बूंद-बूंद पानी को तरसा वाणसागर, भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी परियोजना

15 May 2013
0 mins read
1200 करोड़ का घोटाला उजागर होने के बाद मई 2012 से मई 2013 के बीच इस परियोजना में करीब 1000 करोड़ रुपये खर्च हो गये हैं, बावजूद इसके अभी भी वाणसागर डैम से पानी इलाहाबाद व मिर्जापुर पहुंचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। हां अभी कुछ दिनों से जब किसानों का दबाव बढ़ा तो वाण सागर नहर परियोजना के अभियंता ठोस व मानक के हिसाब से कार्य कराने की बजाय खानापूर्ति कर आधा-अधूरा कार्य कराने में जुट गये हैं और दावा कर रहे हैं कि जल्द ही इस परियोजना से किसानों को पानी दे दिया जायेगा। केंद्र सरकार के वित्तीय सहयोग से उत्तर प्रदेश में संचालित वाण सागर नहर परियोजना इंजीनियरों व ठेकेदारों की मिली भगत से भष्ट्राचार की भेट चढ़ गई है। यदि यह परियोजना सकुशल पूरी हो जाती तो करीब 50 लाख किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती थी। लेकिन सन् 1990-91 से प्रारंभ परियोजना का कार्य 24 साल बाद भी पूरा नहीं हो पाया। प्रारंभ में महज 669 करोड़ कही लागत से तैयार की जाने वाली इस परियोजना में अब तक करीब 3100 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन अधिकतर कार्य अभी भी अधूरे पड़े हैं। यह परियोजना पूरी होगी भी या नहीं इस पर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। सिंचाई के लिए पानी की उम्मीद में किसानों की एक पीढ़ी बूढ़ी हो गई है। वर्तमान में खेती-बारी में लगे किसान वाण सागर नहर के पानी और अच्छी फसल की उम्मीद में भारी कर्ज तले दबे हुए हैं।

पिछले वर्ष मई 2013 में जन संघर्ष मोर्चा द्वारा वाण सागर नहर परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार से संबंधित जानकारियाँ उपलब्ध कराने पर प्रदेश के सिंचाई मंत्री ने तत्कालीन चीफ इंजीनियर सहित कुल 9 अभियंताओं को निलंबित कर वायदा किया था कि छह महीने बाद किसानों को पानी उपलब्ध करा दिया जायेगा, लेकिन सिंचाई मंत्री की बात झूठी साबित हुई। एक साल बाद भी परियोजना अटकी हुई है।

चीफ इंजीनियर सहित जिन 9 अभियंताओं को निलंबित किया गया था, उन पर 1200 करोड़ रुपये के वित्तीय अनियमितता का आरोप है। इस मामले की जांच उ0प्र0 पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) कर रही है। नहर बनाकर वाण सागर डैम से मेजा व जिरगो डैम में पानी भरने के लिये जो कार्य पिछले 24 सालों से हो रहा है, उसमें से एक हजार दो सौ करोड़ रुपये कहां चले गये, उसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। इतनी बड़ी रकम का यदि कहीं कोई लेखा-जोखा है भी तो वह महज कागज़ों पर। परियोजना के लिये कभी भी धन की कमी नहीं होने पायी बावजूद इसके अभी तक ज्यादातर कार्य क्यों अधूरे हैं, यह उच्च स्तरीय जांच का विषय है। किसानों को अब इस बात का डर है कि कहीं यह पूरी परियोजना खंडहर में न तब्दील हो जाय।यही हाल रहा तो कैसे आएगा इस नहर से पानीयही हाल रहा तो कैसे आएगा इस नहर से पानीलेकिन इससे भी आश्चर्य की बात है यह कि एक साल बाद बीत जाने के बाद भी इओडब्ल्यू जांच पूरी नहीं कर सका। इससे यह साबित होता है कि वास्तव में यह घोटाला 1200 करोड़ से भी ज्यादा का है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर जानबूझकर और सोची-समझी रणनीति के तहत जांच धीमी गति से की जा रही है, जिससे समय बीतने के साथ किसानों का ध्यान इस ओर से हट जाये। अब पता चला है कि इस पूरे जांच प्रकरण में अंदर-ही अंदर काफी लीपा-पोती की जा रही है और निलंबित अभियंताओं को बचाने की पुरजोर कोशिश हो रही है।

1200 करोड़ का घोटाला उजागर होने के बाद मई 2012 से मई 2013 के बीच इस परियोजना में करीब 1000 करोड़ रुपये खर्च हो गये हैं, बावजूद इसके अभी भी वाणसागर डैम से पानी इलाहाबाद व मिर्जापुर पहुंचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। हां अभी कुछ दिनों से जब किसानों का दबाव बढ़ा तो वाण सागर नहर परियोजना के अभियंता ठोस व मानक के हिसाब से कार्य कराने की बजाय खानापूर्ति कर आधा-अधूरा कार्य कराने में जुट गये हैं और दावा कर रहे हैं कि जल्द ही इस परियोजना से किसानों को पानी दे दिया जायेगा। जबकि हकीक़त कुछ और ही है, जिसे लगातार छुपाया जा रहा है। किसानों को यह नहीं बताया जा रहा है कि आखिर वाण सागर डैम से (शहडोल मध्य प्रदेश) कुल कितना पानी ले आने का करार म.प्र. व उत्तर प्रदेश सरकार के बीच हुआ है। सच्चाई यह है कि पूर्व में निर्धारित क्षमता से काफी कम मात्रा में पानी ले आकर परियोजना का कार्य पूरा कर देने की तैयारी हो रही है, जिससे लाखों किसानों में काफी गुस्सा है।

उत्तर प्रदेश में वाण सागर परियोजना काफी भारी-भरकम एवं महत्वाकांक्षी परियोजना है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद करीब 1,50,000 एकड़ भूमि सिंचित होगी और 50 लाख से अधिक किसान परिवारों को सीधे लाभ मिलेगा। अत: किसानों द्वारा आपका ध्यान निम्न बिंदुओं पर आकृष्ट कराते हुए करीब 3100 करोड़ रुपये की वाण सागर नहर परियोजना की जांच सीबीआई या सीएजी से कराने की मांग की जा रही है। यदि इन दोनों एजेंसियों के माध्यम से इस परियोजना की जांच करा ली जाय तो करीब 2000 करोड़ का घोटाला उजागर होगा। किसान परियोजना के घटिया कार्यों को देखकर ऐसा दावा किया कर रहे हैं। जून 2013 तक परियोजना को पूरा किये जाने के जो दावे किये जा रहे हैं, वह कितने तथ्यहीन, भ्रमपूर्ण और झूठे हैं, इसे जान लेना अत्यंत आवश्यक है। हाल-फिलहाल इस परियोजना के पूर्ण होने में गंभीर आशंका है।

यहीं पर बनेगा ट्रैफिक ओवर ब्रिजयहीं पर बनेगा ट्रैफिक ओवर ब्रिज

वाण सागर बांधः संक्षिप्त परिचय


वाण सागर एक बड़े बांध का नाम है, जो मध्य प्रदेश के जनपद शहडोल में देवलोंद नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच से बहने वाली सोन नदी पर बनाया गया है। इस इलाके में जन्मे संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध कवि वाणभट्ट के नाम पर इस बांध का नाम वाण सागर रखा गया है। वाण सागर जलाशय के पानी के बँटवारे के संबंध में 16 सितम्बर 1973 को मध्यप्रदेश, बिहार व उत्तर प्रदेश सरकार के बीच अनुबंध हुआ था। 1978 में इस बांध की नींव रखी गई। 1990 के आसपास यह बांध बनकर तैयार हुआ। अब इसके पेटे में विशाल जल भंडार है। सन् 90 में ही उत्तर प्रदेश सरकार ने वाण सागर जलाशय का पानी लाने का प्रयास किया । केंद्र सरकार के वित्तीय सहयोग से वाण सागर नहर परियोजना बनाई गई और मध्य प्रदेश के सीधी जिले से होकर मिर्जापुर के मेजा व जिरगो जलाशाय में पानी लाने के लिए नहरें बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ। इसके लिये 969.74 करोड़ रुपये का स्टीमेट बनाया गया। शेयर के रूप में 334.25 करोड़ रुपये मध्य प्रदेश सरकार को देना था। वाण सागर जलाशय से इस समय मध्य प्रदेश में लाखों एकड़ भूमि की सिंचाई की जा रही है। बिहार प्रदेश को भी काफी मात्रा में पानी दिया जा रहा है। इस डैम से बिजली भी पैदा की जा रही है।

वाण सागर बांध से जो नहरें निकाली जानी थीं उनमें


संयुक्त जल वाहिनी यह वाण सागर जलाशय से सीधे निकलने वाली 22 किमी0 लंबी नहर है। यह मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के लिये सबसे महत्वपूर्ण नहर है।
संयुक्त पोषक नहर या सोहावल नहर यह नहर संयुक्त जलवाहिनी के अंतिम छोर से निकाली गई है। यह 15.25 किमी0 लंबी नहर है। इसका निर्माण एमपी व यूपी सरकार के सहयोग से किया गया है।
वाण सागर पोषक नहर यह 71.55 किमी0 नहर है, जो मध्य प्रदेश के सीधी जनपद में संयुक्त पोषक नहर के 14.25 किमी0 से निकाली गयी है। उत्तर प्रदेश के लिए यह नहर सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी नहर से वाण सागर जलाशय का पानी यूपी में आयेगा। यह नहर कैमूर पहाड़ी के दक्षिण ढाल से 2.10 किमी0 लंबी सुरंग के माध्यम से निकाली गई है।
अदवा मेजा सम्पर्क नहर71 किमी0 वाण सागर पोषक नहर के अंत में 25.30 किमी0 लंबी अदवा मेजा सम्पर्क नहर बनायी जा रही है, जो अदवा नदी को मेजा जलाशय से जोड़ेगी।
मेजा जिरगो सम्पर्क नहर यह एक 75.30 किमी0 लंबी पूरी तरह से कंक्रीट नहर है, जो मेजा तथा जिरगो जलाशय को पानी देगी।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading