बुन्देलखण्ड में खेती नहीं रहा लाभ का धन्धा तो रकबा घट गया


दो चरणों में खर्च के बाद अनुमान था कि इससे 296140 हेक्टेयर जमीन को सींचा जाएगा। पैकेज के तहत खेतों में कुआँ सहित दो बड़ी एवं 146 छोटी सिंचाई परियोजनाओं को तैयार किया गया। जिन पर अरबों रुपए खर्च हो गए। माना तो यही जा रहा था कि इससे अन्नदाताओं के दुख दर्द समाप्त हो जाएँगे। सूखे के समय यह सिंचाई योजनाएँ वरदान साबित होंगी। हकीकत कुछ ओर ही नजर आ रही है। भले ही मध्य प्रदेश की सरकार कृषि कर्मण अवार्ड पाकर स्वयं की पीठ थपथपा रही हो लेकिन बुन्देलखण्ड में तो जिस दम पर यह अवार्ड पाया जाता है। उस किसान के लिये खेती अब लाभ का धन्धा नजर नहीं आ रहा है। वो तो मुख मोड़ता जा रहा है।

सरकार के आँकडे बताते हैं कि सागर सम्भाग के पाँच जिलो में कुल काश्त रकबा 1803.33 हजार हेक्टेयर के करीब 40 प्रतिशत भाग पर ही बुआई होती है। दूसरी ओर बुन्देलखण्ड पैकेज सहित अन्य सिंचाई योजनाओं पर पानी की तरह पैसा बहाया जा चुका है।

लगातार सूखे और सरकार की नाकामियों का ही परिणाम कहा जाएगा कि बुन्देलखण्ड के किसानों का खेती से मोह भंग होता जा रहा है। वर्ष 2005-06 में 19607592 हेक्टेयर जमीन पर खेती होती थी। जिसमें 5878311 हेक्टेयर भूमि सिचिंत थी। यानि कुल खेती योग्य जमीन का 30 प्रतिशत हिस्सा ही सिंचित था। बुन्देलखण्ड की इसी बदहाली पलायन, भूखमरी को देखकर तब की केन्द्र सरकार ने पैकेज के तहत भारी-भरकम राशि आबंटित की।

दो चरणों में खर्च के बाद अनुमान था कि इससे 296140 हेक्टेयर जमीन को सींचा जाएगा। पैकेज के तहत खेतों में कुआँ सहित दो बड़ी एवं 146 छोटी सिंचाई परियोजनाओं को तैयार किया गया। जिन पर अरबों रुपए खर्च हो गए। माना तो यही जा रहा था कि इससे अन्नदाताओं के दुख दर्द समाप्त हो जाएँगे। सूखे के समय यह सिंचाई योजनाएँ वरदान साबित होंगी। हकीकत कुछ ओर ही नजर आ रही है।

सरकारी दावों के अनुसार सिंचाई का रकबा बढ़ा है। दूसरी ओर खेती का रकबा कम होता जा रहा है। यह जमीनी सच सरकार के आँकड़े ही गवाही दे रहे हैं। हासिल आँकड़ों के अनुसार 2015-16 में रबी फसल का कुल लक्ष्य 1604 हजार हेक्टेयर का था पर 1041.52 हेक्टेयर में ही बुआई हो सकी। सीधा अर्थ कि लक्ष्य से 35 प्रतिशत कम बुआई का आँकड़ा रहा। इसी तरह 2013-14 में 1664.40 लक्ष्य था तो 1633.01 हजार हेक्टेयर में ही बुआई हुई।

2014-15 में भी कुछ यही हाल रहे जब 1657 हजार हेक्टेयर के बदले मात्र 1483.19 हजार हेक्टेयर में किसानों ने फसल की बुआई की थी। बुन्देलखण्ड के सागर सम्भाग के पाँच जिलों छतरपुर, पन्ना, दमोह, टीकमगढ़ और दमोह में अमुमन गेहूँ की फसल किसानों की पहली पसन्द होती है। अब गेहूँ के उत्पादन और बुआई के आँकड़ों पर नजर डाली जाये तो यह चिन्ता से कम नहीं है।

वर्ष 2011-12 में 695.80 हजार हेक्टेयर में गेहूँ की बुआई हुई थी वही 2012-13 में 701.40, 2013-14 मेें 746.20, 2014-15 में 673.56 एवं 2015-16 में मात्र 347.70 हजार हेक्टेयर में ही गेहूँ बोया गया। आँकड़े साफ दर्शाते है कि स्वयं अन्नदाता के पास ही रोटी खाने के लाले पड़ते जा रहे हैं। यही इस ओर भी इंगित करता है कि खेती का रकबा दिनो दिन कम होता जा रहा है।

गौरतलब है कि किसान कल्याण तथा कृषि विभाग सागर से प्राप्त अधिकृत आँकड़ों के अनुसार सागर सम्भाग के पाँचों जिलों में सागर में 578.38, दमोह में 315.49, पन्ना में 245.36, टीकमगढ़ में 256.71 और छतरपुर में 407.39 हजार हेक्टेयर भूमि शुद्ध कास्त का रकवा है। कृषि संगणना 2000-01 के अनुसार सागर में 255098, दमोह में 159018, पन्ना में 157045, टीकमगढ़ में 173159 एवं छतरपुर में किसानों की संख्या 235237 है।

आँकड़ों के अनुसार काश्त रकबे और बुआई के रकबे में अन्य फसलों का 20 प्रतिशत हेक्टेयर और जोड़ भी दिया जाये तो अधिकांश भूमि पर खेती न होना इस बात का संकेत है कि अन्नदाता अब किसानी से तंग होता जा रहा है। किसान की बेरुखी के पीछे कई कारण है। आज किसान को लागत के हिसाब से फसलों की कीमतें नहीं मिल पा रही। इस कारण वह कर्ज में डूबता जा रहा है। खेत की जुताई, बुआई से लेकर खाद-बीज की जुगाड़ में किसान टूट जाता है।

आज खुले बाजार में मजदूरी की दर कम-से-कम 300 रुपए प्रतिदिन है। उस हिसाब से किसान के हाथ तो फसल बिकने के बाद मजदूरी तक हाथ नहीं लगती। तभी बुन्देलखण्ड से पलायन का आँकड़ा प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रहा है। परदेश जाकर मजदूरी करने वाले मूलतः किसान को उसकी मेहनत के बदले वाजिब मजदूरी मिलती है। जो उसकी जिन्दगी को स्थायित्व प्रदान करती है। दूसरी तरफ खेती के नाम चढ़ता कर्ज है और सरकारी योजनाओं की लूट का वह सच है जिससे तंग आकर ही बुन्देलखण्ड में कुल काश्त रकबे के बजाय खेती का रकबा कम होता जा रहा है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading