बुंदेलखंड : तालाब तो फेफड़े हैं

15 Mar 2013
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देश के बीचो-बीच बसा बुंदेलखंड अभूतपूर्व जल संकट से जूझ रहा है और इसके समाप्त होने की कोई सूरत भी नजर नहीं आ रही है। बची-खुची कसर यहां के तालाबों को नष्ट कर पूरी कर दी गई है। बुंदेलखंड के तालाबों की दारुण अवस्था को सामने लाता महत्वपूर्ण आलेख…
आज बुंदेलखंड के गांव जो कभी पानीदार थे पानी के संकट से जूझ रहे हैं। गांव-गांव में पानी के लिए झगड़े होने लगे। पानीदार बुंदेलखंड बेपानीदार हो गया। अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय नदियां सूखेंगी, बुंदेली प्यासे मरेंगे, पशु-पक्षी, मछलियां, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, औषधियां सब का विनाश होगा और बुंदेलखंड रेगिस्तान में तब्दील होगा।आजादी के बाद तक बुंदेलखंड के लोगों ने अपने ज्ञान, कौशल व श्रम से तालाबों को बनाने का अनूठा प्रयास किया। उसी का परिणाम था बुंदेलखंड की हरियाली, पानीदारी दिखते ही बनती थी। बुंदेलखंड के गांवों में खुशहाली का माहौल रहता था व गांव सुंदर स्वच्छ दिखते थे। तालाबों के संरक्षण में समुदाय की भागीदारी थी। जरूरत के अनुसार लोगों की सामूहिक उपयोग हेतु तालाब बनाने की सोच थी। सन् 1990 तक बुंदेलखंड के लोग पानी को बचाने का सामूहिक प्रयत्न करते रहे। मुझे याद है कि तेंदुरा गांव के लोग मिलकर गर्मियों के दिनों में तालाब किनारे बैठकर तालाब सफाई की योजना बनाते। फिर पूरा समुदाय तालाब की सफाई में शामिल होकर अपना दायित्व निभाता और श्रमदान द्वारा तालाबों की सफाई बरसात से पहले कर लेते जिससे सालभर के लिए पानी मिल जाए। तेंदुरा गांव के लोग सन् 1990 तक नया तालाब से दाल पकाने के लिए पानी लेते थे।

बदहाली का शिकार बुंदेलखंड के तालाब आज अंतिम सांसे गिन रहे हैं। बुंदेलखंड में तालाब बनाने की बहुत पुरानी परंपरा है। तब गांव में कोई इंजीनियर नहीं आता था। गांव के लोग ही तालाब का नक्शा बनाते। कभी गांव से चंदा इकट्ठा करके, कहीं पुण्य के नाम, कभी संत के नाम, तो कभी बुजुर्गों की याद में तालाब बनाने की अनूठी परंपरा थी। तालाब लोगों के जीवन से जुड़े थे तभी तो उनमें कमल खिलते, पक्षी चहचहाते, गांव के लोग स्नान सहित अन्य कार्य भी करते, कई प्रकार की मछलियां व सिंघाड़ा उत्पादन होता। बुंदेलखंड के तालाब गांव के जीवन दर्शन प्रदर्शक के साथ गांव की संस्कृति के पूरक और आजीविका भी है। गांव में सामाजिक कार्य हो या त्योहार उत्सव यह सब तालाबों के बिना पूरे नहीं होते।

सरकारी उपेक्षा के कारण आज बुंदेलखंड के लगभग 6000 तालाब विनाश की कगार पर हैं। कुछ का तो नामो निशान मिट गया। जो बचे हैं वे भी अतिक्रमण-प्रदूषण व शहरों-गांवों के कूड़ेदान बन गए हैं। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि प्रदेश के रक्षक ही तालाबों के भक्षक बन गए हैं। सभी राजनीतिक पार्टियों ने गांव को स्वच्छ पानी पिलाने के नाम पर लोगों को तालाब से दूर कर दिया और सन् 1972 में गांवों को इंडिया टू मार्क हैण्डपंप लगवाना शुरू किया। यहीं से तालाबों की विनाशलीला शुरू होती है। हमारी सरकारों ने कभी नहीं सोचा कि गांव की इतनी सशक्त जल संरक्षण परंपरा का क्या हश्र होगा। जिन तालाबों में लोगों की आत्मा जुड़ी थी, उन्हीं तालाबों से साजिश के तहत लोगों को दूर किया। इसके बाद तालाबों को बचाने का जिम्मा सरकारों ने लिया। फिर शुरू हुआ सरकारी आंकड़ों का खेल सिर्फ सरकारी फाईलों के आंकड़े बनते रहे, जबकि तालाब की हकीकत कोसों दूर जाती रही है। कहीं तालाब बेच दिए गए, कहीं उन पर स्कूल बना, कहीं अस्पताल, कहीं सड़क-रेल लाइन, कहीं बड़े-बड़े मकान हवेलियां, पार्क, खेल मैदान, कहीं तालाबों में ही खेती होने लगी। इसी तरह दबंगों व भूमाफिया ने शासन प्रशासन के साथ मिलकर आज भी तालाबों पर अतिक्रमण कर रहे हैं। प्रशासन आंख मूंदकर फाइलों के आंकड़ेबाजी में जुटा है।

उत्तरप्रदेश के बांदा शहर में छाबी तालाब व परशुराम तालाब मोहल्लों के नाम बन गए। अतरनिगर घुम्मा तालाब में अम्बेडकर पार्क और जल संस्थान की टंकी बनी और घुम्मा तालाब का क्षेत्रफल सीमित हो गया। तेंदुरा गांव के बाबा तालाब, नया तालाब, अतिक्रमण से घिरे हैं। आज बुंदेलखंड के गांव जो कभी पानीदार थे पानी के संकट से जूझ रहे हैं। गांव-गांव में पानी के लिए झगड़े होने लगे। पानीदार बुंदेलखंड बेपानीदार हो गया। अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय नदियां सूखेंगी, बुंदेली प्यासे मरेंगे, पशु-पक्षी, मछलियां, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, औषधियां सब का विनाश होगा और बुंदेलखंड रेगिस्तान में तब्दील होगा। चारों ओर अशांति, पलायन, भुखमरी के साथ किसान आत्महत्या के लिए मजबूर होंगे। भू-गर्भ जल बहुत नीचे चला जाएगा। मछुवा समुदाय जो सिर्फ तालाबों के सहारे अपनी आजीविका चलाता था। गांव छोड़ शहरों की ओर पलायन होगा। तालाबों पर अतिक्रमण जोरों पर हैं। सभी दल वोटों के लालच में तालाबों के विनाश में कदम ताल मिला रहे हैं, इतना ही नहीं उच्च न्यायालय का आदेश भी बेअसर हो रहा है और दूसरी ओर सरकारी आंकड़ों में सभी तालाब स्वच्छ व अतिक्रमणमुक्त हैं।

इसके बावजूद तालाब बचाने के कार्य में हम लोग सतत् संघर्षरत हैं और इस कार्य को अपने जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं, क्योंकि तालाब बुंदेलखंड के फेफड़े हैं तथा लोगों के जीने का आधार भी हैं तथा निरीह पशु-पक्षी जीव-जंतु, कीड़े-मकोड़े का जीवन भी है। तालाब गांव की खुशहाली भी हैं, आजीविका के साधन भी और गांव की संस्कृति के पोषक भी हैं।

पिछले करीब 10 वर्षों से तालाब बचाओ अभियान लगातार जारी है। इसमें तालाब यात्रा, साइकिल यात्रा, अनेक तालाबों की श्रमदान से सफाई जिसमें 4000 तक लोगों ने भागीदारी की, दबंगों के अतिक्रमण से तालाबों को मुक्त कराना शामिल हैं आदि जैसे अनेक कार्यक्रम किए गए। इसके बावजूद तालाबों का पूरी तरह से पुनरुद्धार नहीं हो पाया। वहीं दूसरी ओर शासन व प्रशासन का इस कार्य में भी सहयोग नहीं मिला।

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