बिलासपुर जिले के जल संसाधनों का उपयोग (Use of water resources in Bilaspur district)


बिलासपुर जिले में सिंचाई


बिलासपुर जिले में जल के उपयोग की दृष्टि से सिंचाई का स्थान सर्वोपरि है। जिले की लगभग 1,77378 हेक्टेयर भूमि विभिन्न साधनों से सिंचित है। यह सम्पूर्ण फसली क्षेत्र का 16.6 प्रतिशत है, जबकि मध्य प्रदेश का औसत 13.7 प्रतिशत है।

सिंचाई की आवश्यकता


बिलासपुर जिले की औसत वार्षिक वर्षा 139 से.मी. है परंतु वर्षा की अनिश्चितता एवं अनियमितता के कारण समय-समय पर बाढ़ आथवा सूखे की स्थिति बनी रहती है। पुन: वर्षा का सामयिक वितरण भी इस प्रकार है कि आवश्यकता के समय फसलों के लिये पर्याप्त जल उपलब्ध नहीं हो पाता। जिले की मासिक वर्षा के आर्द्रता निदेशांक में मौसमी परिवर्तन इस बात का सूचक है कि यहाँ ऋतुगत सूखे की स्थिति है। वर्षा के मौसम की धनात्मक आर्द्रता सूखे मौसम की आर्द्रता से अधिक है। अत: वर्षा के जल की व्यवस्था करके क्षेत्र में उसका उपयोग करके न केवल फसलों को नष्ट होने से बचाया जा सकता है वरन दो फसली कृषि भी सम्भव है। जिले की मिट्टियों में पर्याप्त विभिन्नता है। जिले के उत्तर-पश्चिमी भाग के मुंगेली तहसील में गहरी कन्हार मिट्टी पायी जाती है, जिसकी जल धारण क्षमता अधिक है। फलत: कम सिंचाई ही पर्याप्त हो जाती है। वहीं सक्ती तथा जांजगीर तहसीलों में मटासी मिट्टी का विस्तार है, जिसकी जल धारण क्षमता मात्र 3.9 प्रतिशत है। अत: ऐसी भूमि को कृषि योग्य बनाए रखने के लिये बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। जिले में सक्ती, जांजगीर तथा बलौदा विकासखण्डों के क्षेत्र में जलाभाव के कारण केवल वर्षाकालीन अवधि में ही कृषि हो पाती है।

सिंचाई हेतु सुविधाएँ


बिलासपुर जिले को दो प्रमुख भौतिक विभागों में विभक्त किया गया है (अग्रवाल, 1971)।

अ. उत्तरी रिमलैंड
ब. बिलासपुर का मैदान

300 मीटर की समोच्च रेखा इन दोनों विभागों के मध्य विभाजक रेखा के रूप में है। जिले का सामान्य ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है, जिसके कारण उत्तरी पर्वतीय भागों से नदियाँ निकल कर दक्षिणी मैदानी क्षेत्रों से प्रवाहित होते हुए शिवनाथ एवं महानदी में मिलती हैं। जब ये नदियाँ पर्वत से उतरती हैं तब पर्वत पदीय क्षेत्रों में बांध बनाने के लिये उपयुक्त दशाएँ प्रस्तुत करती हैं। इसी प्राकृतिक देन का लाभ उठाते हुए जिले में खारंग तथा मनियारी जलाशयों का निर्माण किया गया है।

बिलासपुर मैदान का ढाल इतना मंद है कि नदियों के ऊपरी भाग से निकाली गयी नहरों का जल आसानी से फैल जाता है। बिलासपुर मैदान में पूर्व से पश्चिम क्रमश: दोमट, मटासी, कन्हार एवं कहीं-कहीं पर नदियों द्वारा लायी गयी कांप मिट्टी पायी जाती है। इन मिट्टियों में पर्याप्त जल प्राप्त होने पर उत्तम फसलें उत्पन्न की जा सकती हैं।

बिलासपुर जिला जल संसाधन संपन्न है, जिले की नदियों की कुल उपलब्ध जल राशि 9829 लाख घनमीटर है। जिले में अनुमानित भूगर्भ जल 2408 लाख घन मीटर वार्षिक है। इस प्रकार जिले में जल संसाधन की पर्याप्तता है, जिनका समुचित विकास अत्यावश्यक है।

जिले में जल संसाधन का विकास


बिलासपुर जिले में प्राचीन समय से ही सिंचाई व्यवस्था न्यूनाधिक रूप में रही है। प्राचीन समय में स्थानीय राजाओं ने जिले में कई तालाब एवं कुण्ड सिंचाई हेतु बनवाए। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण रतनपुर है जहाँ 50 से भी अधिक सिंचाई योग्य तालाब हैं। बीसवीं शताब्दी के आरंभ में (1901-1904) परम्परागत साधनों-तालाब, डबरी एवं कुआँ से जिले के 12145 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती थी। वर्ष 1906 में बिलासपुर जिले में सिंचाई अनुविभाग की स्थापना के साथ ही जिले में लघु सिंचाई योजनायें प्रारंभ हो गयी। परिणामस्वरूप जिले के सिंचित क्षेत्र में अभिवृद्धि हुई। 1910 में सिंचित क्षेत्र 1224.6 था जो 1920 में बढ़कर 3279 हेक्टेयर हो गया। बीसवीं शताब्दी का द्वितीय दशक जल संसाधन विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा। जब हसदो सिंचाई विभाग की स्थापना के साथ ही प्रशासकों का ध्यान 300 लाख घनमीटर वार्षिक जल प्रवाह की ओर गया एवं दो महत्त्वपूर्ण योजनायें क्रियान्वित की गई। वर्ष 1929 में अरपा की सहायक खारून नदी पर खूंटाघाट नामक स्थान पर खारंग जलाशय का निर्माण किया गया एवं 1927 में मनियारी नदी पर खुड़िया नामक स्थान पर मनियारी जलाशय का निर्माण किया गया। वर्ष 1931 तक निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। इन योजनाओं के पूर्ण होने के साथ ही जिले के सिंचित क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि हुई। जिले के जल संसाधन का विकास वर्ष 1931-51 की अवधि में अत्यंत न्यून हुआ, क्योंकि तात्कालीन प्रशासन द्वारा सिंचाई के विकास के लिये कोई भी कार्यक्रम का प्रावधान नहीं रखा गया। इस प्रकार सम्पूर्ण पूर्ण योजना काल में जिले में सिंचाई के विकास का विवरण सारिणी क्रमांक 22 में दर्शाया गया है।

सारिणी क्रमांक 22 बिलासपुर जिला योजना पूर्व सिंचाई की स्थितिबिलासपुर जिले में सिंचाई का विकास पंचवर्षीय योजनाओं के तहत द्रूतगति से हुआ। प्रथम पंचवर्षीय योजना में तालाबों के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया गया। जिले के अंतर्गत 9 बड़े तालाबों का निर्माण हुआ। जिससे लगभग 830 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि की सिंचाई हो सकी। सन 1957 से 1961 की अवधि में शासन द्वारा सिंचाई के लिये निम्नलिखित दो प्रकार की योजनाएँ बनायी गयी -

1. वृहत योजनाएँ, एवं
2. लघु योजनाएँ

वृहत योजना के अंतर्गत मनियारी जलाशय का विकास किया गया जिसके अंतर्गत चौरसिया बांध से 440 हेक्टेयर खरीफ फसल की सिंचाई की जाने लगी। इसके अतिरिक्त 6 लघु योजनाएँ भी सन 1957 से 1960 के मध्य बना, जिससे 1170 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो सकी। इस प्रकार सम्पूर्ण द्वितीय पंचवर्षीय योजना में जिले में 9 सिंचाई परियोजनाएँ क्रियान्वित की गई, जिससे 1790 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की जा सकी।

तृतीय पंचवर्षीय योजना (1985-1970) में सिंचाई के साधनों में विस्तार की वृहत योजना निर्मित की गयी। इस अवधि में जिले का महती हसदो बांगों वृहत परियोजना कार्य प्रारंभ हुआ, जिसके तहत कटघोरा तहसील में दर्री ग्राम के निकट जलाशय का निर्माण किया गया। बांधी नहर से ताप विद्युत गृह कोरबा को जल आपूर्ति की जाने लगी एवं दायीं तट पर 51.39 किलो मीटर लंबी नहर का निर्माण कर 219 ग्रामों के 4148.8 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई प्रारंभ हुई। लघु सिंचाई योजना के अंतर्गत 22 सिंचाई तालाबों का निर्माण हुआ, जिससे 1920.9 हेक्टेयर क्षेत्र की अतिरिक्त सिंचाई होने लगी।

चौथी पंचवर्षीय योजना काल में जिले में सिंचित क्षेत्र में अतिरिक्त 45,888 हेक्टेयर की वृद्धि हुई। इसी योजना में अरपा नदी पर भैंसाझार ग्राम के निकट जलाशय की योजना प्रस्तावित कि गई। साथ ही आगर एवं हाफ नदी पर भी जलाशय के निर्माण का प्रावधान रखा गया। इसके अतिरिक्त कई अन्य लघु जलाशय योजनाओं को भी पूर्ण किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप सिंचित क्षेत्र में 4,888 हेक्टेयर भूमि की वृद्धि हुई। इस योजना काल में सिंचाई के सभी साधनों का विकास किया गया। तालाबों एवं कुओं की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई (क्रमश: 14570 एवं 8244) जिससे सिंचित क्षेत्र में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।

पाँचवी पंचवर्षीय योजना (1976-1980) में जिले में सिंचाई के अंतर्गत 186 लघु योजनाओं पर कार्य का प्रावधान रखा गया किंतु योजना काल के प्रथम दो वर्षों में सूखे की भीषण स्थिति के फलस्वरूप पुरानी योजनाओं पर ही कार्य हो सका जिससे 6600 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जा सकी।

छठवीं पंचवर्षीय योजना


इस योजना में (1980-85) वृहत, मध्यम एवं लघु तीनों सिंचाई योजनों पर बल दिया जाने लगा। इस योजनाकाल के प्रथम वर्ष (1980-81) में 1.08 लाख हेक्टेयर भूमि वृहत, 0.12 लाख हेक्टेयर भूमि मध्यम एवं 0.40 लाख हेक्टेयर भूमि पर लघु योजनाओं के माध्यम से सिंचाई की सुविधा प्राप्त हो सकी। जिसके परिणामस्वरूप सिंचाई क्षेत्र में 0.08 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसके पूर्व 1979-80 में सिंचाई का प्रतिशत 10 था। छठवीं योजना के द्वितीय वर्ष (1981-82) में सम्पूर्ण जिले में 1.65 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की व्यवस्था हो सकी। इस प्रकार 1980-81 में 10.9 प्रतिशत सिंचाई की क्षमता बढ़कर 1981-82 में 11.80 प्रतिशत हो गई। योजनाकाल के तृतीय एवं चतुर्थ वर्ष में (1984 तक) 1510020.04 एवं 18367.3 हेक्टेयर में सिंचाई की अतिरिक्त सुविधा प्राप्त हुई। इस प्रकार बिलासपुर जिले में 1985 तक कुल सिंचित क्षेत्र 16.4 प्रतिशत रहा।

वर्तमान में जिले के 1,78,282 हेक्टेयर (कुल फसली क्षेत्र का 16.4 प्रतिशत) में सिंचाई की सुविधा प्राप्त है। इसके अतिरिक्त हसदो बांगों योजना के तृतीय चरण के पूर्ण होने के साथ ही सरकारी साधनों से सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत 24.4 हो जायेगा।

समग्ररूपेण कहा जा सकता है कि जिले में वर्तमान जल संसाधन विकास का यह स्वरूप मुख्यत: विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में किए गए विकास कार्यों का प्रतिफल है। यद्यपि प्रथम एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजना अवधि में आशातीत वृद्धि नहीं हुई तथापि उसके पश्चात सिंचित क्षेत्र में तीव्र गति से विकास हुआ।

बिलासपुर जिले में जल संसाधन विकास की गति भिन्न-भिन्न रही। सिंचाई का सर्वाधिक विकास बिलासपुर तहसील में हुआ। 1964-67 की अवधि में 166519 हेक्टेयर हो गया। इस प्रकार सिंचित क्षेत्र में 198 प्रतिशत की वृद्धि हुई। संप्रति कुल फसल क्षेत्र का 82.4 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है। जल संसाधन विकास की दृष्टि से जांजगीर तहसील द्वितीय स्थान पर है। 1964-67 की अवधि 3315 हेक्टेयर भूमि सिंचित थी जो 1984-87 में बढ़कर 63479 हेक्टेयर हो गई। मुंगेली तहसील में कुल फसल क्षेत्र का 9.6 प्रतिशत सिंचित भूमि है। यहाँ विकास की दर 5.10 प्रतिशत रही। इसका मुख्य कारण मनियारी जलाशय योजना के पश्चात अन्य किसी महती योजना पर कार्य न होना है। इन क्षेत्रों में वृद्धि का प्रतिशत क्रमश: 66.18 एवं 89.7 है।

सिंचाई का वितरण एवं सिंचाई उपलब्धता में स्थानिक विभिन्नताएँ


बिलासपुर जिले के सिंचित क्षेत्र के वितरण की दृष्टि से क्षेत्रीय विभिन्नता स्पष्टतया परिलक्षित होती है। जिले के दक्षिणी मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई का केंद्रीकरण अत्यधिक हुआ है। समस्त दक्षिणी मैदानी क्षेत्र के विकासखण्डों के कुल क्षेत्रफल (92086 हेक्टेयर) का 23.4 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है। वहीं उत्तरी मैकल श्रेणी, धुरी की पहाड़ियों, पेण्ड्रा का पठार आदि क्षेत्रों में सिंचाई की व्यवस्था नगण्य है। इन विकासखण्डों में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 1.9 प्रतिशत ही सिंचित है।

बिलासपुर जिले में कुल फसली क्षेत्र में सिंचित क्षेत्र में सिंचित क्षेत्र का विस्तार न्यूनतम 0.81 प्रतिशत (कटघोरा) से अधिकतम 60.76 प्रतिशत (जांजगीर) विकासखण्ड में है। क्षेत्र का सर्वाधिक वितरण जांजगीर (60.76 प्रतिशत) विकासखण्ड में है। इसके पश्चात क्रमश: बिल्हा (54.50 प्रतिशत) मस्तुरी (51.24 प्रतिशत) विकासखण्ड का स्थान है। इन क्षेत्रों में सिंचाई का प्रमुख साधन नहर है। खारंग, मनियारी एवं हसदो बांगों योजनाओं के कारण इन क्षेत्रों में नहरों से सिंचित क्षेत्र अधिक है। जिले के मुंगेली, पंडिरिया, बलौदा, अकलतरा, जयजयपुर, कोटा एवं डभरा विकासखण्डों में कुल फसली क्षेत्र के 10-20 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है। इन क्षेत्रों में सिंचाई मुख्यत: तालाबों एवं कुओं से की जाती है। जिले में कुल फसली क्षेत्र में सिंचित क्षेत्र का न्यूनतम प्रतिशत कटघोरा (0.8 प्रतिशत) विकासखण्ड में है। इसके पश्चात क्रमश: पाली (3.38 प्रतिशत), पेण्ड्रा (2.79 प्रतिशत), मरवाही (3.05 प्रतिशत), एवं करतला (2.52 प्रतिशत) विकासखण्डों का स्थान आता है। ये क्षेत्र वनाच्छादित एवं पर्वतीय है जिससे कृषि भूमि कम है तथा सिंचाई के साधनों की विकास नहीं हो सका है।

सिंचाई के साधन


नहर बिलासपुर जिले में सिंचाई के प्रमुख साधन हैं। जिले के सम्पूर्ण सिंचित क्षेत्र का 76.2 प्रतिशत क्षेत्र नहरों द्वारा सिंचित है। तालाब द्वितीय प्रमुख सिंचाई का साधन है, जिससे जिले के सम्पूर्ण सिंचित क्षेत्र के 10.3 प्रतिशत भूमि पर सिंचाई की जाती है। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भूगर्भ जल के परिणाम स्वरूप नलकूपों द्वारा सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हुई है। वर्तमान में जिले के 6.3 प्रतिशत क्षेत्र नलकूपों द्वारा सिंचित है। जिले में सिंचाई हेतु परम्परागत साधनों कुएँ, नहर, मोट इत्यादि का भी प्रयोग किया जाता है। जिले की कुल सिंचित भूमि का 7.33 प्रतिशत भूमि इन साधनों से सिंचित है।

नहरें


बिलासपुर जिले में 76.2 प्रतिशत क्षेत्र नहरों के द्वारा सिंचित है। जिले में दो मध्यम एवं एक वृहत सिंचाई परियोजना है। साथ ही नालों एवं तालाबों पर लघु सिंचाई योजनाएँ भी विकसित की गई है।

योजना पूर्व बिलासपुर जिले में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र 80285 हेक्टेयर था जबकि वर्तमान में यह क्षेत्र 135,591 हेक्टेयर है। इस प्रकार नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र में 88.26 प्रतिशत वृद्धि हुई है। पुन: नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र में जिले के सभी तहसीलों में वृद्धि हुई है। वृद्धि का सर्वाधिक प्रतिशत जांजगीर तहसील में हुई, जहाँ सन 1964-67 में 419 हेक्टेयर भूमि नहरों द्वारा सिंचित था, जो 1975-77 में 24293 हेक्टेयर एवं 1984-87 में 68194.4 हेक्टेयर हो गयी। इस वृद्धि का प्रमुख कारण हसदो बांगो योजना का क्रियान्वयन है। मुंगेली तहसील में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र 1965-66 की अवधि में 37526 हेक्टेयर था जो 1974-77 की अवधि में बढ़कर 43023 हेक्टेयर हो गया। इस प्रकार इस अवधि में 12.8 प्रतिशत वृद्धि हुई। किंतु कालांतर में नहरों द्वारा सिंचित था। इसका प्रमुख कारण इन वर्षों में वार्षिक वर्षा की न्यूनता के कारण जल का अभाव है। कटघोरा तहसील में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र धरातलीय विषमताओं के कारण अत्यंत कम है। इस क्षेत्र में सन 1977 तक नहरों का अभाव था। तृतीय पंचवर्षीय योजना काल में हसदो-बांगों योजना का निर्माण प्रारंभ हुआ, जिसके परिणामस्वरूप नहरों द्वारा 1197 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई हो सकी। सक्ती तहसील में चौथी एवं पाँचवी पंचवर्षीय योजना की अवधि में अनेक लघु जलाशय निर्मित किए गए परिणाम स्वरूप नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हुई। 1974-77 के कुल सिंचित क्षेत्र 1.12 प्रतिशत भूमि नहरों द्वारा सिंचित थी वहीं 1984-97 की अवधि में यह क्षेत्र बढ़कर 19.71 प्रतिशत हो गयी।

वर्तमान समय में बिलासपुर जिले में नहरों द्वारा सिंचित सर्वाधिक क्षेत्र जांजगीर विकासखण्ड में 35998 हेक्टेयर है, जो कुल सिंचित क्षेत्र का 97.0 प्रतिशत है। जिले के मस्तुरी, अकलतरा, बिल्हा, बलौदा एवं चांपा विकासखण्डों में 50.75 प्रतिशत भूमि नहरों द्वारा सिंचित है। मरवाही, पेण्ड्रा, पाली, कोरबा, करतला, मालखरौदा एवं जयजयपुर विकासखण्डों में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र अत्यंत कम 0-1 प्रतिशत तक है। बिलासपुर जिले का मालखरौदा विकासखण्ड ऐसा क्षेत्र है, जहाँ नहरों का विकास नहीं हुआ है।

सामान्यत: जिन क्षेत्रों में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र अधिक है, वहाँ सिंचाई घनत्व भी अधिक है। जिले के मस्तुरी, जांजगरी, अकलतरा, चांपा एवं लोरमी विकासखण्ड प्रथम वर्ग के अंतर्गत आते हैं। जहाँ नहरों के द्वारा सिंचित क्षेत्र अधिक हैं। इन विकासखण्डों में निरा बोये गये क्षेत्र का 50 प्रतिशत से अधिक भाग पर नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। बिल्हा, मुंगेली एवं बलौदा विकासखण्ड द्वितीय संवर्ग के अंतर्गत है। जहाँ 20 से 25 प्रतिशत तक भूमि नहरों के द्वरा सिंचित की जाती है। जिले के शेष विकासखण्डों मरवाही, पंडरिया, जयजयपुर एवं मालखरौदा में सिंचित क्षेत्र के 5 प्रतिशत से कम है।

प्रमुख नहर प्रणालियाँ


बिलासपुर जिले के प्रमुख नहर प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं -

खारंग नहर प्रणाली


अरपा की सहायक खारंग नदी पर सन 1924 में निर्मित खारंग जलाशय से निकाली गयी नहर प्रणाली के द्वारा जिले के बिल्हा एवं मस्तुरी विकासखण्डों के 44534 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती है। दाहिनी नहर की कुल लंबाई 128.07 किलो मीटर एवं बायीं नहर की लंबाई 80.45 किलो मीटर है। दांयी तट नहर से 243.02 क्यूसेक एवं बांयी तट नहर से 129.08 क्यूसेक जल सिंचाई हेतु प्रवाहित होता है, जिससे बिल्हा विकासखण्ड के 13495 हेक्टेयर एवं मस्तुरी विकासखण्ड के 13495 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है, जो कुल सिंचित क्षेत्र का 22.7 प्रतिशत है। इस नहर प्रणाली द्वारा सिंचाई मुख्यत: खरीफ फसलों में ही की जाती है। इसके द्वारा 42510 हेक्टेयर खरीफ फसलों पर एवं 2024 हेक्टेयर रबी फसली क्षेत्र पर की जाती है।

मनियारी नहर प्रणाली


जिले के मुंगेली तहसील में मनियारी नदी पर यह नहर प्रणाली विकसित की गई है। इस नहर प्रणाली में मुख्य बांध खुडिया नामक स्थान पर निर्मित है। जिसकी जल क्षमता 291.26 लाख घन मीटर है। जलाशय से निकाली गयी बांयी तट नहर की कुल लंबाई 71.98 किलो मीटर एवं दाहिनी तट नहर की लंबाई अपने प्रशाखाओं के साथ 139.14 किलोमीटर है। इन नहरों का जलावाह 1.90 क्यूसेक प्रति सेकेंड है। इन नहरों की कुल सिंचाई क्षमता 40486 हेक्टेयर है। किंतु वास्तविक सिंचाई क्षेत्र 40412 हेक्टेयर है। खरीफ मौसम में धान के 40.12 हेक्टेयर क्षेत्र की एवं रबी में गेहूँ, चना आदि फसलों के क्षेत्र नगण्य है। इस नहर प्रणाली से लाभान्वित ग्रामों की संख्या 323 है।

घोंघा नहर प्रणाली


कोटा विकासखण्ड में घोंघा नाला पर निर्मित यह नहर प्रणाली एक मध्यम जलाशय योजना है। इसके अंतर्गत निर्मित बांध की जल अधिग्रहण क्षमता 53.02 लाख घनमीटर है। मुख्य नहरों की लंबाई 76.30 किलो मीटर एवं ऊपर नहरों की लंबाई 32 किलो मीटर है। नहरों द्वारा 300 क्यूसेक प्रति सेकेंड जलावाह के माध्यम से 8200 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती है। कुल सिंचित जल का उपयोग 1417 हेक्टेयर खरीफ क्षेत्र एवं 700 हेक्टेयर रबी क्षेत्र में सिंचाई हेतु किया जाता है। जिले के कोटा एवं तखतपुर विकासखण्ड के 74 ग्राम इसके लाभान्वित क्षेत्र है।

हसदो-बांगो नहर प्रणाली


बिलासपुर जिला उत्तर पूर्वी विकासखण्डों कटघोरा, कोरबा, अकलतरा, चांपा एवं जांजगीर इत्यादि क्षेत्र में इस नहर प्रणाली के माध्यम से सिंचाई हेतु जल उपलब्ध होता है। इस नहर प्रणाली का विकास हसदो नदी पर किया गया है। इस नहर प्रणाली के तहत जलाशय से निकाली गयी प्रमुख दांयी तट नहर की लंबाई 48 किलो मीटर एवं बांयी तट नहरों की लंबाई 50 किलो मीटर है। जिनके क्रमश: 117 एवं 138 क्यूसेक जल उपयोग हेतु प्रवाहित होता है। इन प्रमुख नहरों की अनेक छोटी प्रशाखाएँ हैं जिनका विवरण निम्नलिखित है -

 

नहर

लम्बाई

चांपा शाखा नहर

54 किलोमीटर

सक्ती शाखा नहर

32 किलोमीटर

खरसीया शाखा नहर

42 किलोमीटर

जांजगीर शाखा नहर

22 किलोमीटर

अकलतरा शाखा नहर

42 किलोमीटर

 

सम्पूर्ण नहर प्रणाली के माध्यम से 255,000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई संभाव्य है। वर्तमान में 42,000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई मुख्य रूप से खरीफ के फसलों में होती है।

तालाब


तालाबों द्वारा बिलासपुर जिले के 10.16 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई की जाती है। जिले में तालाबों द्वारा प्राचीन समय से सिंचाई की जाती है। वर्ष 1960-61 में तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र 8274.05 हेक्टेयर था। इसके पश्चात शासन द्वारा अनेक छोटे-छोटे तालाबों पर सिंचाई योजनाएँ निर्मित की गयी। फलस्वरूप तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हुई। वर्ष 1970-71 में 10092 हेक्टेयर क्षेत्र तालाबों द्वारा सिंचित था जो वर्ष 1985-86 तक बढ़कर 18378 हेक्टेयर हो गया। इस प्रकार लघु जलाशय सिंचाई योजना के परिणामस्वरूप तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि हुई है। तथापि विभिन्न तहसीलों में वृद्धि की दर भिन्न-भिन्न है। बिलासपुर तहसील में 1964-67 में तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र जहाँ 12219 हेक्टेयर था किंतु 1984-87 में सिंचित क्षेत्र में 6.71 प्रतिशत की कमी आयी है। तालाबों के स्थान पर नहरों को प्राथमिकता देने से तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र में कमी आई। जांजगीर तहसील में उक्त अवधि में 59.9 प्रतिशत कमी आई है। इसके विपरीत मुंगेली एवं सक्ती तहसीलों में तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र में क्रमश: वृद्धि हुई। सक्ती तहसील में 1965-67 की अवधि में 287.7 हेक्टेयर भूमि तालाबों द्वारा सिंचित थी जो 1984-87 की अवधि में बढ़कर 7125 हेक्टेयर हो गयी। इस प्रकार 83.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मुंगेली तहसील में यह वृद्धि 7.69 प्रतिशत रही।

बिलासपुर जिले में तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र की गहनता दक्षिणी पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में अधिक है। सर्वाधिक सघनता जयजयपुर विकासखण्ड (22.0 प्रतिशत) में है। अकलतरा, बलौदा, चांपा, मालखरौदा, सक्ती एवं डभरा विकासखण्डों में तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र की गहनता 5 से 10 प्रतिशत तक है। जिले के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में गौरेला, मरवाही, पाली, पोडी-उपरोरा, कोरबा एवं करतला विकासखण्डों तथा दक्षिण-पश्चिम में स्थित मुंगेली एवं पंडरिया विकासखण्डों में गहनता का प्रतिशत नगण्य (0.2 प्रतिशत) है। बिल्हा, मस्तुरी, कोटा एवं तखतपुर विकासखण्डों में गहनता 1-3 प्रतिशत तक है।

तालाबों के क्षेत्रीय वितरण की दृष्टि से सिंचाई युक्त तालाबों का सर्वाधिक केंद्रीकरण हसदो महानदी मैदान में है। इन क्षेत्रों में सिंचाई युक्त वृहत तालाबों की संख्या 1516 है किंतु नहरों के विकास के कारण समस्त सिंचित क्षेत्र का मात्र 1.30 प्रतिशत भूमि है। तालाबों द्वारा सिंचित है। तालाबों की कम संख्या पंडरिया (315), मुंगेली (413) एवं पथरिया (310) में है।

कुआँ


कुओं द्वारा बिलासपुर जिले के 4.16 प्रतिशत भूमि को जल प्राप्य है। जिले में वर्तमान में कुल 17.982 सिंचाई के कुएँ हैं, जिनमें से 8.4 प्रतिशत मस्तुरी, जयजयपुर एवं पामगढ़ विकासखण्ड में है। कुओं की न्यूनतम संख्या पंडिरिया, विकासखण्ड में (211) है।

बिलासपुर जिले में कुओं द्वारा प्रारम्भ से ही सिंचाई होती रही है। तथापि विगत 20 वर्षों की अवधि में कुओं द्वारा सिंचित क्षेत्र में पर्याप्त वृद्धि हुई है। वृद्धि की यह दर पर्याप्त विषमता लिये हुए है। कुओं द्वारा सिंचित क्षेत्र में सर्वाधिक वृद्धि मुंगेली तहसील में हुई। यहाँ 1964-67 में कुओं द्वारा सिंचित क्षेत्र 210 हेक्टेयर था जो 1984-87 में बढ़कर 962 हेक्टेयर हो गया। इस प्रकार 88.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। कटघोरा एवं सक्ती तहसील में भी कुओं द्वारा सिंचित क्षेत्र में अधिक वृद्धि हुई। 1964-67 के दशक में कटघोरा तहसील में 8.78 प्रतिशत भूमि कुओं द्वारा सिंचित थी जो 1984-87 में बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गया। सक्ती तहसील में वृद्धि का प्रतिशत 61.8 रहा। बिलासपुर तहसील में वर्तमान समय में 6109 हेक्टेयर क्षेत्र कुओं द्वारा सिंचित है। इस तहसील में 82.9 प्रतिशत वृद्धि हुई। कुओं द्वारा सिंचित क्षेत्र में न्यूनतम वृद्धि जांजगीर तहसील (5 प्रतिशत) में रही। हसदो-बांगों सिंचाई परियोजना के निर्माण में नहरी सिंचाई की सुविधा में वृद्धि हो जाने के कारण अन्य साधनों पर निर्भरता कम रही।

संप्रति कुओं द्वारा सिंचित बिलासपुर तहसील में कुल सिंचित क्षेत्र का 3.5 प्रतिशत है। इसके पश्चात क्रमश: मुंगेली तहसील में 2.3 प्रतिशत, सक्ती तहसील में 13.5 प्रतिशत, कटघोरा तहसील में 14.2 प्रतिशत तथा जांजगीर तहसील में 1.0 प्रतिशत है। इससे स्पष्ट है कि सामान्यत: जिन तहसीलों में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र अधिक है। वहाँ कुओं का विकास कम हुआ है। इसके विपरीत सक्ती एवं कटघोरा तहसील के पहाड़ी एवं वनीय क्षेत्रों में नहरों का अभाव है। यहाँ कुओं द्वारा सिंचित क्षेत्र (40121 हेक्टेयर) अधिक है।

जिले में विकासखण्डवार कुओं द्वारा सिंचित क्षेत्र का सर्वाधिक केंद्रीकरण उत्तर में पेण्ड्रा, गौरेला एवं मरवाही विकासखण्डों में हुआ है। पेण्ड्रा विकासखण्ड में सम्पूर्ण क्षेत्र का 58.2 प्रतिशत कुओं द्वारा सिंचित है। मरवाही में यह 50 प्रतिशत है। कुओं द्वारा सिंचाई का दूसरा प्रमुख क्षेत्र हसदोमांद बेसिन के मैदानी विकासखण्ड मालखरौदा, जाजयपुर, कोरबा, करतला एवं कटघोरा है। इन क्षेत्रों में 10-25 प्रतिशत तक क्षेत्र कुओं से सिंचित है। कुओं द्वारा कम सिंचित क्षेत्र पश्चिमी एवं मध्य बिलासपुर मैदानी क्षेत्र में स्थित बिल्हा (2.53 प्रतिशत), मस्तुरी (0.72 प्रतिशत), जांजगीर (0.50 प्रतिशत), अकलतरा (0.37 प्रतिशत), बलौदा (1.97 प्रतिशत), चांपा (2.40 प्रतिशत) एवं पामगढ़ (3.74 प्रतिशत) विकासखण्डों में है।

अन्य साधन


बिलासपुर जिले में 3.17 प्रतिशत भूमि अन्य साधनों द्वारा सिंचित है। इन साधनों में मौसमी नालें, डभरी आदि हैं। जिले के पथरिया विकासखण्ड में सर्वाधिक 18.8 प्रतिशत भूमि में सिंचाई हेतु अन्य साधनों द्वारा जल प्राप्त होता है। डभरा विकासखण्ड में 10.3 प्रतिशत इन साधनों से सिंचित है। न्यूनतम 2.0 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र मरवाही विकासखण्ड में है।

सिंचाई घनत्व


जिले के सभी क्षेत्रों में सिंचाई घनत्व के वितरण में पर्याप्त विषमताएँ हैं सामान्यत: जिले का सिंचाई का अधिक घनत्व जांजगीर, विकासखण्डों में (75 प्रतिशत से अधिक) है। इन विकासखण्डों में सिंचाई घनत्व के अधिक होने का प्रमुख कारण हसदोबांगों परियोजना है। मनियारी जलाशय योजना खारंग जलाशय योजना के अंतर्गत सिंचित क्षेत्र में वृद्धि के फलस्वरूप मस्तुरी, अकलतरा एवं चांपा विकासखण्डों में निरा बोये गये क्षेत्र का 50-75 प्रतिशत तक सिंचित भूमि है। जिले में सिंचाई घनत्व का न्यूनतम प्रतिशत मरवाही, पेण्ड्रा, पॉडी-उपरोरा, कटघोरा, कोरबा एवं करतला विकासखण्डों में (5-25 प्रतिशत) है। इन क्षेत्रों में धरातली विषमताओं, अकृषि योग्य भूमि के कारण सिंचाई के विकास में बाधा आयी है।

सिंचाई घनत्व की परिवर्तनशील प्रवृत्ति विकास की सूचक है। बिलासपुर जिले में सभी तहसीलों में वर्ष 1965-67 में जिले का औसत सिंचाई गहनता 15.4 प्रतिशत थी जो 1984-87 में बढ़कर 29.19 प्रतिशत हो गयी। इसका प्रमुख कारण चतुर्थ एवं पंचम योजना अवधि में सिंचाई का पर्याप्त विकास होना है। वृद्धि की यह दर भिन्न-भिन्न तहसीलों में भिन्न-भिन्न रही। जिले में सिंचाई घनत्व में सर्वाधिक वृद्धि बिलासपुर तहसील में हुई है। 1964-67 में सिंचाई घनत्व (23.3 प्रतिशत) था। जांजगीर तहसील में 1964-67 में सिंचाई गहनता 22.7 प्रतिशत थी जो 1984-87 में बढ़कर 52.9 प्रतिशत हो गयी।

सिंचाई घनत्व में मध्यम परिवर्तन कटघोरा एवं सक्ती तहसील में हुआ। इन तहसीलों में 1964-67 में सिंचाई गहनता क्रमश: 5.4 एवं 3.41 प्रतिशत थी जो 1984-87 में बढ़कर क्रमश: 8.85 एवं 6.40 प्रतिशत हो गयी। तथापि यह जिले की अंकित गहनता (29.19 प्रतिशत) से काफी कम है। इन क्षेत्रों में उच्चावच की अत्यधिक विषमताएँ वनों के विस्तार के कारण निरा बोये गये क्षेत्र की कमी आदि अनेक कारण हैं, जिनके परिणामस्वरूप सिंचाई घनत्व में वृद्धि दर मंद रही।

जिले की मुंगेली तहसील में सिंचाई गहनता की दर घट रही है। इसका प्रमुख कारण घटती हुई वर्षा की मात्रा, मनियारी जलाशय योजना का अधिकतम विकास हो जाना, आदि है। इस तहसील में 1964-67 में जहाँ 22.2 प्रतिशत सिंचाई घनत्व था, वहीं 1984-87 अवधि में घटकर 20 प्रतिशत रह गया।

सिंचित फसलें


भारतीय संदर्भ में कृषक पूँजी निवेश की तुलना में श्रम निवेश को विशेष महत्त्व देते हैं। सामान्यत: अधिकतम उत्पादन प्राप्त फसलों पर ही वह पूँजी निवेश करता है साथ ही उत्कृष्ट फसल ही सिंचित करता है। यह इस क्षेत्र के संदर्भ में भी सत्य ही है। यह जिले में भी खाद्यान्न फसली क्षेत्र का प्राधान्य है एवं धान सर्वाधिक सिंचित फसल है। विभिन्न फसलों की जलीय आवश्यकता भिन्न-भिन्न होती है। बिलासपुर जिले में विभिन्न फसलों में जल का उपयोग सारिणी क्रमांक 23 में दर्शाया गया है।

सारिणी क्रमांक 23 बिलासपुर जिला फसलवार जल उपयोगसारिणी क्रमांक - 21 से स्पष्ट है कि फसलान्तर्गत जल का सर्वाधिक उपयोग चावल की कृषि में ही होता है। मक्का द्वितीय महत्त्वपूर्ण फसल है। जिसमें कुल सिंचित जल का 5.4 प्रतिशत प्रयुक्त होता है। जिले में अन्य फसलान्तर्गत जल उपयोग नगण्य है। बिलासपुर जिले में कुल सिंचित क्षेत्र के 84.89 प्रतिशत खाद्यान्न फसल का है एवं क्षेत्र है। जिले में विभिन्न फसलों के अंतर्गत सिंचित क्षेत्र सारिणी क्रमांक 24 में प्रदर्शित है।

सारिणी क्रमांक 24 बिलासपुर जिला सिंचित फसलेंसारिणी क्रमांक 22 से स्पष्ट है कि चावल प्रमुख सिंचित फसल हैं, जिसके अंतर्गत 84.89 प्रतिशत भूमि सिंचित है। कुल सिंचित क्षेत्र के 7.1 प्रतिशत भाग में फल तथा सब्जियाँ उत्पन्न की जाती है। मक्का दूसरी प्रमुख खाद्यान्न फसल है जो 5.6 प्रतिशत सिंचित है। जिले में अखाद्य फसलों, (इन समस्त फसलों का सिंचित क्षेत्र का भाग 2.5 प्रतिशत) आदि के अंतर्गत सिंचित तिलहन एवं गेहूँ के क्षेत्र नगण्य हैं। जिले में फल तथा सब्जियाँ सामान्यत: ‘‘बाड़ी’’ में लगायी जाती है जहाँ कुएँ जल प्राप्ति के प्रमुख स्रोत हैं। जिले में 15867 हेक्टेयर भूमि पर साक-सब्जी एवं फलों का उत्पादन होता है। एवं यह सम्पूर्ण फसल सिंचित है।

बिलासपुर जिले में कुछ प्रमुख फसलों में सिंचाई का विवरण निम्नांकित हैं -

चावल


चावल जलीय पौधा है। सामान्यत: 100 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा वाले भागों में बिना सिंचाई के चावल पैदा किया जा सकता है। पौधे की जलीय आवश्यकता पौधे की वानस्पतिक वृद्धि के साथ बढ़ती जाती है। परंतु पकते समय बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। रोपण विधि से पौधा लगाने के लिये खेत में पानी का भरा होना आवश्यक है।

बिलासपुर जिले में चावल की खेती का प्रमुख क्षेत्र दक्षिण पूर्वी मैदानी क्षेत्र के दोमट, मटासी डोरसा मिट्टी युक्त क्षेत्र हैं। जिले में चावल के अंतर्गत सिंचित क्षेत्र का सर्वाधिक विस्तार (75 से 100 प्रतिशत) मस्तुरी, लोरमी एवं जांजगीर विकासखण्ड में है। इन विकासखण्डों में कुल धान के अंतर्गत क्षेत्र का क्रमश: 7679.6 एवं 90। प्रतिशत भूमि पर सिंचाई की व्यवस्था है। अकलतरा एवं बलौदा विकासखण्ड में धान के अंतर्गत 95.91 प्रतिशत, 95.64 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है। इन विकासखण्डों में हसदो बांगो, खारंग एवं मनियारी जलाशय योजना के माध्यम से पर्याप्त जल की पूर्ति की जाती है। अत: इन भागों में सिंचाई का प्रतिशत अधिक है। दूसरे ये क्षेत्र की अधिक विचलनशीलता वाले क्षेत्र है। अत: यहाँ बिना सिंचाई के धान की फसल का उत्पादन न्यून होगा।

चावल उत्पादन सिंचित क्षेत्र का न्यूनतम विस्तार उत्तर पूर्वी में कोटा, पेण्ड्रा, कोरबा, कठघोरा, करतला, पाली पौडी उपरोरा विकासखडों में (1.25 प्रतिशत) है। जिले के चांपा, पामगढ़ एवं बिल्हा विकासखण्ड में कुल धान क्षेत्र के 25-30 प्रतिशत भूमि पर सिंचाई की जाती है। जिले में चावल का न्यूनतम सिंचित क्षेत्र (0.62 प्रतिशत) पौड़ी उपरोरा विकासखण्ड में है।

मक्का


जिले की द्वितीय प्रमुख सिंचित फसल मक्का है। मक्का उत्पादक क्षेत्र के 1939 हेक्टेयर (5.6 प्रतिशत) भूमि में मक्का सिंचाई के माध्यम से उत्पन्न की जाती है। जिले में मक्के के अंतर्गत सिंचित क्षेत्र का सर्वाधिक विस्तार पौड़ी उपरोरा, कोरबा, करतला, पंडरिया, गौरेला, पेण्ड्रा एवं मरवाही विकासखण्ड में है। इन क्षेत्रों में कुल सिंचित क्षेत्र में कुल सिंचित क्षेत्र के 50-75 प्रतिशत क्षेत्र में मक्का उगायी जाती है। जिले में दक्षिणी मैदानी भाग में अन्य फसलों के उत्पादन के लिये अनुकूल दशाएँ होने के कारण मक्के का उत्पादन कम क्षेत्र में होता है। इन भागों में मक्के के अंतर्गत सिंचित क्षेत्र भी कम है।

गेहूँ


जिले में गेहूँ के अंतर्गत सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत कम (1.7 प्रतिशत) है। जिले के पश्चिमी भाग में मुंगेली, पंडरिया एवं लोरमी विकासखण्डों में गेहूँ के लिये अनुकूल दशाओं के उपलब्ध होने के कारण सिंचाई कम है। पूर्वी क्षेत्र प्रमुखत: चावल उत्पादन क्षेत्र है, परंतु इस भाग में जहाँ सिंचाई उपलब्ध है, वहाँ गेहूँ उत्पन्न किया जाता है। जिले में गेहूँ के सिंचित क्षेत्र दक्षिण पूर्वी मैदानी क्षेत्र में जांजगीर, अकलतरा, बलौदा, सक्ती तथा मालखरौदा एवं उत्तर पश्चिम में कोटा, पेण्ड्रा तथा मरवाही विकासखण्डों में है। इन क्षेत्रों में कुल गेहूँ उत्पादक क्षेत्र का 0-10 प्रतिशत पूर्वी विकासखण्डों में एवं 10 प्रतिशत से अधिक उत्तरी विकासखण्डों में सिंचित है। जिले का सर्वाधिक सिंचित गेहूँ का क्षेत्र पेण्ड्रा विकासखण्ड में (14.41 प्रतिशत) एवं न्यूनतम पथरिया विकासखण्ड में (0.10 प्रतिशत) है।

अन्य सिंचित फसलों के अंतर्गत सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत अत्यंत कम है।

सिंचाई में जल उपयोग


सामान्यत: फसलों के लिये जल की आवश्यक मात्रा की गणना से ही सिंचाई में प्रयुक्त जल की मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है।

बिलासपुर जिले में कुल उपलब्ध जल राशि का 15.84 प्रतिशत मात्र ही सिंचाई कार्यों हेतु प्रयुक्त होता है। जिले में 153.1 लाख घनमीटर सतही एवं भूगर्भ जल सिंचाई कार्यों में प्रयुक्त होता है। सिंचाई हेतु जल के उपयोग में सम्पूर्ण जिले में पर्याप्त विभिन्नताएँ हैं। बिलासपुर जिले के जांजगीर विकासखण्ड में सिंचाई हेतु जल का सर्वाधिक उपयोग (227.3 लाख घनमीटर) किया जाता है। जिले के उत्तरी पूर्वी भाग में सिंचाई हेतु जल का उपयोग अपेक्षाकृत कम है। इस क्षेत्र में धरातलीय विषमताओं के परिणामस्वरूप जल संसाधन का विकास नहीं हो पाया है। इन क्षेत्रों में 4 से 10 लाख घन मीटर तक जल उपयोग में लाया जाता है।

सिंचाई हेतु सतही जल संसाधन का विकास


बिलासपुर जिले में कुल उपलब्ध सतही जल (9829 लाख घनमीटर) का 14.86 प्रतिशत जल ही सिंचाई कार्यों में प्रयुक्त होता है। जिले में सिंचाई हेतु सतही जल का सर्वाधिक विकास दक्षिण मैदानी क्षेत्र के जांजगीर एवं मस्तुरी विकासखण्ड में अधिक हुआ है। इन विकासखण्डों में क्रमश: 237.37 एवं 261.84 लाख घनमीटर सतही जल नहरों तथा तालाबों के माध्यम से सिंचाई हेतु उपयोग में लाया जाता है। जिले के गौरेला, पेण्ड्रा, कटघोरा, पाली कोरबा, करतला एवं जयजयपुर विकासखण्डों में सिंचाई हेतु सतही जल का उपयोग न्यूनतम (1.7 से 10 लाख घन मीटर तक) है। इन विकासखण्डों में यद्यपि वार्षिक वर्षा की मात्रा अत्यधिक (1429 से.मी) है किंतु उच्चावच विषमता विकास में बाधक होती है।

जिले के हसदो-अरपा दोआब में स्थित अकलतरा, बलौदा, पामगढ़, चांपा, बिल्हा, मुंगेली एवं तखतपुर विकासखण्डों में सिंचाई का विकास मध्यम हुआ है। इस क्षेत्र में 60 से 100 लाख घन मीटर जल का उपयोग सिंचाई में किया जाता है।

सिंचाई हेतु भूगर्भ जल का विकास


बिलासपुर जिले में कुल उपलब्ध भूगर्भ जल राशि (2322.12 लाख घन मीटर) का मात्र 3.48 प्रतिशत (80.95 लाख घनमीटर) जल ही सिंचाई के कार्यों में उपयोग में लाया जाता है। जो कुल भूगर्भ जल उपयोग का 90 प्रतिशत से भी अधिक है। जिले में सामान्यत: इन विकासखण्डों में जहाँ सतही जल का अभाव है, भूगर्भ जल का उपयोग सिंचाई हेतु किया जाता है। जिले के पेण्ड्रा एवं कटघोरा विकासखण्डों में कुल सिंचाई हेतु प्रयुक्त जल का 55 प्रतिशत से अधिक भूगर्भजल का होता है। भूगर्भ जल का सिंचाई हेतु उपयोग सर्वाधिक पेण्ड्रा विकासखण्ड में (6.25 लाख घनमीटर) होता है, जो कुल सिंचित जल उपयोग का 55.5 प्रतिशत है। न्यूनतम जल उपयोग जांजगीर विकासखण्ड में (कुल सिंचित जल उपयोग का 1.4 प्रतिशत) होता है। जिले के अन्य क्षेत्रों में 4 से 10 प्रतिशत भूगर्भ जल का उपयोग सिंचाई कार्यों में किया जाता है।

जिले में जल संसाधन विकास की पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं। जिले में उपलब्ध कुल जलराशि 12042.12 लाख घनमीटर जलराशि का मात्र 1617.95 लाख घनमीटर जल ही सिंचाई के कार्यों में उपयोग में लाया जाता है। अत: शेष जलराशि का उपयोग सिंचाई एवं अन्य कार्यों में किया जा सकता है।

सारिणी क्रमांक 25 बिलासपुर जिला सिंचाई हेतु जल संसाधन उपयोग
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