बिना सरकारी मदद के बनते शौचालय

6 Jun 2012
0 mins read
जहां एक तरफ हमारे ग्रामीण विकास मंत्री यह जानकर परेशान हैं कि भारत को खुला शौच मुक्त देश बनाने कि दिशा में धीमी प्रगति हुई है। वहीं कोलकाता के कमल कर ने बिना सरकारी मदद से लोगों को शौचालय मुहैया करा रहे हैं। देश में फोन धारकों और टीवी देखने वालों की संख्या में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है तो संचार क्रांति के इसी असर को इस समस्या से लड़ने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस समस्या से निजात पाने में विकासात्मक संचार काफी अहम भूमिका निभा सकता है।

भारत का महाराष्ट्र एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने खुले में शौच से मुक्त प्रदेश बनने के बहुत करीब है। हिमाचल प्रदेश दूसरा ऐसा राज्य है, जिसने सीएलटीएस अभियान चला रखा है और यह प्रदेश भी इस गंदी प्रवृत्ति से मुक्त होने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत में रोजाना करीब 1,44,000 ट्रक गंदगी खुले में छोड़ी जाती है। ऐसे देश में जहां दशकों से शौचालयों की व्यवस्था और सशक्तिकरण कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद दस्त की वजह से हर घंटे 42 बच्चों की मौत हो जाती है, वहां सीएलटीएस मददगार साबित हो सकता है।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश इस जानकारी से काफी हताश हैं कि भारत को 'खुला शौच मुक्त' (ओडीएफ) देश बनाने की दिशा में धीमी प्रगति हुई है। हालांकि उन्होंने इस मामले में कोशिशें बहुत कीं, लेकिन नतीजा संतोषजनक नहीं रहा। हाल ही में उन्होंने फिनलैंड का दो दिवसीय दौरा किया। इस यात्रा का उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल शौचालय के साज-सामान की खरीदारी करना था। रमेश ने इस साल के आम बजट में पानी और स्वच्छता के लिए आवंटन 40 फीसदी बढ़ाने के वास्ते सरकार को राजी कर लिया है। उन्होंने स्वच्छता कार्यक्रम का पुनरुत्थान भी किया और मुफ्त शौचालय के लिए सब्सिडी 3,000 रुपये से तीन गुना बढ़ा दी। लेकिन, कोलकाता के विकास कार्यकर्ता कमल कर इस मामले में रमेश से कहीं आगे निकल गए। उन्होंने गांवों में एक पैसा खर्च किए बगैर पूरे समुदाय को खुले में शौच की मजबूरी से मुक्त कर दिया।

इस तरह के ज्यादातर गांव देश से बाहर के हैं और भारत सरकार को इसकी खबर नहीं है। सरकारी सब्सिडी का इंतजार किए बगैर उन्होंने पूरे समुदाय में स्वच्छ शौचालय की मांग पैदा की और उन्हें शौचालय तैयार करने के अभिनव तरीके खोज निकालने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सबसे पहले यह अभियान प्रायोगिक आधार पर कल्याणी में चलाया था जो उनके पैतृक शहर के नजदीक की एक नगरपालिका है। उनका यह तरीका आम भावना और लोगों में विश्वास से प्रेरित है। काम करने का उनका तरीका ऐसे नजरिये से प्रेरित नहीं है, जिसमें जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए आधिकारिक स्तर पर रणनीति बनाई जाती है। उन्होंने पूरे गांव की भौगोलिक तस्वीर (मानचित्र) स्पष्ट करने के लिए लोगों को इकट्ठा किया। ग्रामीणों ने उस जगह पर कागज के टुकड़े रखे, जहां-जहां गांव के मानचित्र पर उनके घर स्थित हैं।

इसके बाद हर ग्रामीण ने उस इलाके को चिह्नित किया, जहां वह शौच करता है। फिर उन्होंने उन इलाकों की पहचान की जहां खाने-पीने की चीजें उगाईं जाती हैं। अब गांव वालों को यह जानकार बड़ी तकलीफ हुई कि पड़ोसी उनके घर के नजदीक शौच करते हैं और वह गंदगी खाने-पीने की चीजें और पानी में घुलमिल रही है। इसके बाद हर समुदाय से नेता चुने गए लोगों को यह काम सौंपा गया कि वे गांवों में लोगों को जागरूक करने का यह तरीका तब तक दोहराते रहें, जब तक कि पूरे समुदाय में शर्म और भय की भावना न पैदा हो जाए। समुदाय से ज्यादातर युवाओं और बच्चों को चुना गया। इंडोनेशिया में भी ऐसा होता है। कल्याणी की 10 मलिन बस्तियों के 800 घर-परिवारों ने पांच महीने की अवधि में खुले में शौच से मुक्ति पा ली और बगैर किसी सब्सिडी के अपना खुद का शौचालय तैयार कर लिया। इसके लिए जूट की टोकरी या प्लास्टिक की बाल्टियां इस्तेमाल में लाईं गईं और गड्ढों को जूट से ढका गया।

यदि बांग्लादेश में खुले में शौच करने की समस्या तेजी से खत्म होती जा रही है तो केवल इसलिए कि वहां गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) 'वॉटर एड' की परियोजना चल रही है, जिसकी प्रेरणा कल्याणी के प्रायोगिक कार्यक्रम से ली गई है। अपने देश में महाराष्ट्र एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने कमल कर की 'समुदाय आधारित पूर्ण स्वच्छता' (सीएलटीएस) अभियान अपनाया है और वह खुले में शौच से मुक्त प्रदेश बनने के बहुत करीब है। हिमाचल प्रदेश दूसरा ऐसा राज्य है, जिसने सीएलटीएस अभियान चला रखा है और यह प्रदेश भी इस गंदी प्रवृत्ति से मुक्त होने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। कमल कर कहते हैं कि भारत इस मामले में चूक गया है। वह कृषि एवं पशुपालन विशेषज्ञ हैं। सीएलटीएस विकसित करने से पहले उन्होंने खेती-बाड़ी की कम खर्चीली तकनीक विकसित की थी, तब वह बांग्लादेश में एक पानी एवं स्वच्छता परियोजना का जायजा ले रहे थे। उसके बाद विश्व बैंक जैसी एजेंसियों और संयुक्त राष्ट्र ने उनकी तकनीक अपनाई।

जब कमल कर से पूछा गया कि क्या भारत सरकार को शून्य सब्सिडी की जरूरत वाले इस तरीके की जानकारी नहीं है तो उन्होंने कहा कि जयराम रमेश को अनिवार्य रूप से सीएलटीएस की जानकारी होनी चाहिए। कर सब्सिडी आधारित तरीके अपनाए जाने से दुखी हैं। अफ्रीका के मेडागास्कर से अपने संदेश में कर ने कहा, 'यह दुखद है कि हमारा महान देश विपदा की ओर बढ़ रहा है। स्वच्छता से संबंधित कार्यक्रमों के लिए भारी-भरकम सब्सिडी दी जा रही है, ईश्वर ही जानता होगा कि हम कहां पहुंचेंगे।' मेडागास्कर में सीएलटीएस अभियान चलाया जा रहा है। इस विशेष अभियान के जरिये पूर्वी एशिया, पश्चिमी एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका में पहले से ही सामाजिक बदलाव लाए जा रहे हैं। अब यह तरीका चीन में भी आजमाया जा रहा है।

यूनिसेफ, केयर और प्लान इंटरनेशनल वहां पानी एवं स्वच्छ कार्यक्रम चला रहे हैं। कई अन्य वैश्विक एनजीओ भी तकरीबन 40 देशों में चलाए जा रहे इस तरह के अभियानों में अपना-अपना सहयोग दे रहे हैं। कमल कर के मुताबिक भारत में रोजाना करीब 1,44,000 ट्रक गंदगी खुले में छोड़ी जाती है। ऐसे देश में जहां दशकों से शौचालयों की व्यवस्था और सशक्तिकरण कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद दस्त की वजह से हर घंटे 42 बच्चों की मौत हो जाती है, वहां सीएलटीएस मददगार साबित हो सकता है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading