लगभग 1460 मिलीमीटर होती है जबकि चम्पारण में 1392 मि.मी., सीतामढ़ी में 1184 मि.मी., मुजफ्फरपुर में 1184 मि.मी., दरभंगा में 1250 मि.मी. और समस्तीपुर में 1169 मि.मी. होती है। बिहार में बागमती घाटी में औसत वर्षा 1255 मिलीमीटर होती है। बागमती नदी में प्रतिवर्ष आने वाली गाद की औसत मात्रा ढेंग में एक करोड़ चार लाख छः हजार टन (पैंसठ लाख तीन हजार सात सौ पचास घनमीटर) है जबकि हायाघाट पहुँचते-पहुँचते यह मात्रा बहत्तर लाख तेरह हजार टन (लगभग पैंतालीस लाख आठ हजार घनमीटर) रह जाती है। इस तरह लगभग बीस लाख टन घन मीटर रेत/मिट्टी ढेंग और हायाघाट के बीच हर साल फैल जाती है। इस गाद का अधिकांश भाग बाढ़ के पानी के साथ खेतों में फैलता है या फिर नदी की तलहटी में बैठ जाता है। इस मिट्टी को अगर ट्रकों में भरा जाए तो हर साल लगभग तीन लाख ट्रकों की जरूरत पड़ेगी।

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