बर्बादी की राह पर तालाब


गौरतलब है कि भोपाल ही नहीं प्रदेश के अन्य महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक के जलस्रोत अतिक्रमण करने वालों के कारण अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। इस संदर्भ में मध्य प्रदेश के सबसे बडे़ इन्दौर शहर का जिक्र करना जरूरी होगा जहाँ होल्कर राज्य के जमाने में बने पीपल्याहाना तालाब पर मिट्टी डालकर न्यायालय परिसर बनाने की तैयारी की जा रही है। वहाँ के जनप्रतिनिधि और समाजसेवी इसके विरोध में एकजुट हो गए हैं।

मध्य प्रदेश में प्रशासन की उदासीनता, अफसरों-कर्मचारियों की मिली-भगत और भू-माफिया की बुरी नियत के चलते यहाँ तालाबों के अस्तित्व पर संकट बढ़ गया है। इन्दौर के पीपल्याहाना तालाब से लेकर भोपाल के बड़े तालाब तक को खत्म करने की कोशिश पूरी शिद्दत से जारी है। हद तो यह है कि सरकार व प्रशासन के जिन अफसरों पर जलस्रोतों को बचाने की जिम्मेदारी है, वे खुद ही तालाबों को खत्म करने की तरकीबों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहित कर रहे हैं। तालाबों के आस-पास अतिक्रमण करने वालों की पहुँच तालाब के दायरे और उसकी सीमाओं को लगातार कम कर रही है। सरकार के जो प्रतिनिधि पानी बचाने की बात करते हैं वे खुद ही तालाबों का पानी कम कर देना चाहते हैं। इसके लिये तालाबों के पूरा भर जाने के पहले ही पानी बहाया जा रहा है।

इस सन्दर्भ में राजधानी भोपाल के बड़े तालाब का जिक्र करना जरूरी होगा। हाल ही में हुई बारिश के बाद पूरा भर जाने के पहले ही इसे थोड़ा खाली करवा दिया गया। भोपाल शहर की पहचान का प्रतिरूप बड़े तालाब का पानी उच्चतम स्तर 1666.80 फीट तक पहुँचने के पहले ही इस वर्ष उसे थोड़ा खाली करा दिया गया। पूरा भरने के पहले ही भदभदा के गेट इसके पहले शायद कभी नहीं खोले गए थे। सवाल उठता है कि इस बार जब पानी का स्तर 1665 फीट तक पहुँचा तभी भदभदा के गेट खोलने की जरूरत क्यों पड़ गई? इस मामले में कहा जा रहा है कि जिन लोगों ने बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण कर पक्के निर्माण कर लिये हैं। अत्यधिक वर्षा से बड़े तालाब का पानी वहाँ तक जा पहुँचा था। कैचमेंट एरिया में पक्के निर्माण करने वाले ज्यादातर लोग राजनीतिक व प्रशासनिक प्रभाव वाले हैं और उन्होंने पानी को पक्के निर्माण के आस-पास ज्यादा फैलने से रोकने के लिये भदभदा के तीन गेट खुलवा दिये और उनकी तरफ आ रहे पानी को बाहर करवा दिया।

उल्लेखनीय है कि 12 जुलाई को बड़े तालाब का पानी भदभदा बाँध के तीन गेट खोलकर बाहर कर दिया गया था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, महापौर आलोक शर्मा की मौजूदगी में बाँध के तीन गेट खोले गए थे। इसके बाद तालाब में पानी का स्तर कुछ कम तो हो गया लेकिन भदभदा के रास्ते बहने वाला पानी अपने पीछे कई अनुत्तरित सवाल छोड़ गया है। ये सवाल बेवक्त और बेवजह पानी छोड़ने के पीछे के दबाव-प्रभाव की ओर संकेत करते हैं। यह दबाव निश्चित रूप से उन लोगों का हो सकता है जिनके द्वारा तालाब के कैचमेंट एरिया में अवैध निर्माण कर लिया गया है। हाल ही में एक पखवाड़े तक हुई जोरदार बारिश के बाद बड़े तालाब का पानी कैचमेंट एरिया में तो फैला ही साथ ही यह पानी नगर-निगम द्वारा बनाई गई रिटेनिंग वाल को भी पार कर गया। बढ़ते पानी से कैचमेंट एरिया में बने एक विशाल निजी अस्पताल को भी खतरा पैदा हो गया था। यदि पानी तुरन्त खाली नहीं करवाया जाता तो इस निजी अस्पताल के आसपास ज्यादा पानी भर जाने की आशंका थी। शायद इसीलिये निजी अस्पताल के मालिकों ने अपने राजनीतिक सम्पर्क का इस्तेमाल कर भदभदा बाँध के तीन गेट खुलवा दिये। यहाँ साढ़े 14 घंटे तक खुले रहे तथा इनसे 304.5 क्यूबिक मीटर पानी बहा दिया गया। पानी बह जाने के बाद नगर-निगम द्वारा बनवाई गई रिटेनिंग वाल पुनः नजर आने लगी और निजी अस्पताल के आस-पास भरा पानी भी कम हो गया।

इस बारे में भोपाल के पर्यावरणविद डॉ. सुभाषचन्द्र पाण्डेय का कहना है कि किसी भी जलाशय को उसके सर्वोच्च स्तर तक पहुँचने के पहले खोला ही नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बड़े तालाब को पूरा भरने से पहले ही उसका पानी बहा देना एक तरह का सामूहिक षडयंत्र है और पेयजल की कीमत पर कुछ लोगों के निजी हितों की रक्षा की जा रही है। इस बारे में सूत्रों का कहना है कि बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में एक विशाल निजी अस्पताल से लेकर आधा दर्जन से अधिक वरिष्ठ प्रशासनिक अफसरों के फार्म हाउस हैं।

उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सिध्दार्थ गुप्ता का कहना है कि भोपाल में बड़े तालाब के केचमेंट एरिया से लेकर छोटे-छोटे नालों तक पर लोगों ने कब्जा कर लिया है। उन्होंने कहा कि नगर निगम, राजस्व सहित अन्य विभागों के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना कैचमेंट एरिया व नालों पर अतिक्रमण किया ही नहीं जा सकता। जो भी अतिक्रमण हुआ है उसके लिये अधिकारियों के निजी स्वार्थ भी जिम्मेदार हैं। गुप्ता ने कहा कि यदि बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया के आस-पास इसी तरह अतिक्रमण बढ़ते रहे तो आनेवाले कुछ वर्षों में यह एक छोटी सी तलैया में बदल जायेगा। अपने स्वार्थ की खातिर इस विशाल तालाब के मूल स्वरूप को नुकसान पहुँचाने वाले अधिकारियों की पहचान कर उन पर कड़ी कार्यवाही की जाना चाहिये अन्यथा आनेवाले समय में इसके किनारों पर आलीशान होटल, फार्म हाउस, निजी अस्पताल आदि की संख्या बढ़ती चली जायेगी और इसका जलभराव क्षेत्र लगातार सिमटता जायेगा।

गौरतलब है भोपाल में एक जमाने में लगभग दो दर्जन विशाल तालाब हुआ करते थे जिनकी पहचान अब खत्म सी हो गई है। अदालती दाँव-पेंच और तारीख पर तारीख लगने से तालाबों पर कब्जा करने वालों के हौसले बुलंद हुए जिसका परिणाम यह है कि ताल तलैयों का शहर कहलाने वाले इस शहर में तालाबों के सामने खुद को बचाये रखने की चुनौती बढ़ती जा रही है।

गौरतलब है कि भोपाल ही नहीं प्रदेश के अन्य महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक के जलस्रोत अतिक्रमण करने वालों के कारण अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। इस संदर्भ में मध्य प्रदेश के सबसे बडे़ इन्दौर शहर का जिक्र करना जरूरी होगा जहाँ होल्कर राज्य के जमाने में बने पीपल्याहाना तालाब पर मिट्टी डालकर न्यायालय परिसर बनाने की तैयारी की जा रही है। वहाँ के जनप्रतिनिधि और समाजसेवी इसके विरोध में एकजुट हो गए हैं। दलगत राजनीति को भुलाकर भोपाल के नेता और समाजसेवी भी यदि आम जनता के साथ ऐसी एकजुटता दिखाये तो बड़े तालाब के अच्छे दिन फिर लौट सकते हैं, वरना अतिक्रमण करने वालों की बुरी नजर तो इसे लग ही गई है।

श्री अमिताभ पाण्डेय विकास पत्रकारिता करते हैं।

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