बिहार सरकार भी पीछे नहीं-एक और जांच आयोग

इतने सारे तर्क-कुतर्क के बीच बिहार की कर्पूरी ठाकुर सरकार ने भारत सेवक समाज के मामलों की जाँच के लिए एक आयोग का गठन (1978) कर डाला जिसमें निम्न विषयों पर विचार होना था।

(i) क्या जन सहयोग के नाम पर भारत सेवक समाज ने केन्द्रीय निर्माण समिति और कोसी परियोजना निर्माण समिति के माध्यम से कोसी परियोजना में निर्माण के काम हासिल किये हैं और उसके दल नायकों के माध्यम से 1955 और 1962 के बीच पेशगी रकम पाई जिसमें से 23 लाख (तेईस लाख) रुपयों की वसूली श्री ललित नारायण मिश्र और श्री लहटन चौधरी द्वारा स्थापित दल नायकों की गैर-मौजूदगी की वजह से नामुमकिन हो गई है और क्या कथित राशि या उसके कुछ हिस्से का गबन करके कोसी परियोजना प्रशासन और सरकार को गलत तरीके से नुकसान पहुंचाया गया है?

(ii) क्या भारत सेवक समाज, जिसे केन्द्रीय निर्माण समिति और कोसी परियोजना निर्माण समिति के माध्यम से कोसी परियोजना में मिट्टी के काम के साथ दूसरे निर्माण कार्य भी दिये गये थे, के दलनायकों को देय राशि में से पैसा काट कर किसी सामूहिक बचत कोष की स्थापना की गई थी जिससे सामूहिक हित की स्कीमों पर काम किया जा सके?

(iii) यह सामूहिक बचत कोष कितने तक का था और इसको जमा करने तथा हिसाब-किताब रखने की प्रक्रिया क्या थी?

(iv) क्या श्री ललित नारायण मिश्र और श्री लहटन चौधरी द्वारा सामूहिक बचत कोष से निकाली गई पूर्व कथित 8,43,068 रुपयों की राशि या उसके बाद निकाली गई कोई रकम उन विकास कार्यों पर खर्च की गई जिसकी कोष द्वारा अपेक्षा थी और अगर नहीं, तो वह कौन लोग हैं, जो कि अगर कोई गबन हुआ हो तो, उसके जिम्मेवार हैं?

(v) इन कथित दो व्यक्तियों, नामशः ललित नारायण मिश्र और लहटन चौधरी, उनके परिवारों, सम्बन्धियों और ऐसे व्यक्तियों की जिनमें इनकी रुचि हो, की सम्पत्ति और आवक संसाधन कोसी परियोजना के काम के शुरू होने और उसके बाद में क्या थे?

जाँच की प्रक्रिया में आयोग उन सभी आरोपों और साक्ष्यों पर विचार करेगा, यदि कोई हो, जिसे सरकारें, जनता और संगठनों के सदस्य उसके सामने रखेंगे। इस एक सदस्यीय आयोग के अध्यक्ष पटना उच्च न्यायालय के एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.के. दत्त थे और यह आशा की गई थी कि आयोग अपनी रिपोर्ट 9 महीने के अन्दर दे देगा। यह सूचना तत्कालीन मुख्य सचिव आर.एन. मण्डल के हस्ताक्षर से 26 मई 1971 को जारी की गई थी।

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