बुंदेलखंड में, ढूंढना है पानी

कम अधिक पानी प्रत्येक साल बुंदेलखंड में बरसता है लेकिन हमारे पास कोई ठोस योजना नहीं है, बरसे हुए पानी को रोकने की..

पानी की समस्या का समाधान है। कम अधिक पानी प्रत्येक साल बुंदेलखंड में बरसता है लेकिन हमारे पास कोई ठोस योजना नहीं है, बरसे हुए पानी को रोकने की। छोटे-छोटे तालाब और छोटे-छोटे ऐसे ढांचे जहां पानी को रोका जा सकता है। उसकी तरफ समुचित ध्यान देने की बात कभी किसी सरकार ने सोची नहीं। छोटे-छोटे किसानों को भी पानी संभालने और सहेजने के प्रति जागरुक किया जा सकता था।

आज भारतीय राजनीति में कई सारी राजनीतिक पार्टियां मैदान में है। जनता से उन्होंने प्रत्येक चुनाव की तरह, इस बार भी बहुत सारे लोक लुभावन वादे किए हैं। यह सच है कि चुनाव के बाद इन वादों की याद ना जनता नेताओं को दिलाती है और ना नेताओं को ये वादे याद रहते हैं।

यह सच्चाई है कि इस देश की समस्याओं को लेकर किसी राजनीतिक पार्टी ने कोई विशेष अध्ययन नहीं कराया है और ना ही किसी राजनीतिक पार्टी को सही-सही अनुमान है कि देश किन समस्याओं से और किस स्तर पर जुझ रही है।

इतने सारे लोग मैदान में उतरते हैं। इन सभी लोगों में एक व्यक्ति ही विजयी होगा। वह जीत कर लखनऊ या दिल्ली चला जाएगा। लेकिन जो प्रतिनिधि जीत नहीं पाए, उन्हें क्षेत्र में अध्ययन करना चाहिए। अपना पांच साल क्षेत्र में देना चाहिए। क्षेत्र की जनता को देना चाहिए। क्षेत्र की समस्याएं क्या है? और उसका समाधान क्या है?

जब चुनाव का समय होता है और जनता कहती है, पानी की समस्या है। नेता कहते हैं-दूर कर देंगे। जनता कहती है, बिजली नहीं है। नेता कहते हैं- आ जाएगी। जनती कहती है-सड़क नहीं है। नेता कहते हैं- बन जाएगी। लेकिन कोई यह नहीं बताता कि कैसे करेंगे? इसे करने के लिए उनके पास क्या योजना है? इस देश में कही पानी नहीं है, इस बात की समस्या है। कहीं अधिक पानी है, यह भी समस्या है।

इन दोनों क्षेत्रों के बीच में कोई सामंजस्य हो, इस बात की व्यवस्था या इसकी चिंता किसी सरकार में दिखाई नहीं देती है। सरकारी परियोजनाएं जिस तरह से बनती है और जिस तरह से उनका क्रियान्वयन होता है, उसे कोई एक आदमी समझना चाहे तो वह समझ नहीं सकता। मैं बुंदेलखंड की बात बताऊं, जहां पानी नहीं रहता, लगातार सूखे और अकाल की स्थिति रहती है। पशुपालन ध्वस्त हो चुका है। पर्यावरण और खेती चौपट हो चुका है। इस क्षेत्र में पूरे देश को पता है कि पानी की समस्या का कोई समाधान नहीं मिल रहा है।

जहां जीरो लेबल पर पानी पहुंच गया है, पानी रिचार्ज नहीं होता, नीचे आठ सौ - नौ सौ फीट पानी नहीं बचा है। कहीं पीने का पानी नहीं है। ऐसे में यहां विश्व बैंक के पैसे से गहरा ट्यूब वेल लगा रहे हैं। लेकिन यहां पानी की समस्या का समाधान किसी के पास नहीं है। किसी से बात करो तो वह ट्यूब वेल की बात करता है। पानी की स्थिति कैसे दुरुस्त होगी? बुंदेलखंड का पानी कैसे वापस आएगा? इसका समाधान किसी के पास नहीं है और ना कोई इस विषय पर बात करने को तैयार है।

पानी की समस्या का समाधान है। कम अधिक पानी प्रत्येक साल बुंदेलखंड में बरसता है लेकिन हमारे पास कोई ठोस योजना नहीं है, बरसे हुए पानी को रोकने की। छोटे-छोटे तालाब और छोटे-छोटे ऐसे ढांचे जहां पानी को रोका जा सकता है। उसकी तरफ समुचित ध्यान देने की बात कभी किसी सरकार ने सोची नहीं। छोटे-छोटे किसानों को भी पानी संभालने और सहेजने के प्रति जागरुक किया जा सकता था।

भारत सरकार के बुंदेलखंड पैकेज में तालाब निर्माण और तालाब के साज संभाल की बात की गई थी लेकिन पैकेज में जो बात है, वह दिखाई नहीं देती। पानी को लेकर हम लोगों ने भी कुछ साथियों के साथ मिलकर प्रयोग कर रहे हैं। जो सफल रहा है।

एक उदाहरण बरबई (कबरई विकासखंड) गांव का है, यहां कुछ किसानों ने तालाब बनाए हैं। यशपाल सिंह नाम के एक किसान हैं। उन्होंने 2005-06 में तालाब बनाया। एक-एक हेक्टेयर के दो तालाब बनाया है। 680 फीट तक ट्यूबवेल कराने पर पानी नहीं मिलता था। उन्होंने तालाब बनवाया तो पानी का स्तर ऊंचा उठा। उनकी खेती में उपज बढ़ी। तालाबों में बूंदेलखंड के पानी की किल्लत का समाधान है। आज बूंदेलखंड में किसानों के एक ऐसे योजना की जरूरत है, जहां किसानों को पानी के लिए उन्हें ऋण मिले।

जन जल – घोषणा पत्र


‘अपना तालाब अभियान’ द्वारा जारी चुनाव घोषणा पत्र में शामिल करने हेतु राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए खुला निवेदन।

1. संविधान की धारा 51-जी के अनुसार नदियों, झीलों, जंगलों और जंगली जीवों का संरक्षण सुनिश्चित हो।
2. राज्यों का कर्तव्य धारा 48 के अनुसार सभी राज्य पूरा करें। जो नहीं कर रहे, उन्हें दंडित किया जाए। राष्ट्रिय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के अधिकार सुनिश्चित हो।

3. खाद्य सुरक्षा अधिनियम की पालना जल सुरक्षा अधिनियम द्वारा ही संभव है। इसलिए जल सुरक्षा अधिनियम निर्माण प्राथमिकता से पूरा हो।
4. जल का सामुदायिक अधिकार सुनिश्चित किया जाए।
5. विभिन्न प्रकार के जल संरचनाओं (नदी, धार, तालाब, झीर, चौर, आहर-पइन, मोईन, नाला और बाहा आदि) को अतिक्रमण, प्रदूषण एवं शोषण मुक्त करने हेतु उनका चिन्हीकरण और सीमांकन किया जाए।
6. तटबंध, सड़क और रेलमार्ग निर्माण के कारण नदी के सैकड़ों शाखा, उप शाखा, धार, बाहा, नाला आदि मृतप्राय हो गए हैं। जिसे पुनर्जीवित किया जाए।
7. नदी, धार, चौर, झील और तालाब के आपसी रिश्तों को पुनः जीवित किया जाए। जो तटबंध निर्माण के कारण मृतप्राय, क्षतिग्रस्त और प्रभावहीन हो चुका है।
8. जब किसी नदी पर विकास संरचना का निर्माण हो या किसी अन्य तरह का हस्तक्षेप हो तो उससे संबंधित पड़ने वाला समाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव का प्रतिवेदन स्थानीय लोगों को उपलब्ध कराया जाए, उस पर उनसे राय लेने के बाद ही निर्माण कार्य किया जाए।
9. नदी जोड़ों कार्यक्रम को तब तक लागू नहीं किया जाए। जब तक कि उस क्षेत्र के सभी मृतप्राय नदी धार, झील और चौर को पुनर्जीवित किया जाता है।
10. नदी जोड़ों कार्यक्रम का उस क्षेत्र में पड़ने वाले सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन अर्थशास्त्री, पर्यावरणविद, समाजशास्त्री, कानूनविद और अभियंताओं की टीम गठन करके किया जाए और अध्ययन प्रक्रिया में स्थानीय लोगों की भागीदारी हो।
11. नदी जल लेन-देन स्थानीय जरूरत पूरी किए बिना नहीं हो। नदी की भू-सांस्कृतिक विविधता का सम्मान हो।
12. रेत और पत्थर नदियों की सेहत ठीक रखते हैं। इसलिए नदियों में खनन पर रोक लगे।
13. नदियों को पुनर्जीवित करने वाली नीति बनाकर भारत सरकार और सभी राज्य सरकारें उसके प्रकाश में कार्य करें। नदियों को शुद्ध, और सदानीरा बनाने का काम तत्काल प्रभाव से हो।
14. वर्षाजल और गंदाजल का नाला अलग-अलग रखा जाए ताकि जल संरचनाओं को प्रदूषित होने से रोका जा सके।
15. बिहार में आर्द्र भूमि विकास प्राधिकार का गठन किया जाए जो धार, झील, तालाब, आहर पइन और चौर की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कार्य करे। जैसा कि अन्य राज्यों में गठन किया गया है।
16. तालाबों या किसी अन्य तरह के जलाशयों के अतिक्रमणकारियों या क्षतिकर्ताओं के ऊपर जिलाधिकारी द्वारा समय सीमा के अंतर्गत दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
17. भूजल निकालने वालों के लिए भूजल उतना ही पुनर्भरण करना जरूरी बनाया जाए।
18. जल पर सामुदायिक संवैधानिक अधिकार देने वाले कानून शीघ्र बनाएं।

लेखक अपना तालाब अभियान, बांदा (उप्र) के संयोजक हैं।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading