बुंदेलखंड फिर सूखा

1 Aug 2009
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बुंदेलखंड के किसान पिछले कई सालों से सूखे की मार झेल रहे हैं। पिछले साल समूचे बुंदेलखंड के तकरीबन 400 बदहाल किसानों ने आर्थिक तंगी और सूदखोरों के दबाव में आकर आत्महत्या कर ली थी। आशंका है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे किसान आत्महत्या का भयावह रास्ता एक बार फिर अख्तियार कर सकते हैं। बांदा, 29 जुलाई (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड का इलाका एक बार फिर सूखे की काली छाया की चपेट में है। आशंका है कि बदहाल किसानों की आत्महत्या का सिलसिला फिर शुरू हो सकता है। राज्य सरकार ने अब तक बांदा, महोबा, जलौन आदि जनपदों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है।

बुंदेलखंड के किसान पिछले कई सालों से सूखे की मार झेल रहे हैं। पिछले साल समूचे बुंदेलखंड के तकरीबन 400 बदहाल किसानों ने आर्थिक तंगी और सूदखोरों के दबाव में आकर आत्महत्या कर ली थी। आशंका है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे किसान आत्महत्या का भयावह रास्ता एक बार फिर अख्तियार कर सकते हैं। राज्य सरकार ने अब तक पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 15-15, मध्य उत्तर प्रदेश और रूहेलखंड के 14 जिलों के साथ ही बुंदेलखंड के बांदा, महोबा और जलौन को सूखाग्रस्त घोषित किया है। मौसम विभाग ने पहले से बता दिया है कि बंगाल की खाड़ी में कम दबाव वाले क्षेत्र के कमजोर होने के कारण अच्छी बारिश की संभावना नहीं है।

आने वाले दिनों में मौसम की बेरुखी का असर धान और दाल के उत्पादन पर पड़ना तय है। यहां धान की खेती ज्यादा होती है। बुंदेलखंड में मामूली पानी बरसा, लेकिन जमीन पठारी होने के कारण तुरंत बह भी गया। सूखे पड़े खेत अपनी हालत खुद बयान कर रहे हैं।

बुंदेलखंड की जमीनी हकीकत का बयान, यहां के आंकड़ों से ज्यादा यहां की तपती धरती, बड़े पैमाने में पलायन करते लोग और गायब हुई हरियाली कर रही है।

राज्य सरकार के सूत्र का कहना है कि जिलेवार वर्षा और बुआई के मापदंडों के अनुसार बांदा, महोबा, और जलौन को सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है। पहली जून से तीन जुलाई तक ललितपुर में 89.9 फीसदी, हमीरपुर में 85.2 फीसदी, झांसी में 67.4 फीसदी, चित्रकूट में 45.8 फीसदी बारिश दर्ज की गई है।

प्रदेश में पहली जून से 23 जून तक 307 मिमी बारिश होनी चाहिए, पर मात्र 128.7 मिमी हुई। कम बारिश के कारण खरीफ पर ज्यादा असर हुआ है। करीब 53 लाख हेक्टेयर भूमि में हल तक नहीं चला। पिछले साल 20 जुलाई तक 55 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हो गई थी, जबकि इस साल मात्र 24.6 लाख हेक्टेयर ही धान की फसल दिख रही है। वह भी बहुत कमजोर है।

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