भारत-जापान संबंध देंगे विकास को नया रंग

2 Sep 2014
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क्योटो जापान का स्मार्ट शहर है, जो विरासत व आधुनिकता का संगम है। वहां से बड़ी संख्या में पर्यटकों का काशी आना-जाना होता है। यानी शिव के भक्त अब बौद्ध भक्तों का स्वागत करेंगे। वैसे भी काशी अगर मंदिरों का शहर है तो क्योटो भी इससे कुछ खास पीछे नहीं है, क्योंकि काशी में करीब 2300 मंदिर है तो क्योटो में 2000। काशी भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी मानी जाती है तो क्योटो भी लंबे समय तक जापान की प्राचीन राजधानी रहा है। वह जापान की खास पहचान भी है, जहां काफी संख्या में बौद्ध अनुयायी दर्शन को जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जापान दौरे पर व्यापार व निवेश से लेकर दोस्ती में नया रंग भरने की कोशिश हो रही है। दरअसल, इस यात्रा का मुख्य मकसद भारत में बुनियादी ढांचे के विस्तार की परियोजनाओं के लिए जापानी सहयोग बढ़ाने और परमाणु समझौते के साथ-साथ वैश्विक, राजनीतिक व आर्थिक परिदृश्य में अपनी उपस्थिति को सुदृढ़ करना है।

वैसे भी भारत के साथ बेहतर संबंध जापान की एक महाशक्ति के रूप में फिर से स्थापित होने की आकांक्षा की पूर्ति और विश्वस्तर पर चीन की निरंतर बढ़ती शक्ति को संतुलित करने की दृष्टि से भी बहुत जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी अपने दौरे में इस मकसद में सफल होते नजर आ रहे हैं। दौरे का सार्थक परिणाम ही है कि एक झटके में धर्म की नगरी काशी को जापान के क्योटो शहर की तर्ज पर विकसित करने का करार हो गया। मतलब साफ है कि काशी ही नहीं, मथुरा, गया, अमृतसर, अजमेर और कांचीपुरम जैसे कई धार्मिक शहरों के लिए भी ऐसी ही योजनाएं हैं।

ये शहर धार्मिक पर्यटन के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हैं, मगर हाल के वर्षों में ये विकास की रफ्तार में पीछे रह गए हैं। लेकिन करार के बाद काशी भी अब दुनिया के चुनिंदा शहरों में एक होगा। हालांकि बाबा विश्वनाथ का बनारस वैसे भी पूरी दुनिया में जाना जाता रहा है, परंतु यहां का बदहाल इंफ्रास्टक्चर इसकी साख पर पलीता लगाता जा रहा था। पर अब ऐसा नहीं होगा।

उबड़-खाबड़ सड़कों, जाम नालियों-सीवर, अतिक्रमण, बेइंतहा बिजली कटौती जैसी समस्याओं से निजात दिलाकर एकबार फिर से काशी को हर तरह की सुविधाओं से सुसज्जित करने की तैयारी है। यह कारनामा कोई और नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने वाले हैं। करेंगे भी क्यों नहीं, आखिर यह उनका ही संसदीय क्षेत्र है।

प्रधानमंत्री मोदी अंतरराष्ट्रीय और द्विपक्षीय मामलों में पिछली सरकार के टालमटोल व अनिर्णय वाले रवैए से बाहर निकलकर भारत की पहुंच और उपस्थिति को सुदृढ़ करना चाहते हैं। दक्षिण एशिया, ब्रिक्स, विश्व व्यापार संगठन को लेकर रुख के अलावा पाकिस्तान को दो टूक जवाब, गाजा पर इजरायली हमले के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में मतदान जैसे कई मसलों पर मोदी सरकार ने राष्ट्रीय हितों के आधार पर व्यावहारिक व त्वरित निर्णय क्षमता का परिचय दिया है।

मोदी की जापान-यात्रा का एक प्रमुख तत्व 2008 के द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग समझौते को समुचित तौर पर लागू कराने का प्रयास भी है। इसमें वे बहुत हद तक सफल भी हो रहे हैं, ऐसा संकेत मिल रहा है। बहरहाल, सवाल यहां इस बात का है कि काशी को आधुनिक बनाने के लिए मोदी ने क्योटो को ही क्यों चुना। दरअसल, इसके पीछे उनकी मंशा यह है कि काशी को सिर्फ आधुनिक ही नहीं बनाया जाए, बल्कि यहां के हर हाथ को काम भी मिले।

क्योटो जापान का स्मार्ट शहर है, जो विरासत व आधुनिकता का संगम है। वहां से बड़ी संख्या में पर्यटकों का काशी आना-जाना होता है। यानी शिव के भक्त अब बौद्ध भक्तों का स्वागत करेंगे। वैसे भी काशी अगर मंदिरों का शहर है तो क्योटो भी इससे कुछ खास पीछे नहीं है, क्योंकि काशी में करीब 2300 मंदिर है तो क्योटो में 2000। काशी भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी मानी जाती है तो क्योटो भी लंबे समय तक जापान की प्राचीन राजधानी रहा है।

वह जापान की खास पहचान भी है, जहां काफी संख्या में बौद्ध अनुयायी दर्शन को जाते हैं। जबकि काशी का सारनाथ जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान दिया, वह भारत ही नहीं, पूरे विश्व में जाना जाता है और बौद्ध जगत में इसकी बहुत प्रतिष्ठा है। काशी अगर गंगा के किनारे बसा है तो क्योटो समुद्र के तट पर बसा शहर है।

ऐसे में काशी की ऐतिहासिकता भी बनी रहेगी और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। जाहिर-सी बात है कि जब पर्यटन बढ़ेगा तो काशीवासियों की आमदनी भी बढ़नी लाजिमी है। गौरतलब है कि काशी के गंगा निर्मलीकरण, गंगा घाटों की सफाई सहित अन्य योजनाओं की कार्यवाही पहले ही शुरू हो चुकी है।

भारत-जापान के बीच भागीदार शहर संबद्धता समझौते पर हस्ताक्षर के साथ ही स्मार्ट विरासत शहर कार्यक्रम की शुरुआत क्योटो के मेयर और भारतीय राजदूत के बीच लिखापढ़ी के साथ हो गई है। मालूम हो कि क्योटो का इतिहास नारा शासन 794 ईसा बाद की समाप्ति से शुरू होता है। करार के तहत धरोहर संरक्षण, शहर के आधुनिकीकरण, कला, संस्कृति और शैक्षणिक क्षेत्र में सहयोग पर सहमति जताई गई है।

दोनों शहर समानता और आपसी मान-सम्मान पर आधारित सिद्धांतों के तहत आदान-प्रदान और सहयोग का प्रयास करेंगे। दोनों सहमति वाले क्षेत्रों में लगातार सूचनाओं और विचारों का आदान-प्रदान और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग करेंगे। मतलब अब क्योटो के सहयोग व अनुभव से काशी का स्मार्ट सिटी बनना तय हो गया है। क्योटो-काशी स्मार्ट सिटी प्रोग्राम पर दस्तखत क्योटो के मेयर क्योतो कादोकावा और जापान में भारतीय राजदूत दीपा गोपालन वाधवा के बीच हुआ।

इस दस्तखत के गवाह स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समकक्ष शिंजो एबे बनें। यहां बताना जरूरी है कि मोदी ने वादे के मुताबिक अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी यानी काशी को इसकी सांस्कृतिक धरोहर को बरकरार रखते हुए 21वीं शताब्दी के शहर के रूप में विकसित करने का काशीवासियों को सपना दिखाया था और कहा था कि वे देश में सौ स्मार्ट शहर विकसित करेंगे, जिसमें काशी भी होगा।

वाराणसी का गंगा घाटकाशी के विकास की ललक में प्रधानमंत्री ने अपनी जापान यात्रा के कार्यक्रम में फेरबदल करते हुए सबसे पहले क्योटो जाने का फैसला किया था, ताकि वे इस शहर के अनुभव से सीख सकें। यहां तक कि जापानी प्रधानमंत्री भी पारंपरिक औपचारिकता को तोड़ते हुए स्वागत करने के लिए राजधानी टोक्यो को छोड़कर यहां पहुंचे। दोनों की मौजूदगी में इस समझौते पर दस्तखत किए गए। यह समझौता दोनों देशों के बीच स्मार्ट विरासत शहर कार्यक्रम की शुरुआत है।

मोदी की काशी समेत 100 शहर स्मार्ट बनाने की योजना के अनुरूप भी है। इसके जरिए विकास का विस्तृत खाका तैयार होगा। जो आने वाले दिनों में आगे और आपसी सहमति का आधार बनेगा। इसके अलावा वाराणसी की विरासत, पवित्रता और पारंपरिकता को कायम रखने और शहर के आधारभूत ढांचे को आधुनिकतम बनाने में मदद करेगा। साथ ही कला, संस्कृति और अकादमिक क्षेत्र में भी शहर के विकास में दोनों देश सहयोग करेंगे।

फिलहाल वर्तमान में क्योटो और काशी में क्या अंतर है, इस पर एक नजर डाल लेते हैं। क्योटो में कोई सरेराह थूक नहीं सकता, कचरा नहीं फेंक सकता, नदियों में फूलमाला या गंदगी नहीं कर सकता। यानी कुछ ऐसा ही करना होगा काशीवासियों को भी। घाटों-गलियों की साफ-सफाई, गंगा किनारे शौच आदि पर पूर्णतः प्रतिबंध बेतरतीब लगे खटालों को हटाना, ऑटो, रिक्शा व टैक्सी आदि द्वारा यातायात नियमों का कड़ाई से पालन, गलियों व घाटों पर समुचित प्रकाश, पर्यटन के लिहाज से जगह-जगह साइन बोर्ड, जाम वाले इलाकों में ओवरब्रिज, सीवर लाइनों का विस्तार, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट आदि पर विशेष ध्यान देना होगा।

क्योटो शहर बुलेट ट्रेन की सुविधा के साथ जापान के प्रमुख शहरों से जुड़ा है। क्योटो में सभी तरफ सब-वे, पाथ-वे हैं। क्योटो में इकोफ्रेंडली ट्रांसपोर्टेशन है, जिसके चलते क्लोरो-फ्लोरो कार्बन फ्री वाहन दौड़ते हैं। इसी तर्ज पर अब काशी का भी जीवन होगा। उच्च तकनीक, कम आबादी और ठंडे मौसम के कारण क्योटो के साथ ही जापान अब बिजली संकट से पूरी तरह पार पा चुका है। जबकि काशी में बिजली का घोर संकट है।

सारनाथ हो या वाराणसी के गंगाघाट, उन्हें संरक्षण के उच्च बिंदी की ओर ले जाने की जरूरत पड़ेगी। क्योटो में योदा, कामोगावा व कत्सुरा नदी सहित बीवा झील, नहर बेहद स्वच्छ व दर्शनीय हैं। जबकि काशी में गंगा किनारे के 84 घाटों के अलावा काशी में उत्सर्जित 400 एमएलडी मलजल निस्तारण की भी व्यवस्था करनी होगी। क्योटो मे अंतरराष्ट्रीय स्तर की अद्यतन सुविधाओं वाले दर्जनों अस्पताल हैं, जबकि काशी में बीएचयू हॉस्पिटल के अलावा कुछ खास नहीं है।

हालांकि एम्स की घोषणा हो चुकी है, लेकिन इसे जल्दी ही वास्तविकता के धरातल पर लाना होगा क्योटो की आबादी 15 लाख, क्षेत्रफल 827.9 वर्ग किमी, व्यवसाय कासीदाकारी, खिलौना व रेशम के कपड़े आदि से संबंधित हैं। जबकि काशी की आबादी 35 लाख से अधिक, क्षेत्रफल 3131 वर्ग किमी, व्यवसाय बुनकरी, बनारसी साड़ी, लकड़ी के खिलौने आदि से जुड़े हैं। इसके अलावा दोनों मंदिरों के शहर हैं, दोनों की अपनी-अपनी विरासतें हैं। दोनों ही धर्म व अध्यात्म से जुड़े हैं। दोनों ही अपने देश के आकर्षण के केंद्र बिंदु हैं।

अब काशी की प्रमुख समस्याएं भी जान लेते हैं। दरअसल, काशी का असली जीवन घाटों पर ही बसता है। बिजली, सड़क, पानी, सीवर जैसी समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं। मोक्ष की नगरी में शवदाह तक के ठीक इंतजाम नहीं हैं। गलियों में मलजल तो घाटों पर किचकिच है। हरिश्चंद्र घाट पर शवदाह गृह बना भी तो इसका लाभ नहीं मिल पाता। गंगा तट पर घाटों की विशाल श्रृंखला धीरे-धीरे दरक रही है।

वाराणसी में ज्ञान और कला की परंपरा मृतप्राय है। 300 एमएलडी सीवेज हर दिन गंगा में बहाया जा रहा है। अस्सी नदी के अस्तित्व पर ही संकट है। बिजली के संकट के समाधान के लिए 33 केवी के कई विद्युत उपकेंद्र स्थापित करने की योजना लटकी पड़ी है।

शिक्षा, संस्कृति, साहित्य, सांस्कृतिक गतिविधियों पर लगता ग्रहण, कछुआ सेंचुरी के नाम पर गंगा की खोदाई का न होना। साड़ी बिनकारी पर लगता ग्रहण, व्यापार में लगातार गिरावट, डीएलडब्ल्यू की तर्ज पर अन्य औद्योगिक इकाइयों की स्थापना न होना, रिंग रोड का अभाव, सीवेज ट्रीटमेंट का न होना, अतिक्रमण व जाम आदि वाराणसी की प्रमुख समस्याएं हैं।

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